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Essay on Doordarshan in Hindi | दूरदर्शन पर निबंध
वर्तमान युग में दूरदर्शन मनोरंजन के रूप में लोगों के लिए व्यवसायियों के लिए अधिक उपयुक्त ही नहीं, कामधेनु और कल्पवृक्ष अधिक बन गया है। जन-सामान्य के लिए अल्पांश में आज उपयुक्त रह गया है। चाहे समाचार हों, चाहें महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, प्रगेतिहासिक या राजनैतिक जो भी जानकारियाँ दी जाती हैं अथवा कितनी ही त्रासदी पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जा रहा हो, तुरन्त ही विज्ञापन के माध्यम से अथवा मनोरंजन के नाम पर हास्यास्पद दृश्य अवश्य प्रस्तुत कर दिया जाता है।
कारुणिक, हृदयविदारक घटनाओं को चित्रित किया जा रहा हो तभी एकदम दृश्य बदलेगा, देखने को मिलेगा कि राष्ट्रीय या सामाजिक घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे दृश्य परोस दिए जाएंगे जिनसे राष्ट्रीय घटनाओं से कोई ताल-मेल नहीं खाता है। इस तरह दूरदर्शन से मानवीय भावना का ह्रास करने में भी अपनी भूमिका निभा रहा है। दूरदर्शन मनुष्य जीवन पर सकारात्मक, नकारात्मक दोनों प्रभाव डाल रहा है।
उसे देखकर ऐसा लगता है कि घटना मेरे आँखों देखी है। इससे प्रायः अल्पायु के बच्चों की स्मरण शक्ति में समा जाती है। जो पढ़ाने से, बताने से इतना स्मरण नहीं रहता है जितना साक्षात् देखने से स्मरण रहता है। इस तरह से दूरदर्शन का सही उपयोग किया जाता है, तो अपेक्षा से अधिक उपयुक्त सिद्ध होता है। दूसरे ही क्षण इसी अल्पायु में दूरदर्शन के माध्यम से घिनोने कृत्य भी सीख जाता है, जिन्हें दोहराने से सामाजिकता कलंकित होती है।
ऐसी अनेक घटनाएँ अल्पायु के द्वारा की गई हैं, जिनका कारण दूर-दर्शन पर दिखाए दृश्यों का अनुरकण ही बताया गया है। आज भौतिक चकाचौंध इतना बढ़ गया है, जिसने इतना प्रभावित किया है कि बढ़ती हुई सुविधाओं का दुरुपयोगा होने लगा। अब परिवार में एक दूरदर्शन न होकर बेटे-बेटियों ने जिद् कर अपने कमरों में अलग-अलग दूरदर्शन की व्यवस्था की है। वह अपने बड़ों की नकल करता हुआ देर रात तक चैनल बदलता हुआ उस चैनल पर आँख गड़ा देता जो बहुत अच्छे लगते हैं और उनके लिए अच्छे होते हैं। फिर उनकी पुनरावृत्ति कर अपने
और समाज के लिए दूरदर्शन के महत्त्व को समझा देता है। इस तरह शैशव काल में सकारात्मक, नकारात्मक दोनों ही प्रभाव डालता है। दरदर्शन ज्ञान-वृद्धि के साथ मनुष्य की काल्पनिक विचार-धारा में वृद्धि कर उसकी जिज्ञासा को पूर्ण कर देने में सहायता करता है। अर्थाभाव में जी रहे मनुष्यों के लिए दुनिया के प्राकृतिक सौन्दर्यों का साक्षात् दर्शन असम्भव है।
दूरदर्शन के माध्यम से थोड़ी देर के लिए ही सही, उनके लिए असम्भव भी सम्भव जैसा लगता है। दूरदर्शन से लोगों को दुनिया के प्राकृतिक सौन्दर्य पहाड़ों, नदियों, वनों और समुद्र के ही दर्शन नहीं होते अपितु ब्रह्माण्ड की भी जानकारियाँ दी जाती हैं। जिनकी साधारण मनुष्य कल्पना ही नहीं कर सकता उनके साकार की तरह दूरदर्शन पर दर्शन करता है।
देश की उन परिस्थितियों के भी दर्शन करता है कि तपतपाती गर्मी, या रक्त को जमा देने वाली सर्दी में देश की सीमाओं पर लगे कैसे जीवन जीते हैं या सैनिक किन परिस्थितियों में सैनिक देश की रक्षा के लिए सन्नद्ध रहते हैं। धार्मिक स्थलों के भी दर्शन कर अपनी संस्कृति, सभ्यता और तीर्थों का घर बैठे ही दर्शन कर लिया जाता है।
इस तरह ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जिसे दूरदर्शन मनुष्य की जिज्ञासा को शान्त नहीं किया जाता है। बच्चे कार्टून देख भाव-विभोर होते हैं तो राजनैतिक लोग राज-नीतिज्ञों की उठा-पटक देखकर चकित होते हैं। सम्पूर्ण एक में समाहित है, जिसे All in one (ऑल इन वन कहना अतिशयोक्ति नहीं है। पलक झपकते ही किसी क्षेत्र में घटित घटना अथवा प्रेरणादायक कार्यक्रमों को समाचार मिल जाता है।
जब संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है तो ऐसा लगता है कि स्वयं देश की सर्वोच्च सभा में बैठे कार्यवाही देख रहे हों और उसकी सम्पूर्ण देश के प्रतिनिधियों को एक साथ बैठे द्वन्द्व करते हुए साक्षात् देख सकते हैं और उन्हें देखकर दाँतों तले अंगुली भी दबा सकते हैं। उनके सद्-आचरण से सीख भी ले सकते हैं। ऐसे ही क्रिकेट मैच के सीधे प्रसारण
का आनन्द वैसे ही उठा सकते हैं जैसे मानो स्टेडियम में बिना टिकट लिए बैठे हो। गणतन्त्र दिवस पर सहज में ही दूरदशन के सामने बैठ काय करत हुए, भाड़-भाड़ से दूर, किसी घटना की आशंका से निश्चिन्त उस समारोह को दख सकत स तरह दुरुपयोगी हुआ दूरदर्शन, उपयोगी नहीं रहा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। जब दरदर्शन की आलोचना करते हैं तो वह आलोचना दरदर्शन की हता वह आलोचना दूरदर्शन की न होकर दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले उन कार्यक्रमा
हो की आलोचना करते हैं जो किसी न किसी तरह पाश्चात्य अनुपयोगी संस्कति को परोस कर भारतीयता को प्रभावित करता है। ‘उपकार’ फिल्म का वह सम्वाद प्रभावित करता है, सन्देश देता है कि एक के पास में तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ नहीं हैं और दूसरे को तन ढकने का शौक नहीं है। धन की चकाचौंध में जो केवल धन को महत्त्व देते हैं, उन्हें देश के किसी कार्य से सम्बन्ध नहीं है। उन पर इच्छा-शक्ति का परिचय देते हए सरकार को प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। आश्चय
देश-हित के नाम पर अनेक संगठन हैं। उनके भी हर प्रयास राजनीति से जुड़ कर सिमट जाते हैं। बरसाता न बद थोडी सी हडबडाहट दिखाते हैं और उस सबके पीछे राजनैतिक साधना होती है। ये संगठन अपनी-अपना पला, अपना-अपना राग अलापते है। वर्तमान में दिखाए जाने वाल धारावाहिक, विज्ञापन, अनेकार्थक शब्द वाली भौडी भाषा का आने वाली पीढ़ी पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, इस देखते हुए लोगों का जन-आन्दोलन ऐसा करना चाहिए कि सरकार की आँखें खुली रह जाएँ और सरकार दण्डात्मक कार्यवाही करने के लिए विवश हो जाए।
दूरदर्शन का महत्त्व बना रहे। वह मानव-विनाश अर्थात मानव संस्कति के विनाश का कारण न बन जाए, यह ध्यान म रखते हए सरकार को, निदेशक, निर्देशकों को अपने कर्तव्य और देश-हित का ध्यान रखना चाहिए। धन के लालच में जो समाज के पास बुरा परोसा जा रहा है। वह कदापि ने अपने हित में है और न समाज, राष्ट्र हित में है।
इस पर विचार करना चाहिए। इस पर विचार न किया गया तो स्थिति ऐसी भयावह हो जाएगी कि बढ़ती हुई मंहगाई पर जिस तरह हाथ खड़े कर देती है। समय निकल जाने पर यही कहा जा सकेगा कि हमारे पास कोई ऐसा मन्त्र नहीं है, जिससे तुरन्त इस पर नियन्त्रण किया जा सके।
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