Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi | हातिमताई और पहला सवाल

इस कहानी में आप सभी Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi | हातिमताई और पहला सवाल का पूरा कहानी विस्तार से लिखा गया है।

Hatim Tai की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे – हातिमताई


हातिमताई का जाना और पहले सवाल का जवाब तलाश करके लाना – Hatim Tai and 1st Question Story

चला जा रहा राह में, हातिम चतुर सुजान ।
प्रभु के चरणों में दिया, जिसने अपना ध्यान ॥

चलते-चलते हातिम एक विकट वन में पहुंचा तो देखा कि भेड़िये एक हिरणी पकड़ रखी है और उसे खाना चाहता है । हातिम को दया आई और भेड़िये को फटकारा-अरे दुष्ट तू ये क्या करता है । देखो, इसके थनों से दूध बह रहा है। यह किसी बच्चे की मां है, तू एक साथ दो हत्या न कर । यदि तू इसे खा जाएगा तो इसका बच्चा भूखा मर जाएगा।

भेड़िया डर के मारे रूक गया और बोला-मैं जान गया कि अवश्य तू हातिम है, क्योंकि हातिम के सिवा और इतनी दया कौन कर सकता है । हिरणी को छोड़ देता हूं । परन्तु मेरी भूख कैसे बुझेगी ? तब हातिम ने भेड़िये से कहा-मैं भूख बुझाता हूं। ऐसा कहकर तलवार से अपनी जांघों का मांस काटकर भेड़िये के आगे रख दिया। जिसको खाकर उसकी भूख बुझ गई।

तब भेड़िया प्रसन्न होकर बोला-हे दयालु हातिम ! तुम्हें कैसा जरूरी काम है जिससे तुम अपने घर को छोड़कर इस वन में आए हो? यह सुन हातिम ने वन आने का सारा कारण सुनाया और (एक बार देखा है दूसरी बार देखने की इच्छा है) इस सवाल को बताकर कहने लगा कि भेड़िये, मैं इसी के जवाब की तलाश में निकला हूं। उसे सुन भेड़िया बोला मैं कभी-कभी वहां जाता हूं ।

पुराने प्राणियों से पता मिला कि उस स्थान का नाम वस्तर वेदा है । जो कोई वहां पंहुचता है, उसे सारे दिन यह आवाज सुनाई देती है । हातिम ने पूछा-वस्तर वेदा है कहां? तब भेड़िया फिर बोला-तुम इस ओर चले जाओ, कुछ आगे चलकर दो रास्ते पड़ेंगे । तुम दाहिने हाथ के रास्ते पर चल देना । ईश्वर की कृपा से तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। हातिम कोस भर चलाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया । उसकी कटी हुई जांघो में बड़ी पीड़ा होने लगी ।

वहीं एक गीदड़ की गुफा थी। सायंकाल नर मादा दोनों वहां पहुंचे तो गीदड़ी बोली-हमारी गुफा के पास कौन बैठा है? गीदड़ बोला-हे प्यारी बहुत दिन पहले मेरे पुरखे कहा करते थे कि इस पेड़ के नीचे किसी दिन हातिम आएगा । यह अभी एक भेड़िये से हिरणी के प्राण बचाकर और अपनी जांघो के मांस से भेड़िये की भूख बुझाकर आया है । इस समय इसकी जांघों में बड़ी तकलीफ है और इसे वस्तर बेदा पहुंचना हैं ।

हातिमताई की ऐसी बड़ाई सुनकर गिदड़ी कहने लगी -प्राणनाथ इसको तो बड़ा भारी कष्ट है । इस कष्ट में भला यह इतनी दूर कैसे पहुंच सकेगा? गीदड़ बोला-एक जीव है परिरूप । उसके सिर का गुदा इसके घावों पर लगाया जाए तो घाव भर जायेगा । परन्तु इसमें है बड़ी कठिनाई । उस परिरूप जानवर का सारा शरीर मोर का सा है और सिर मनुष्य मनुष्य के समान है । निवास उसका मजिन्दन के वन में है । यदि तू सात दिन तक इसकी सेवा में अपना मन लगावें तो मैं उसके सिर का गुदा ला सकता हूं। गिदड़ी बोली – तुम जल्दी जाकर औषधी लाओ, मैं इसकी सेवा में लगी रहूंगी।

इतनी बात सुन गीदड़ दौड़ा और मजिन्दन के वन में पहुंचा। क्या देखता है कि परिरूप जानवर एक पेड़ के नीचे सो रही है । गीदड़ ने तत्काल उसका सिर अपने दांतों से कांटा और अपने मुंह में दबाकर अपनी गुफा पर आ गया । गीदड़ ने आते ही उसका सिर तोड़कर गुदा निकाला और हातिम के घावों पर भरा तो जांघ ज्यों का त्यों हो गई।

हातिमताई ने कहा-हे भाई तूने तो बड़ा काम किया । अब तू मुझे अपना कोई काम बता जिसे मैं करूं। यह सुन गीदड़ बोला-यहां एक जानवर जिसका नाम गुफ्तार है, हमारे बच्चों को खा जाता है। अगर हो सके तो उससे हमारा पीछा छुड़ा दे। यह कहकर गीदड़ उन जानवरों को दिखाकर, अपने एक स्थान पर छिपके बैठ गया। अब हातिम ने उन जानवरों के नख और दांत तोड़ दिए, तब रो-रोकर वो वोले-हे मनुष्य, अब हम किस प्रकार अपना पेट भरेगें।

इतने में ही प्रसन्न होता हुआ गीदड़ आकर बोला-जब तक हम जीवित हैं तब कहीं न कहीं से इनका पेट अवश्य भरेगें तब तो जानवर अपने दुःख को भूल गए और हातिम भी बड़ा प्रसन्न हो चलने लगा और गीदड़ से बोला-हे भाई मुझे वस्तर वेदा की राह बता दे। गीदड़ ने रास्ता बता दिया और हातिम ने ईश्वर का नाम ले चल दिया।

बड़ी देर चलता रहा तो इतने में ही लगभग दो सौ रीछ उसके पास आये और प्रसन्न होकर कहा-तुम तो मुझे हातिम दिखाई देते हो । तब हातिम बोला-जी हां मैं हातिम ही हूं।

एक आवश्यक कार्य से जा रहा हूं। रीछों के राजा ने कहा-मैं तुम्हारे आगमन से बड़ा प्रसन्न हूं और अपनी पुत्री का ब्याह तुझसे करना चाहता हूं। यह रीछों का जंगल है और मैं इनका राजा हूं। मेरी पुत्री तुम्हारे ही योग्य है । इसलिए तुम उसे स्वीकार करो, बड़ी कृपा होगी । यह सुन हातिम चुप हो गया और थोड़ी देर पीछे यूं कहने लगा-हे रीछराज, तुम जानवर हो और मैं मनुष्य हूं ।

भला यह मेल कैसे मिल सकता है? रीछों का राजा बोला-रात्रि का आनन्द पशु और मनुष्य दोनों का एक समान है। इसलिए तुम सारी चिन्ता को त्याग मेरे जमाता बनो। ऐसे कहकर सबरीछों को आज्ञा दी कि एक उत्तम स्थान में मेरी पुत्री को सजाकर लाओ। अपने राजा की आज्ञानुसार रीछों ने यह काम बड़ी शीघ्रता से कर दिया।

रीछराज ने अपनी पुत्री का विवाह हातिम के साथ कर दिया । दोनों के रहने के लिये एकांत में स्थान बता दिया । रीछराज की पुत्री औरतों सी महान सुन्दरी थी । उससे आनन्द पूर्वक भोग विलास करने लगा और मेवा खा-खाकर पेट भरने लगा । एक दिन हातिम अपनी पत्नी से कहने लगा-हे प्यारी, मैं ईश्वर की राह में झूठ बोलने को महापाप समझता हूं।

देखो मैं एक, बड़े आवश्यक काम के लिए जा रहा था लेकिन तेरे पिता ने मेरे साथ तेरा व्याह कर दिया। अब यहां रहते-रहते बहुत दिन हो गए और उस काम को पूरा करने के लिए मेरा मन कर रहा है । इसलिए तू अपने पिता से कहकर मुझे विदा करा दे । मैं कार्य पूरा करके तुझसे जरूर मिलूंगा ।

यह सुनते ही वह अपने पिता से जाकर बाली-हे पिताजी, वह आदमी तो अब अपने काम से जाना चाहता है, इतनी सुन रीछराज ने हातिम को बड़े आदर से विदा कर दिया और अपने राज्य की सीमा तक पहुंचाने को बहुत सा रीछ उसके साथ भेज दिए।

रीछ उसे सीमा तक पहुंचाकर लौट आए । हातिम चलते-चलते एक ऐसे वन में पहुंचा जिसमें अन्न तो क्या जल का भी निशान नहीं था । जब चलते चलते शाम हो गई तो बड़ा तालाब दिखाई दिया। हातिम उसमें जाकर स्नान किया और फिर किनारे बैठ गया । इतने में एक नंगी स्त्री निकली और हातिम का हाथ पकड़कर उसी तालाब में ले गई। हातिम बड़ा घबराया । लेकिन ज्योंही हातिम का पैर जमीन में लगा त्यों ही अपने को उस स्त्री समेत हरे भरे बगीचा में पाया ।

अब वो नंगी स्त्री तो वहां से लोप हो गई और हातिम उस बगीचे में घूमने लगा । इतने ही में एक सुन्दर नारियों का झुण्ड सोलह सिंगार किए सामने आया । हरेक सुन्दरी हातिम को अपनी ओर खींचने लगी । वह सुन्दरी हातिम को एक ऐसे मकान में ले गई जो जवाहरात से जड़ा हुआ था और उनके एक दालान में एक रत्नों से जड़ा सिंहासन बिछा था ।

जब हातिम उसके पास खड़ा हुआ तो वह सब सुन्दर स्त्री, जो वास्तव में परियां थी उन तस्वीरों में जा मिली, जो उस मकान की तस्वीरों की भंति दीवार से लटक रहा है । वह अचरज करने लगा, कि हे भगवान यह कैसी नारी थी और तत्काल ही तस्वीरों में जा समाई। कुछ देर हातिम के मन में यह बात आई कि जो होगा सो देखा जाएगा। सिहासन पर तो बैठ लूं । तब हातिम उस पर बैठ गया । इतने में ही उन तस्वीरों में एक चन्द्रमुखी सुन्दरी संजीव हो हातिम के सामने आकर खड़ी हुई।

हातिम उसे देखकर मोहित हुआ। चाहा कि उसका हाथ पकड़ कर छाती से लगा लूं। परन्तु हातिम सावधान रहा और तीन दिन उसी सिंहासन पर बैठा रहा जब रात होती तो उस स्थान पर कपूर, बत्ती अपने आप जल उठती और बहुत अच्छा बाजा बजने लगता था और चन्द्रमुखी सिंहासन से नीचे खड़ी हो जाती थी। हातिम को देख कर मुस्कुराती थी। तब हातिम ने उस चन्द्रमुखी का हाथ पकड़कर ऊपर खींचना चाहा ।

जैसे ही हाथ पकड़ा वैसे ही हातिम की छाती पर ऐसी लात मारी कि वह बेहोश हो गया और जब थोड़ी देर में होश आया तो क्या देखा कि न तो वहां सुन्दर परियां हैं, किन्तु एक सुनसान जंगल है, जिसका कहीं आर पार नहीं है। यह देख हातिम ने जान लिया कि अवश्य ही यह वस्तर वेदा है और उस शब्द का उच्चारण करने वाला मनुष्य भी यहां होगा ।

(एक बार देखा है दूसरी वार देखने की इच्छा है) लीजिए अब तो वह आवाज हातिम के कानों में आने लगी। हातिम उसकी ओर चल दिया जिस ओर से आवाज आ रही थी। उसने कुछ दूर चलकर क्या देखा कि एक बूढ़ा मनुष्य खाट पर बैठा है । हातिम ने उसको सलाम किया । वह बोला-क्या काम है?

हातिम ने उत्तर दिया – मैं इस बात की तलाश में हैं कि तुम जो पुकारते हो कि एक बार देखा है और दूसरी बार देखने की इच्छा है इसका क्या कारण हैं? यह सुनकर बूढ़ा बोला-अच्छा तुम मेरे पास यहां आकर बैठो । बैठो । मैं तुझे भेद बताऊँगा । हातिम उसकी आज्ञानुसार बैठ गया। रात हर्ड तो क्या हुआ कि अपने ही आप दो रोटी और दो गिलास पानी उस बूढ़े के पास आ गया। बूढ़े ने एक रोटी एक गिलास तो हातिम को दिया और एक रोटी एक गिलास आप ले लिया ।

अब दोनों ने रोटी खाई और पानी पिया । तब वह बूढ़ा कहने लगा- हे मुसाफिर एक बात सुन । एक दिन दिल बहालाने को घूमता हुआ मैं किसी तालाब पर पहुंचा तो पहुंचते ही एक नंगी स्त्री उस तालाब से निकली और मेरा हाथ पकड़कर खींच ले गई । जब मेरा पैर नीचे जाकर जमीन से लगा तो तत्काल ही अपने को एक हरे-भरे बगीचे में देखा और वह स्त्री लोप हो गयी । परन्तु फिर परियों के झुण्ड के झुण्ड मेरे सामने आए ।

उन परियों ने एक रमणीक मकान में ले जकर मुझे एक सिंहासन पर बैठा दिया। एक चन्द्रमुखी मेरे पास आई तो मैं मूर्छित हो गया । थोड़ी देर में होश आया तो न रूका गया । मैंने उसका हाथ पकड़ के अपनी ओर खींचा तब, उसने छाती में ऐसी लात मारी कि मैं इस विकट वन में आ पड़ा । उसी दिन से यह दुर्दशा है । बहुतेरा चाहता हूं कि उस रमणीक स्थान की ओर उस चन्द्रमुखी को दूसरी बार देखू परन्तु कुछ दिखाई नहीं देता।

ऐसे कहकर वह बूढ़ा पागल की तरह भागा और कहनेलगा कि-एक बार देखा है दूसरी बार देखने की इच्छा है । यह सुन हातिम ने जान लिया है कि यह बिरह का सताया है। तब उसे पकड़ कर बिठाया और कहने लगा कि क्यों बाबा, तू वहां पहुंच जावे तो खुश होगा ? मैं तुझे उसी स्थान पर पहुंचाऊगा, तेरी प्यारी से मिलाऊंगा। इतनी बात सुनकर बूढ़ा हातिम के साथ हो लिया ।

चलते-चलते एक पेड़ के नीचे पहुंचे जो उस तालाब से थोड़ी दूर पर था । तब हातिम ने कहा-हे बाबा ! जो तू अपनी प्यारी को देखना चाहता है, तो उसका हाथ कभी न पकड़ना । वह तेरे आगे हाथ जोड़े खड़ी रहेगी। नहीं तो इसी जंगल में आना पड़ेगा । अब तू जा और उस तालाब के तीर पर खड़ा हो जा।

यह सुनते ही बुढ़ा तालाब पर पहुंचा और नंगी नारी तालाब में से निकली और झट से उस बूढ़े का हाथ पकड़कर पानी में ले गई और हातिम शाहाबाद की ओर चलने लगा। कुछ दिन में शाहबाद आ गया । वहां हुस्नबानू के नौकर ने अपनी स्वामिनी को उसका संदेश सुनाया । यह सुनते ही हुस्नबानू ने परदे के बाहर कुर्सी बिछवा दी ।

हातिम उस पर जाकर बैठ गया। तब वह बोली-तुम क्या जवाब लाए? तब हातिम कहने लगा-हे सौदागर की लड़की, वहां एक बूढ़ा, एक चन्द्रमुखी के बिरह का सताया था जो वह आवाज लगाता था एक बात तो देखा है दूसरी बार देखने की इच्छा है। मैने उसे उनकी प्यारी से मिला भी दिया । अब यह शब्द सुनाई न देगा । यह सुन धाय और हुस्नबानू धन्य-धन्य कहने लगी।

तब हातिम सराय में गया और मुनीरशामी के पास आठ दिन विश्राम किया और नवें दिन हुस्नबानू के पास आकर कहने लगा-कि अब तुम दूसरा सवाल बताओ।


दोस्तों आपको यह Hatim Tai and 1st Question Story in Hindi | हातिमताई और पहला सवाल का कहानी कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आप किसी अन्य कहानी को पढ़ना चाहते है जो इसमें नहीं तो वो भी बताये। हम उसे जल्द से जल्द अपलोड कर देंगे।

1 thought on “Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi | हातिमताई और पहला सवाल”

Leave a Comment