दोस्तों इस आर्टिकल में आज मै आपको Kiran Bedi Biography in Hindi में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल पढ़ के किरण बेदी की जीवनी पता चल जाये।
Kiran Bedi Biography in Hindi
Kiran Bedi का नाम सुनते ही एकदम दिमाग और दिल खुश और गर्व महसुस करने लगता है कि वही किरण बेदी जिन्होंने जेलों को सुधार कर विश्व स्तर पर भारतीय पुलिस की छवि सुधारी है। वे चाहे पुलिस के किसी पद पर हो या फिर यातायात के, वे जहां भी गई एक साफ-सुथरी छवि बनाई।
वास्तव में ही श्रीमती किरण बेदी ममतामयी आदर्श नारी हैं। उन्होंने कैदियों को यातनाएं नहीं दी बल्कि पवित्र और विनम्र साधनों के माध्यम से उनका हृदय-परिवर्तन किया। तिहाड़ जेल में जब श्रीमती किरण बेदी ने ध्यान-शिविर प्रारंभ किए तो उसकी चर्चा संसार भर में हुई और उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें विश्व-स्तरीय मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह एकमात्र भारतीय पुलिस अधिकारी है जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने आमंत्रित किया था।
भारतीय पुलिस-सेवा में पुलिस महानिरीक्षक के पद पर दिल्ली में नियुक्त श्रीमती किरण बेदी आई.पी.एस. को कौन नहीं जानता? वह एक ऐसी कर्मठ, लगनशील और जुझारू महिला हैं कि उनके द्वारा केंद्रीय तिहाड़ जेल में किए गए अगणित सुधारों में उनकी ख्याति बहुत दूर-दराज तक फैल गई। निःसंदेह श्रीमती किरण बेदी महिला-समाज का एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिनके मार्गदर्शन में हुए जेल सुधारों के कारण उनका नाम भारतीय पुलिस के इतिहास में सर्वदा अमर रहेगा।
Kiran Bedi Date of Birth (किरन बेदी का जन्म)
किरन बेदी का जन्म 1948 ई. में अमृतसर के एक पंजाबी परिवार में हुआ।
Short जीवनी
Date of Birth (जन्मतिथि) | 9 जून 1949 |
Birthplace (जन्मस्थान) | अमृतसर, पंजाब |
Kiran Bedi Age (आयु) in 2020 | 71 years (वर्ष) |
Zodiac Sign (राशि) | Gemini (मिथुन) |
पिता | प्रकाश लाल पेशावरिया (वस्त्र व्यवसायी) |
माता | प्रेम लता |
भाई | कोई नहीं |
बहन | शशि रीता पेशावरिया (टेनिस खिलाड़ी, लेखक) अनु (टेनिस खिलाड़ी) |
राष्ट्रीयता | Indian (भारतीय) |
Hometown | अमृतसर, पंजाब |
Home Address (Currently) | 56, फर्स्ट फ्लोर, उदय पार्क, नई दिल्ली -110049 |
Height लम्बाई (लगभग) | 5 feet 3 inches |
Weight वजन/भार (लगभग) | 55 Kg |
Eye Colour (आँखों का रंग) | Black (काला) |



Kiran Bedi Education
उनकी शिक्षा-दीक्षा अमृतसर के राजकीय कन्या महाविद्यालय में हुई। उस जमाने में लड़कियों को पढ़ाने का अधिक प्रचलन नहीं था। लोग अपनी लड़कियों को विवाह के योग्य बनाने के उद्देश्य से पढ़ाते थे। ऐसे कम ही लोग थे जो अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा देकर उनका बौद्धिक विकास कर उनका जीवन-स्तर ऊंचा उठाने अथवा सरकारी उच्च पदों पर आसीन करने के इरादे से उन्हें अधिक पढ़ाते-लिखाते थे।
स्कूल | सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल, अमृतसर (1954) |
कॉलेज | • सरकारी कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर • पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ • दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली • आईआईटी, दिल्ली |
शैक्षणिक योग्यता | • स्नातक (अंग्रेजी में ऑनर्स) (1968) • परास्नातक (राजनीति विज्ञान) • दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून डिग्री (1988) • पीएचडी (सोशल साइंसेज) (1993) |
Kiran Bedi प्रखर बुद्धि की बालिका थी और पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी रुचि रखती थीं। वह टेनिस खेलने की बहुत शौकीन थी। सर्वप्रथम किरण बेदी ने सन् 1972 ई. एशिया महिला टेनिस प्रतियोगिता जीत कर राष्ट्र का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसी दौरान किरण की मुलाकात श्री व्रज बेदी (Kiran Bedi Husband) से अमृतसर के खेल के मैदान में हुई। श्री व्रज बेदी भी टेनिस के जाने-माने खिलाड़ी थे।
Kiran Bedi Husband
धीरे-धीरे किरण और व्रज बेदी के बीच आत्मीयता बढ़ी और बराबर एक-दूसरे मिलते रहे, निकट आते गए तथा परस्पर प्रगाढ़ मैत्री हो गई। कुछ समय पश्चात उन दोनों के प्रेम की परिणीति विवाह के रूप में परिवर्तित हो गई। उनका विवाह 9 march 1972 को हुआ था। प्रेम-विवाह के पश्चात् श्रीमती किरण बेदी तथा श्री व्रज बेदी साथ-साथ रहने लगे। श्री व्रज बेदी अमृतसर नगर में ही एक टूल्स की फैक्ट्री के मालिक हैं, साथ ही एक सुविख्यात फोटोग्राफर भी हैं। व्रज बेदी की मृत्यु 2016 में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।



Career in Hindi
युवा महिला टेनिस विजेता श्रीमती किरण बेदी अपने देश और समाज के लिए बहुत कुछ करने की महत्वाकांक्षाएं रखती थी। इसी आकांक्षा को लेकर श्रीमती किरण बेदी अपने विवाहोपरांत भारतीय प्रशासनिक सेवा (Police Service) की प्रतियोगिता में सम्मिलित हुई और फिर प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के उपरांत उन्होंने भारतीय पुलिस-सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। श्रीमती किरण बेदी ने सन् 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में पदार्पण किया।
सन् 1972 से सन् 1982 तक अपने पुलिस सेवा के आगामी दस वर्ष तक श्रीमती Kiran Bedi के कोई उल्लेखनीय कार्य दृष्टिगोचर नहीं हुए। सन् 1982 में श्रीमती किरण बेदी ने जनता का ध्यान दिल्ली पुलिस यातायात की डिप्टी पुलिस कमिश्नर बनकर आकर्षित किया। श्रीमती किरण बेदी ने दिल्ली यातायात पुलिस में जो सुधार किए उनके कारण उनका नाम व यश समाचार पत्रों की प्रमुख पंक्तियों में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित होने लगा। धीरे-धीरे श्रीमती किरण बेदी की शोहरत चहुं ओर बढ़ने लगी और दिल्ली की जनता उन्हें किरण बेदी के बजाय क्रेन बेदी के नाम से पुकारने लगे।
इस दरम्यान श्रीमती किरण वेदी ने पुलिस की परंपरागत शैली से हटकर भिखारियों के पुनर्वास के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया। दिल्ली में भिखारियों की काफी संख्या थी जिन्हें बसाने की सुविधा दी गई तथा उन्हें काम-धंधा व रोजगार दिलाने के लिए सरकारी कर्जा दिलाया गया।
Transfer Out of Delhi
जनवरी, सन् 1988 में जब श्रीमती Kiran Bedi ने दिल्ली में वकीलों पर लाठीचार्ज करवाया। इसका जमकर विरोध हुआ। परिणाम इसकी जांच के लिए ‘वाधवा कमेटी’ बनाई गई। यह बहुत विवाद का विषय रहा और इसके कारण श्रीमती किरण बेदी का स्थानांतरण दिल्ली के बाहर कर दिया गया। वह दो वर्ष नशीली औषधि-नियंत्रण ब्यूरो की उप-निदेशक (Deputy Director) रही।
Transfer to Mizoram
सन् 1990 में श्रीमती किरण बेदी ने मिजोरम में पुलिस उप-महानिरीक्षक के पद को सुशोभित किया। मिजोरम में श्रीमती किरण बेदी को समस्याओं और विरोधों का सामना करना पड़ा।
Kiran Bedi Daughter
जब उन्होंने मिजोरम की निवासी दर्शा कर अपनी बेटी (Saina Bedi) की मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली में एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष में प्रवेश दिलाया तो इसका बहुत विरोध हुआ। नतीजतन इस कठिन विरोध के कारण इस प्रवेश को अमान्य घोषित कर दिया गया। अतः श्रीमती किरण बेदी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट दायर कर दी और अंत में इस मुकदमे में विजय हुई और उनकी बेटी पुनः एम.बी.बी.एस. में प्रविष्ट कर ली गई। उसने पढ़ाई आगे जारी रखी और एम.बी.बी.एस. डिग्री हासिल कर ली।
बच्चे | बेटा – कोई नहीं बेटी – सुकृति (साइना) (जन्म सितंबर 1975 में) |
Saina Bedi Age | 45 Years |
Saina Bedi Husband | नहीं पता |



Punishment Transfer to Tihar Jail
मई सन् 1993 में श्रीमती किरण बेदी का स्थानांतरण दिल्ली की केंद्रीय तिहाड़ जेल में किया गया। वास्तव में यह स्थानांतरण श्रीमती बेदी के दंडस्वरूप किया गया था, परन्तु उस वक्त जेल में उन्होंने जो सुधार-कार्य किए उन सुधारों ने श्रीमती किरण बेदी के करियर में चार चांद लगा दिए। । तिहाड़ जेल में श्रीमती किरण बेदी ने जो महत्वपूर्ण सुधार किए उसके लिए उन्हें मैगसेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। भारतीय पुलिस सेवा की महिला पुलिस उपमहानिरीक्षक श्रीमती किरण बेदी का यह बहुत बड़ा सम्मान था।
उन दिनों केंद्रीय तिहाड़ जेल एक जीवित नरक के समान थी। तस्करों, नशीले पदार्थों को विक्रय करने वालों तथा नशा करने वालों और माफिया । गिरोह के वीभत्स सरगनाओं का तिहाड़ जेल में साम्राज्य था। इसके अतिरिक्त जेल में रहने वाले कैदी, क्रूर हत्यारे, बालिकाओं के साथ जोर-जबरदस्ती बलात्कार करने वाले, आतंकवादी और आई.एस. आई. के एजेंट थे।
इन खतरनाक और खूंखार कैदियों की एक झलक से जेल का स्टाफ कांप उठता था और उन पर नियंत्रण पाना अत्यंत कठिन था। इन वीभत्स कैदियों को नियंत्रित करने के लिए तमिलनाडु की विशेष पुलिस बल को रखा गया था। ऐसे समय में श्रीमती किरण बेदी ने कारागार के कैदियों के लिए जीवन का एक सकारात्मक रूप दिया।
Kiran Bedi Helping Prisioner for Study & Skills
सर्वप्रथम श्रीमती किरण बेदी के कारागार के शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया। प्रातःकाल दो घंटे की पढ़ाई सभी कैदियों के लिए अनिवार्य कर दी गई। जो कैदी पढ़े-लिखे शिक्षित थे उन्हें अनपढ़ अन्य कैदियों को पढ़ाने-लिखाने का कार्य सौंपा गया। वे कैदी आगे पढ़ने के इच्छुक थे, आगे अध्ययन करना चाहते थे।
उनके आगे पढ़ाई जारी रखने का प्रबंध किया गया। विजय सिंह नामक कैदी जो कि सन् 1982 से Undertrial था, को पुस्तकालय की सुविधाएं प्रदान की गई। इस प्रकार उसने फौजदारी कानून का गहन अध्ययन किया, और वह फौजदारी कानून में इतना माहिर हो गया कि उसने अन्य कई कैदियों के पिटीशन आदि कराने में उनकी सहायता की।
श्रीमती किरण बेदी के सत्प्रयासों से कैदियों के काम करने की दशा में भी बहुत सुधार हुआ और कैदियों को अपने काम से अर्थ-लाभ भी हुआ। कैदियों से इस प्रकार कपड़ा बनवाया गया कि जिसका विदेशों में निर्यात हुआ। बढ़ईगिरी के प्रशिक्षण कार्य में भी पर्याप्त सुधार किया गया और जेल में कैदियों की टेलीविजन तथा ऑटो मोबाइल की मरम्मत आदि की भी ट्रेनिंग दी गई। इन कार्यों को अंजाम देने से बंदियों को पैसे मिलने लगे।
समाचार-पत्रों में तिहाड़ जेल के सुधार और कायाकल्प की खबरें पढ़कर लोगों का इस ओर ध्यान आकर्षित हुआ और जगह-जगह श्रीमती किरण बेदी की प्रशंसाएं होने लगी। तमाम समाज-सेवी व राजनीतिज्ञ जेल का निरीक्षण करने जाने लगे।
तत्कालीन केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन और भाजपा नेता साहब सिंह वर्मा आदि अक्सर तिहाड़ जेल का निरीक्षण करने जाते रहे। तत्कालीन दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने श्रीमती किरण बेदी की कार्यप्रणाली पर सहमति प्रकट करते हुए भूरि-भूरि प्रशंसा की। सभी नेताओं व समाजसेवी श्रीमती किरण बेदी के कल्याणकारी कार्य से बहुत प्रभावित हुए।
Blame on Kiran Bedi
तिहाड़ जेल में कार्य करते समय श्रीमती किरण बेदी पर मुजरिम चार्ल्स शोभराज के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का इल्जाम लगाया गया। चार्ल्स शोभराज एक कुख्यात अंतरराष्ट्रीय अपराधी था। यह दोषारोपण किया गया कि चार्ल्स शोभराज श्रीमती किरण बेदी की जीवनी लिख रहा है, इसलिए उसे टाइप राइटर दिलाया गया है।
इसके अतिरिक्त शोभराज को भोजन में मांस दिया जा रहा है-आलोचकों द्वारा इन सब बातों की कड़ी आलोचना, दोषारोपण और नुक्ताचीनी जोरदारी से की गई। परंतु यह आलोचना व्यर्थ थी क्योंकि जेल-प्रशासन सुधारने के लिए ऐसा करना लाजमी था और चार्ल्स शोभराज को ये सारी सुविधाएं भारतीय उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) की आज्ञा से दी गई थी।
कारागार-प्रशासन सुधार हेतु श्रीमती किरण बेदी ने जो प्रजातंत्रात्मक और साहसिक कदम उठाया, वह बहुत ही प्रशंसनीय है। उदाहरण के लिए महिला कैदियों के लिए श्रीमती किरण बेदी ने पंचायत बनवाई। यह पंचायत महिलाओं के आर्थिक झगड़ों का निपटारा कराती थी और जेल-प्रशासन से भांति-भांति की सुविधाओं की मांग करती थी।
ऐसी व्यवस्था की गई की जेल-प्रशासन की शिकवा-शिकायत पिटीशन ऑफिसर के द्वारा श्रीमती किरण बेदी तक पहुंचाई जाएं ताकि वह इनका अविलंब उचित निराकरण कर सकें। वैसे वास्तविकता यह है कि श्रीमती किरण बेदी की यह कार्य-प्रणाली भारतीय जेलों की परंपरा से | हटकर थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कैदियों के द्वारा हिंसात्मक जो घटनाएं होती थी। वह पूर्णतया समाप्त प्रायः हो गई। छः महीने के अंतर्गत ही श्रीमती किरण बेदी के सत्प्रयास के जघन्य हिंसात्मक घटनाओं की संख्या घटकर शून्य रह गई।
वास्तव में ही किरण बेदी भारतीय चेतना की प्रतीक बन गई हैं। उनकी छवि एक बोल्ड पुलिस अधिकारी की रही है। विभिन्न पदों पर और विभिन्न विभागों में रहते हुए उन्होंने अपना नाम रोशन किया है।
Interview of Kiran Bedi
एक बार वार्ता के दौरान श्रीमती किरण बेदी ने बताया- “हमारा मकसद समाज को अपराधों से मुक्त करना है। अब तक हम पुलिस वाले अपराधियों को पकड़कर उन्हें सजा देकर अपराध रोकने का प्रयास करते रहे हैं। परंतु होता यह है कि अपराधी छूट जाता है और दोबारा पुनः पुनः अपराध करता है। वह फिर पकड़ा जाता है। दोबारा पकड़े जाने का अर्थ यह है कि हम अपराध को रोकने में नाकाम रहे। अपराध और अपराधी अपनी जगह पर कायम रहा। पारंपरिक तरीका असफल सिद्ध हुआ है।
अपराध तभी कम होंगे, जब हम आपराधिक प्रवृत्तियों को समाप्त करने का प्रयास करें और अपराधियों के हृदय-परिवर्तन की कोशिश करें। अपराधियों की मानसिकता बदलने का मुद्दा शुरू से ही पुलिस विभाग की चिंता का विषय रहा है। ऐसे ही सुधार की अपने ढंग से एक पृष्ठभूमि तैयार की है। मैंने कैदियों के सुधार के बारे में मैं प्रारंभ से ही सोचती रही हूं। मैंने कैदियों के सुधार की अपने ढंग से एक पृष्ठभूमि तैयार की है। मैंने इस दिशा में काफी प्रयोग व प्रयास किए हैं।
किरण बेदी की सोच
बुनियादी सच यह है। कि कैदी अपने-आपको बदलना चाहते हैं। मैं मानती हूं कि जेल एक अस्पताल है, जहां कैदी का इलाज किया जाना चाहिए। अपराध वास्तव में बीमार मानसिकता से उपजता है, जिसकी चिकित्सा किया जाना आवश्यक है। सजा और इलाज में फर्क होता है। जेल में कैदी नियंत्रण में रहते हैं और इसे नियंत्रण के दायरे में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। उन्हें शिक्षा दी जा सकती है।
योग के जरिए, ध्यान और मनोचिकित्सा के लिए उन्हें बदला भी जा सकता है। आवश्यक नहीं है कि हम कैदियों को भद्दी गालियां दें। उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करें। नृशंस व्यवहार से मानवता के प्रति उनका विश्वास कम हो जाता है। इस तरह हम उन्हें बदलते नहीं है, बल्कि उन्हें और भी अपराध की दुनिया में धकेलते हैं।
मैं जिस उद्देश्य को लेकर चल रही हूं वह बहुत व्यापक है। यह बहुत नाजुक और जिम्मेदारी से भरा काम है। बहरहाल, मैं अपने मकसद में पूरी ईमानदारी से जुटी हूं।” वार्ता करते हुए श्रीमती किरण बेदी ने बताया था कि “मेरा तो शुरू से ही यह मत रहा है कि पुलिस एक सुधारवादी संस्था है। इसे हमने यातना-बल
के रूप में विकसित किया है। जेल यातना-शिविर बन गए हैं। अगर पुलिस अपनी सुधारवादी भूमिका ईमानदारी से निभाए तो निश्चित रूप से अपराध कम होंगे। आज जरूरत न केवल कैदियों को सुधारने की है, अगर यहां बंदी-सुधार योजनाओं पर अमल किया जाए तो किसी भी अन्य देश के मुकाबले में हमारे यहां ज्यादा आश्चर्यजनक परिणाम सामने आएंगे।
मिसाल के तौर पर ध्यान का सिद्धांत इतना जबरदस्त है कि इसका कैदियों पर चमत्कारिक असर होता है। नैतिक और धार्मिक संस्कार हमारी बहुत मदद करते हैं। जब हम जेलों में ध्यान-ज्ञान के शिविर चलाते हैं तो इनका जादुई असर होता है, क्योंकि बाहर के मुकाबले में जेल की चारदीवारी अधिक नियंत्रित है।
यहां सुधार की गति बाहर की तुलना में ज्यादा होता है। मैं तिहाड़ जेल को एक आश्रम में बदलना चाहता हूं। जो लोग, हमारे शिविरों में भाग लेने के पश्चात् जेल से रिहा हुए हैं वे कहते हैं कि यह जेल नहीं आश्रम हैं। सुधार-कार्यक्रमों ने जेल के वातावरण को बदल कर रख दिया है। अब वहां का माहौल घिनौना और भयावह नहीं है, बल्कि तेजी से यह एक पवित्र आश्रम के रूप में परिवर्तित हो रहा है।”
प्रमुख पद
1975 – नई दिल्ली में चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन में उप-मंडल पुलिस अधिकारी।
1979 – पश्चिमी दिल्ली, डीसीपी।
1981 – डीसीपी (यातायात) दिल्ली।
1983 – एसपी (यातायात) गोवा।
1984 – उप कमांडेंट (नई दिल्ली में रेलवे सुरक्षा बल)।
1984 – उप निदेशक (औद्योगिक विकास विभाग)।
1985 – पुलिस मुख्यालय, नई दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।
1986 – उत्तरी दिल्ली, डीसीपी।
1988 – नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), दिल्ली में उप निदेशक (संचालन)।
1990 – डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (रेंज), मिजोरम।
1993 – दिल्ली की जेलों का इंस्पेक्टर जनरल (आईजी)
1995 – पुलिस अकादमी में अतिरिक्त आयुक्त (नीति और योजना)।
1996 – दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त।
1997 – दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त (खुफिया)।
1999 – चंडीगढ़ में पुलिस महानिरीक्षक।
2003 – संयुक्त राष्ट्र नागरिक पुलिस सलाहकार नियुक्त किया गया।
2005 – महानिदेशक, होम गार्ड।
2007 – ब्यूरो ऑफ Police Reasearch & Development के महानिदेशक। नवंबर में, उन्होंने पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया; व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए।
Awards and Achievements
1968 – एनसीसी कैडेट अधिकारी पुरस्कार।
1979 – अकाली-निरंकारी संघर्ष के दौरान हिंसा को रोकने में अहम भूमिका के लिए वीरता पुरस्कार “राष्ट्रपति पुलिस पदक” से सम्मानित।
1994 – सरकारी सेवा के लिए रामन मैगसेसे पुरस्कार।
1995 – लायंस क्लब, केके नगर द्वारा लायंस ऑफ़ द ईयर पुरस्कार समुदाय सेवा के लिए।
2004 – उत्कृष्ट सेवा के लिए संयुक्त राष्ट्र पदक
2005 – जेल और दंड प्रणाली में सुधार के लिए अखिल भारतीय ईसाई परिषद द्वारा सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा मेमोरियल राष्ट्रीय पुरस्कार।
2006 – द वीक द्वारा देश की सबसे अधिक प्रशंसित महिला।
2014 – सामाजिक प्रभाव डालने के लिए “लो ओरियल पेरिस फेमिना महिला पुरस्कार”।
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