हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Essay on My Daily Routine in Hindi | मेरी दिनचर्या पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं।
क्या आप खुद से अच्छा निबंध लिखना चाहते है या अच्छा निबंध पढ़ना चाहते है तो – Essay Writing in Hindi
10 Lines Essay on My Routine | Short Essay on My Routine in Hindi
- मैं 5:00 बजे सुबह उठता हूं। सबसे पहले प्रार्थना करता हूं। तब हाथ पैर और मुंह धोता हूं।
- उसके बाद टहलने जाता हूं। लौटने के बाद नाश्ता करता हूं। तब मैं पढ़ने बैठता हूं। मैं अपना गृह कार्य करता हूं।
- 9:00 बजे में स्नान करता हूं। तब मैं खाना खाता हूं।
- उसके बाद 10:00 बजे स्कूल जाता हूं।
- मैं 4:00 बजे शाम को स्कूल से लौटता हूं।
- हल्का सा नाश्ता करता हूं।
- तब मैं खेल के मैदान में जाता हूं। 6:00 बजे वापस आता हूं।
- मैं लिखता और पढ़ता हूं।
- मैं 10:00 बजे रात में सो जाता हूं।
- यही मेरा दैनिक जीवन है।
Essay on My Daily Routine in Hindi | मेरी दिनचर्या पर निबंध
महापुरुषों ने अपनी दिनचर्या से जन सामान्य को प्रेरणा दी है की व्यस्त रहिए और मस्त रहिए। निठल्ला मनुष्य अपने लिए समाज के लिए और देश के लिए बोझ स्वरूप होता है, और अनेक विधाओं का कारण भी होता है।
निठल्ला मनुष्य शारीरिक मानसिक और भौतिक रूप से विपन्न हो रहता है ऐसे मनुष्य का मन शैतान का घर होता है दूसरों की व्यस्तता और सुख को देख शैतानियां पर भी उतर आता है सामाजिक रूप से घृणित होता है अतः जिस व्यक्ति की दिनचर्या व्यस्तता नियमित नहीं होती उसके सारे सुख और लक्ष्मी पलायन कर जाती है।
वह व्यक्ति एकाकी जीवन व्यतीत करता हुआ घुटन और आसमान का जीवन जीने के लिए विवश होता है सर्वत्र दुत्कार ही मिलता है विवाद होता है अपने भी साथ छोड़ जाते हैं सर्वथा घृणा का पात्र बन जाता है। इसके विपरीत जिसने Apni Dincharya को सुव्यवस्थित कर लिया है वह उन सब विपदा से मुक्त रहता है जो अव्यवस्थित और आलस्य पूर्ण जीवन में अपना स्थान बना लेती है इसी कारण श्री कृष्ण ने कर्म के महत्व को समझा और कर्म करने के लिए प्रेरणास्रोत बने।
श्री कृष्ण ही नहीं जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने कर्म के ही महत्व को स्वीकारा आचार्य तुलसी दास जी ने कर्म के महत्व को कर्म प्रधान विश्व करि राखा कहकर स्वीकार किया।
व्यस्त रहिए और मस्त रहिए इस प्रेरणा प्रद वाक्य ने मेरे जीवन को सुखद बना दिया। मैं सदैव आलस्य पूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए हर कार्य को कल या फिर करने के लिए सोच लेता और कार्यों का बोझ भी बढ़ता गया जिसके साथ चिंता और चिंतन ने स्थान पा लिया।
आलस में पड़े रखने से धना भाव भी इतना हो गया कि सामान्य आवश्यकताओं के लिए दूसरों के मुंह ताकने लगा। उक्त मूल मंत्र ने मुझे प्रेरणा दी अब मैं अपने दैनिक कार्यों को यथा समय निपटा कर अन्य कार्य करने के लिए प्रेरित हुआ। परिवार से लेकर बाहर मेरी व्यवस्था को देखकर आश्चर्य ही नहीं करते अपितु मेरे इस बदलाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
मैं अब आत्मनिर्भर हूं। दुशिचंताओ ने किनारा कर लिया है। सामाजिक प्रतिष्ठा स्वयं ही मिलने लगी यद्यपि मैं विद्यार्थी हूं मुझे मुंशी प्रेमचंद्र से प्रेरणा मिली कि विद्यार्थी जीवन में ट्यूशन पढ़ाकर अपनी सामान्य आवश्यकता की पूर्ति स्वयं ही कर लिया करते थे। मैंने भी निश्चय किया कि अब अपने परिवार की स्थितियों को देखकर मैं उनके लिए भार नहीं बनूंगा।
मैं समय पर नियमित उठने लगा दैनिक प्रक्रियाओं को करके समीप के पार्क में व्यायाम करके उचित समय पर विद्यालय जाता हूं। संपूर्ण होमवर्क करके शाम को अपने ही घर में प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाता हूं मस्त रहता हूं और दूसरों को भी मस्त रहने के लिए कहता हूं। व्यर्थ की आदतों दूरदर्शन के सामने घंटों बैठे रहकर समय बर्बाद करने आदि से मुक्त हो गया हूं। सभी मुझसे स्नेह करते हैं मेरी बातों को महत्व देते हैं इस तरह मेरी प्रतिष्ठा है।
Meri Dincharya में जो भी कार्य है उनमें नियमितता है। चाहे ईश्वर वंदना हो चाहे खेल हो चाहे होमवर्क हो अथवा घर आए छात्रों को पढ़ाना हो कोई भी कार्य मुझसे छूट नहीं पाते हैं। मैं विद्यालय से आकर खाना खाकर होमवर्क निपटा लेता हूं। शाम को साथियों के साथ नियमित रूप से फुटबॉल या क्रिकेट खेलता हूं घर आता हूं तो पढ़ने के लिए आए छात्रों को पढ़ाता हूं।
सोने से पहले पढ़े हुए पाठों का अभ्यास करता हूं, इतना ही नहीं सभी कार्य करते हुए, मैं अपने विद्यालय के चारों वर्गों में द्वितीय तृतीय स्थान प्राप्त करता हूं, व्यायाम करता हूं, खेलता हूं, सर्वदा प्रसन्न रहता हूं, शारीरिक रूप से स्वस्थ हूं, मन में उत्साह रहता है, धैर्य साथ नहीं छोड़ता है, उमंग पीछा नहीं छोड़ती है, साथियों में इसके कारण पूर्ण दबदबा है, साथियों में मेरे प्रति आत्मीयता है, मानसिक शारीरिक और बलिष्ठ मेरी इस प्रक्रिया से अपने और पराए प्रशंसा करते हुए नहीं थकते हैं। इस प्रकार मेरी नियमित दिनचर्या में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है।
व्यवस्थित जीवन उत्थान का पर्याय है, स्वास्थ्य का पर्याय है, प्रतिष्ठा का पर्याय है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि सामान्य होते हुए अपने लक्ष्य को निर्धारित कर उस और निरंतर दृढ़ता के साथ प्रयत्न करते रहे और अनंत गंतव्य तक पहुंचने में सफल होए। इतिहास प्रसिद्ध अब्राहम लिंकन जंगलों में लकड़ी काटते हुए भी रात में ही लकड़ी जलाकर अध्ययन करना नहीं छोड़ता था। इसी बीच में लोगों के बीच परिचय के लिए नियमित समय निकालता था लक्ष्य को स्मरण करते हुए प्रयास करता रहा और एक दिन विशाल राष्ट्र का राष्ट्राधिश हुआ।
ऐसे ही अभावों में रहकर ईश्वर चंद्र विद्यासागर यथार्थ में ही विद्यासागर बने लोग उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहते थे। नियमित व्यस्तता से अन्य अनेक लाभ हैं कि ऐसा व्यक्ति उदास हताश निराश नहीं होता है आत्मविश्वास सदैव बना रहता है सफलता ऐसे व्यक्तियों की प्रतीक्षा करती है मैं महान पुरुष के ऐसे व्यवहार आचरण से सदैव प्रेरित होता हूं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचना: को स्मरण रखते हुए कार्य करने में रुचि रखता हूं और व्यस्त रहता हूं, प्रसन्न रहता हूं, धैर्य को अपना साथी बनाए हुए अपने नियमित कार्यों को सुचारु रुप से करता हूं, अत: मैं महाबली हनुमान के उस संदेश को भी याद रखता हूं।
रामकार्य किन्ही बिना मोहि कहां विश्राम
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