Contents
Sandhi in Hindi
हेल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Sandhi (संधि) in Hindi डिटेल में पढ़ाया है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Sandhi in Hindi को अपने Exams या परीक्षा में इस्तेमाल कर सकते हैं।
सन्धि की परिभाषा – संधि किसे कहते हैं | Sandhi Ki Paribhasha
सन्धि शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मेल’। दो वर्गों के मेल से होने वाले विकार को सन्धि कहते हैं। जैसे – देव + आनन्द = देवानन्द। सत् + जन = सज्जन, दया + आनन्द = दयानन्द।
सन्धि के भेद – Sandhi ke Bhed
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि – Swar Sandhi
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार को स्वर संधि कहते हैं। जैसे – हिम + आलय = हिमालय।
स्वर संधि के पाँच भेद हैं
दीर्घ संधि
ह्रस्व या दीर्ध अ, आ, ई, ई, उ, ऊ और ऋ से परे ही स्वर आ जाय तो दीर्घ सन्धि होती है।
- जैसे –
- अ + आ = आ, धर्म + अर्थ = धर्मार्थ, आ + आ-आ, विद्या + आलय = विद्यालय।
- इ अथवा ई + ई अथवा इ = ई (१), कवि + इन्द्र = कवीन्द्र, नदी, + ईश = नदीश।
- उ अथवा ऊ + ऊ अथवा उ = ऊ () साधु + उपदेश = साधूपदेश, वधू + उत्सव = वधूत्सव
गुण संधि
अ, आ से परे इ, ई, उ, ऊ आने पर ‘ए’, ‘ओ’ और अर् हो जाता है।
जैसे – अ + इ = ए, सुर + ईश = सुरेश
अ+ उ = ओ, सूर्य + उदय = सूर्योदय
अ + ऋ = अर्, देव + ऋषि = देवर्षि।
वृद्धि संधि
अ, आ से परे ए, ऐ हों तो ऐ ( ै) और ओ और औ हो तो औ ( ौ) हो जाता है।
जैसे – अ + ए = ऐ (ऐ) एक + एक = एकैक, अ + ओ = औ ( ौ) वन + औषधि = वनौषधि
यण संधि
इ, ई से परे भिन्न स्वर होने पर ‘य’ और उ, ऊ से परे भिन्न स्वर होने पर ‘व’ तथा ऋ से परे भिन्न स्वर होने पर अर् हो जाता है।
जैसे – इ + अ = य, यदि + अपि = यद्यपि, अ + आ = वा सु + आगत = स्वागत, रा पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
अयादि संधि
ए, ऐ, ओ, औ से परे कोई स्वर हो तो ‘अय’, ‘आय’, ‘अव’ और आव हो जाता है।
जैसे – ए + अ = अय, ने + अन = नयन, ऐ + अ = आय, गै + अक = गायक,
ओ + अ = अव, भो + अन = भवन, औ + अ = आव, भौ + अक = भावुक।
- सम्पूर्ण वर्ण विचार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- सम्पूर्ण शब्द विचार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- सम्पूर्ण हिंदी भाषा और लिपि पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
- यदि आपको इंग्लिश भाषा पढ़ना पसंद है तो यहाँ क्लिक करें – Bollywoodbiofacts
व्यंजन संधि – Vyanjan Sandhi
जन के साथ स्वर के मेल को व्यंजन सन्धि कहते हैं।
जैसे – सत्+जन = सज्जन।
व्यंजन संधि के नियम
- त् से परे च, ज, ट, ड, द, ल, न में से कोई आया हो तो ‘त्’ को उसी में बदल देते हैं।
जैसे – सत् + जन् = सज्जन, सत् + चि = सच्चित, वृहत् + टीका = वृहट्टीका, उत् + डयन = उड्डयन, भगवत् + दर्शन = भगवदर्शन तत् + लीन = तल्लीन जगत् + नाथ = जगन्नाथ, जगत + दर्शन = जगतदर्शन - ‘त’ से परे यदि ‘श’ हो तो ‘त’ को ‘च’ और ‘श’ का ‘छ’ हो जाता है।
जैसे – सत्+ शास्त्र = सच्छास्त्र उत + श्वास = उच्छवास। - ‘त’ से परे यदि ‘ह’ हो तो ‘त’ ‘द’ और ‘ह’ का ‘ध’ हो जाता है।
जैसे – उत्+हार = उद्धार उत + हरण = उद्धरण। - यदि शब्द में ‘ऋ’ ‘र’ ष’ से परे ‘न’ हो ‘न’ का तो ‘ण’ हो जाता है।
जैसे – प्र + मान = प्रमाण राम + अयन = रामायण - ‘अ’ ‘आ’ को छोड़कर किसी दूसरे स्वर के सामने ‘स’ होने पर उसे ‘ष’ में बदल देते हैं।
जैसे – अभि + सेक = अभिषेक वि + सम = विषम - ‘म्’ से परे स्पर्श वर्ण (‘क’ से ‘म’ तक) का कोई वर्ण हो तो ‘म’ के अनुस्वार या पहले वर्ग का पाँचवाँ हो जाता है।
जैसे – सम + ताप = संताप, सम + पूर्ण = संपूर्ण - ‘म’ से परे अन्तस्थ (य, र, ल, व) और ऊष्म (श, ष, स, ह) हो तो ‘म’ का अनुस्वार हो जाता है।
जैसे – सम + योग = संयोग, सम + हर = संहार - ‘र’ से परे ‘र’ आने पर पहले ‘र’ का लोप हो जाता है और ह्रस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है।
जैसे – निर + रस = नीरस, निर + रोग = निरोग - क, च, ट, त, प के समाने ‘न’ या ‘म’ के होने पर इन्हें अपने वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है।
जैसे – दिक + नाग = दिड्.नाग, षट + मास = षण्मास - क, च, ट, त, प को कोई स्वर या वर्ग का तीसरा चौथा वर्ण या र ल व परे रहते, अपने वर्ग का तीसरा हो जाता है।
जैसे – वाक + ईश = वागीश, अच + अन्त = अजन्त, षट + दर्शन = षड्दर्शन - जब स्वर के बाद ‘छ’ वर्ण हो तो वह ‘च्छ’ हो जाता है।
जैसे – वि + छेद = विच्छेद, अनु+ छेद = अनुच्छेद
विसर्ग सन्धि
विसर्ग के साथ व्यंजन अथवा स्वर के मेल से विकार होने पर विसर्ग सन्धि कहलाती है।
जैसे – मन : + रथ = मनोरथ, निः + चय = निश्चय
विसर्ग संधि के नियम
- यदि ‘अ’ से परे विसर्ग और सामने वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल में से कोई हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे – मनः + हर = मनोहर तमः + गुण = तमोगण, मनः + योग = मनोयोग, रजः + गुण = रजोगुण। - विसर्ग से पहले ‘अ’ ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो और उसके परे कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
जैसे – निः + जन = निर्जन, नि + आशा = निराशा, निः + गुण = निर्गुण। - विसर्ग से परे च या छ होने पर विसर्ग का ‘श’ हो जाता है।
जैसे – निः + चित = निश्चित, निः + छल = निश्चल। - विसर्ग से परे ट, ठ होने पर विसर्ग को ‘ष’ हो जाता है।
जैसे – धनुः + टंकार = धनुष्टंकार। - विसर्ग से परे त, थ होने पर विसर्ग का ‘स’ हो जाता है।
जैसे – दु: + तर = दुस्तर, निः + तार = निस्तार। - विसर्ग से परे श, ष, स होने पर विसर्ग को उन्हीं में बदल देते हैं।
जैसे – दु: + शासन = दुशासन, निः + सन्देह = निस्सन्देह। - जब विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में अ, आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
जैसे – अतः + एव = अतएव, ततः + एव = ततएव। - विसर्ग से पहले ‘इ’ अथवा ‘उ’ रहने पर और उनके आगे क, ख, प, फ आने पर विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।
जैसे – + निः + कपट = निष्कपट, निः + फल = निष्फल, बहिः + कार = बहिष्कार, दु: + कर्म = दुष्कर्म।
तो दोस्तों आपको यह Sandhi in Hindi पर यह article कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस निबंध में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।
Thanks for sharing. I read many of your blog posts, cool, your blog is very good. https://www.binance.com/ru/register?ref=53551167
Thanks for sharing. I read many of your blog posts, cool, your blog is very good.