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बीरबल की चतुराई: अकबर बीरबल की कहानी (Akbar Birbal ki Kahaniyan)
एक दिन की बात है कि एक बूढ़ी स्त्री अपनी विधवा बहु के साथ बादशाह के दरबार में सहायता के लिए पहँची। उसने बीरबल से बताया- “मेरा बेटा बीस साल तक शाह सेना में सेवारत रहा था । कुछ दिन पहले ही एक युद्ध हुआ और उसमें बेटा शहीद हो गया । उसकी मृत्यु के पश्चात् हम बेसहारा हो गये। आप हमारी कुछ सहायता करने का कष्ट करें।”
बीरबल ने उसे आश्वासन देते हुए कहा-“निश्चित रहो । हमारे बादशाह बड़े रहमदिल, दयालु और बन्दापरवार है । वे तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे । तुम बस वैसा ही करती जाना जैसे मैं कहूँ। तुम कल दरबार में ही सही वक्त पर पहुँचा जाना।
अगली सुबह बुढ़िया अपनी बहू के साथ दरबार में पहुँची, उसने बादशाह से अर्ज की और अपने शहीद बेटे की तलवार भी दिखाई । उसने बादशाह से कहा- “जहाँपनाह! मेरे बेटे ने कभी भी जंग से मुँह नहीं फेरा उसने इसी तलवार से बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़ी।”
“अब हुजूर! इस तलवार को आप अपने शस्त्रों में स्थान दीजिए।”
अकबर बादशाह ने कहा-“लाइये, दिखाइये यह तलवार ।” स्त्री ने अपनी यह तलवार बादशाह को दे दी।
अकबर बादशाह ने तलवार का ध्यान से जायजा लिया यह तलवार पुरानी और जंग लगी थी इसलिए राजा ने सोचा यह मेरे किस काम की।
उन्होंने यह तलवार एक सैनिक को दे दी और कहा-“यह तलवार इस बढी औरत को वापस कर दो और इसके साथ सोने की पाँच मोहरें भी दे दी जाएँ ।”
बीरबल ने जब सुना कि केवल पाँच मोहरें, तो उन्हें धक्का-सा लगा तथा फिर उसने बादशाह से कहा – “आलमपनाह! क्या मैं यह तलवार देख सकता हूँ?” उसके बाद बीरबल ने तलवार अपने हाथ में ली । और उसको गौर से निरखा-परखा उल्टा-पुलटा कर जायजा लिया और फिर चुप हो गये।
बीरबल को इस प्रकार चुप देखकर बादशाह ने पूछा – “बीरबल ! हमें अपने दिल की बात बताओ। तुम चुप क्यों हो गए ?” बीरबल अब बोले-“कुछ नहीं बादशाह ! मुझे यकीन था कि यह तलवार सोने की बन जायेगी। अकबर बादशाह चौंके -“सोने की ? “जी हाँ, आलमपनाह। उन्होंने कहा -“साफ कहिए, यह सोने की कैसे बन सकती है ? बीरबल ने कहा-“ आलमपनाह! एक छोटा-सा पत्थर पारस लोहे को सोने में बदल सकता है ।
मैं तो इस बात से बहुत हैरान हूँ कि आपके हाथों में आने के बाद भी यह तलवार साधारण-सी लोहे की क्यों रह गयी ?” बादशाह अब समझ गये थे कि बीरबल क्या चाहते हैं, उन्हांने तुरन्त ही उस स्त्री को तलवार के वजन के बराबर सोने देने की आज्ञा दे दी। दोनों गरीब स्त्रियाँ सोना लेकर अकबर और बीरबल का आभार व्यक्त करती और दुआएँ देती हुई से चली गयीं ।
मालजादी, मर्द और भदुआ
एक समय की बात है बादशाह अकबर ने बीरबल को हुक्म दिया कि – शाही बगीचे से सारे पर्दो को हटा दिया जाये और उन्हें दूसरे बगीचे में लगा दिया जाये और इस बगीचे का सारा इन्तजाम औरतों को सौंप दिया जाये।
कुछ समय पश्चात् बीरबल शाही दरबार में पहुंचे और यह सुचना दी-“बादशाह सलामत ! आपके हुक्म की तालीम हुई, मैंने शाही बगीचे के सारे पर्दे को हटा दिया, मगर एक नालायक है जो बार-बार कहने पर भी नहीं जा रहा है और बगीचे के कुएँ के अन्दर उतर जाता है।”
जब बादशाह ने यह सुना कि कोई व्यक्ति उनके हुक्म को नहीं मान रहा है, तो बादशाह शीघ्र ही उस स्थान पर चलने का तैयार हो गए। और वे अपने साथ जनानीखाने में काम करने वाली एक औरत को भी ले गये।
बादशाह बीरबल के साथ कुएँ पर पहुँचे । अकबर बादशाह, बीरबल और उस औरत ने कुएँ में झुककर देखा। उन्हें पानी में तीन परछाइयाँ दिखायी दी। बीरबल ने विनम्रतापूर्वक कहा – देखा हुजूर ! अभी तक तो यह कुएँ में अकेला वही बदमाश था लेकिन अब अपने साथ एक भडुआ और एक मालजादी को भी ले आया अकबर बादशाह बीरबल की यह बात समझ गये और मुस्कुराने लगे।
मैं भी गया नहीं ।
एक समय की बात है कि बीरबल सफर कर रहे थे इसलिए वे अपनी रिश्तेदारों से मिलने के लिए रुक गये । उन्होंने सोचा कि दो-चार दिन अपने रिश्तेदारों के यहाँ अतिथि के रूप में रहेंगे और फिर आगे जायेंगे।
बीरबल के रिश्तेदार थे बड़े काईयाँ। पति और पत्नी दोनों ही एक-से-एक बढ़कर-एक थे । जब उन्होंने बीरबल को दूर से आता देखा तो उसने टालने की कोशिश की। इसी कोशिश में पति-पत्नी दोनों ने आपस में लड़ाई करने का नाटक किया। पति ने एक लकड़ी पकड़ी और बीवी की पिटाई करने का ढोंग करने लगा।
बीरबल यह देखते ही भाँप गये कि ये नाटक कर रहे है और चुपके से चौबारे में घुसकर बैठ गये। जब पति-पत्नी को यह लगा कि बीरबल चले गये हैं तो उन्होंने दिखावटी लड़ाई बन्द कर दी और अपनी-अपनी चतुराई बघारने लगे। पती बोला-देखा मैने कितनी चतुराई से लकड़ी मारी कि वह तुम्हारे बिल्कुल न लगी ।
पत्नी ने कहा-“आपने भी देखा कि मैं कितनी होशियारी से चीखी-चिल्लायी, मगर रोयी नहीं।” आखिर कब तक बीरबल इस प्रकार चुप बैठे रहते । पति-पत्नी की अपनी-अपनी तारीफों को सुनते हुए बोले-“तुम लोगों ने नहीं देखा कि मैं किस प्रकार आराम से चौबारे में छुप गया, लेकिन मैं भी गया नहीं।
रखपत और रखापत
एक बार अकबर बादशाह और बीरबल में बातें हो रही थी कि पत पाँच होते हैं – “सोनीपत, बीमापत, इन्द्रपत, बलपत. पानीपत ।” बीरबल ने कहा- “हुजर, इसके अलावा भी दो पत और भी होते हैं।
अकबर बादशाह ने पूछा- “वह क्या हैं ?” बीरबल ने जवाब दिया- हुजूर रखपत और रखापत।बादशाह ने कहा- “हम यह सब नहीं समझे। बीरबल ने जवाब दिया – आलमपनाह इसका मतलब है कि इन्हीं पतों से शराफत की पहचान हो सकती है जब हम पराये की इज्जत रखें तो तभी यह मुमकिन है कि हमारी इज्जत भी होगी । अकबर बादशाह बीरबल से शराफत की यह बात सुनकर बेहद खुश हुए।
बेगम की पसन्द
एक दिन की बात है कि अकबर बादशाह किसी कारण अपनी सुन्दर बेगम से नाराज हो गए और इतने नाराज हो गये कि उन्होंने अपनी बेगम को महल से निकल जाने को कह दिया ।
इस बात को सुनकर बेगम ने बादशाह को खुश करने के लिए बहुत ही कोशिश की, लेकिन सब बेकार रहा। जब बेगम ने देखा कि रोने से बात बनने के बजाय और भी खराब की ही संभावना है तब उसने बादशाह की आज्ञा का पालन करना ही सही समझा ।
बेगम अपनी बाँदी को आवश्यक सामान बाँधने की आज्ञा देकर चलते समय बादशाह से माफी माँगने लगी। बादशाह ने अपनी बात में परिवर्तन नहीं किया और बेगम से बोले- “तुम अपनी पसन्द की चीज जो तुम्हें पसन्द हो महल से ले जा सकती हो। बेगम बेचैन होकर अपने मायके चलने को तैयार हुई परन्तु उसी वक्त उसे बीरबल की याद आई और उसने बीरबल को दरबार में बुलाया । बीरबल के आते ही बेगम ने सारी बात बीरबल से कह दी – ओर बादशाह को प्रसन्न करने के लिए कोई उपाय पूछा, तब बीरबल उन्हें एक सलाह देकर वापस चले गए।
अब बेगम का सारा माल – असबाब गाड़ियों पर लादा जाने लगा और बेगम के लिए डोली सजाई गयी । महल को छोड़ने से पहले बेगम फिर बादशाह के पास आई और आँखों में आँसू भरकर कहने लगी – आलमपनाह जब मै। यहाँ से हमेशा के लिए जा ही रहा हूँ, तो आज मेरी आखिरी अर्ज मंजूर कर लीजिए, आपकी दासी अपने हाथों से चलते वक्त आपको एक गिलास जाम-ए-शर्बत पिलाना चाहती है, न जाने कभी ऐसा मौका मिले न मिले ।”
बेगम के इस स्वर को सुनकर बादशाह पिघल गए और उन्होंने बेगम को आज्ञा दे दी । तब बेगम ने एक बढ़िया शराब से भरा गिलास प्रेम से बादशाह को पिलाया । बादशाह शराब के नशे में चूर होकर सो गए । बेगम अवसर मिलते ही एक पालकी में बादशाह को सुलाकर उनके पास बैठ गयी । बेगम बादशाह की रखवाली करने के कारण और रात-भर के सफर सोई नहीं थी। अतएव चित शांत होते ही वह सो गयी।
जब बादशाह को होश आया तो उन्होंने अपने आपको अपनी बेगम के साथ एक अनजानं जगह पर पाया । बादशाह के जागने पर बेगम की भी आँख खुल गयी और बादशाह बेगम की पसंद है पता चल गया बादशाह को
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