आम के पेड़ का न्याय | Akbar Birbal ki Kahani | Aam ke Ped Ka Nyay

आम के पेड़ का न्याय – Aam ke Ped Ka Nyay

एक समय दो पड़ोसियों में आम के पेड़ के लिए झगड़ा हो गया, उसमें से पहला ने जिसका नाम केशव था, बादशाह के यहां फरियाद की कि पेमला नाम के पड़ोसी मेरे लगाए हुए आम के पेड़ को दखल करना चाहता है। आज सात वर्ष से मैंने उसका देखभाल अनेक कष्टों को झेलकर की है। अतएव हुजूर के यहां बड़ी उम्मीद से आया हूं कि मेरा न्याय किया जायेगा। इस मामले का निबटारा करने का हुक्म बीरबल को मिला ।

आज्ञा पाकर बिरबल ने पड़ोसियों को बुलवाया और क्रमशः इसका बयान भी लिया। केशव ने पूर्व कथनानुसार बीरबल के सम्मुख भी अपनी बात कह सुनाई । बीरबल ने उसको जाने का आदेश दिया तथा पेमला को बुलाकर उससे पूछा-क्या वह आम का पेड़ जो फलां जगह पर है, तुम्हारा है? पेमला ने अन्यन्त नम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि हुजूर, वह मेरा ही है ? सात साल से मैंने उसकी हिफाजत की, आज अब उसमें फल का गए हैं तो केशव ने हथियाने की कोशिश की है । मला की बात सुन बीरबल बोले कि उस पेड़ की कोई चौकसी भी करता है ?

पेमला ने उत्तर दिया कि मेरे तथा केशव दोनों के ही राय से चौकीदार उसकी देख-रेख करता है । यह सुन बीरबल ने चौकीदार को बुलाया और पेमला को जाने की आज्ञा दी तथा यह कहा कि इसका फैसला कल दिया जायेगा।

पेमला घर चल गया । चौकीदार से बीरबल ने कहा कि तुम किसकी तरफ से रखवाली करते हो ? चौकीदार ने उत्तर दिया कि मैं दोनों तरफ से देख-रेख करता हूं। अतएव मैं यह नहीं कह सकता कि पेड़ वास्तव में किसकी है । बीरबल ने चौकीदार को वहीं रहने का हुक्म दिया तथा स्वयं इस मामले पर विचार करने लगे। जब शाम हो चुकी तो बीरबल ने चौकीदार को बुलाकर कहा-कि तुम बारी-बारी से पेमला तथा केशव के घर जाना और कहना कि आम के पेड़ के पास हथियारबन्द डाकू खड़े हैं और फल तोड़ने को उद्यत है, जाकर उनकी रक्षा करो ।

बीरबल ने यह भी चेतावनी उस चौकीदार को दी कि मेरी बतलाई बात से ज्यादा या कम कुछ न कहना । तुम्हारे साथ ही मैं अपने आदमियों को भेजता हूं तत्पश्चात् बीरबल ने चौकीदार के साथ अपने विश्वासी दो नौकर को कर दिया तथा उन्हें समझा दिया कि तुम दोनों छिपकर पेमला तथा केशव की बात सुनना और जो कुछ उनकी बातचीत हो बतलाना ।

आज्ञा पाकर दोनों कर्मचारी तथा चौकीदार चले । चौकीदार पहले तो केशव के घर गया। केशव उस वक्त घर पर नहीं था। चौकीदार ने बीरबल की कही बात को उसकी स्त्री से सब चेता कर कह दिया और अब पेमला केघर की ओर गया । संयोगवश पेमला भी उस समय घर पर नहीं था । उतएव पेमला की स्त्री को ही बीरबल द्वारा बताई बात पूर्ण रुप से चेताकर चौकीदार ने अपने घर का रास्ता लिया ।

बीरबल ने जिन दो नौकरों को भेजा था उसमें से एक तो पेमला के तथा दसरा केशव के मकान के पास छिपा बैठा था। जब रात हो गई तो केशव घर पर आया । आते ही उसकी स्त्री ने चौकीदार द्वारा कही गई बात को बतला दिया । सुनकर केशव बोला कि इस अंधेरी रात में कौन जाय और फिर बिना खाये पीए, वह भी शत्रुओं का सामना करने, चाहे आम रहे चाहे जहन्नुम में जाय इत्यादि बात करते हुए केशव ने और आगे कहा कि मैंने तो यह सोचकर कि यदि तरकीब लग गई तो आम का पेड़ हाथ आयेगा नहीं तो नहीं । मेरा उसमें लगा ही क्या है ?

वस इसलिए केवल पेमला को परेशान करने के लिए यह खेल रचा है वह अपनी स्त्री को सम्बोधित करते हुए केशव ने कहा कि क्या तुम नहीं जानती हो।

केशव की बात को बीरबल का भेजा हुआ दूत सुन रहा था। जब घुम-फिर के पेमला भी अपने घर पहुंचा तो स्त्री द्वारा आम तोड़े जाने को खबर मिली तो वह बिना किसी के बिलम्ब के आम के पेड़ की ओर अपने शत्रुओं का मुकाबला करने को बढ़ा । उसकी स्त्री ने जब भोजन कर जाने कहा तो उसने स्त्री की बात को काटते हुए कहा, भोजन तो वहां से वापस आकर भी कर सकता हूं ,

लेकिन यदि इस मौके पर न जाऊंगा तो आज सात साल की मेहनत मिट्टी में मिल जायेगी । बीरबल का दूसरा दूत सब बातें छिपे-छिपे सुन रहा था। अब पेमला कन्धे पर लाठी रखकर पेड़ की ओर बढ़ा तो यह भी अपने पहले साथी से मिलने तथा केशव की बात जानने के लिए उसके मकान की ओर गया ।

दूतों ने बीरबल के सम्मुख दोनों की बातों को कह सनाया तब दूसरे दिन वादी और प्रतिवादी उपस्थित हुए तो बीरबल ने दोनों को सम्बोधित कर कहा कि यह पेड़ तुम दोनों का है। मेरे पास जो सबूत आए हैं उनसे यही पता चलता है इसलिए पेड़ पर जो फल है, वह आधे आधे तुम दोनों को बांट दिए जायेंगे।

केशव उस न्याय से बहुत खुश हुआ । बीरबल ने जब केशव से पूछा तो उसने स्वीकृति सूचक सिर हिलाकर कहा कि आप जो कुछ भी आज्ञा देंगे मुझे शिरोधार्य होगा । पेमला इस न्याय को सुनकर एकदम स्तब्ध रह गया। उसने गिड़गिड़ा कर बीरबल से प्रार्थना की कि दिवान जी ! यह मुझसे न देखा जा सकेगा अभी इसी साल तो इसमे टिकोरियां लगी है कहते-कहते पेमला का कंठ भर आया । बीरबल को विश्वास हो गया कि पेड़ निश्चय ही पेमला का है। नौकर को केशव की ओर इशारा करते हुए सजा देने को कहा ।

केशव समझ गया कि असलियत छुप नहीं सकती। अतएव उसने अपराध स्वीकार करते हुए बीरबल से दया की याचना की । बीरबल से सोच-समझ कर उसके अपराध के मुताबिक दण्ड देकर विदा किया। पेमला को उसका आम का पेड़ दिला दिया। बादशाह को जब इस फैसले का पता चला तो बीरबल की बुद्धिमानी की मन-ही-मन उन्होंने प्रशंसा की।

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