21+ Best Akbar Birbal ki Kahaniyan | अकबर बीरबल की कहानी

हैल्लो दोस्तों Akbar Birbal ki Kahaniyan | अकबर बीरबल की कहानी सिर्फ मनोरंजन दायक ही नहीं है बल्कि यह आपको सिख भी देती है।

इन कहानियों में जो बीरबल है वह अकबर बादशाह के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। जिन्होंने अपनी बुद्धिमता से अकबर बादशाह के दरबार में आई मुसीबतों सुलझाया है, साथ ही अकबर की दी गयी चुनौतियों व सवालों का बहुत अच्छा जवाव दिया है, जिसे पढ़कर आप भी कुछ सिख सकते है।

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अकबर बीरबल की कहानी – Akbar Birbal ki Kahaniyan


हाँ मेहरवान – Akbar Birbal Story in Hindi

एक दिन बादशाह ने कहा-बीरबल जिस नाम के साथ वान लगा रहता है वह आदमी बड़ा हरामजादा होता है। जैसे शुतरवान, फलीवान, गाड़ीवान आदि।
बीरबल ने कहा-हां सच है मेहरवान! जवाब सुनकर बादशाह बहुत शर्मिन्दा हुए।


सड़क किस तरफ जाती है। – Akbar and Birbal Story in Hindi

एक दिन बादशाह प्रातःकाल वायु सेवन के लिए बीरबल के साथ जंगल में बहुत दूर निकल गए। लौटते वक्त रास्ता भूल गए ! उन्हें दूसरी तरफ से आता हुआ एक देहाती मिला। बादशाह ने उसे रास्ते का जानकार समझकर पूछा-भाई यह सड़क किस तरफ जाती है ?

उस आदमी ने उत्तर दिया-आप लोग निपट नादान जान पड़ते हैं, भला सड़क भी कहीं जाती है यह जड़ है । इस पर चलने वाले यात्री अलबत्ता इधर-उधर जाते-जो रहते हैं । बादशाह बीरबल के सहित उस गंवार से खुश हो गए और उसको एक स्वर्ण सिक्का इनाम देकर खुश किया।


थोड़ा और बहुत बीरबल की कहानी

एक दिन बीरबल अपनी छोटी कन्या को लेकर दरबार में गया। पहले बादशाह ने उसको बहुत प्यार किया, जब वह प्रसन्न होकर कुछ बात करने लगी तो बादशाह ने पूछा-क्यों बेटी ! क्या तुम बात करना जानती हो ? तो लड़की ने जवाब दिया न, थोड़ा और न, बहुत ! बादशाह ने पूछा थोड़ा और बहुत का क्या मतलब है ?

लड़की बोली-इसका मतलब है कि बड़ों से थोड़ा बोलो और छोटों से बहुत। उस लड़की की ऐसी बुद्धिमतापूर्ण बातें सुन बादशाह को बहुत प्रसन्नता हुई और बीरबल के घराने को स्वभाविक हाजिर-जबाबी का ईश्वर को कोटि धन्यवाद देने लगे।


दाढ़ी में कितने बाल Akbar aur Birbal ki Kahani

एक दिन दरबार में बैठे हुए बादशाह ने पूछा-तुम तो अपनी पत्नी का हाथ दिन में एक दो दफा अवश्य स्पर्श करते होंगे । तो क्या बता सकते हो कि तुम्हारी पत्नी के हाथ में कितनी चुड़ियां हैं। बीरबल यह सुन बड़े असमंजस में पड़ गए क्योंकि उन्होंने हाथ की चूड़ियों को कभी गिनती न की थी और वे झूठ नहीं बोलना चाहते थे।

कुछ देर तक विचार कर बीरबल बोला-जहांपनाह! मेरा हाथ तो मेरी पत्नी के हाथों से दिन में एकाध-बार ही स्पर्श होता होगा, लेकिन आपका हाथ तो आपकी दाढ़ी में दिन भर में दो-पांच बार लगता होगा भला आप ही बताएं कि आपकी दाढ़ी में कितने बाल हैं।

बादशाह ने बात काटने की गरज से कहा-दाढ़ी की गणना करनी कठिन है, किन्तु हाथ की चूड़ियों को गिनना संभव हो सकता है।

बीरबल बोले जहांपनाह ! स्त्रियां अपनी पसन्द के अनुसार कोई कम तो कोई ज्यादा चूड़ियां पहनती है अतः निश्चय तादाद बिना गणना किए बतलाना असंभव है। अच्छा आप जनाना खाने में रोज ही जाते हैं, ऊपर पहुंचने के लिए आपको सीढ़ियां चढ़नी पड़ती होगी। क्या आप बतला सकते हैं कि उस जीने में कितनी सीढ़ियां हैं?

बादशाह यह सुन बोले-कभी उनको गिनती करने का अवसर ही न मिला।

अब बीरबल बोले-जहांपनाह! सीढ़ियां अटल है, बढ़ाई नहीं जा सकती, इस पर भी आपने निश्चित संख्या नहीं बतलाई तो चूड़ियों की तदाद कैसे बताऊं। यदि सीढ़ियां गिनी जा सकती थी तो चूड़ियां के दोषी हम जरूर थे किन्तु जब उनका गिना जाना सम्भव न था तो चूड़ियों को कैसे गिनी जाती कैसे बतलाई जा सकती है ? बादशाह यह बात सुनकर बड़े प्रसन्न हुए।


आपकी बारी कैसे आती – Akbar Birbal ki Kahaniyan

बादशाह ने बीरबल से कहा-अगर बादशाहत हमेशा कायम रहती। यानि जो बादशाह होता वह सदैव ही शासन करता ही रहता तो कितना अच्छा होता।

बीरबल ने तत्काल स्वभाविक नम्रता पूर्ण उत्तर दिया-जहांपनाह! आपका कहना बिल्कुल उचित है किन्तु यदि ऐसा होता तो भला सोचिए कि आप बादशाह कैसे बनते। बादशाह बीरबल के व्यंग को समझ गए।


लड़के की हठ Akbar Birbal Story in Hindi

एक बार दरबार में बादशाह जब पधारे तो देखे बीरबल नहीं है। बीरबल के न रहने से काम-काज बिल्कुल ही बन्द हो जाता था।

आज दरबार में आने के लिए स्वाभाविक से ज्यादा देर हो गई थी। बादशाह ने अपने दूत को इनको लाने के लिए भेजा। दूत द्वारा राजा का संदेश सुन बीरबल ने उस दूत से कह दिया कि चलो मैं आता हूं। नौकर को वापस आए एक-आधा घण्टा बीत गया तो राजा को आश्चर्य हुआ, किन्तु उसी क्षण उन्होंने विचारा कि कुछ आवश्यक कार्यों से ही वे रुके होंगे। बादशाह को अब बीरबल की प्रतीक्षा असह्य हो उठी।

उन्होंने दूसरे नौकर को पुनः भेजा, इस नौकर ने आकर कहां-जहांपनाह वे कह रहे हैं चलो मैं आता हूं। बादशाह को सुन कर कुछ ढाढस हुआ। एक घंटा फिर बीत चला किन्तु बीरबल का कहीं पता नहीं तो राजा झुंझला उठे। अब बीरबल के प्रतिद्वन्द्वियों को अवसर मिला उन्होंने बीरबल की निन्दा कर बादशाह के गुस्से को और भी भड़का दिया। इस बार उन्होंने दो सिपाही बीरबल को पकड़ने भेजे लेकिन उसे पकड़कर ले आना हंसी खेल न था । सब सिपाही भय से कम्पित हो रहे थे।

डरते-डरते एक सिपाही ने बादशाह का संदेश सुनाया। सुनते ही बीरबल समझ गए कि अब देर करना उचित नहीं है । शीघ्र ही कपड़ा आदि पहनकर उन्हीं सिपाहियों के साथ सभा भवन की ओर अग्रसर हुए । दरबार में पहुंचकर बादशाह को अदब से सलाम कर अपने स्थान पर बैठ गये।

बादशाह ने बीरबल से हुक्म उदूली का कारण पूछा। बीरबल बोले-अलीजहां ! मेरा लड़का रो रहा था। मैं उसे बहलावा देकर चुप कराना चाहता था, अभी तक वह शांत न हो सका था । यह सुनकर बादशाह बोले-यह तुम्हारा कोरी बनावटी बात है, लड़के को बहलावा देने के बहाने तुम मुझको ही बहलावा दे रहे हो ।

अच्छा बताओ भला कौन-सी ऐसी बात थी जिससे लड़का नहीं मानता था ? जो वह चाहता था तुम उसे देते तो लड़का क्यों रोता । तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया । यह अच्छा नहीं हुआ यदि तुम सचुमच लड़के का रोना प्रमाणित न करोगे तो तुम्हें निश्चय ही सजा दी जायेगी।

बीरबल बोले-जहांपनाह ! मैंने उस लड़के को शांत करने का बहुतेरा प्रयत्न किया किन्तु असफल रहा । बादशाह बोले-लड़का क्या चाहता था ? बीरबल ने उत्तर दिया-जहांपनाह ! सुनिए मैं शुरु से अन्त तक सब बात कहता हूं।

लड़का रो रहा था मैंने उससे पूछा बेटा क्या लोगे । क्यों रो रहा है। पहले ही उसने मेरी बात को अनसुनी कर दिया, जब मैं लगातार पूछता ही रहा तो वह बोला कि गन्ना लूंगा। मैं ही उसे लेकर बाजार गया जहां गन्ना बिक रहा था। मैंने बंधे बोझ की ओर इशारा कर कहा जो जी चाहे ले लो।

किन्तु उसे संतोष न हुआ और बोला कि इसमें से तुम्हीं अच्छे निकाल लो । मैंने वैसा ही किया किन्तु उसे रोने की धुन सवार थी । वह फिर रोने लगा । पूछने पर मालूम हुआ कि छिलवाकर गंडेरिया बनवाकर खाना चाहता है। मैंने पुनः वैसा ही किया । गंडेरिया चूसते-चूसते जब पेट भर गया तो उसने चुसने से इन्कार कर दिया ।

मैंने अत्यन्त बहलाने का बहुतेरा उपाय किया किन्तु असफल रहा । कुछ देर तक चुपचाप रहने के बाद फिर उसने रोना-पीटना शुरु कर दिया तब दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि वह चाहता कि चूसी हुई गंडेरियों के छिलके को जोड़कर पहले जैसा ही गन्ना का डंठल तैयार कर दो।

मैंने समझाया पर सब बेकार था । लाचार होकर मैंने मजबूरी प्रकट की। तब वह बोला कि जब तक वैसे ही इन्हें न बना दोगे मैं रोना न छोडूंगा । अब भला आप ही बतलाइए कि कैसे मैं उसे बहलावा देता।

बादशाह यह घटना सुन बड़े आश्चर्यचकित हुए बीरबल से बोले-सच है, लड़के को खुश करना कठिन है। बादशाह का गुस्सा शांत हो गया और वे बीरबल के सत्य सम्भाष्ण से बहुत खुश हुए।


फूल किसका अच्छा Akbar Birbal Stories in Hindi

बादशाह अकबर दरवार में पधार रहे थे। सभासद भी उपस्थित थे । इस समय बादशाह के ध्यान में पाँच प्रश्न आए जिनको उन्होंने अपने सभासदों से पूछा । बीरबल उस समय मौजूद न थे, पाँचों प्रश्न इस प्रकार थे।

(1) फूल किसका अच्छा ? (2) दूध किसका अच्छा ? (3) मिठास किसकी अच्छी?(4) पत्ता किसका अच्छा ? (5) राजा कौन सा अच्छा ?

बादशाह के इन प्रश्न को सुनकर सभी सभासदों में मतभेद उत्पन्न हो गया, किसी ने गुलाब का तो किसी ने कमल का इसी तरह खूबसूरत फूलों के नाम गिनाकर अच्छा बतलाया। इसी तरह दूध के लिए भी हुआ। किसी ने गाय का किसी ने भैंस व बकरी आदि के दूध को श्रेष्ठ बतलाया और मिठास से किसी ने गन्ने को किसी ने अन्य मिष्ठानों को बतलाया।

पत्ते भी किसी ने केला का तो किसी ने नीम आदि पत्तों को गुणकारी बतलाकर अपनी योग्यता का परिचय दिया । राजा कौन सा अच्छा ? किसी एक चापलूस सभासद ने कहा कि बादशाह अकबर अच्छे ? बस फिर क्या था, सभी सभासदों ने समर्थन किया ।

बादशाह को इन लोगों की स्वामीभक्ति पर प्रसन्नता अवश्य हुई किन्तु अपने प्रश्नों का यथोचित उत्तर न दे पाने से उन्हें सन्तोष नहीं हुआ था । वे बीरबल के इन्तजार में थे क्योंकि जानते थे कि मेरे प्रश्नों का यथार्थ उत्तर दे सकने में बीरबल ही समर्थ हो सकेगा । बादशाह यह विचार कर ही

रहे थे कि बीरबल आ पहुंचा और बादशाह के बगल में अपने स्थान पर अदब से बैठ गए। बादशाह चाहते ही थे उन्होंने बीरबल को सम्बोधित कर वे पांचों प्रश्न पूछे बीरबल ने क्रमशः जो उत्तर दिए वह इस प्रकार थे

प्रथम बादशाह को सम्बोधित कर बीरबल बोले कि जहांपनाह !

1. फूल कपास का अच्छा होता है सारी दुनिया का पर्दा रहता है, क्योंकि उसी के फूल से कपड़े बनते हैं।

2. दूध माता का सबसे अच्छा होता, उसी से शरीर बनता है, बचपन में पालन होता है।

3. मिठास वाणी जिह्वा का अच्छा होता है। ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय औरों को शीतल करे, आपुही शीतल होय बातहि हाथ पाइये बातहि हाथ पांव? इत्यादि वाणी की मधुरता मिठास प्रधान है।

4. पत्ता पान का अच्छा होता है जिसको देने से शत्रु भी मित्रवत व्यवहार करता है। नौकर को या किसी को उसका बीड़ा दिया जायेगा । वह अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पालन करेगा।

5. राजाओं में इन्द्र सर्वश्रेष्ठ हैं। क्योंकि उन्हीं की आज्ञा से मेघ पानी बरसाता है, जिससे संसार में कृषि कार्य होता है

और दुनिया को धन-धान्य आदि मिलता है जिससे तमाम प्राणियों का पालन-पोषण होता है।

बादशाह तथा अन्य समस्त दरबारी बीरबल के जवाब को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए।


हर वक्त कौन चलता है। अकबर बीरबल की कहानी

एक दिन बादशाह ने अपने दरबारियों से पूछा कि हर वक्त कौन चलता है उत्तर में किसी ने सूर्य को बताया किसी ने पृथ्वी को तथा इसी तरह किसी ने चन्द्रमा आदि को बताया।

बादशाह ने जब बीरबल से पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि आलमपनाह ! महाजन का ब्याज (सूद) हर वक्त चलता है । इसे कभी थकावट मालूम नहीं होती है दिन दूनाऔर रात चौगुना वेग से चलता है । बादशाह को उत्तर पसन्द आया ।


मुझे हिन्दू बना दो Akbar Birbal ki Kahaniyan

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा बीरबल तुम पक्के हिन्दू हो, मैं भी हिन्दू होना चाहता हूं। अगर तुम मुझे हिन्दू बना दो तो तुम्हें मानूं । बीरबल ने कहा जहाँपनाह दो दिन का समय दीजिए । दूसरे दिन प्रातःकाल बादशाह महल के बाहर वाले स्थान पर जो यमुना जी के ठीक ऊपर पड़ता था, हवा खाने को आए ।

देखते क्या हैं कि कोई आदमी एक गधे को जोर-जोर से साबुन लगाकर धो रहा है। वह आदमी और कोई नहीं स्वयं बीरबल ही गधे को जोर-जोर से साबुन लगाकर नहला रहे थे । बादशाह ने अचंभित होकर पूछा-बीरबल यह क्या तमाशा कर रहे हो। बीरबल ने कहा-गधे को घोड़ा बना रहा हूं। बादशाह ने बीरबल का हाथ रुकवाते हुए कहा-तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है कहीं गधा घोड़ा हो सकता है ?

बीरबल बोले-जहांपनाह ! अगर एक मुसलमान हिन्दू बन सकता है तो गधे क्यों नहीं घोड़ा बन सकता । बादशाह इस मुंहतोड़ उत्तर को सुनकर बड़े शर्मिन्दा हुए।


माँ ला दो Akbar Birbal Story in Hindi

बादशाह और बीरबल नाव पर सवार होकर सुबह की वायु का सेवन कर रहे थे और आपस में विनोद भी कर रहे थे। उस समय बादशाह को बीरबल से मजाक करने की सुझी। उन्होंने अपनी फूल माला उतार यमुना में डाल दी और कहने लगे बीरबल माला दो ।’ बीरबल ने भी अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए थे ।

वे बादशाह का मतलब भरी बातों को समझ गए । परन्तु अपने मन का भाव छिपाकर बोले बहने दो । बादशाह सुनकर अति क्रोधित हुए और बोले तुम मेरी बहन मांगते हो । बीरबल ने विनयपूर्वक कहा जहांपनाह ! आपने भी मेरी माँ को मांगा था, मैं तो नहीं चिढ़ा फिर आप इतना क्यों खफा होते हैं ? बादशाह झट अपनी कही हुई बात के प्रथम पर चले गए। मैंने तो अपना माला जो पानी में बही जाती है तुमसे मांगी थी, तुम्हारी मां को तो कुछ नहीं कहा ।

बीरबल भी ठीक उसी तरह उल्टा हो गए और बोले कि बहने दीजिए, फिर आपने कैसे समझ लिया कि हम आपसे बहन मांग रहे हैं। मैंने तो कहा था बहने दो । बादशाह से कुछ उत्तर न बन पड़ा।


एक बहादुर और कायर akbar birbal ki kahani in hindi

एक दिन अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा कि बीरबल ! कल तुम अपने साथ में बहादुर और एक कायर को लेकर आना।

बीरबल ने सोचा कि बादशाह ने एक ही बहादुर और कायर को लाने कि बात कही है यदि मैं एक शूरवीर तथा एक कायर को ले चलता हूं तो बादशाह फौरन ही कह देंगे कि मैंने तो एक ही कहा था तुम दो कैसे लाए ।

अतः वह दूसरे दिन एक स्त्री को लेकर दरबार में पहुंचा। बादशाह ने कहा-बीरबल हमने तो तुम्हें एक बहादुर और कायर दो को लाने के लिए कहा था। तुम एक को ही लेके आए ।

बीरबल बोले-हुजूर! स्त्री का पति मर जाता है तो वह बिना अग्नि का भय खाये जीवित चिता में जल जाती है अतः स्त्री के समान कोई बहादुर नहीं है और वैसे घर में कभी चूहा भी भागता है तो स्त्री डर कर चीखने लगती है अतः इसके सामन कोई कायर नहीं । बादशाह यह उत्तर सुनकर बेहद खुश हुए।


सच झूठ का अन्तर birbal stories in hindi

एक दिन बातों ही बातों में अकबर ने बीरबल से पूछा । कि बीरबल सच और झूठ में कितना अन्तर है तो बीरबल तुरन्त बोले कि जहाँपनाह ! सच और झूठ में चार अंगुली का अन्तर है। बादशाह बोले यह कैसे।

बीरबल बोले हुजूर! जो कुछ आंख से दिखाई दे वही सच है और जो कान से सुनाई दे वही झूठ है। अतः सच और झूठ में आंख और कान के अन्तर के बराबर ही अर्थात् चार अंगुली मात्र ही का तो अन्तर हुआ। बादशाह बीरबल के इस उत्तर को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए।


यह पहली मंजिल अकबर बीरबल की कहानी इन हिंदी

एक दिन अबकर बादशाह किसी बात पर बीरबल से नाराज हो गए और हुक्म दिया कि तुम तीन दिनों के भीतर मेरे राज्य से बाहर निकल जाओ । अगर तीन दिन के बाद यहां पर नजर आए तो मृत्यु दण्ड दिया जायेगा।

बीरबल ने सोचा कि बादशाह का राज्य तो पूरे भारतवर्ष में है, मैं तीन दिन में कैसे राज्य से बाहर जा सकता हूं अत: वह कहीं जंगल में जाकर छिप गए। परन्तु तीन दिन बाद बादशाह ने उस जंगल का भी जहां पर बीरबल छिपे थे पता लगा लिया और वे स्वयं वहां पहुंचे।

बीरबल ने सोचा अब तो मैं कहीं बचकर जाने से रहा अतः वे एक बहुत ऊंचे पेड़ पर जा चढ़े और सबसे ऊंची डाली पर जाकर बैठ गए।

बादशाह ने बीरबल से कहा-बीरबल तुमने हमारे हुक्म का पालन क्यों नहीं किया ? क्यों नहीं हुक्म की उदूली में तुम्हें मृत्युदण्ड दिया जाय ?

बीरबल बोले-हुजूर, मैं तो आपके हुक्म का अक्षरश: पालन कर रहा हूं। फिर सजा किस बात की?

अकबर-फिर आज चौथा दिन है तुमने मेरा राज्य क्यों नहीं छोड़ा?

बीरबल-हुजूर इस सारी पृथ्वी पर तो आपके ही राज्य हैं फिर मैं जाता भी तो कहां जाता! अतः अब विचार कर लिया है कि क्यों नहीं आकाश में जहां चांद-सितारे रहते हैं वहां चला जाऊं। तीन दिन होते ही मैंने आपके राज्य अर्थात् इस पृथ्वी को छोड़ दिया है और आकाश में जा रहा..

बादशाह-आकाश में जा रहे हो तो फिर यहां क्यों ? पेड़ पर क्यों बैठे हो?

बीरबल – हुजूर, आज बस इतना ही चलकर यही बैठ गया हूँ। यह मेरी पहली मंजिल है अब तो कल आगे का विचार किया जायेगा। यह सुनकर बादशाह को हँसी आ गई और उनका सारा गुस्सा शांत हो गया।


लोटा न था। birbal ki kahani

एक दिन बादशाह ने अपने दरबारियों से पूछा-ब्राह्मण प्यासा क्यों था, गधा उदास क्यों ? दरबारियों ने तरह-तरह के उत्तर देने शुरु किए । बादशाह ने कहा-हम दोनों का एक ही उत्तर चाहते हैं, जब दरबारियों में से कोई भी उत्तर नहीं दे सका तो बादशाह ने वही प्रश्न बीरबल से पूछा तो उसने फौरन ही उत्तर दिया-हुजूर । लोटा न था।

बादशाह ने कहा-इसे समझाकर कहो । बीरबल बोले हुजूर ब्राहाण के पास लोटा न था इसलिए बिना लोटा के वह पानी कैसे पीता । उधर गधा भी लोटा न था । गधे की सस्ती लोटने से ही मिटती है। अतः बिना लोटे वह भी उदास था।


ना समझ को फांसी अकबर बीरबल की कहानी हिंदी में

एक दिन एक बूढ़ा ब्राह्मण किसी विशेष अपराध में गिरफ्तार होकर अकबर के दरबार में लाया गया। बादशाह ने उसका अपराध समझकर उसको फाँसी की सजा दी । उसी समय बीरबल से कहा-देखना इस बूढ़े आदमी की सिफारिश न करना । इस दुष्ट के सम्बन्ध में मैंने भी कसम खा ली है कि अगर सिफारिश करोगे तो मैं तुम्हारे कहने के विपरीत करुंगा।

बीरबल ने कहा-हुजूर इस ना समझ को जरुर फाँसी दे दो, इसने कठिन दण्ड का काम किया है। बादशाह तो पहले ही बीरबल के विपरीत करने की शपथ खा चुके थे, अतः उस आदमी को छोड़ दिया ।


बीरबल काला कैसे हुआ birbal akbar ki kahani

बीरबल का रंग सांवला था। एक दिन दरबार के समय लोगों में मनुष्य की सुन्दरता और कुरुपता पर बहस छिड़ी। बहुत से लोग केवल स्मरण कर उसकी कुरुपता पर हंस पड़े। उस समय बीरबल दरबार में अनुपस्थित था।

जब कुछ कालोपरांत बीरबल लौटकर आया तो दरबारी लोग उसे देखकर जोर-जोर से हंसने लगे, बीरबल चाहता था कि उनकी बस आकस्मिक हंसी का कारण पूछे, लेकिन कुछ सोच-विचार कर चुप रह गया । इधर-उधर की बात हुई। कुछ देर में बीरबल को मौका मिला तो बादशाह से बोला-जहाँपनाह आप लोग बड़े हँसमुख क्यों दिखाई पड़ते हैं ?

बादशाह ने कहा-लोगों के हंसने का कारण तुम्हारी कुरुपता है, वे कहते हैं सब लोग गोरे हैं और बीरबल काला कैसे हुआ। – बीरबल बोला-अफसोस है कि अभी तक इसका कारण ज्ञात नहीं। बादशाह ने कहा भला बिना बतलाए उन लोगों को कैसे मालूम हो । तुम यदि जानकारी रखते हो तो बताकर सबके भ्रम का निवारण करो।

बीरबल ने उत्तर दिया-जहाँपनाह! जिस समय ईश्वर ने सृष्टि रचना आरम्भ की तो सर्वप्रथम वृक्षों और बेलों की रचना की पर इतना ही करके वह संतुष्ट नहीं हुआ। अब पशु-पक्षियों की बारी आई । इतना करके कुछ समय आनन्द का उपभोग करता रहा फिर उससे भी उत्तम जीवों की रचना करने का विचार कर मनुष्य की रचना की । तब उसने अति आनन्दित होकर पहले उसे रुप, दूसरे धन, तीसरे बुद्धि और चौथे बल प्रदान किया।

चारों चीजों को जुदा-जुदा रखकर सब मनुष्यों को फरमाया कि इन चारों में जिसकी जो पसन्द हो अपनी इच्छानुसार ले लेना इस काम के लिए कुछ समय निर्धारित कर दिया । मैं बुद्धि लेने में रह गया जब दूसरी चीज लेने गया तो समय बीत चुका था इसलिए कोरा लौटना पड़ा। बुद्धि लेकर रह गया आप लोग तो धन, रुप के लालच में पड़ गए। इस कारण से कुरुप हुआ।

बीरबल के इस उत्तर से बादशाह और दरबारियों का मन टूट गया और फिर उन लोगों ने कभी बीरबल की हंसी नहीं उड़ाई।


चतुर और मूर्ख की पहचानakbar ki kahani

बादशाह एक दफा बीरबल से पूछा कि दुनिया में चतुर और मूर्ख की क्या पहचान है । बीरबल बोले कि अवसर पर जिसकी बुद्धि काम आए यानि युक्ति-युक्ति जिसका उत्तर हो वही चतुर है जिसका इसके विपरीत सामयिक उत्तर न हो वह मूर्ख है।


परिचय या घर का पता akbar birbal ke kisse

बीरबल का नियम था दरबार में फुरसत पाकर वह अपना कुछ समय एकांतवास में बिताया करता था । एक दिन जबकि दरबार से खाली होकर अपने घर लौट रहा था। मार्ग में उसे एक आदमी मिला उसने बीरबल से पूछा-महाराज जी! क्या आप कृपा कर मुझे बीरबल के घर का पता बतला सकते हैं । तब वह उसको अपने घर का पता ठिकाना बतला कर वहां से चलता बना । वह मनुष्य पूछता-पाछता बीरबल के घर जा पहुंचा और घर वालों से बीरबल से मिलने का अनुरोध करने लगा।

वे बोले-ताऊ जी बाहर गए हैं ठहर जाओ, थोड़ी देर में मुलाकात हो जाएगी। वह आदमी बीरबल के द्वार पर बैठकर उनके आने की प्रतीक्षा करने लगा।थोड़ी देर में बीरबल लौटकर आया उसने पहचान कर आश्चर्य चकित हो पूछा-दीवान जी से रास्ते में मेरी मुलाकात आपसे हुई थी । परन्तु वहाँ पर आपने परिचय क्यों नहीं दिया । बीरबल ने कहा-आपका कहना अक्षरश: सत्य है । लेकिन आपने मुझसे बीरबल के घर का पता पूछा था । इसलिए मैंने अपने घर का पता बतला दिया ।

यदि परिचय पूछा होता तो मैं आपको अपना परिचय देता । उस आदमी ने कहा-लोगों के मुख से सुना है कि आप नित्य प्रति अपना थोड़ा समय एकांतवास में बिताते हैं तो उसका क्या कारण है ? बीरबल ने कहा आपको समझना चाहिए कि एकांतवास से बड़ा लाभ होता है । अब्बल तो एकांत में मनन का सर्वोत्कृष्ट साधन है । यानि कहीं अलग बैठकर विचार करेंगे तो आपको अपनी परिस्थिति और ही कुछ दीख पड़ेगी । वह मनुष्य बीरबल के उत्तर से संतुष्ट होकर घर लौट गया।


चार मूर्ख akbar badshah ki kahani

एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा-बीरबल चार मूर्ख ऐसे ढूंढकर लाओ, जो एक से बढ़कर एक हो । बीरबल ने कहा-जो आज्ञा सरकार । दूसरे दिन सबेरे ही बीरबल मूर्ख को ढूंढने के लिए शहर में निकला । फिरते-फिरते बीरबल ने देखा अत्यंत ही भड़कीली पोशाक पहने और हाथ में मिठाई से भरा हुआ डब्बा तथा पान की गिलोरियां लिए एक व्यक्ति तेजी के साथ जा रहा है। बीरबल ने उसको रोककर पूछा कि भाई साहब क्या बात है ? आप अत्यन्त प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं।

बड़ी मुश्किल से तो वह रुका और कहने लगा-भाई आपने व्यर्थ झंझट लगा दिया, मुझे बड़ी जल्दी है। कारण मेरी जोरु ने दूसरा खसम किया था, उसी से उसको आज लड़का हुआ है । अतः मुझे वधावा में जाने की जल्दी है । .

बीरबल ने कहा-भाई ! बधावा कल ले जाना… अभी तुम्हें बादशाह के पास चलना होगा । बेचारा चुपचाप साथ हो लिया । अब बीरबल और आगे बढ़ा तो क्या देखता है कि एक आदमी घोड़े पर सवार है, मगर घास का गट्ठा अपने सिर पर उठाए हुए है । बीरबल ने पूछा-भाई साहब ! यह क्या स्वाँग बनाए हो ?

उसने कहा स्वाँग बनाए हैं । क्या तुम्हारी आंख नहीं है, देखते नहीं घोड़ी गाभिन है, अधिक बोझ नहीं लाद सकता । बीरबल ने कहा-ठीक चलिए, बादशाह ने आपको बुलाया है । दोनों को लेकर बीरबल के यहां गया और सलाम कर कहा-जहाँपनाह ! मूर्ख हाजिर है।

बादशाह ने कहा कि हमने चार कहे थे न यह दो ही है।

बीरबल ने कहा-जहाँपनाह ! तीसरे आप और चौथा मैं हूं। बादशाह बीरबल के उत्तर से अत्यंत प्रसन्न हुए और जब उन दोनों की मूर्खता का हाल सुना तब और प्रसन्न होकर हँसे।


काली और नियायत Akbar Birbal Story in Hindi

एक बार अकबर बादशाह और बीरबल टहलते हुए कहीं जा रहे थे। रास्ते में क्या देखते हैं कि एक काली कुतिया को बहुत सारे कुत्ते घेरकर परेशान कर रहे हैं ।

बादशाह को मजाक सुझा बीरबल की माँ का नाम काली थी। अत: बादशाह ने कहा-देखो बीरबल काली पर कुत्ते कैसे दीवाने हैं । बीरबल बादशाह की हंसी को ताड़ पाया । उसने तुरन्त ही जवाब दिया-हुजूर ! उनके लिए यह नियायत है । बादशाह की माँ का नाम नियायत था।

बादशाह ने बीरबल का जवाब सुन गुस्सा में होकर कहा-बीरबल! तुम हमारी माँ को गाली देते हो ?

बीरबल ने कहा-नहीं जहांपनाह ! आप मेरी माँ को गाली देते हैं।

बादशाह ने कहा-नहीं बीरबल ! मैं काली कुतिया को कह रहा था।

बीरबल ने कहा-जहाँपनाह ! मैं भी तभी तो कह रहा हूं। इन कामाँध कुत्तों का वह काली बुरी बात नहीं है, बल्कि इन्हें वही नियायत पानी अच्छी है।


आम का छिलका Akbar Birbal Story in Hindi

एक दिन अकबर बादशाह बेगमों के साथ बैठे आम खा रहे थे, बीरबल भी वहां उपस्थित था । बादशाह आम खाकर उसकी गुठली और छिलके अपनी बेगम के सामने रखते जा रहे थे । अचानक बीरबल की ओर देख कर मुस्कुराए और बोले देखो बीरबल ! यह बेगम कितनी पेटू है ?

मैंने एक आम नहीं खाया और इसने सारे आम खा डाले। बेगम इस दिल्लगी का उत्तर न दे पाई वह लज्जा से लाल होकर रह गई। उसने बीरबल की ओर देखा।

बीरबल चुप न रह सके और बोले-पृथ्वीनाथ ! अपराध क्षमा हो ! बेगम साहिबा अधिक खाती हुई भी छिलके, गुठली तो छोड़ देती है, पर आप तो उन्हें भी नहीं छोड़ते। यह सुन बादशाह चुप रह गए और बेगम प्रफुल्लित हो गई।


अकबर बादशाह झक मार रहे हैं

एक दिन की बात है कि बादशाह अकबर तथा बीरबल घूमते हुए जमुना किनारे पहुंच गए। वहां पर कुछ केवट मछलियां मार रहे थे । उनको मछली मारते देखकर बादशाह को शौक हुआ।

संयोगवश कुछ पैगाम लेकर बीरबल को बेगम के पास जाना पड़ा। वहां पहुंचने पर बेगम ने पास पूछा कि बादशाह कहां हैं ? बीरबल ने झट उत्तर दिया कि झक मार रहे हैं

बेगम इस उत्तर से बड़ी नाराज हुई। जब बादशाह महल में अपने आए तो बीरबल की गुस्ताखी का सारा किस्सा कह सुनाया और बीरबल को सजा देने की प्रार्थना की । बीरबल द्वारा इस तरह की अपशब्द अपने प्रति सुनकर बादशाह क्रोध से लाल हो गए। इस पर बेगम का ताना कि बीरबल को बहुत सिर पर चढ़ा लिया इसी का यह नतीजा है।

इस बात ने बादशाह के क्रोध को और भड़का दिया। बादशाह ने उसी समय सिपाही को आज्ञा दी कि बीरबल को बुला लाओ। आज्ञा पाते ही सिपाही बीरबल को बुला लाया । बीरबल के आते ही बादशाह ने क्रोधपूर्वक स्वर में कहा-आज तुमने बेगम से क्या कहा था ? तुम्हारा दिमाग बहुत चढ़ गया है ?

बीरबल ने विनयपूर्वक कहा – मैंने तो यही कहा था कि बादशाह झक मार रहे हैं । इसकी वजह यही थी कि हमारी भाषा संस्कृत में मछली को झक कहते हैं। इसलिए ऐसा कहा था। यदि कोई अपराध हो तो क्षमा करेंगे । बीरबल के सरल उत्तर से बादशाह का क्रोध एकदम शान्त हो गया और बेगम भी खुश हो गई।


आकाश में कितने तारे हैं

अकबर बादशाह बीरबल के चतुराई के बड़े प्रशंसक थे। एक बार उन्होंने बीरबल से पूछा-आकाश में कितने तारे हैं ? बीरबल ने कहा-उत्तर अभी नहीं दिया जा सकता। कल तक दे सकूँगा।

घर आकर उसने एक बड़ा कागज ले लिया और सूई से उसमें बहुत से छेद गोद डाले । उस छोटे-छोटे को कोई गिन नहीं सकता था।

दूसरे दिन दरबार पहुंचते ही बादशाह ने फिर वही प्रश्न दुहराया, तब बीरबल ने बादशाह के सम्मुख यह कागज फैला दिया और कहा-अन्नदाता! आकाश के तारों का छाया इस कागज पर उतार लाया हूं-जिसका दिल चाहे गिन ले, तारों की संख्या मालूम हो जाएगी।

उस कागज को देखकर सब चुप रह गए बादशाह ने उसकी सूझ की बड़ी प्रशंसा की ।


गदहे तम्बाकू नहीं खाते।

एक समय की जिक्र है बादशाह अकबर और बीरबल हवाखोरी कर रहे थे। बादशाह की नजर एक तम्बाकू के खेत में खड़े गदहे पर पड़ी। अतः बीरबल को चिढ़ाने की नियत से कहा-देखो बीरबल ! तुम तम्बाकू खाते हो, मगर उसे यह गदहा भी नहीं खाता ।

बीरबल तुरन्त ही बोल उठा-जी हां कृपानिधान ! गदहे तम्बाकू नहीं खाते । बीरबल का उत्तर सुनकर बादशाह अत्यन्त प्रसन्न हुए।


बादशाह अकबर का महाभारत

यह तो सभी जानते हैं कि बादशाह अकबर हमेशा बड़ा बनने की कोशिश किया करते थे।

एक बार बीरबल ने बादशाह को एक महाभारत की बड़ी पोथी भेंट की, उसे पढ़कर उनके मन में अपनी महाभारत बनवाने की धुन सवार हुई।

बीरबल को यह काम सौंपा गया । बीरबल ने सोचा यह बादशाह को अक्लमन्दी का सबक देने का अच्छा मौका है।

इसलिए इस काम में बहुत से कठिनाईयां बताई । साथ ही कार्यारम्भ के लिए 50 हजार रुपये की मांग की । बादशाह तो मतवाले हो रहे थे। झट से पचास हजार रुपये और दो महीने की छुट्टी मंजूर कर ली ।

घर आकर रुपया तो बीरबल ने धर्म के कामों और गरीबों में बांट दिया। और एक मन रद्दी कागज मंगवाकर रख ली । बीरबल जब दरबार में आये तो बादशाह रोज पूछते ।

बीरबल कह देता हुजूर दस ब्राह्मण रोज लिख रहे हैं। बड़ा खर्च हो रहा है।

एक हजार रुपया दिला दें पांच ब्राह्मण बढ़ा दूं। बादशाह मंजूर कर लेते हैं ।इस तरह बीरबल रोज हजार दो हजार रुपया ले जाते और गरीबों को बांट देते ।

दस महीने के बाद उसी रद्दी कागज की जिल्द बनवाकर दरबार पहुंचे और बादशाह से कहा हुजूर महाभारत लगभग तैयार है।

केवल कुछ बातों पर आपसे और बेगम साहिबा से सलाह लेनी है।

बादशाह की अनुमति लेकर बीरबल बेगम साहिबा के पास पहुंचे । बीरबल को आये देखकर बड़ी खुशी हुई। बेगम ने बीरबल के आने का कारण पूछा।

बीरबल ने हंसी दबाते हुए कहा-बादशाह ने शाही महाभारत बनवाया है। वह करीब-करीब तैयार हो गया है। मैं अपने साथ लाया हूं।

कुछ बातें उसमें रह गई है जिनके बारे में आपसे सलाह लेना बाकी है। आप जानते हैं महाभारत में पांडवों की ओर से द्रोपदी थी।

और महाभारत की नायिका आप ही हैं । परन्तु जैसे हिन्दुओं के प्राचीन महाभारत में नायक पांच पांडव थे तो आपके पांच पतियों में बादशाह सलामत के अलावा चार कौन-कौन से हैं।

दूसरी बात है कि जैसे भरी सभा में दुशासन ने द्रोपदी की चीरहरण किया था और पांडव इस अपमान को सहन करते रहे थे।

उसी तरह किस काफिर ने भरी सभा में आपकी इज्जत खराब की थी और जिसे बादशाह सलामत्त चुपचाप सहन करते रहे थे।

बीरबल की बात सुनते ही बेगम का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। वह गुस्से में लाल थी । फौरन दासियों को हुक्म दिया कि इस महाभारत को आग लगा दो।

हुक्म की देर थी। महाभारत दो मिनट में जलकर राख बन गई। बीरबल भी वापस आ गये और बनावटी दुःख प्रकट करते हुए बादशाह को सारा हाल बताया।

हाल सुनकर बादशाह बड़े शर्माए और जिन्दगी भर फिर कभी शाही महाभारत बनवाने का नाम न लिया।


अकबर बादशाह का चित्र पैखाने के दरवाजे पर

एक बार बीरबल की बुद्धिमानी की प्रशंसा सुन कुछ वक्त के लिए प्रख्यात एक राजा ने अपने राज्य में बीरबल के आने की अनुमति देने के लिए बादशाह अकबर को पत्र लिखा । बीरबल को अपने यहां बुलाकर छकाने को जानें की इजाजत दे दी। बीरबल जब राजा के राज्य में पहुंचे तो धूमधाम से उनका स्वागत किया गया।

इधर राजा ने बीरबल को उपहास करने के लिए बादशाह अकबर का चित्र पैखाने के दरवाजे पर टंगवा दिया था। तीसरे पहर जब बीरबल निपटने को जाने लगे तो बादशाह का चित्र पखाने में देखकर समझ गए कि राजा ने अपमान करने के लिए ऐसा किया है । वहाँ से उल्टे वापस आकर राजा से बोले कि आपकी कब्ज की शिकायत तो नहीं रहती? या अग्निमास वगैरह तो नहीं है यह शंका मुझे इसलिए उत्पन्न हुई कि मैंने विचारा कि हो न हो बादशाह का चित्र देखते ही भयभीत होने से राजा साहब का पैखाना उतर आता होगा । क्या मेरा अनुमान सच है ? बीरबल के इस प्रश्न से राजा साहब शर्मिन्दा हो गए । कोई उत्तर न बन पड़ा।

बीरबल जब वापस दिल्ली आए तब बादशाह के सम्मुख उसकी चर्चा हुई तो बीरबल को उस दिन बहुत से धन, वस्त्र आदि ईनाम में दिए ।


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