सिर के बाल मुड़वा दूंगा | Akbar Birbal ki Kahani | Sir ke Baal Mudwa Dunga

सिर के बाल मुड़वा दूंगा – Sir ke Baal Mudwa Dunga

दिल्ली नगर में एक सुप्रतिष्ठित और विद्वान पण्डित रहते थे । उनके श्रेष्ठाचरण से दरबार में उनका बड़ा मान था । पंडित जी का स्वभाव था कि वह बिना समझे-बुझे किसी कार्य में हाथ डालते थे और जिस बात को मुख से एक बार कह देते उसका प्राण प्रण से पालन करते । उनका मित्र समदाय सदा खुश रहता।

एक दिन ऐसी घटना घटी जब पण्डित जी ने चौके में बैठकर भोजन करते समय परोस कर रखे गए खाने में बाल निकला तो अपनी स्त्री से बोलें-देखो तो मैं तुम्हारी पहली भूल के कारण तुम्हें क्षमा करता हूं। पर फिर ऐसी असावधानी करोगी खाद्य पदार्थ में एक भी बाल निकलेगी तो तुम्हारी सिर के बाल मुड़वा दूंगा ।

हरि इच्छा बलवान यद्यपि बेचारी स्त्री अपने स्वामी का जिद्दी स्वभाव समझकर भयभीत रहा करती थी और खाना बनाने व परोसने के समय अपने बालों को खूब संभाल कर बांधे रहती, परन्तु होनी को कौन रोक सकता है वह तो होकर रहती है।

कुछ दिनोपरान्त एक दिन जब पंडित जी फिर भोजन करने बैठे तो उनके खाने की सामग्री में एक बाल निकला। पण्डित जी बहुत नाराज हुए और अपनी स्त्री के बाल मुंडवाने के लिए नाई को बुलवाया । अपने स्वामी को नितांत क्रोधित देखकर स्त्री ने भीतर से किवाड़ बंद कर लिए । पण्डितजी ने हजार डांट-फटकार सुनाई, परन्तु, स्त्री ने किवाड़ नहीं खोला।

इतना तक हो जाने पर भी पण्डितजी अपने जिद्द पर अड़े ही रहे । स्त्री ने सोचा अब इस प्रकार काम चलना कठिन दीख पड़ता है, कोई उपाय तत्काल करना चाहिए। उसने एक आदमी को परोहर भेजकर अपने भाईयों को सहायता के लिए बुलवाया।

उसके चारे भाई थे । अपनी बहन को इस प्रकार अपमानित होते सुन अपने बहनोई की हठवादिता पर बड़े खेद हुआ और उसके उद्धार का उपाय सोचने लगे । इतने में उसके बड़े भाई को बीरबल से पुराना परिचय होने का स्मरण हो आया वह तत्क्षण बहन के उद्धार का उपाय पूछने के लिए बीरबल के घर पहुंचा । उस समय बीरबल चारपाई पर पड़े-पड़े किताब पढ़ रहा था ।

अपने मित्र का संदेश सुनकर उसे पास बुलाकर उसका कुशल समाचार पूछा । वह अपनी बहन की दुर्दशा का आद्योपरांत कारण बतला कर बोला-मैं आपसे अपनी बहन के उद्धार की तरकीब पूछने आया हूं। मेरी मदद कीजिए । बीरबल बोला-तुम चारों भाई नंगे सिर होकर अपनी बहन के पास ढंग से जाओ मानो कोई मर गया तब तक मैं आ पहुंचता हूं।

इधर पंडित जी ने स्त्री को द्वार न खोलने पर क्रुद्ध होकर नौकरों से कहा-अभी बढ़ई को बुलाकर दरबाजे तोड़ डालो । इसी बीच में वे चारों नंग-धड्ग सिर खोले आ पहुंचे । इनके आने के थोड़ी देर बाद बीरबल भी क्रिया-कर्म का सामान लिए हुए आया और पंडित जी के मुख्य द्वार पर टकटकी बांधने लगा । उधर स्त्री के भाईयों ने पंडित जी को जबरन चारों तरफसे कपड़े से ढंककर कफनियाना प्रारंभ किया।

जब पंडित जी ने ची-चपड़ मचाया तो वह क्रोधित होकर बोला-खबरदार ! चुपचाप पड़े रहो बिना तुम्हें कफनियाये किसकी मजाल है जो मेरी बहन को हाथ लगायें । वे पंडितजी को बांध कर बीरबल के पास ले गए। इस नवीन कोतूहल को देखने के लिए वहां पर आदमियों का जमघट-सा लग रहा था ।

अपने पड़ोसियों के सामने अपनी दुर्दशा देख पण्डित जी का सिर लज्जा के बोझ से दब गया और अपनी रिहाई के लिए चारों सालों से अनुनय विनय करने लगे । उसकी स्त्री समीप कोठरी से छिपकर सारी दुर्दशाएं देख रही थी। पति को भाइयों से गिड़गिड़ाते देख उसे दया आ गयी और उसका पवित्र हृदय धर्मसागर में गोते मारने लगा।

स्त्री ने कहा चाहे जो हो मैं पति की ऐसी दुर्दशा अपनी आंखों से नहीं देख सकती। वह मेरा देवता है, इसके कोप करने से मेरा सर्वनाश हो जाएगा। पति की हंसी कराकर कुल्टायें भले ही प्रसन्न हो सकती हैं, परन्तु पति परायण नहीं।

वह किवाड़ खोलकर बाहर आई और अपने भाईयों से उसे छोड़ देने का आग्रह करने लगी । भाईयों का बहन के कहने पर अमल न करते देख बीरबल खुद उनसे क्षमा प्रार्थी हुआ और उसके पति को छोड़ देने की आज्ञा दी। पण्डित जी छोड़ दिए गए । अन्त में उन्हें अपनी हठधर्मिता पर बड़ा पश्चाताप हुआ।

इस स्वांग में बीरबल का अभिप्राय था कि पति के जीवितोवस्था में औरत का मुण्डन नहीं हो सकता । उसका पति मर ले तो औरत का मुण्डन किया जाए । बीरबल ‘पण्डित जी को छुड़ा कर उनकी औरत का कष्ट निवारण कर लौट गया । चारों भाई अपनी बहन के घर मेहमानी करने के लिए टिके रहे।

धन्य है! हमारी उन ललनाओं को जो अपने पर कठिन संकट उठाकर पतिव्रता की रक्षा करती हैं । हे देवियों पति से कष्ट उठाकर पति सेवा करना तुम्हारा ही काम है । अपने पति को कष्ट में देख भला तुम कैसे सहन कर सकती हो . पति को ईश्वर तुल्य मानकर पूजा करने वाली संसार में प्रसिद्ध एकमात्र भारत ललना ही है ।

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