अजीब तरह की पहेली – Ajeeb Tarah ki Paheli
राजा अकबर बहुत अधिक ही पहेलीबाज थे, वे दूसरों से पहेली सुनते और समय पर अपनी भी लोगों को सुनाया करते थे।
एक दिन जहांपनाह ने बीरबल को यह नई पहेली सुनाई –
ऊपर नीचे ढक्कन, मध्य मध्यों खरबूजा,
मों छुरी सों काटे आपहि अर्थ तासु नाहि दूजा ।
बीरबल ने ऐसा पहेली कभी नहीं सुनी थी इसलिए चकराया और उस पहेली का कुछ अर्थ उसकी समझ में न आया । अतएव बादशाह से बोला-पृथ्वीनाथ ! मुझे कुछ दिनों की मोहलत दी जाए तो मैं समझकर बताऊंगा।
बादशाह ने उसका प्रस्ताव मंजूर किया । तब बीरबल अर्थ समझने के फिराक में वहां से चलकर एक गांव में जा पहुंचा। एक तो गर्मी का दिन दूसरे रास्ते के परिश्रम में थका-मांदा बेचैन हो रहा था। विवश होकर एक घर में घुसा। घर के भीतर एक लड़की भोजन बना रही थी।
बीरबल ने पूछा-बेटी, क्या कर रही हो ? लड़की ने उत्तर दिया-आप देखते नहीं हैं, मैं बेटी को पकाती और मां को जलाती हूं। बीरबल ने पूछा-अच्छा दो का हाल तो तुमने बतलाया। तीसरा तेरा बाप क्या कर रहा है और वह कहां है ? लड़की ने कहा-वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहे हैं । बीरबल ने फिर पूछा-तेरी माँ क्या कर रही है ? लड़की ने उत्तर दिया-एक को दो कर रही है । बीरबल को लड़की से ऐसी आशा न थी। उसके उत्तर से वह एकदम आश्चर्य चकित हो गया।
इसी बीच उसके माता-पिता भी आ पहुंचे । बीरबल ने उनसे अपना सारा समाचार कह सुनाया। लड़की का पिता बोला-मेरी लड़की ने आपको एकदम ठीक उत्तर दिया है।
अरहड़ की दाल उसकी लड़की पका रही है । मैं अपनी बिरादरी का एक मुरदा जलाने गया था। स्त्री पड़ोस में मंसूर की दाल दल रही थी।
बीरबल को लड़की की पहेली से भरी बातों से बड़ा हर्ष हुआ। उसने मन में सोचा कि शायद बादशाह की पहेली का भेद खुल जाए, इसलिए लड़की के पिता से पहेली का अर्थ पूछा । वह किसान बोला-यह तो बड़ी सरल पहेली है, अच्छा सुनिए इसका अर्थ धरती और आकाश ये तो दो ढक्कन हैं, उसके अन्दर निवास करने वाला मनुष्य खरबूजा है । वह उसी प्रकार अपनी मृत्यु आने पर मर जाता है जैसे गरम लगने से मोम पिघल जाता है ।
बीरबल को उस किसान की बुद्धिमानी देखकर बड़ा हुर्ष हुआ और वह उसे पारितोषिक देकर स्वयं दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। वहां पहुंचकर सभा में ही बादशाह की पहेली का अर्थ बताया । बादशाह ने प्रसन्न हो बीरबल को बहुत इनाम दिया ।
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