1 Best Education Essay in Hindi | वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर निबंध

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About Education Essay in Hindi | वर्तमान शिक्षा प्रणाली | Shiksha par Nibandh

प्रस्तावना

आज हर महत्त्वाकांक्षी मनुष्य के लिए पहली चिन्ता का विषय है शिक्षा, उन्नत शिक्षा, ऐसी शिक्षा जो हमें आत्म निर्भर बना सके। रोजगार दिला सके। प्रतिस्पर्धा को तैयार कर सके आदि। समाज के लिए अनेक चिन्ताओं में शिक्षा की सबसे बड़ा चिन्ता है, जिसकी ओर सबसे पहले ध्यान आकर्षित होता है। शिक्षा की चिन्ता इसलिए नहीं है कि शिक्षा मुक्ति की आर ले जाएगी, जिसकी कभी ऐसी ही परिभाषा की जाती थी। ऐसी शिक्षा की चिन्ता जो केवल अर्थ कमा सके।

आज शिक्षा के नाम पर अंधेरे में तीर छोड़ा जा रहा है। कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं है। इस असंगति के होते हुए भी निरुद्देश्य इस शिक्षा प्रणाली को ढोते चले जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि युवकों में असन्तोष की भावना घर बनाती जा रही है। समाज में पनपते असन्तोष के कारणों को एक दूसरे पर मढ़ा जा रहा है। आज की शिक्षा प्रणाली से प्राप्त ज्ञान संचय फलहीन वृक्ष समान है या उस विशाल सरोवर के समान है जो एक भी प्यासे की प्यास नहीं बुझा सकता है।

शिक्षा और ज्ञान – About Education Essay and Knowledge

Vartman Shiksha Pranali में ज्ञान-सम्पादन करना कठिन है। यदि किसी प्रकार ज्ञान-सम्पादन कर भी लिया जाए उसे संभाल कर रखना कठिन है। आज सर्वत्र भ्रष्टाचार, गुण्डागर्दी, हिंसा का दौर, आपा-धापी उन लोगों में अधिक है जो उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। उनकी विकृत मानसिकता का कारण आज की शिक्षा प्रणाली ही हो सकती है कि शिक्षा का उद्देश्य किसी प्रकार धन कमाना रह गया आज की शिक्षा प्रणाली में जीवन-मूल्यों का स्थान नहीं है, न उन मूल्यों को महत्व दिया जाता है।

यही कारण है कि आज की शिक्षा प्रणाली इंजीनीयर बना सकती है, डाक्टर बना सकती है विकृत मानसिकता गले राजनेता बना सकती है, तिकड़मी बना सकती है, किन्तु आज की शिक्षा महामानव नहीं बना सकती है। विवेकानन्द, दयानन्द, चाणक्य, शिवाजी, भरत, चन्द्रगुप्त नहीं बना सकती है। आँख उठाकर देखा जाए तो इतने लम्बे काल-खण्ड में आज की शिक्षा-प्रणाली कोई महामानव नहीं बना सकी, जिसे महामानव या महानायक कहा जा सके।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली और आदर्श

संस्कारों के अभिवर्धन के लिए, व्यक्ति को महामानव रूप में ढालने के लिए, आत्म-अनुशासन को जीवन का अंग बनाने के लिए, उदारता को जीवन में लाने के लिए आज की शिक्षा प्रणाली में किंचित भी प्रयास नहीं किया जाता है। यही कारण है कि प्राथमिक स्तर से उच्च-स्तर तक छात्रों के व्यवहार में विकृत रूप दिखाई देता है। ऐसे ही विकृत स्वभाव वाले छात्र आगे चलकर शिक्षक, डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक अधिवक्ता और राजनेता बनते हैं। फिर परिणाम क्या होगा, उसकी सहज ही परिकल्पना की जा सकती है।

अतः यदि शिक्षा उच्च आदर्शों से युक्त नहीं है तो वह धनिकों, उद्दण्डों, राजनेताओं की चेरी बनकर रह जाती है। धनिकों के पैरों में गिड़गिड़ाती दिखाई देती है। इसी प्रकार मूल्यहीन शिक्षा होने के कारण बुद्धि-सम्पन्न, विलक्षण प्रतिभा के धनी होते हुए भी अनेक मनीषी वैज्ञानिक मात्र विनाश हेतु आयुधों के अनुसंधान और विनाश के निर्माण कार्य में लगे रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि विश्व के अधिकांश प्रतिभा के धनी, उच्च शिक्षा प्राप्त वैज्ञानिक मात्र संहार हेतु उपायों की खोज में लगे हैं।

इस प्रकार आज की शिक्षा प्रणाली में व्यक्ति को दी गई शिक्षा तो बन्दर के हाथ में दी गई तलवार की तरह सिद्ध हो रही है। इसलिए यह कहना उचित है कि यदि मनुष्य के व्यक्तित्व में शालीनता का समावेश न हो तो ऐसी शिक्षा से कोई लाभ नहीं है। आज की शिक्षा प्रणाली शालीनता से कोसों दूर केवल तिकड़म सिखा रही है।

पेटू बनाने तक सिमित करना

आज की शिक्षा विशेष रूप से पेटू हो गई है या कहो कि मनुष्य को पेटू बना दिया है। स्वार्थी बना दिया है। जीविका तक तामित कर दिया है। वर्णमाला और जीविका का सूत्र रटाकर उसकी बद्धि को संकुचित कर दिया है। आज की शिक्षा शिवाजी नहीं बना सकती है, शंकराचार्य नहीं बना सकती है। हाँ आज की शिक्षा पेटू बना सकती है।

साज-सज्जा की सामग्री कैसे इकट्ठी की जाए, वह तिकड़म का पाठ पढ़ा सकती है, जो सर्वत्र दिखाई देती है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और कई बार मंत्री रह चुके गुलजारी नन्दा तथा अन्य ऐसे भी सच्चरित्र व्यक्ति हुए जो अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से अपने लिए रहने के लिए सर्वथा सम्पन्न घर भी न जुटा सके, किन्तु आज चतुर्थ श्रेणी का सामान्य जन सर्वथा सम्पन्न रह सकता है जिसे देख अच्छे-अच्छे दाँतों तले अंगुली दबा कर हर जाते हैं। ऐसा पाठ पढ़ाने में आज की शिक्षा सर्वथा सक्षम है।

किन्तु जीवन निर्वाह के लिए साधन जुटाना ही पर्याप्त नहीं है। आत्मिक विकास के बिना जीवन यात्रा अधूरी है। पाश्चात्य और आधुनिकीकरण के नाम पर दूसरों का अन्धानुकरण है, जिसका प्रभाव शिक्षा प्रणाली में आ गया है। संस्कार हीन पेटु शिक्षा प्रणाली को मानवता का विरोधी कहा जा सकता है या पशुवत् प्रवृत्ति का पर्याय कहा जा सकता है, जिसे राष्ट्र कवि मैथिली शरण की पंक्ति से समझा जा सकता है

यह पशुप्रवृत्ति है जो आप आपही चरे,
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।

उपसंहार

आज की Shiksha ने मनुष्य को परिमुखापेक्षी बना दिया है या उच्छंखल बना दिया है। जिसमें आदर्श-मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इसका परिणाम है आज परस्पर स्नेह और विश्वास का अभाव है। पारिवारिक सम्बन्धों की कड़ी ढीली पडती जा रही है। अनुशासन नाम-मात्र को रह गया है। शिक्षा मनुष्य पर नियन्त्रण नहीं कर पा रही है। आज की शिक्षा ने कुतर्क करने के तरीके समझाकर जीवन जीने के नए उद्देश्य और मूल्य स्थापित किए हैं।

जिसमें भय है, अविश्वास है, एकाकीपन है, मन अशान्त है। धीरे-धीरे मनुष्य विवश ऐसे ही जीना सीख गया है। आज की शिक्षा में शिक्षित मनुष्य विनम्र होने का प्रदर्शन तो करता है किन्तु ठीक उसी प्रकार करता है जैसे चुनाव के समय नेतागण और शिकार के समय बगुले।


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