Hatim Tai and 7th Question full Story in Hindi | हातिमताई और सातवां सवाल

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Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi
| हातिमताई और पहला सवाल
Hatim Tai and 2nd Question full Story in Hindi | हातिमताई और दूसरा सवाल


Hatim Tai and 7th Question full Story in Hindi | हातिमताई और सातवां सवाल

का जवाब तलाश करके लाना अब हातिम शाहाबाद से निकलकर एक वन में जाने लगा। कई दिन तक बराबर चलता रहा तो एक नगर के परखोटे के बाहर एक बूढ़ा आदमी खड़ा पाया । जिसने हातिम को सलाम किया और हातिम ने स्वीकार किया । तब वह बूढ़ा पूछने लगा- हे युवक तू कौन है? कहां से आया और कहां जा रहा है?

हातिम ने उत्तर दिया-मैं यमन देश का शहजादा हूं, शाहाबाद से आया हूं और हमामबाद गिर्द की खबर लेने जा रहा हूं। यह सुनकर बूढ़ा सिर नवाकर बोला-हे शहजादे, बतला तेरा ऐसा कौन बैरी है जिसने तुझे हमामबाद गिर्द की खबर लाने भेजा है? तू जा अपने घर, नही तो अकाल मौत मारा जाएगा।

इतना सुनकर हातिम ने हुस्नबानू और मुनीरशामी का समाचार बूढ़े को सुनाया और कहा-हे बाबा ईश्वार की राह में अपने प्राण न्योछावर कर चुका हूं। इसलिए मौत का भय नही हैं । अब घर लौटकर नही जाऊंगा । हातिम आगे चलते-चलते शहर कर्ता में पहुंचा और फिर बादशाह के द्वार पर गया तथा द्वारपाल ने भीतर जाकर सूचना दी तो बादशाह ने कहा-अच्छा उसे आने दो।

हातिम जब बादशाह के पास पहुंचा तो बड़े अदब के साथ भेंट सम्मुख कर दी। जिसे देखकर बादशाह फूला नहीं समाया और बोला-मेरी इच्छा है कि तू मुझसे कुछ मांग और मैं तुझे वही दूंगा।

यह सुनकर हातिम ने कहा यदि आप मेरे उपर बहुत ही प्रसन्न हैं तो कुछ मांगूंगा । परन्तु आप इस बात का प्रण करें तो मुझे सन्तोष हो । बादशाह बोला- हां मैं भरी सभा में ईश्वर को साक्षी मानकर प्रण करता हूं कि जो मांगेगा वही दूंगा । तब तो हातिम बड़ा प्रसन्न होकर कहने लगा-मैं हमामबाद गिर्द को देखना चाहता हूं। इतना सुनते ही बादशाह ने सिर नवा लिया और कुछ देर मौन रहकर अपना मुंह खोलाहे परदेशी मैं प्रण कर चुका हूं इसलिए तुझे वहां भेज दूंगा।

परन्तु स्वयं ही इस विचार को छोड़ दे, क्योंकि हमामबाद गिर्द को जो भी देखने गया जीवित लौटकर नहीं आया । हातिम ने बादशाह को समझाया आप चिन्ता न करें, मुझे जाने दें, ईश्वर की दया से मैं जीवित ही आपसे आ मिलूंगा। यह सुनकर बादशाह ने मन्त्री को आज्ञा दी कि हमामबाद गिर्द के द्वारपाल को एक चिट्ठी लिखकर हातिम को दे दो। फिर बादशाह ने कई नौकर हातिम के साथ भेज दिए और लगातार पन्द्रह दिन चलने के बाद हमामबाद गिर्द दिखाई पड़ा।

कुछ और चलने पर उसके द्वार पर पहुंचे जो एक आलीशान मकान था और वहां बड़ी भारी सेना पड़ी थी। हातिम ने साथियों से पूछा-यह किसकी सेना है? तो उन्होने बताया-यह सेना द्वारपाल की है । अब हातिम द्वारपाल के पास पहुंचा और चिट्ठी द्वारपाल को दिया । द्वारपाल ने चिट्ठी पढ़ी तो उसमें बादशाह की ओर से लिखा था कि इस मनुष्य को हमामबाद के अन्दर बे-रोक-रोक जाने दो।

अब द्वारपाल ने हातिम को हमामबाद के द्वार पर पहुंचा दिया, जहां पर यह लिखा था । क्यों बादशाह के समय में यह जादूगर बना और वर्षों तक यह बना रहेगा और जो कोई इसमें घुसेगा वह जीवित नहीं निकलेगा । यदि पूरी अवस्था का हो उस शेष अवस्था को वहीं एक बाग में मेवा खाकर पूर्ण करेगा, परन्तु इस जादू घर से किसी प्रकार नहीं निकल सकता है । हातिम इस लेख को पढ़कर थर्रा गया ।

परन्तु फिर साहस बांधा और सोचा कि मरने से अधिक कुछ हो ही नहीं सकता । सो परोपकार के मार्ग में मर भी जाऊं तो मुझ-सा भाग्यशाली ही कौन है? जब द्वारपाल ने फाटक खोला और हातिम भीतर चला गया। दस-बारह डेग ही चलकर हातिम ने पीछे नजर घुमाई तो न वह द्वारपाल ही दिखा न द्वार। तब ईश्वर का नाम लेकर आगे बढ़ा और थोड़ी दूर पर एक मनुष्य नजर पड़ा, जिसे देखते ही हातिम शीघ्र चलकर उसके पास पहुंच गया । उसने यह देखा तो अपने खीश से निकालकर हातिम को एक शीशा दे दिया।

हातिम ने कहा-शीशा तूने मुझे क्यों दिया? क्या तू नाई है? उसने कहा-हां मैं नाई हूं, जो कोई आता है उसे हमाम में ले जाकर स्नान कराता हूं। हातिम ने कहा-अच्छा मेरे शरीर पर भी रास्ते में धूल जम गई है इसलिए स्नान का इच्छुक हूं, चलो स्नान कराओ । वह हातिम को एक हौज पर ले गया और विनयपूर्वक बोला – अब आप कपड़े उतारकर बैठ जाओ। यह सुनकर हातिम बैठ गया और उस मनुष्य ने गडुआ छोड़ा, दूसरा भी छोड़ दिया, तीसरे के छोड़ते ही बड़ी जोर की गर्जना हुई और घोर अन्धेरा छा गया परन्तु थोड़ी देर में प्रकाश हो गया।

अब हातिम ने देखा न मनुष्य है, न हौज है, सिर्फ वह मठ है । फिर कुछ देर पीछे वहां चलकर ऐसी बाढ़ आई कि हातिम गले तक डूब गया । सोचने लगा कि अब प्राण गए। चारों ओर भागा दौड़ा, लेकिन मठ का दरवाजा नहीं खोल पाया । पानी कण्ठ तक आ गया । इतने ही में मठ के भीतर एक जंजीर लटकी देखी तो हातिम ने तुरन्त ही पकड़ ली। जिसे पकड़ते ही उसी प्रकार बादल-सा गरजा और हातिम एक बारादरी के पास पहुंचा जहां पर बहुत से मनुष्य लंगोट बांधे हुए नंगे खड़े दिखाई दिए, लेकिन वह सब पत्थर के थे।

हातिम उन्हें देख ही रहा था कि इतन में पेड़ पर लटके पिंजड़े में एक तोता नजर आया और पास ही उस बारादगी की दीवार पर यह लिखा था कि जो मनुष्य इस हमाम में आया वह लौटकर बाहर नहीं गया । एक दिन मूर्ख बादशाह ने इस वन में एक हीरा पाया । वह तौल में सात सौ सलाकुल के बराबर है बादशाह ने अपने दरवारियों से प्रश्न किया कि ऐसा हीरा दूसरा मिल सकता है? उन्होंने उत्तर दिया नहीं सरकार, इसके मेल का हीरा संसार में ही कही नहीं मिलेगा ।

बादशाह ने सोचा कि हम हीरे को ऐसे स्थान पर रखू कि कोई भी न पा सके। – बस तभी यह हमाम बनाया गया और वह हीरा इस तोते को निगलवाकर पिंजड़े में इस पेड़ पर लटकवा दिया और इस कुर्सी पर तीर कमान रखबा दिए । इसलिए कि जो मनुष्य आकर लौटने का विचार करे वह इस तोते के शीश में तीन तीन मारे । उसमें से एक भी उनके शीश में छिद जाए और वह मर गए जाए तो वह कुशलपूर्वक हीरे को लेकर अपने घर जाए । नहीं तो तीनों तीर खाली जाने पर वह पत्थर बन जाएगा ।

इस लेख को पढ़कर हातिम ने सोचा, हे ईश्वर तूने मेरी लाज सदैव ही रखी है तो क्या अब नही रखेगा । ऐसे विचार कर तीर कमान उठाये और पहला तीर छोड़ा। परन्तु बार खली गया, हातिम का शरीर घुटनों तक पत्थर का हुआ और उछलकर उस स्थान से सौ कदम पीछे जा पहुंचा।

फिर ईश्वर का स्मरण करके दूसरा तीर छोड़ा, परन्तु वह बार फिर भी खाली गया । हातिम कमर तक पत्थर का हुआ और उछलकर उस स्थान से दो सौ कदम पीछे हो गया तो हातिम की आंखों आंसू आ गए और कहने लगा- हे भगवान, मुझे पत्थर होने की चिन्ता नहीं। यही चिन्ता है कि मुनीरशामी के काम को पूर्ण नहीं कर सकता । ऐसे कहकर तीर छोड़ दिया जो तोते के शीश में लगा जिससे वह जमीन पर गिरते ही समाप्त हो गया और हीरा उसके पेट में से मुंह के द्वारा निकल पड़ा।

हातिम का शरीर भी ज्यों का त्यों हुआ । उसने ईश्वर का नाम ले हीरे को उठा लिया। इतने में वहां देखा कि न तोता है, बाग है, न वह बारदरी है । और जा मनुष्य पत्थर बने पड़े थे सबके सब ज्यो के त्यों होकर हातिम के चरणों में पड़े हैं । हे प्यारे तू यहां आकर कैसे बचा ? तब हातिम ने सब अपनी बीती उन्हें सुनाई, जिसे सुनकर वह लोग धन्य-धन्य: पुकारने लगे। 

अब हातिम उन सबको साथ लेकर चल दिया और द्वारपाल के पास आ पहुंचा। द्वारपाल ने हातिम को आनन्द सहित स्वागत किया। फिर सबके साथ हातिम शहर कर्ता में आया । बादशाह देखकर फूला नही समाया । बड़ा सम्मान करके अपने पास सिंहासन पर बिठाया । फिर बादशाह ने पूछा तो हातिम ने सारा हाल कह सुनाया और हीरा भी दिखाया । फिर हातिम बादशह से विदा होकर चल दिया और चलते-चलते शाहाबाद में गया।

हुस्नबानू ने उसके आगमन का समाचार सुना तो बड़ी खुशी होकर परदे में बैठ गई और बाहर रत्नजड़ित कुर्सी बिछा दी । हातिम भी मुस्कुराकर कुर्सी पर जा विराजा । तब हुस्नबानू पूछने लगी- हे जवान कहो, हमामबाद गिर्द की खबर लाए?

यह सुनकर हातिम ने अपनी यात्रा का सारा हाल कह सुनाया और वह हीरा भी हाथ में लेकर सामने रख दिया। तब हातिम बोला-हे हुस्नबानू, मैंने तेरे सातों सवालों का जवाब दे दिया, अब तू भी अपना बचन पूरा कर । यह सुनकर हुस्नबानू कहने लगी-हे वीर युवक अब तो मैं सब तरह से तेरी हो चुकी हूँ, तू अपने चरणों की चेली बना ले, चाहे जिस किसी को सौंप दे।

दूसरे दिन प्रातः काल ही हुस्नबानू ने एक शुभ स्थान को भली तरह सजवाया । जिसमें हातिम मुनीरशामी को लेकर आ बसा । दरवाजे पर नक्कारे बजने लगे। थोड़ी देर के बाद काजी आ गए । मुनीरशामी और हुस्नबानू की शादी बड़ी धूमधाम से करवाकर हातिम अपने देश को वापस लौटा।


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