Full Hatim Tai Story in Hindi | हातिमताई और 7 सवाल की कहानी

हेलो दोस्तों आप सब ने कभी न कभी Hatim Tai फिल्म जरूर देखी होगी। मगर मैं आपको बता दु। फिल्म में दिखाई गयी कहानी अधूरी है। अगर आप Hatim Tai की पूरी कहानी हिंदी में पढ़ना चाहते हैं, तो एक आर्टिकल को पुरा पढ़े।

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हातिमताई की कहानी – Hatim Tai Story in Hindi

देश खुरासान में एक अच्छा बादशाह था, जिसकी हुकूमत में शेर और बकरी एक घाट पर साथ-साथ पानी पीते थे । न्याय के अवसर पर वह अपने पुत्र का भी पक्षपाती नहीं बनता था उसके राज्य में सौदागर बरखज रहता था। उसके गुमाश्ते हरेक देश में सौदागरी करते थे । उस सौदागर की एक बेटी हुस्नबानू सिवाय और सन्तान नहीं थी।

ईश्वर की माया बड़ी विचित्र है । अपनी प्यारी बेटी को बारह बर्ष की उम्र में छोड़कर सौदागर स्वर्ग सिधार गया । मरने से पहले ही उसने राजा से कहा था कि महाराज अब मेरी बेटी की सुरक्षा आपके हाथ में है । अब तो अपने पिता की सारी दौलत व जायदाद का मालिक हुस्नबानू को बादशाह अपनी पुत्री की तरह पालने लगे। कुछ दिन में जब हुस्नबानू जवान हुई तब धाय से बोली- हे माता यह संसार पानी का बुलबुला है, न मालूम कब फूट जाए, यह धन मेरे किस काम का? मैं चाहती हूँ कि इस धन को परमेश्वर की राह में लगाएं और हमेशा अनब्याही रहूं जिससे की यह हृदय सृष्टि के सारे विकार से पवित्र रहे।

इतनी सुन धाय कहने लगी- बेटी मेरी समझ में एक बात आई है कि तु अपने मकान के दरवाजे पर सात सवाल लिखकर टांग दे और उन सातों सवालों के नीचे यह लिख दे कि जो इनका जवाब देने में सफल होगा, उसी को शौहर बनाऊंगी नहीं तो सदा कँवारी रहूंगी। सुन बेटी सवाल यह है

Hatim ke 7 sawal ke jawab

  1. एक बार देख लिया पर दूसरी बार देखने की इच्छा है।
  2. भलाई कर और नदी में फेंक।
  3. किसी के साथ बुराई मत कर जैसा करेगा वैसा हीं पायेगा ।
  4. सच बोलने वाला सदा सुख पाता है ।
  5. कौह निदा यानि वह पहाड़, जिसमें से आवाज निकलती है उसकी खबर लाकर दे ।
  6. जोड़ा मिला दे उसका जो मोती जल मुर्गी के अण्डे के समान।
  7. हमामबाद गिर्द की खबर ला दे

हुस्नबानू ने प्रसन्न होकर अपनी धाय की बात स्वीकार किया । ये सातों सवाल लिखकर दरवाजे पर टांग दिये । कुछ दिन बाद हुस्नाबानू संयोग से अपनी हवेली की छत पर खड़ी थी। क्या देखती है कि एक ढोंगी साधू अपने चालीस चेलों के साथ सड़क पर जा रहा था, जो धरती पर पांव नहीं रखता था। उसके चेले सोने-चांदी की ईट सामने रखत थे और ढोंगी उन ईटों पर पांव रख कर चलता था ।

सौदागर की बेटी उसके दर्शन करके फूली न समाई और अपनी धाय को बुलाकर यों बताया-यह साधु तो बड़ा पहुंचा हुआ मालूम होता है, जो सोने-चांदी की ईटों पर पांव रखकर चलता है। धाय बोली-बादशाह का गुरू है, बादशाह को दर्शन के लिए दरवार में जा रहा है।

यह सुनकर हुस्नबानू कहने लगी कि माता यदि आपकी आज्ञा हो तो किसी दिन साधु को अपने यहाँ बुलाकर खाना खिलाऊँ और अपने घर को पवित्र कराऊँ । धाय बोली-बेटी यह बड़ी अच्छी बात है । हुस्नबानू ने उस ढोंगी साधु को संदेश दिया-कल आप अपने समस्त चेलों के साथ मेरे घर पधारें भोजन ग्रहण करने की कृपा करें। .

साधु ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन हुस्नबानू ने उसके सामान की तैयारी की । बड़े उत्तम प्रकार के भोजन बनाये और सोने -चाँदी के थालों में उस ढोंगी साधु और उसके चेलों को भोजन कराया। ढोंगी भोजन करते समय यह सोंच था कि बरखज सौदागर बड़ा मालदार था। इस घर का क्या ठिकाना है । आज ही रात को कोई ऐसा उपाय करना चाहिए यह कि सारी धन-दौलत अपनी हो ।

उस ढोंगी ने रात को अपने चेलों के साथ हुस्नबानू का धन चुराकर, उसके नौकरों को मार कर, घायल करके भाग गया । सबेरा होते ही हुस्नबानू अपने घायल नौकरों को लेकर बादशाह के दरबार में गई और उस ढोंगी साध का सारा हाल कह सुनाया। इस पर बादशाह ने क्रुध होकर कहा -ऐसे साधु को तू चोर और लुटेरा बताती है और बादशाह ने हुस्नबानू का सारा धन छीन कर उसे देश से निकालने का हुक्म दिया।

वह उस देश को छोड़कर अपनी धाय के साथ चलकर एक जंगल में गई और एक पेड़ के नीचे आकर सो गई। रात को हुस्नबानू को स्वपन आया कि इस पेड़ के नीचे खजाना गड़ा हुआ है, इसे निकाल ले और अपने काम में ला । हुस्नबानू ने सुबह उठकर उस पेड़ के नीचे दबा खजाना निकला लिया । इतने में हुस्नबानु का नौकर वहां आ गया और वह सारे नौकरों ले को आया । हुस्नबानू ने उस पैसे से एक आलीशान मकान बनवाया और वहां रहने लगी।

एक दिन हुस्नबानू मरदाना भेष बनाकर बादशाह के दरबार में पहुंची। द्वारपालों ने बादशाह को सूचना दी कि एक सौदागर आपके दर्शन के लिए आया है । बादशाह ने कहा-हमारे पास ले आओ । मरदाने भेष में हुस्नबानू ने बादशाह को प्रणाम किया।

एक दिन बादशाह उसी ढोंगी साधु के दर्शन को जा रहे थे । हुस्नबानू भी बादशाह के साथ चल दी । मगर रास्ते में सोचने लगी हुस्नबानु को ऐसे पापी का दर्शन करना महापाप है । बादशाह ने रख अपना बेटा बना लिया और उसका नाम कारूशाह रख दिया था । बादशाह ने उस ढोंगी साधू की बहुत प्रशंसा की परिचय दिया। कारुशाह ने उस ढोंगी को अपने घर भोजन करने का निमंत्रण दिया। साधु अपने चेलों सहित कारुशाह के घर पहुंचा ।

उसने उन्हें सोने-चांदी के थालों में भोजन कराया । भोजन खाने के बाद साधु ने सोचा कि इन सोने-चांदी के थालों को कैसे चुराया जाए । इधर हुस्नबानू ने कोतवाल को कह दी थी कि आज रात मेरे घर चोरी होने वाला है, इसलिए सिपाहियों को लेकर दायें-बायें रहें । जब रात हुई, ढोंगी ने चेलों के साथ हुस्नबानू के मकान में आया और सारी दौलत गठरी में बांध ली और गठरी बांधकर चलने लगा हुस्नबानू ने शोर मचाया तो सारे सिपाही मकान में आ गए ।

चेलों सहित उस ढोंगी साधु को पकड लिया । पकड़कर कोतवाली में लाया गया । हुस्नबान भी बादशाह के सामने आई। कारू को देखकर बादशाह बोला-बेटा कारुशाह, रात को तुम्हारे यहां डाका पड़ गया ?

यह सुनकर हुस्नबानू कहने लगी-हां पिता जी, यदि कोतवाल न पहुंचते तो मैं बिल्कुल लूट जाता। बादशाह ने कोतवाल से कहा कि जल्दी जाओं, उन डाकुओं को मेरे सामने लाओ। यह सुन कोतवाल ने सब डाकुओं को बादशाह के सामने पेश किया । बादशाह अचम्भित होकर बोल उठेओहो ! यह तो हमारे गुरू और इनके चेले हैं । तब बादशाह ने क्रोध में आकर कहा-सब पाखण्डियों को जल्दी सूली पर चढ़ा दिया जाए, जिससे फिर कभी कोई ऐसा पाखण्डी साधु न बने।

बादशाह की आज्ञा से सारे पाखंडी सूली पर चढ़ा दिए गए । ऐसा देख हुस्नबानू प्रसन्न होकर बोली-सरकार मैं बरखज सौदागर की बेटी हुस्नबानू हूं। उस समय मैं निरपराध थी। आपने मेरी बात पर विश्वास न करके मुझे शहर से बाहर निकाल दिया था । अब आप किसी दिन मेरे घर को पवित्र बनावें । बादशाह ने प्रसन्न होकर कहा-अवश्य ही आऊंगा और हुस्नबानू मर्दाना भेष को त्यागकर अपने शहर में आकर रहने लगी।

कुछ दिन बाद हुस्नबानू के सातों सवालों की खबर ख्वारजिम देश तक फैल गई, वहां का बादशाह बड़ा तेजवान था । उसका शहजादा जिसका नाम मुनीरशामी, उम्र 14 साल, हुस्नबानू की बड़ाई अपने कानों से सुनी तो सुनते ही मुनीरशामी उसके बिरह का मरीज बन गया।

दोहा-मर्ज बिरह का बुरा, दे न किसी को राम ।
चैन नहीं जिनको पड़े, निश दिन आठों याम ॥

एक दिन मुनीर अपनी प्यारी के बिरह में एक पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था । इतने में वहां मुल्क यमन का शाहजादा जिसका नाम हातिम था, शिकार खेलता आ पहुंचा । पेड़ के नीचे उसे जोर-जोर से रोता देखा तो उसे दया आ गई । तब सामने आकर पूछने लगा कि भाई तू कौन है? जंगल में इस पेड़ के नीचे क्यों रो रहा है ? यह सुन मुनीर बोला- हे भाई ! मैं मुल्क ख्वारजिम का शहजादा हूं। अपने रोने का कारण तुम्हें कैसे बताऊं, कुछ बता नहीं सकता । बताने से क्या लाभ, मेरे दुःख को दूर करने वाला संसार में कोई नहीं है ।

इस बात को सुन हातिम ने कहा-हे शहजादे, तू मुझे अपना नाम बता और दुःख प्रकट कर, मैं अवश्य ही तेरे दुःख को दूर करूंगा।

यह बात सुन मुनीर ने कहा-मेरा नाम मुनीरशामी है । ऐसा कह हातिम के सामने हुस्नबानू का चित्र दिया और कहने लगा।

दोहा-इसके बिना मैं कैसे जिऊं, तू ही हृदय विचार ।
हातिम तब बोला बचन, सुन्दर चित्र निहार ॥

अच्छा मुनीरशामी तू इसके बिरह का दुखिया है । चिन्ता न कर, यह सुन्दरी तुझे अवश्य मिलेगा। तू विश्वास कर जब तक इसे तुझसे मिला न दूंगा तब तक तेरा साथ न छोडूंगा । हातिम मुनीरशामी को अपने घर ले गया । उसे नहला धुलाकर खाना खिलाया । तीन चार दिन उसे बड़े आदर से रखा । फिर हातिम ने कहा-प्यारे मित्र, अब मैं जल्दी तुम्हारे दुःख को दूर करने का प्रयत्न करूंगा । ऐसा कह मुनीर को साथ ले हातिम शाहाबाद की ओर चल दिया और चन्द रोज में चलते चलते उस शहर में पहुंच गया।

हुस्नबानू के गुलाम हुस्नबानू के पास पहुंचे और. सारा हाल कह सुनाया। हुस्नबानू ने दोनों मुसाफिरों को पास लाने को कहा और खुद पर्दे के पीछे बैठ गई। दोनों को पर्दे के बाहर बैठा दिया । तब सौदागर की बच्ची पूछने लगी-तुम कौन हो? क्या चाहते हो? हातिम बोला-मैं मुल्क यमन का शहजादा हातिम हूं और साथी खारजिम का शहजादा मुनीरशामी है, जो तुम्हारे बिरह में बेचैन है । बिन तुम्हारे मुख को देखे यह जीवित नहीं रह सकता ।

इसलिए सुन्दरी दया करो, इसे अपना चेहरा दिखाकर जीवन दान दो । हुस्नबानू बोल-ऐसा कदापि नहीं हो सकता । जो मेरे सात सवालों का जवाब देगा, उसी को मैं अपना मुंह दिखाऊंगी और उसी के साथ शादी करूंगी । यह सुनकर हातिम ने कहा-मैं तुम्हारे सातों सवालों का जवाब दूंगा । परन्तु शर्त है कि जिसके साथ चाहूंगा उसी के साथ तुम्हारी शादी करूंगा । हुस्नबानू बोली-मुझे स्वीकार है । तब हातिम बोला-तुम्हारा पहला सवाल क्या है?

हुस्नबानू ने कहा-पहला सवाल है, “एक बार देखा है, दूसरी बार देखने की इच्छा है” इसका जवाब दो । हातिम बोला- अच्छा सुन्दरी, मैं इस सवाल का जवाब लाने की तलाश में जाता हूं और अपने मित्र को तुम्हारे पास छोड़ता हूं। जब तक में न आऊं इसे किसी प्रकार का दुःख न रहे। परोपकारी हातिम वहां से एक ओर चल दिया।


तो दोस्तों आपको यह Hatim Tai Story in Hindi कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आप किसी अन्य कहानी को पढ़ना चाहते है जो इसमें नहीं तो वो भी बताये। हम उसे जल्द से जल्द अपलोड कर देंगे।

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