Best Mahabharat Story in Hindi | सम्पूर्ण महाभारत की कहानी

यह Mahabharat in Hindi का सरल हिन्दी अनुवाद आम जनता के हित के लिए प्रस्तुत करते हुए मुझे हार्दिक खुशी महसूस हो रही है। हम महाभारत को आसानी से पढ़ने और समझने योग्य बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण अध्याय में अलग अलग कर रहे है।


Mahabharat Story in Hindi | सम्पूर्ण महाभारत की कहानी

हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में महाभारत को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। संस्कृत भाषा की यह अनमोल कृति अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद होकर विश्व भर में लोकप्रिय हो चुकी है ।

इसका कारण केवल यही है कि महाभारत में जो धर्म की नींव पर युद्धनीति और राजनीति का पाठ संसार को पढ़ाया गया, उसके पीछे एक आदर्श काम कर रहे हैं भलाई और बुराई का।

कौरव-एक सौ भाई होते हुए भी पाप के रास्ते पर चलते रहे, उन्होंने अपने चचेरे भाई पांडवों के साथ हर पग-पग पर धोखा किया हर स्थल पर उनका अपमान करके उनका राज्य तक छल और फरेब से जीत लिया ।

इस अन्याय से जन्म लिया-महाभारत के धर्मयुद्ध-जिसमें विजय धर्म की हुई सत्य की विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि जो लोग दूसरों का बुरा करते हैं उनका कभी भला नहीं होता यही महाभारत की सबसे बड़ी देन है ।।

भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश-जिसे हम श्रीमद्भागवद् गीता कहते हैं । गीता का ज्ञान संसार में प्रसिद्ध हुआ। जिसे मैं एक अलग पुस्तक के रुप में महाभारत के नाम से प्रिय पाठको के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।

तो यहाँ से महाभारत का पहला अध्याय की कहानी से शुरू होता है।


राजा शांतनु की कहानी

हजरों वर्ष पूर्व ।

प्राचीन भारत में ययाति नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी राजधानी का नाम खांडवप्रस्थ था। आगे चलकर इसका नाम इन्द्रप्रस्थ हो गया । इनकी दो रानियां थी । शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और दूसरी शर्मिष्ठा थी । देवयानी के दो पुत्र हुए उनके नामो यदु और उर्वस । पुत्र के नाम पर ही यदुवंशी राजाओं की परम्परा चली। इसी वंश में आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए यदुवंश बहुत प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी रानी शर्मिष्ठा के तीन पुत्र हुए, किन्तु इनमें से केवल छोटा पुत्र पुरु ही प्रसिद्ध हुआ जो पराक्रमी और मां-बाप का सेवक था। इसलिए राजा ययाति ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया उसी पुरु के नाम पर ही वंश के राजा पुरुवंश कहलाये।

पुरुवंशी की ही कई पीढ़ियों के पश्चात् एक अत्यन्त प्रतापी राजा दुष्यन्त हुए जिन्होंने कण्व ऋषि की पुत्री शकुन्तला से विवाह किया।

शकुन्तला के बेटे का नाम भरत था । वे बहुत ही बहादुर और पराक्रमी राजा थे ।

प्राचीन इतिहास से यह बात सिद्ध होती है कि उसी भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा । भरत के वंश में ही शांतनु नाम के एक प्रसिद्ध राजा हुए जिनके वंश में ही कौरव कहलाये। कुरु के नाम से ही कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध है।

कौरव वंश के वही शांतनु थे, जो महाभारत की नींव माने जाते हैं । जो बहुत गुणवान, प्रतापी, अपनी प्रजा के सबसे बड़े हितैषी माने जाते थे।

शांतनु ने एक अत्यन्त सुन्दर कन्या से विवाह किया जो वास्तव में गंगा थी। गंगा के बारे में कहा जाता है कि एक बार अष्टवसू लाम के आठ देवताओं के दुर्व्यहार से तंग आकर वशिष्ठ मुनि ने उनको मनुष्य योनि में जाने का श्राप दे दिया।

और कहा कि तुमलोग एक-एक बार मनुष्य बनने के पश्चात् फिर मरकर देवलोक में वापस आओगे, परन्तु तुमसे एक वसू को बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना होगा।

इन देवताओं ने जब रोते हुए भगवती गंगा से प्रार्थना की कि हमें किसी प्रकार से इस श्राप से मुक्त करवाओ तो भगवती गंगा ने उनकी मां बनना स्वीकार कर लिया ।

महाभारत शांतनु से शादी के पश्चात गंगा की कोख से आठ पुत्र पैदा हुए जिसमें सात को तो पैदा होते ही उन्होंने मार डाला यानि अपने निर्मल जल में बहा दिया । 

आठवें बेटे को शांतनु ने उसे गंगा में नहीं बहाने दिया, किन्तु गंगा उसे अपने साथ स्वर्ग में ले गयी। वहां पर गंगा ने उसे परशुराम और वशिष्ठ जैसे महाज्ञानियों से उस ज्ञान दिलवाया उसका नाम देवव्रत रखा, जो महाज्ञानी विद्वान वीर था महाशक्तिमान देवव्रत को गंगा ने एक दिन राजा शांतनु के हवाले करते हुए कहा कि यह बालक आपका ही संतान है।

इसे मैंने इस संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी और वीर बना दिया है। राजा शांतनु अपने पुत्र को पाकर बहतु खुश हुए उन्होंने उसे युवराज और अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया अपने महल में ले आये, किन्तु गंगा की जुदाई का दुःख सदा उनकी आत्मा पर अंगारे बरसाता रहा घर का अकेलापन उन्हें डंसने को आता-इस अकेलेपन से घबराकर वे नदियों के तट पर बैठे रहते।

एक दिन नदिया तट पर उन्होंने धीवर कन्या को देखा जो बहुत ही सुन्दर थी। उसका नाम सत्यवती था। शांतनु सत्यवती के पिता से यह कहा कि आप मेरी शादी अपनी पुत्री से कर दें।

सत्यवती के पिता इस शर्त के साथ राजी हुए कि सत्यवती के गर्भ से जो बालक पैदा होगा वही आपका उत्तराधिकारी होगा।

राजा शांतनु बड़े चिंतित हुए वे देवव्रत को कैसे राजपाट से वंचित कर सकते थे। इसी चिंता के कारण वे जब घर में उदास बैठे थे। तो देवव्रत ने उनसे उदासी का कारण पूछा।

शांतनु ने अपने बेटे को सत्यवती की सारी कहानी सुना डाली। अपने पिता को दुःख में देखकर स्वयं सत्यवती के पिता के पास जाकर बोले देखों बन्धु आप मेरे पिता के समान है।

आप जो शर्त मेरे पिता के सामने रखे हैं उसके लिए मैं आपको वचन देता हूं कि मैं जीवन भर शादी ही नहीं करूंगा। बस यदि उस राजगद्दी पर कोई बैठेगा तो आपकी बेटी की सन्तान, मेरी सन्तान होगी ही नहीं, इसलिए राजगद्दी के लिए कोई झगड़ा नहीं होगा।

देवव्रत की प्रतिज्ञा के कारण ही राजा शांतनु की शादी हुई। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पितामह पड़ा – जो महाभारत के सबसे श्रेष्ठ पात्र बनकर हमारे सामने आते हैं।

सत्यवती के दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्र वीर्य

शांतनु की मृत्यु के पश्चात् भीष्म प्रतिज्ञा के अनुसार चित्रांगद ही राजगद्दी पर बैठा ।

किन्तु थोड़े समय के पश्चात् एक आक्रमणकारी हस्तिनापुर पर आक्रमण कर दिया-इस आक्रमण में चित्रांगद शहीद हो गया-उसके स्थान पर भीष्म जी ने विचित्र वीर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया-अब भीष्मजी की यह इच्छा थी विचित्र वीर्य की शादी कर दी जाय-वह स्वयं तो जीवन भर कुंवारे रहने का प्रतिज्ञा कर ही चुके थे-इसलिए शांतनुवंश को आगे बढ़ाने के लिए विचित्र वीर्य की शादी आवश्यक थी।

उन्हीं दिनों भीष्मजी को खबर मिली कि काशी नरेश की तीन लड़कियों का स्वयंवर होने वाला है । बस भीष्मजी वहीं पहुंच गए।

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अगर आपने हमारा लिखा Mahabharat in Hindi में पढ़ा हैं, और आप लोगों को इसमें कोई भी गलतियां दिखती है तो हमें इसके लिखे माफ़ कर दे, और कमेंट बॉक्स में बताये की कहा गलती है हम उसे जल्द से जल्द सुधार करेंगे।

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