Bahrupiye Dwara Sih Ka Swang | बहुरुपिये द्वारा सिंह का स्वांग (अकबर बीरबल की कहानी)

बहुरुपिये द्वारा सिंह का स्वांग – Bahrupiye Dwara Sih Ka Swang

एक दिन दिल्ली के काजी से बीरबल को धर्म सम्बन्धी चर्चा छिड़ी। जब काजी सब प्रकार से हार गया तो उसके मन में इस बात के लिए लज्जा उत्पन्न हुई और अपने मन में बीरबल को मार डालने का प्रण कर लिया । ये प्रण कर यात्रा के बहाने बादशाह से छुट्टी लेकर नगर से बाहर किसी दूसरे शहर को चला गया और वहां अपना नाम पता छिपाकर बहुरुपिए का स्वांग सीखने लगा।

जब वह उस फन में होशियार हो गया तो बहुरुपिए का. रूप धारण कर दिल्ली लौटा । शहर में कई जगह उसने नए-नए स्वांग निकाले । जिससे लोगों में उसकी कला की उत्तमता की चर्चा फैल गई । धीरे-धीरे यहां तक की यह बात बादशाह के कान में जा पड़ी बादशाह को उसका स्वांग देखने की प्रबल इच्छा हुई।

एक दिन शाम को सिपाही भेज कर उसे बुलाया और जब वह आया तो उसे नया स्वांग दिखलाने की अज्ञा दी । जब वह बोला-पृथ्वीनाथ! मैं सिंह का स्वांग करना बहुत अच्छी तरह जानता हूं परन्तु उसमें खून भी हो जाने की आशंका रहती है। यदि आपकी तरफ से मुझे एक खून की माफी दी जाए, तो मैं उसे आपके सामने दिखलाने का उपाय करूं स्वांग के समय वहां पर दीवान का भी रहना अत्यन्त आवश्यक है।

बादशाह ने उसे एक खून की माफी दे दी । जब बहुरुपिया अपने घर गया तो बादशाह बोले-बीरबल ! जाते समय बहुरुपिया कहता गया है कि बिना बीरबल के स्वांग नहीं दिखलाया जाएगा । इसीलिए उस समय तुमको भी वहां उपस्थित रहना लाजिम है।

बीरबल ने बादशाह की आज्ञा को स्वीकार कर लिया। परन्तु उसी वक्त बहुरुपियों की बातों का सिलसिला मिलाने से ज्ञात हो गया कि हो न हो कुछ दाल में काला अवश्य है।

यह मुझे धोखा देना चाहता है। इधर बादशाह की आज्ञा का पालन करना भी जरूरी है।

दूसरे दिन ठीक समय पर बीरबल दरवार में हाजिर हुआ । इधर बहुरुपिया भी सिंह. का स्वांग बनाकर उछलने-कूदने और तड़पने लगा । कला चातुरी को देखकर बादशाह मोहित हो गए । सभी लोग उनकी प्रशंसा करने लगे । इतने में वह बनावटी सिंह बीरबलं पर झपटा ।

यह दृश्य देखते ही लोगों को बीरबल के मरने की आशंका हुई। बहुरुपिए ने बीरबल को मार डालने के विचार से अधिक परिश्रम किया, परन्तु मारना तो दूर रहा उसके वदन से एक बूंद खून भी बाहर नहीं निकला । सभा के लोग इस दृश्य को देखकर दंग रह गए। बीरबल तो पहले ही से कपट मुद्रा को ताड़ गया था। इस वास्ते कुरते के नीचे सुदृढ़ कवच पहनकर आया था जिससे बहुरुपिए का कोई अस्त्र उसके शरीर को जख्म न पहुंचा सका।

बादशाह बीरबल को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुए। बात छिपाने के अभिप्राय से बीरबल ने उस बहुरुपिए की बड़ी प्रशंसा की।

बादशाह ने बीरबल से पूछा-इनको क्या इनाम देना । चाहिए । बीरबल ने कहा-इनको 1 महीने के लिए दीवान पद पर नियुक्त करना चाहिए । बहुरुपिया को यह सुनकर मन प्रफुल्लित हो गया । बीरबल ने कहा-जो सती का स्वांग ठीक-ठीक करके दिखलाए तो ऊपर की शर्ते मानी जाएगी अन्यथा नहीं।

बादशाह ने इस बात को अपनी जबान से दोहराकर बहुरुपियों को कहा-जो तू कल सती का सही-सही स्वांग कुशलतापूर्वक दिखलाएगा तो तुझे एक वर्ष का दीवान पद दिया जाएगा और यदि चूक जाओगे तो प्राणदण्ड दिया जाएगा । बहुरुपिए ने इस बात को स्वीकार कर लिया ।

दूसरे दिन उसी समय सती स्त्री का स्वरूप धारण कर दरबार में हाजिर हुआ । बीरबल ने भी उनकी दवा-दारु का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था। वहां कोयला का एक कुण्ड पहले से ही दहक रहा था, कुण्ड को देखते ही बहुरुपिए का होश ठिकाना न रहा । उसने समझ लिया कि कल का प्रतिशोध करने के लिए ही बीरबल ने यह खुराफात खड़ा किया है ।

अब इससे बचकर बाहर निकलना कठिन है। बिना अग्नि में बैठकर बाहर निकले यह स्वांग पूर्ण नहीं हो सकता और कुण्ड में गिरा प्राण विसर्जन हुआ । उसी समय डावाडोल हो गया उसके मन में आया कि अपना भेद बादशाह को प्रकट कर दें, परन्तु फिर अनेक कठिनाइयां उपस्थित होने की सम्भावना कर चुप हो गया । अन्त में जब सती का स्वांग दिखलाते-दिखलाते अग्नि के प्रवेश का समय आया तो उसमें कूदकर प्राण त्याग दिया ।

उसकी मौत से जो लोग असली भरम नहीं जानते थे, बहुत दुःखी हुए। परन्तु बीरबल को येनकेन प्रकारेण उसका भेद मालूम हो गया था इसलिए उन लोगों को समझा दिया। इतनी ही नहीं बल्कि बादशाह के समाने कई साक्षियां दिलवाकर अपनी बात प्रमाणित करवा दी।

बादशाह बीरबल की युक्ति से बड़े प्रसन्न हुए और उसकी नीतिपूर्वक छल से शत्रु के मारने की चाल उन्हें बड़ी पसन्द आई और भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। वे बुद्धि की सराहना करने लगे।

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