ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही – Ishwar Jo Karta Hai Acchai Ke Liye Hi
बादशाह और बीरबल एक दफा जंगल में शिकार खेलने गए थे, रास्ते में बादशाह के असावधानी से कोई पैना हथियार उन्हीं के ऊंगली में लग गया जिससे बादशाह की ऊंगली जाती रही । जब बादशाह ने बीरबल को यह समाचार सुनाया तो अफसोस प्रकट कर कहने लगे ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही करता है । बादशाह वह नीरस वाक्य सुनकर अप्रसन्न हुए।
जब महल में बादशाह आये और दूसरे दिन दरबार में उपस्थित हुए तो अन्य सभासदों से भी इस बात का जिक्र किया और जो बीरबल से भीतरी द्वेष रखते थे उन्हें उसकी निन्दा का अवसर मिला और जो उनसे बन पड़ा वो नमक-मिर्च मिलाते हुए बीरबल की शिकायत करने लगे । एक तो बादशाह को उन पर क्रोध पहले से ही था । उस बढ़ावे की बातों ने अग्नि में घृत का काम किया । बीरबल उस वक्त सभा में उपस्थित न थे। बादशाह ने उन्हें पत्र द्वारा सूचना दे दी कि वे पुनः दरबार में हाजिर न हो और नहीं हमारे सम्मुख ही हो।
बीरबल आत्म स्वाभिमानी पुरुष रल थे । परमात्मा ने उन्हें बुद्धि दी थी । उसी के बल पर किसी की परवाह नहीं करते थे। बादशाह के इस हुक्म को पढ़कर जरा भी विचलित नहीं हुए। जो पत्रवाहक का पत्र लाया था उसी के हाथ एक लाइन लिखवाकर लादशाह के पास भिजवा दिया। पत्र में बीरबल ने लिखा था कि यह हुक्म सम्भवतः अच्छाई के लिए ही हुआ है। इस प्रकार महीना गुजर गए।
इधर बीरबल के न रहने से बादशाह के कुछ कार्यों में हर्ज होने लगा किन्तु बुलाने का कोई हुक्म नहीं दिया। बादशाह का ख्याल था कि बीरबल स्वयं आयेंगे, हम क्यों अपनी बात खराब करें। लेकिन बादशाह की बीरबल के आने की कोई आशा न रही और समय दिन ब दिन बीतने लगा तो उन्होंने बीरबल को बुलाने के लिए उपाय सोचना शुरु किया।
संयोगवश बादशाह एक दिन अन्य दरबारियों को साथ का शिकार खेलने जंगल में गए । किसी शिकार के पीछे बादशाह दौड़े बस उसके पीछे दौड़ते ही गए। जिससे उनके अन्य साथी तितर-बितर हो गए। पहाड़ी रास्ता उन्हें मालूम न था।
शिकार के पीछे चलते-चलते सूर्यास्त हो गया तब बादशाह निराश हो लौटे तो पथभ्रष्ट हो जंगल में भटकने लगे दैवात उन्हें दो बड़ी ही विकराल मूर्ति दिखाई पड़ी जिन्हें देखकर बादशाह को भय उत्पन्न हुआ धीरे-धीरे मूर्ति पास आ गई और बादशाह को अपने साथ लेकर एक माकन में पहुंची जो किसी देवी का मन्दिर था बादशाह के समझ में उन दोनों विकराल मूर्तियों का भावार्थ नहीं आया।
जब बादशाह वहां पहुंच गए, तो उनसे स्नान करने को कहा गया । किन्तु उन्होंने आना-कानी की तो उनकी हत्या करने की धमकी उन दोनों मूर्तियों ने दी । मरता क्या न करता बादशाह ने स्नान करना स्वीकार किया। उन्हें स्नान कराया गया। तत्पश्चात जबरदस्ती भोजन भी कराया गया। यद्यपि मारे डर के बादशाह से खाना भी नहीं खाया गया । जब स्नान, भोजन से निश्चिन्त हो गए तो दोनों विकराल मूर्तियों ने उन्हें नंगा करके देवी की मूर्ति के सामने खड़ा किया और एक तेज छुरा चमकाते हुए बादशाह से बोला कि हम प्रतिदिन एक मनुष्य की बलि देवी को चढ़ाते हैं, आज कोई न मिला था । संयोगवश तुम मिल गए, अतएव आज तुम्हीं का बलिदान पड़ेगा ।
बादशाह यह सुनते ही अवाक से रह गए, उनके शरीर के रहा-सहा खून भी सूख गया शून्य हो जमीन पर पड़े रह गए जब चेतना कुछ वापस हुआ तो रोने चिल्लाने लगे। लेकिन वहां कौन सुनता था। अन्त में कलपने के बाद बादशाह बोले कि ईश्वर के लिए मुझको छोड़ दो, ऐसा अनर्थ मत करो । मैं तुम लोगों का बादशाह हूं परन्तु उन सब बातों का असर उन राक्षस मूर्तियों पर न पड़ा। बलि देने को सारी तैयारी हो चुकी थी केवल छुरा चलाने की देर थी । संयोगवश उन राक्षस मूर्तियों से एक ने बादशाह के अंग-प्रत्यंग पर ध्यान दिया तो उसे एक ऊंगली कटा दिखाई दी।
निराश होकर उसने अपने साथी से कहा कि यह तो खण्डित है इसकी एक ऊंगली कटी है, देवी अप्रसन्न होगी। यह कहकर उसने बादशाह का वध नहीं किया । कपड़े-लत्ते पहनाकर उन दोनों ने बादशाह को उनका मार्ग बतला दिया। किसी तरह वहां से छटकारा पाकर वे बेतहासा भागे जान बची और लाखों पाई । बादशाह अर्द्ध-रात्रि के करीब महलों में आए और बिस्तर पर गए किन्तु रात भर उन्हें नींद नहीं आई।
सारी रात्रि मन्दिर की घटना उनके नेत्रों के सामने घुमती रही सब देखते-देखते सबेरा हो गया। बिस्तर छोड़कर नित्यक्रम से फारिंग होने के लिए दूसरी जगह चले गए, हाथ मुँह धो स्नान किया। तत्पश्चात् ईश्वर चितन में लगे । ठीक उसी वक्त बीरबल की बातों का स्मरण हो गया, उनकी समस्त रोमबलिया खड़ी हो गई। उन्होंने जी में विचारा कि बीरबल ने सच ही कहा था-ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही।
यदि मेरी ऊंगली उस दिन शिकार खेलते वक्त नष्ट न हो गई होती तो नि:संदेह मेरी जान आज रात में चली गई होती। मैंने उस ब्राह्मण की बात की अवहेलना की जिसका यही नतीजा हुआ कि कल परेशानी उठानी पड़ी।
अपनी दुर्बुद्धि पर बादशाह को बड़ा पश्चाताप हुआ उन्होंने स्वयं बीरबल के घर जाने की सोची, उन्होंने पहले गुप्तचर को भेजा । जिसने पता लगाया और आकर बादशाह से बोला कि बीरबल घर पर ही है।
बादशाह बीरबल के यहां पहुंचे, बीरबल ने उन्हें देख कारपूर्वक उच्चासन पर बठाया । तदन्तर कुशल प्रश्न है। बादशाह ने गद्गद् कंट से बीरबल को गले से लगा लिया और बोले मेरे अपराधों को भूल जाओ । मैंने तुम पर बड़ा अत्याचार किया है । जब तक हृदय से मुझे क्षमा प्रदान नहीं करोगे, मुझे सन्तोष न होगा । बीरबल नम्रतापूर्वक बोले कि इस बेचैनी का क्या कारण है ? मैं सदा आपका ही दावेदार हूं जो आज्ञा हो, करने का हर वक्त प्रस्तुत हूं। आपकी उन बातों का मुझे तनिक भी मलाल नहीं ।
मंने आपका नमक खाया है और खाता हूं उसका मैं इसे पूरी तरह से बदला न चुकाऊंगा, जब तक दम रहेगा, तन मन से आपकी ही भलाई का प्रयल करूंगा । बादशाह यह सुन और दयाद हो गए।
पिछली रात का सारा हाल बीरवल को बतला दिया और कहा कि तुमने जो बात कही थी आज वह अक्षरश: सत्य प्रमणित हई । तत्पश्चात बीरबल से उन्होंने पूछा कि जब दोनों तुमको सभा में न उपस्थित होने का आदेश दिया तो तुमने पुनः वही बात दुहराई थी, ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही तो । मेरे लिए तो यह बात बिल्कुल घर कर गई । किन्तु तुमने जो अपने लिए कहा था, वह भी समझाओ कि कैसे तुम्हारे लिए अच्छा हुआ ?
बीरबल बोले कि जब आखेट को गए थे, यदि मैं साथ होता तो अवश्य जाता और यही नहीं आपके पीछे जहां जाते वहां तक जाता और यदि बलि का संयोग उत्पन्न हुआ होता तो आप, इसलिए बच जाते, क्योंकि आप खण्डित थे । किन्तु में पूर्ण की वजह से बेमौत मारा जाता । इस तरह मेरी भी जान बच गई । बादशाह बीरबल की होशियारी की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उनको अपने साथ ही दरबार में ले आए। यह सम्मान देख उनसे द्वेष रखने वाले अन्य दरबारी और भी जल गए । किन्तु कर भी क्या सकते थे।
इस प्रकार बादशाह और बीरबल की परस्पर फिर हास्य बिनोद होने लगा और दोनों हृदय फिर एक बार जुट गया। देखने से यह मालूम होता था जैसे कभी यह अलग हुए भी नहीं हो। बादशाह ने यह स्वीकार किया कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, अच्छाई के लिए ही।