About Bihar in Hindi | बिहार के बारे में in 2022

बिहार दर्शन – About Bihar in Hndi

भारत बहुत बड़ा देश है यहां पर कई राज्य है इनमें से एक है बिहार इसके उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में झारखण्ड राज्य हैं । यहाँ अनेक नदियां बहती हैं जिनमें गंगा प्रमुख है। अन्य नदियाँ हैं – सोन, पुनपुन, फल्गु, कर्मनाशा, दुर्गावती, कोसी, गंडक, घाघरा आदि। बिहार गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के मैदान में बसा है।

झारखण्ड के अलग होने के बाद बिहार की भूमि मुख्यतः नदियों के मैदान और समतल भूभाग है। बिहार गंगा के पूर्वी मैदान में है। गंगा नदी प्रदेश के लगभग बीचों बीच होकर बहती है । उत्तरी बिहार बागमती, कोसी, गंडक, सोन और उनकी सहायक नदियों का समतल मैदान है। बिहार के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी है और दक्षिण में छोटा नागपुर पठार है जिसका हिस्सा अब झारखंड है।

उत्तर से कई नदियाँ बिहार से होकर बहती हैं और गंगा में मिल जाती हैं। इन नदियों में, वर्षा ऋतु में बाढ़ बहुत बड़ी समस्या है।

बिहार का इतिहास – History of Bihar

बिहार का उल्लेख वेदों, पुराणों और प्राचीन महाकाव्यों में मिलता है। यह राज्य महात्मा बुद्ध और 24 जैन तीर्थकारों की कर्मभूमि रहा हैं। ईसा पूर्व काल में इस क्षेत्र पर बिम्बिसार, पाटलिपुत्र की स्थापना करने वाले उदयन, चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक सहित मौर्य, शुंग तथा कण्व राजवंश के नरेशों ने राज किया इसके पश्चात कुषाण शासकों का समय आया और बाद में गुप्त वंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बिहार पर राज किया।

मध्यकाल में मुस्लिम शासकों का इस क्षेत्र पर अधिकार रहा। बिहार पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक मोहम्मद बिन बख्तियार खलिजी था। खलिजी वंश के बाद तुगलक वंश तथा मुगल वंश का आधिपत्य रहा था। डॉक्टर अंसारी (1880-1936 ई.) एक प्रमुख मुसलमान राष्ट्रीयतावादी नेता थे। उनका जन्म बिहार में हुआ।

बिहार का भूगोल – Geography of Bihar

प्राकतिक रूप से यह राज्य गंगा नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है, उत्तर बिहार मैदान और दक्षिण बिहार मैदान। सुदुर पश्चिमोत्तर में हिमालय की तराई को छोड़कर गंगा का उत्तरी मैदान समुद्र तल से 75 मीटर से भी कम की ऊँचाई पर जलोढ़ समतली क्षेत्र का निर्माण करता है और यहाँ बाढ़ आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। घाघरा गंडक, बागमती, कोसी, महानंदा और अन्य नदीयाँ नेपाल में हिमालय से नीचे उतरती हैं और अलग-अलग जलमार्गों से होती हुई गंगा में मिलती हैं।

वैशाली, बिहार

झीलों और गर्त लुप्त हो चुकी इन धाराओं के प्रमाण हैं | विनाशकारी बाढ़ लाने के लिए लंबे समय तक बिहार का शोक मानी जाने वाली कोसी नदी अब कृत्रिम पोतारोहणों में सीमित हो गई है। उत्तरी मैदान की मिट्टी ज्यादातर नई कछारी मिट्टी है, जिसमें बूढ़ी गंडक नदी के पश्चिम में खड़ियायुक्त व हल्की कण वाली (ज्यादातर दोमट बलुई) और पूर्व में खड़ियायुक्त व भारी कण वाली (दोमट चिकनी) मिट्टी है।

हिमालय के भूकंपीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण यह क्षेत्र एक अन्य प्राकृतिक आपदा (भूकंपीय गतिविधियों) से प्रभावित है। 1934 और 1988 के भीषण भूकंप में भारी तबाही हुई और जानमाल को क्षति पहुंची। दक्षिण-पश्चिम में सोन घाटी के पार स्थित कैमूर पठार में क्षैतिज बलुकाश्म की परत चूना पत्थर की परतों से ढकी है। उत्तर के मुकाबले दक्षिण गांगेय मैदान ज्यादा विविध है और अनेक पहाड़ियों का उत्थान कछारी सतह से होता है। सोन नदी को छोड़कर सभी नदियाँ छोटी हैं, जिनके जल को सिंचाई नहरों की ओर मोड़ दिया जाता है। यहाँ की मृदा काली चिकनी या पीली दोमट मिट्टी से संघटित अपेक्षाकृत पुरानी जलोढ़ीय है। यह खासकर क्षेत्र के दक्षिण की ओर अनुर्वर व रेतीली है।

जलवायु

बिहार में मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ हैं- मार्च से मुख्य जून तक ग्रीष्म ऋतु मध्य जून से अक्टूबर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून वाली वर्षा ऋतु नवंबर से फरवरी तक शीत ऋतु है। सुदूर उत्तर को छोड़कर मई राज्य का सबसे गर्म महीना होता है, जिसमें तापमान 32° से. को भी पार कर जाता है। राज्य में सामान्य वार्षिक वर्षा पश्चिम-मध्य में 1,016 मिमी और सुदूर उत्तर में 1,524 मिमी के बीच होती है। लगभग संपूर्ण वर्षा (85-90 प्रतिशत) जून और अक्टूबर के बीच होती है और सालाना वर्षा का लगभग 50 प्रतिशत जुलाई व अगस्त महीने में होता है। बिहार में शीत ऋतु वर्षा का सबसे सुहावना मौसम होता है।

अर्थव्यवस्था – Economy of Bihar

बिहार की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। 20वीं शताब्दी के उत्तराद्ध में खनन व विनिर्माण में उल्लेखनीय उपलब्धि के बाबजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में सबसे आखिर में है और राज्य की लगभग आधी आबादी प्रशासनिक तौर पर गरीबी रेखा के नीचे है।

झारखंड के गठन के साथ ही इसकी मुसीबतें बढ़ीं हैं और बिहार को खनिज संपदा के विशाल भंडार से वंचित होना पड़ा। निम्नतम प्रति व्यक्ति आय व अत्यधिक सघन जनसंख्या वाले बिहार की अर्थव्यवस्था पिछड़ती जा रही है।

कृषि

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 93.60 लाख हेक्टेयर है जिसमें से केवल 56.03 लाख हेक्टेयर पर ही खेती होती है। राज्य में लगभग 79.46 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है।विभिन्न साधनों द्वारा कुल 43.86 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं जबकि लगभग 33.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।

बिहार की प्रमुख खाद्य फसलें हैं – धान, गेहूँ, मक्का और दालें । मुख्य नकदी फसलें हैं- गन्ना, आलू, तंबाकू, तिलहन, प्याज, मिर्च, पटसन । लगभग 6,764.14 वर्ग कि. मी. क्षेत्र म वन फैले हैं जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 7. 1 प्रतिशत हैं।

उद्योग

राज्य के मुख्य उद्योग हैं –

मुजफ्फरपुर और मोकामा में श्भारत वैगन लिमिटेड का रेलवे वैगन संयंत्र, बरौनी में भारतीय तेल निगम का तेलशोधक कारखाना है।

बरौनी का एच.पी.सी.एल. और अमझोर का पाइराइट्स फॉस्फेट एंड कैमिकल्स लिमिटेड (पी.पी.सी.एल.) राज्य के उर्वरक संयंत्र हैं।

सीवान, भागलपुर, पंडौल, मोकामा और गया में पांच बड़ी सूत कताई मिलें हैं।

उत्तर व दक्षिण बिहार में 13 चीनी मिलें हैं, जो निजी क्षेत्र की हैं तथा 15 चीनी मिलें सार्वजनिक क्षेत्र की हैं जिनकी कुल पेराई क्षमता 45,00 टी.पी.डी है।

इसके अलावा गोपालगंज, पश्चिमी चंपारन, भागलपुर और रीगा (सीतामढ़ी जिला) में शराब बनाने के कारखाने हैं। पश्चिमी चंपारन, मुजफ्फरपुर और बरौनी में चमड़ा प्रसंस्करण के उद्योग है।

कटिहार और समस्तीपुर में तीन बड़े पटसन के कारखाने है।

हाजीपुर में दवाएं बनाने का कारखाना, औरंगाबाद और पटना में खाद्य प्रसंस्करण और वनस्पति बनाने के कारखाने हैं।

इसके अलावा बंजारी में कल्याणपुर सीमेंट लिमिटेड नामक सीमेंट कारखाने का बिहार के औद्योगिक नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान है।

परिवहन

बिहार की परिवहन व्यवस्था शुरू से ही नदियों से प्रभावित रही है। नौका द्वारा नदियों के किनारों पर परिवहन का व्यवस्था रहती है। राज्य की परिवहन व्यवस्था गंगा नदी पर विशेष रूप से निर्भर है। गंगा नदी के उत्तर तथा दक्षिणी मैदानी भागों में रेल तथा सड़कों द्वारा परिवहन की व्यवस्था बाढ़ आदि से प्रभावित होती है, इसलिए नदी के किनारों पर सुदृढ़ तटबंधों का निर्माण कराया गया है।

बिहार से उत्तर भारत के अनेक राज्य सड़क मार्ग से जुड़े हैं। शेरशाह ने पेशावर तक सड़क मार्ग का निर्माण कराया था। यह मार्ग उस समय सड़क-ए-आजम कहलाता था, आजकल इस सड़क को ग्रैंड ट्रंक रोड जी. टी. रोड़ के नाम से जाना जाता है। शेरशाह ने 1542 ई. में इसका निर्माण कराया था। यह सड़क पेशावर से कोलकाता तक जाती है। बिहार की परिवहन व्यवस्था में सड़क और रेलमार्ग बहुत महत्त्वपूर्ण है किंतु जल परिवहन का विकास सीमित ही हुआ है।

बिहार में यातायात के मुख्यतः चार साधन हैं – There are mainly four modes of transport in Bihar

सड़क

पुराने समय से ही बिहार उत्तर भारत के अन्य भागों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। प्राचीन शासकों की प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था स्थल मार्गों पर ही आधारित थी। सम्राट अशोक ने वैभवशाली मगध को राजधानी बनाया था, और राजगौर और पाटलिपुत्र के बीच राज्य मार्ग का निर्माण कराया था। मध्यकाल में मुगल शासकों और शेरशाह सूरी ने सड़क का निर्माण किया था।

1947 ई. में बिहार में कुल सड़कों की लम्बाई 1315 किलोमीटर थी। आजकल सड़कों की लम्बाई 67116 किलोमीटर है। राष्ट्रीय मार्ग राज्य की प्राथमिक सड़क व्यवस्था है। इसके रख-रखाव की व्यवस्था केन्द्रीय सरकार पर है। राज्य में 4717 किलोमीटर लम्बे सड़क मार्ग का निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त 26092 कि.मी. लम्बी सड़कों को दो लेन का किया जा रहा है।

नामलम्बाई (कि.मी)
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2392 किलोमीटर
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-622 किलोमीटर
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 23250 किलोमीटर
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-28259 किलोमीटर
राष्ट्रीय राजमार्ग-30230 किलोमीटर
राष्ट्रीय राजमार्ग-31437 किलोमीटर

प्रान्तीय राजमार्ग, जो जिला मुख्यालयों और प्रदेश की राजधानी को जोड़ते हैं। बिहार के मैदानी भाग में सड़कें बरसात में पानी में डूब जाती हैं।

स्थानीय सड़कें, जो जिला मुख्यालय को कस्बों और गाँवों को आपस में जोड़ती हैं। ये कच्ची और पक्की दोनों तरह की होती हैं। यह ईंटों से बनी हैं और वर्षा से इनमें टूट-फूट हो जाती है।

मार्च 2008 तक बिहार में 45,721.059 किलोमीटर पक्का सड़क थीं। इनमें 3,734.38 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, 3,766.029 किलोमीटर प्रांतीय राजमार्ग, 7,992.65 प्रमुख जाला सड़कें, 2,828 किलोमीटर अन्य जिला सड़कें तथा 27,400 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें शामिल थीं।

रेलवे

बिहार में रेल लाइनों का अच्छा जाल बिछा हुआ है। मोकामा में एकमात्र रेलवे पुल होने के कारण उत्तरी बिहार के लिए परिवहन व्यवस्था में थोड़ी परेशानी है। कुछ महत्वपूर्ण स्थानों को जोड़ने वाले रेल मागों, जैसे – मुजफ्फरपुर-समस्तीपुर-बरौनी-कटिहार और समस्तीपुर राज्य के मुख्य रेलवे जंक्शन हैं।

हवाई यात्रा

राज्य में सभी बड़े जिलों में हवाई पट्टियों के अलावा पटना में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। परिवहन के द्वारा राज्य की आर्थिक प्रगति तथा विकास होता है। परिवहन की समुचित व्यवस्था से औद्योगीकरण, कृषि और सामाजिक जीवन का विकास होता है।

शिक्षा – Education in Bihar

यद्यपि 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में Bihar की शिक्षा दर लगभग तिगुनी होकर राज्य की जनसंख्या के करीब 48 प्रतिशत तक पहुंच गई है, फिर भी यह देश के अन्य राज्यों की शिक्षा दर की तुलना में काफी नीचे है। महिला साक्षरता दर (33.57 प्रतिशत) की तुलना में पुरुष साक्षरता दर (60.32 प्रतिशत) लगभग दुगनी है। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षित करना राज्य का प्रधान लक्ष्य है। इनमें से लगभग 90 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश लेने के योग्य हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम ही माध्यमिक स्तर तक पहुंच पाते हैं, क्योंकि इनकी आर्थिक आवश्यकताएं इन्हें काम करने के लिए बाध्य करती हैं।

व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षण संस्थाएं सरकारी विभागों द्वारा सहायता प्राप्त हैं। बिहार के उच्च शिक्षण संस्थानों में पटना स्थित प्राचीन व महत्त्वपूर्ण पटना विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय और भागलपुर स्थित तिलका मांझी भालपुर विश्वविद्यालय शामिल हैं। बाद के दोनों शिक्षण संस्थान विभिन्न विषयों में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम संचालित करते हैं और इनसे अनेक महाविद्यालय संबद्ध हैं। द पटना स्कूल ऑफ आर्ट्स ऐंड क्राफ्ट्स में विशिष्ट विषयों के शिक्षा दी जाती है।

प्राचीन काल में bihar शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। शिक्षा का प्रमुख केन्द्र नालन्दा विश्वविद्यालय , विक्रमशिला विश्वविद्यालय, वर्जासन विश्वविद्यालय एवं ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय थे।

बिहार में शिक्षा मध्यकाल से प्रारम्भ हुई थी। इस समय अधिकांशत: मुस्लिम ही उच्च शिक्षा ग्रहण करते थे। शिक्षा का माध्यम फारसी था किंतु कहीं संस्कृत के भी शिक्षण संस्थान थे।

अजीमाबाद (पटना) बिहार में फारसी का सबसे बड़ा केन्द्र था। बिहार के प्रसिद्ध विद्वानों में काजी गुलाम मुजफ्फर थे। आधुनिक शिक्षा का प्रारम्भ 1835 ई. में लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा किया गया। शिक्षा का माध्यम संस्कृत-फारसी के साथ अंग्रेजी भी था लेकिन अंग्रेजी भाषा की सर्व प्रमुखता थी।

पूर्णिया के बिहार शरीफ तथा छपरा में एक अग्रण शिक्षा केन्द्र की स्थापना की गई।

प्राचीन शिक्षा केन्द्र

प्राचीन काल से बिहार शिक्षा का प्रमख केन्द्र रहा है। जो निम्न हैं

नालन्दा विश्वविद्यालय

गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई.पू. नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जावा, चीन, तिब्बत, श्रीलंका व कोरिया आदि के छात्र आते थे। जब ह्वेनसाग भारत आया था उस समय नालन्दा विश्वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। इसके प्रख्यात अध्यापकों शीलभद्र धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, दिकनाग, ज्ञानचन्द्र, नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग, धर्मकीर्ति आदि थे।

इस विश्वविद्यालय में पालि भाषा में शिक्षण कार्य होता था। 12वीं शती में बख्तियार खलिजी के आक्रमण से यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

पालवंशीय शासक ने 770-810 ई. में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ न्याय, तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के विद्वानों में रक्षित विरोचन ज्ञानभद्र, बुद्ध जेतरित, रत्नाकर, शान्तिज्ञान, श्रीमित्र, अभयंकर थे।

इस विश्वविद्यालय में तिब्बत के छात्रों की संख्या सर्वाधिक थी।

ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय

पाल वंश के प्रथम शासक गोपाल ने ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह विश्वविद्यालय बिहार शरीफ नगर के समीप है। यह विश्वविद्यालय तन्त्र विद्या का केन्द्र था। महारक्षित और शीलरक्षित नामक प्रसिद्ध विद्वान थे।

तिलक महाविद्यालय

मगध में शिक्षा का केन्द्र तिलक महाविद्यालय था। इसका उल्लेख चीनी यात्रियों (ह्वेनसांग एवं इत्सिंग) ने अपने यात्रा संस्मरणों में किया है। हर्यक वंश के शासकों ने इस विद्यालय की स्थापना की थी। यह विद्यालय महायान सम्प्रदाय का केन्द्र था। इस केंद्र में प्रज्ञानभद्र नाम के विद्वान थे। तिलक महाविद्यालय की पहचान नालन्दा के पास के तिल्लास गांव के रूप में की गयी है।

फूलहारी शिक्षण संस्थान

फूलहारी शिक्षण संस्थान नालन्दा के पास था। यहाँ बौद्ध आचार्यों और तिब्बती विद्वानों का निवास रहा है।

सांस्कृतिक जीवन

बिहार का सांस्कृतिक क्षेत्र भाषाई क्षेत्र के साथ करीबी सम्बन्ध दर्शाता है। मैथिली प्राचीन मिथिला (विदेह, वर्तमान तिरहुत) की भाषा है, जिसमें ब्राह्मणवादी जीवन व्यवस्था की प्रधानता है। मैथिली बिहार की एकमात्र बोली है, जिसकी अपनी लिपि (तिरहुत) और समृद्ध साहित्यिक इतिहास है। मैथिली के प्राचीनतम और सर्वाधिक प्रसिद्ध रचनाकारों में विद्यापति अपने श्रृंगारिक व भक्ति गीतों के लिए विख्यात हैं।

साहित्य

भोजपुरी बोली में शायद ही कोई लिखित साहित्य है, लेकिन इसका मौखिक लोक साहित्य प्रचुर है। मगकी का लोक साहित्य भी काफी समृद्ध है। आधुनिक हिन्दी व उर्दू साहित्य में बिहार के मैदानी क्षेत्रों के रचनाकारों का भी उल्लेखनीय योगदान है।

आदिवासी संस्कृति

अधिकतर आदिवासी गाँवों में एक नृत्य मंच, ग्राम पुरोहित द्वारा इष्टदेव की पूजा के लिए एक पवित्र उपवन (सरना) व अविवाहितों के लिए एक शयनागार (धुमकुरिया) होता है। साप्ताहिक हाट जनजातीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आदिवासी त्योहारों में (जैसे सरहुल), वसंतोत्सव (सोहारी) और शीतोत्सव (मागे पर्व) उमंग व उल्लास के पर्व होते हैं। ईसाईयत, उद्योगीकरण, नए संचार सम्पर्कों, आदिवासी कल्याण कार्यक्रमों व सामुदायिक विकास योजनाओं के कारण मूल आदिवासी संस्कृति तेजी से बदल रही है।

प्राचीनकालीन विख्यात स्थल

राज्य के मैदान धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व के स्थानों से सम्बद्ध हैं। नालन्दा में प्राचीनकालीन विख्यात नालन्दा बौद्ध विश्वविद्यालय था। राजगीर और इसके समीप के प्राचीन व आधुनिक मन्दिरों व धर्मर्स्थलों की अनेक धर्मों के श्रद्धालुओं द्वारा यात्रा की जाती है। पावापुरी में ही जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर को महानिर्वाण (ज्ञानप्राप्ति या पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति हुई थी। गया एक महत्त्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है और इसके निकट बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल बोधगया स्थित है, जहाँ बुद्ध को बोधित्व की प्राप्ति हुई थी।

पटना के उत्तर में सोनपुर के समीप हरिहर क्षेत्र में प्रत्येक नवम्बर में भारत के प्राचीनतम व विशाल पशु मेलों में से एक का आयोजन होता है। बिहार के अनेक हिन्दू त्योहारों में होली और छठ (मुख्यतया स्त्रियों द्वारा सूर्य की आराधना) का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

भाषा

बिहार की आधिकारिक भाषाएँ हिन्दी भाषा और उर्दू हैं, परन्तु अघि कांश लोग बोलचाल में बिहारी भाषा (मागधी, मैथिली, भोजपुरी और अंगिका) का प्रयोग करते हैं।

पर्यटन स्थल

बिहार पर्यटन स्थलों, ऐतिहासिक धरोहरों, धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का केन्द्र रहा है। यहाँ की परम्पराएं, संस्कृति, रीति-रिवाज और जीवन-पद्धतियां, मेले, पर्व, त्योहार हमेशा से पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं।

राज्य के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं – राजगीर, नालंदा, वैशाली, पावापुरी जहां भगवान महावीर ने अंतिम सांस ली और निर्वाण को प्राप्त हुए, बोधगया, विक्रमशिला उच्च शिक्षा के बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष, पटना पाटलीपुत्र का प्राचीन नगर और सासाराम शेरशाह सूरी का मकबरा और मधुबनी।

अन्य महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं मुंडेश्वरी मंदिर, कैमूर, रोहतासगढ़ किला, रोहतास, जैन तीर्थ स्थल, कुंडलपुर, नालंदा, बिहार योग केंद्र, मुंगेर, मनेर शरीफ, पटना, ग्रामीण पर्यटन स्थल नेपुरा, नालंदा, केसरिया स्तूप, पूर्वी चंपारन।

बिहार के पारम्परिक नृत्य – Traditional dance of Bihar

झिझिया नृत्य

यह नृत्य बिहार की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक कर्मकाण्डीय नृत्य है जिसमें महिलाएँ भगवान इन्द्र से अपने क्षेत्र में बारिश की कामना करती हैं। यह नृत्य पूरी तरह से प्रार्थनाओं से ही संबंधित है और इसकी खास विशेषता यह है कि इसमें एक व्यक्ति प्रमुख रूप से गीत गाने वाला, एक हारमोनियम, एक बाँसुरी और एक ढोलक बजाने वाला अवश्य होता है।

बिदेसिया

भिखारी ठाकुर को इस नृत्य और थियेटर के सृजक के रूप में माना गया है जो कि पेशे से नाई थे। इस नृत्य में उन्होंने समाज के बड़े ही संवेदनशील विषय जैसे रीति-रिवाज, आधुनिकता, ग्रामीण-शहर, अमीर-गरीब और ऐसे ही विषय को उठाया है।

उन्होंने इस नृत्य के माध्यम से भोजपुरी समाज के उन गरीब मजदूरों की एवं परिवार वालों खासकर उसकी सहभागिनियों की आत्मीय दुर्दशा को चित्रित करने का प्रयास किया है जिसमें वो अपने परिवार वालों से दूर जाकर आजीविका कमाने गये हैं और उन्हें वहाँ क्या-क्या तकलीफ एवं मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं का विस्तृत मंचन किया है।

इस नृत्य में बिरहा का एक अपना महत्व है। इसमें पुरुष नारी का रूप लेकर मंच पर आता है। इसमें वह नारी की तरह दिखने के लिए नकली बाल एवं साड़ी तथा धोती भी पहनता है और उसके सारे हावभाव और क्रिया-कलापों को संजीदा रूप से प्रदर्शित करता है। आज के इस आधुनिक युग में भी इस नृत्य ने अपना महत्व बरकरार रखा हुआ

जात-जातिन

यह नृत्य बिहार के ग्रामीण समाज में मनाया जाने वाला एक ऐसा नृत्य है जिसमें समाज में गरीबी, दु:ख, प्यार, प्रेमियों और पति-पत्नी के बीच होने वाला कार्यकलाप एवं वार्ता को दर्शित करता है। इसे वर्ष के भाद्रपद माह में मनाया जाता है। इस नृत्य का मुख्य केन्द्र जात-जातिन का वह प्रेमी जोड़ा है जो समाज द्वारा बहिष्कृत और निकाल दिए गये हैं और वे दोनों एक विषम परिस्थितियों में एक-दूसरे से अलग रहकर अपनी व्यथा का प्रदर्शन करते हैं। इतना ही नहीं इसमें समाज के अन्य विषय जैसे- भुखमरी, आपदा, बाढ़, सूखा जैसे अन्य विषयों को भी छूकर उन्हें प्रदर्शित किया जाता है।

झूमरी नृत्य

यह नृत्य मिथिलांचल में मनाया जानेवाला एक नृत्य है जो लगभग गुजरात में मनाया जानेवाला गरबा के समान ही है। इसमें विवाहित महिलाएँ ही भाग लेती हैं जिसे बड़ा ही शुभ माना जाता है। आश्विन माह के बाद एक महीना तक आसमान बड़ा ही विस्तृत और साफ रहता है रात्रि में चन्द्रमा की चाँदनी बड़ी ही मनमोहक और मनोहारी होती है और ऐसी आकर्षित करनेवाली चाँदनी में महिलाएँ बड़े ही धूमधााम से पूरे माह नृत्य-संगीत करती हैं।

कजरी नृत्य

यह नृत्य श्रावण माह अथवा वर्षा ऋतु प्रारंभ होने से लेकर पूरे उसके समाप्त होने तक मनाया जानेवाला नृत्य है जिसमें कजरी गीत गाया जाता है। इस नृत्य में समाज के बहुमूल्य रीति-रिवाजों को प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य का मुख्य केन्द्र बिन्दु कजरी गीतों के द्वारा वर्षा ऋतु के आनन्द को दर्शाता है। जो कि समाज और सामाजिक प्राणी से एक मानसिक स्फूर्ति प्रदान करता है।

सोहर खिलौना नृत्य

यह नृत्य एक विशेष कला लिए हुए वो नृत्य है जो न केवल बिहार बल्कि परे भारत में मनाया जाता है। यह नृत्य एक परम्परागत नृत्य हैं जिसे महिलाएँ समाज में बच्चे पैदा होने के बाद मनाया जाता हैं। इसमें महिलाएँ एकजुट होकर बच्चे के पैदा होने पर उसे भगवान राम, कृष्ण और अन्य देवताओं से तुलना कर उसके अच्छे भविष्य की कामना के लिए गीत गाती हैं।

यह नृत्य-संगीत और भी मनोहारी तब हो जाता है जब महिलाएँ पारम्परिक वाद्य यंत्रों जैसे हारमोनियम, तबला और झाल इत्यादि के साथ गाती हैं। इस नृत्य की सबसे अच्छी बात इसका ग्रामीण परिवेश है।

सुमंगली

यह बिहार का एक पारम्परिक गीत-नृत्य है जो कि विशेष रूप से वैवाहिक रीति-रिवाज पूर्ण होने के पश्चात् मनाया जाता है। इसके गीत संगीत परम्परागत हैं जो कि बिहार की भाषाओं और बोलियों में थोड़ी भिन्नता लिए हुए पाए जाते है। इसमें गीत लय परम्परागत रूप से सदियों से चली आ रही है और बजाए जाने वाले वाद्य यंत्र बड़े ही साधारण और परम्परागत हैं जिसमें महिलाएँ एकजुट होकर नव वर-वधू की वैवाहिक जीवन की सफलता की कामना अपने गीतों में करती हैं।

रोपनी गीत

यह गीत बिहार का एक प्रमुख गीत है जिसे महिलाएँ समूह बनाकर गाती हैं। इसे फसल रोपने के समय गाया जाता है।

यह एक सृजनवर्धक और गरीब मजदूरों में नये फसल के आगमन का सूचक है और इसे गरीब मजदूर आशा के रूप में और समूह बनाकर गाते हैं जिससे कि रोपनी का कार्य सफलतापूर्वक एकजुट होकर सम्पन्न कर सकें और दूसरे ही अपने द्वारा किये जाने वाले शारीरिक कष्ट को कम कर सकें। इसे गानेवाले मजदूर गरीब और अनपढ़ होते हैं। इसलिए यह गीत लिखित रूप में नहीं मिल सका है बल्कि परम्परागत रूप से यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता आ रहा है।

कटनी गीत

यह बिहार का एक मशहूर लोक संगीत है जो कि फसल काटने के समय गाया जाता है। यह विशेषकर गंगीय क्षेत्रों में रहने वाले मजदूरों द्वारा गाया जाने वाला एक लोक संगीत है। गरीब मजदूर अपने समक्ष खड़ी समस्याओं से जूझने और उसमें से भी आन्नद का समय निकाल लेने के लिए यह गीत गाते हैं जिसका अभिप्राय अपने मुश्किल क्षणों को एकजुट होकर निपटाना और उसमें से भी खुशियाँ ढूँढ़ना है।

छऊ नृत्य

यह एक परम्परागत छद्म लोक नृत्य है जिसमें शौर्य, शक्ति और क्षमता की विशेष आवश्यकता होती है। इसमें राग, भाव और ताल जैसे तीन मूलभूत आधारों का होना आवश्यक है। इसे मुख्यतः पुरुष प्रधान नृत्य माना गया है। इसमें पुरुष एक आवरण लगाकर प्रदर्शित करता है और इसमें कुछ नियमबद्ध क्रम और तरीके हैं जिसे हम फरिखण्ड कहते है। इस नृत्य को करने का प्रमुख कारण लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ और विषम परिस्थितियों से लड़ने के लिए सक्षम बनाना है।

इसमें योद्धा एक हाथ में तलवार और दूसरे में ढाल लेकर साहसिक रूप से एक दूसरे के वारों को टालने और उससे निपटते हैं।

होली नृत्य

होली भारत के सभी प्रदेशों में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। लोग इसे हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार प्रथम चैत्र मास (फरवरी-मार्च) को मनाते हैं। बिहार के लोग इसे विशेष रूप में मनाते हैं।

लोग इस दिन समूहों में इकट्ठे होकर ढोलक, झाल, मंजीरों से युक्त होकर पूरे हर्षोल्लास से घमार गीत गाकर मनाते हैं। इस गीत से भक्त प्रहलाद और उसके पिता हिरण्यकश्यपु की पौराणिक गाथा भी जुड़ी हुई है।

पायका नृत्य

यह नृत्य भी बिहार का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण नृत्य है जिसमें लोग अपनी योग्यता और युद्ध कौशल का परिचय देते हैं। इसे मयूरगंज क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है।

इसकी प्रमुख विशेषता एक सपाट और खुला मैदान है जिसमें लोग अपने सिर पर पगड़ी, चुस्त रूप से धोती पहनकर और अपने हाथों में लकड़ी की तलवार लिए हुए अपने सामने वाले प्रतिद्वंदी के वारों को झेलना और उससे बचाव करना होता है। इस नृत्य में छद्म युद्ध ही होता है।

डोमकच

यह नृत्य बिहार का एक प्रमुख नृत्य है जिसमें महिलाएँ रात में जगकर मनाती हैं। इसके मनाने से एक अभिप्राय घर के सारे पुरुष बारात में भाग लेते हैं और घर पर केवल महिलाएँ रह जाती हैं उस स्थिति में वे रातभर जगकर अलग-अलग ढंग से नाच और गीत गाती हैं ताकि उनका मनोरंजन भी हो जाय और घर की रखवाली भी हो जाता है।

लौड़ा नाच

यह नृत्य आज भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में प्रसिद्ध है जिसमें पुरुष महिला की तरह ही सजकर रात में नाचते हैं और बारातियों का मनोरंजन करते हैं। इस तरह के नाचने वाले काफी निर्धन घर के होते हैं और उनका काफी कमाई का कोई जरिया नहीं होता।

इसलिए वे इस तरह का कार्य करते हैं। आज से कुछ वर्ष पहले इस नाच का काफी प्रचलन था लेकिन मनोरंजन के अनेक साधन आ जाने के कारण इसकी लोकप्रियता थोड़ी घट गई है।


तो दोस्तों आपको यह About Bihar in Hindi | बिहार के बारे में पर यह आर्टिकल कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस आर्टिकल में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।

अंग्रेजी भाषा में जीवनी पढ़ें – Bollywoodbiofacts

26 thoughts on “About Bihar in Hindi | बिहार के बारे में in 2022”

  1. It’s in point of fact a great and useful piece
    of info. I’m happy that you simply shared this helpful information with us.
    Please stay us up to date like this. Thank you for sharing.

    Reply
  2. I’m really loving the theme/design of your weblog.
    Do you ever run into any web browser compatibility issues?
    A handful of my blog visitors have complained about my blog not working correctly in Explorer but looks
    great in Chrome. Do you have any tips to help fix this issue?

    Also visit my site: webpage

    Reply
  3. hey there and thank you for your info – I’ve certainly picked up
    something new from right here. I did however expertise several technical issues using this site,
    since I experienced to reload the website many times previous
    to I could get it to load properly. I had been wondering if your hosting is
    OK? Not that I’m complaining, but sluggish loading instances times will
    very frequently affect your placement in google and could damage your high quality score if advertising and marketing with Adwords.
    Well I am adding this RSS to my e-mail and could look out for a
    lot more of your respective fascinating content. Ensure that you
    update this again soon.. Lista escape roomów

    Reply
  4. Nice blog here! Also your site loads up fast! What host are
    you using? Can I get your affiliate link to your host? I wish my site loaded up as quickly as
    yours lol

    Reply
  5. I’m impressed, I have to admit. Seldom do I come across a blog that’s equally educative and interesting, and let me tell you, you have
    hit the nail on the head. The problem is an issue
    that too few people are speaking intelligently about. I’m very happy I stumbled across this during my hunt for something regarding
    this.

    Look into my blog post; webpage

    Reply
  6. hello there and thank you for your information – I have
    certainly picked up anything new from right here. I did however expertise some
    technical issues using this website, since I experienced to reload the site a lot of times previous
    to I could get it to load correctly. I had been wondering if your web page hosting is OK?
    Not that I’m complaining, but sluggish loading instances times
    will sometimes affect your placement in google and can damage your high quality score if ads and
    marketing with Adwords. Anyway I am adding this RSS to my e-mail and can look out for much more of your respective fascinating content.

    Make sure you update this again very soon.

    Reply
  7. You have made some really good points there. I checked on the net for more info about the issue and found most individuals will go along with your views on this site.

    Reply
  8. I blog quite often and I really appreciate your content. Your article has really peaked my interest. I will bookmark your site and keep checking for new information about once per week. I subscribed to your RSS feed too.

    Reply
  9. Howdy, There’s no doubt that your site could be having web browser compatibility problems. Whenever I take a look at your site in Safari, it looks fine however when opening in IE, it has some overlapping issues. I merely wanted to give you a quick heads up! Aside from that, wonderful site!

    Reply
  10. I would like to thank you for the efforts you’ve put in penning this site. I really hope to see the same high-grade blog posts from you in the future as well. In fact, your creative writing abilities has motivated me to get my own, personal site now 😉

    Reply
  11. Oh my goodness! Amazing article dude! Thank you so much, However I am having problems with your RSS. I don’t know the reason why I can’t subscribe to it. Is there anybody having similar RSS issues? Anyone who knows the answer will you kindly respond? Thanx!!

    Reply
  12. Hi! I could have sworn I’ve been to this web site before but after browsing through some of the posts I realized it’s new to me. Anyhow, I’m definitely pleased I stumbled upon it and I’ll be book-marking it and checking back regularly!

    Reply
  13. I blog frequently and I really thank you for your information. This article has truly peaked my interest. I will bookmark your blog and keep checking for new information about once a week. I subscribed to your RSS feed as well.

    Reply
  14. Hi there! This blog post could not be written any better! Reading through this article reminds me of my previous roommate! He always kept talking about this. I am going to forward this article to him. Fairly certain he’s going to have a very good read. Thank you for sharing!

    Reply
  15. Having read this I thought it was really informative. I appreciate you taking the time and effort to put this informative article together. I once again find myself spending a significant amount of time both reading and posting comments. But so what, it was still worthwhile!

    Reply

Leave a Comment