1 Best Essay on Rashtra Bhasha Hindi | राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध

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राष्ट्र की भाषा हिंदी पर निबंध – Essay on Rashtra Bhasha Hindi

राष्ट्र का अर्थ

हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने लिखा कि राष्ट्र महलों में नहीं रहता। इसका आशय यह है कि राष्ट्र भारत के उन गाँवों की समृद्धि पर आधारित है जहाँ हजारों वर्षों के बाद भी लोग संघर्षपूर्ण जीवन बिताने के लिए विवश हैं। इस समस्या का कारण कुछ भी हो लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबों, बेबशों ने अपनी क्षमता के अनुसार राष्ट्र का भला ही किया है। धनकुबेरों ने तो अपने अनुसार राष्ट्र को परिभाषित करने का प्रयास किया।

भाषा का राष्ट्र पर प्रभाव

अब प्रश्न उठता है कि ऐसी राष्ट्र की भाषा क्या होनी चाहिए। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत या फिर उर्दू अथवा इनसे भी हटकर अन्य कोई भाषा। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि हम राष्ट्र की भाषा पर विचार कर रहे हैं, व्यक्ति की नहीं। जहाँ व्यक्ति या राज्य की भाषा की बात होती है वहाँ तरह-तरह के विभेदकारी समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं। इससे राष्ट्र की नींव कमज़ोर होती है।

भाषायी समन्वय

राष्ट्र की भाषा तो ऐसी होनी चाहिए जो किसी-न-किसी रूप में पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण को समन्वयकारी रूप में जोड़ती हो एवं लोगों में बंधुत्व व भाईचारे की भावना को बल देती हो। महादेवी वर्मा ने लिखा था कि सौहार्द्र और विद्रोह एक ही डाली पर खिलने वाले दो ऐसे पुष्प हैं जो खिलकर उसका श्रृंगार करते हैं और झड़कर उसे सूना बना देते हैं। अतः विद्रोह से बचने के लिए यह आवश्यक है भाषा का उद्देश्य राष्ट्रीयता की भावना को कमज़ोर करना न हो।

समस्याएँ

वर्तमान भारत ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें हिंदी के विरुद्ध एक अप्रत्यक्ष षडयंत्र है। विशेष बात तो यह समझने की है कि यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही शुरू हो गया था। पूँजीपतियों ने हिंदी को चाँदी की ऐसी फ़सल समझी जिसमें कभी भी उर्वरा शक्ति की कमी नहीं थी। ऐसे लोगों ने न केवल फ़सल काटी बल्कि खेत को रौंदने में किसी तरह की कमी नहीं रखी।

इसी का परिणाम है कि हिंदी उस वृद्धा के समान अपने ही घर हिंदुस्तान में इस तरह उपेक्षित हुई जिसे बोझ समझकर छोड़ दिया गया। अंग्रेजी विषय का बोध न होने पर भी हिंदी भाषियों द्वारा अंग्रेज़ी के उपन्यास हाथ में रखना इसी मानसिकता का परिचायक है। हिंदी के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा कि

विविध कला शिक्षा अमित, ग्यान अनेक प्रकार।
सब देशन से लै करहु, भाषा माहिं प्रचार।।

निष्कर्ष

अर्थात हमें भारतीय भाषा के माध्यम से कला एवं शिक्षा का विकास करना चाहिए। इसके लिए अच्छी बातें एवं कल्याणकारी तत्व किसी भी देश से ग्रहण किए जा सकते हैं परंतु भारत में उनका प्रचार-प्रसार हिंदी भाषा के माध्यम से किया जाना चाहिए। वस्तुत: भारत ही ऐसा देश है जहाँ हिंदी को बल प्रदान करने के लिए हिंदी दिवस मनाया जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि हमने बहुत लंबे अरसे से हिंदी की उपेक्षा की है। अतः अब इस समस्या का समाधान किया जाना अनिवार्य है।


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