हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Brotherhood in Hindi | वैश्विक भाईचारा समस्या एवं समाधान पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं।
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वैश्विक भाईचारा समस्या एवं समाधान
वैश्विक भाईचारा का अर्थ
आज का वैश्विक परिदृश्य पहले की अपेक्षा बहुत तेजी से बदल रहा है। देशों की अपेक्षाएँ एवं आवश्यकताएँ बहुत बदल चुकी हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि सभी देश आपसी मतभेद भुलाकर विकास के लिए अपनी क्षमता के अनुसार एक दूसरे की मदद करें। भारत की तो यह परंपरा ही रही है कि
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
अर्थात यह हमारा है वह दूसरों का है, ऐसी सोच रखने वाले वे लोग होते हैं जिनमें वैश्विक चेतना-शक्ति का अभाव होता है। उदार चरित्र वालों के लिए तो संपूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार है अर्थात पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग एक ही परिवार के होते हैं। वैश्विक संदर्भ में इस प्रकार की सोच रखने एवं उसके अनुरूप कार्य करने की प्रवृत्ति को वैश्विक भाईचारा कहा जाता है।
समस्या
वैश्विक स्तर पर भाईचारे की भावना से प्रेरित होकर कार्य करने में विभिन्न तरह की समस्याएँ भी हैं। इसका कारण है कि अलग-अलग देशों के अपने राजनीतिक संकट एवं आर्थिक हित होते हैं। विस्तारवाद, साम्राज्यवाद, आतंकवाद जैसी समस्याएँ इसके मूल में हैं। जल, खनिज तेल, गैस, पैट्रोलियम, जैसे प्राकृतिक संसाधनों के असमान वितरण के कारण देशों के बीच किसी-न-किसी रूप में पर-निर्भरता होती है। इनके वितरण में कभी राजनीतिक दबाव तो कभी भ्रष्टाचार रहता है। ये ऐसी समस्याएँ हैं जो एक देश को दूसरे देश के समीप आने से रोकती हैं।
विश्वस्तरीय समन्वय एवं भाईचारे की भावना के विकास के लिए यह आवश्यक है कि संसाधनों के समान वितरण, विस्तारवाद एवं आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देश सम्मिलित प्रयास करें एवं अपनी राजनीतिक, आर्थिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करें। इसके लिए प्रभावी प्रावधान होने चाहिए ।
समाधान
जब तक ऐसा नहीं होता तब तक प्रयास तो कर सकते हैं परंतु इसमें वैश्विक भाईचारे की भावना को आगे बढ़ाया जा सकेगा। ऐसी कल्पना वास्तविकता में परिणित नहीं हो सकती। संस्कृति, कला, साहित्य एवं पर्यटन के माध्यम से भी देशों के बीच बनी खाई को कम किया जा सकता है।भारतीय संस्कृति के प्रचारक-प्रसारक तो इस दिशा में सदैव ही प्रयास करते रहे। पहले भी ऐसी यात्राएँ हुआ करती थीं।
निष्कर्ष
मोरक्को का विद्वान इब्नबतूता, चीनी यात्री फाह्यान ने भारत की यात्रा की। भारत से स्वामी विवेकानंद ने भी अमेरिकी धर्मसंसद को संबोधित किया। यह सब अध्ययन, संदेश एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार के प्रयासों के कारण ही संभव हो सका। किसी भी देश की संस्कृति ऐसे पुल का निर्माण करती है जो एक देश को दूसरे देश से जोड़ती है। निरंतर ऐसा होते रहने के कारण वैश्विक भाईचारे की भावना का विकास होता है।
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