1 Best Essay on Dev Dev Aalasi Pukara – दैव-दैव आलसी पुकारा

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Dev Dev Aalasi Pukara – सूक्ति का आशय

‘दैव-दैव आलसी पुकारा’ (Dev Dev Aalasi Pukara) सूक्ति का आशय यह है कि आलसी प्रवृत्ति का व्यक्ति परिश्रम नहीं करता । वह मानता है कि ईश्वर द्वारा जो पूर्व-निश्चित है वह उसे अवश्य प्राप्त होगा। ऐसी सोच ही उसे कर्म-पथ पर आगे बढ़ने से रोकती है। विद्यार्थी जीवन में तो आलस्य की प्रवृत्ति का प्रभाव और भी घातक होता है। संस्कृत साहित्य के मनीषियों ने लिखा कि

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्।।

अर्थात आलसी को विद्या की प्राप्ति नहीं होती। विदया के अभाव में धन की प्राप्ति नहीं होती। धनहीन व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता आर बिना मित्र के सुख की प्राप्ति नहीं होती। अतः सभी तरह के सूखो का मूल विद्या एवं सभी तरह के दुखों का मूल आलस्य ही है।

आलसी व्यक्ति का भविष्य – Dev Dev Aalasi Pukara

आलसी व्यक्ति का भविष्य अंधकारमय होता है। समय पर काय न पूरा कर पाने के कारण वह हर किसी दवारा उपेक्षित होता रहता है। असफलता के कारण घोर निराशा में डूबा व्यक्ति धीरे-धीरे मानसिक तनाव से ग्रसित हो जाता है।

इसके परिणामस्वरूप वह किसी-न-किसी बीमारी का शिकार हो जाता है। आलस्य का एक दूरगामी दुष्परिणाम भी होता है। ऐसा व्यक्ति केवल अपना ही नुकसान नहीं करता बल्कि अपने बाद आने वाली पीढ़ियों के समक्ष भी समस्या उत्पन्न करता है। कालांतर में वह अशिक्षा दुराचरण, गरीबी एवं बेरोज़गारी का कारण बनता है।

कई बार लोगों को ऐसा कहते सुना जाता है कि उन्होंने आलस्य त्यागने की बहुत कोशिश की परंतु ऐसा नहीं हो सका। इस संदर्भ में यह समझना ज़रूरी है कि हमें अपने एवं अपने आश्रितों की जवाबदेही स्वयं तय करनी चाहिए। गैर जिम्मेदार व्यक्ति स्फूर्त नहीं रहता। वह आराम चाहता है। वह चाहता है कि घर बैठे ही सारे ऐश्वर्य-वैभव का स्वामी बन जाए लेकिन ऐसा संभव नहीं होता। भाग्य के भरोसे सफलता नहीं मिलती।

निष्कर्ष

आलस्य से मुक्ति तभी मिल सकती है जब निश्चित समय में निर्धारित कार्य करने के लिए संकल्प हो। इस उपलब्धि के लिए उत्तम स्वास्थ्य होना चाहिए एवं कार्य योजना निर्धारित होनी चाहिए। कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ की ये पंक्तियाँ भाग्यवाद पर आधारित आलस्य का विरोध करती प्रतीत होती हैं।


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