2 Best Essay on Vidyarthi Jiwan Me Charitra Nirman | विद्यार्थी जीवन में चरित्र निर्माण

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Essay on Vidyarthi Jiwan in Hindi | विद्यार्थी जीवन पर निबंध

मानव जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन है। सरल, चिंतारहित, उत्साहपूर्ण, आशाओं से भरी और उछल-कूद करती हुई यह आयु बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।
विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की नींव है। बुद्धिमान व्यक्ति अपने जीवन की नींव को मज़बूत बनाने के लिए सावधानी से यत्न करते हैं। विद्यार्थी का मुख्य कर्तव्य विद्या को ग्रहण करना है। इस जीवन में विद्यार्थी अपने लिए, अपने माता-पिता तथा परिवार के लिए, अपने समाज के लिए और अपने राष्ट्र के लिए तैयार हो रहा होता है, इसलिए उसे सब प्रकार से योग्य बनना होता है। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रख विद्या प्राप्त करने का पूरा प्रयत्न करे।

आलस्य विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है। उसे आलस्य से दूर रहकर समय का सदुपयोग करना चाहिए। जो विद्यार्थी समय का सदुपयोग नहीं करते, वे जीवन में सफल नहीं हो पाते। उन्हें इस अवधि में अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल-कूद और व्यायाम का समुचित ध्यान रखना चाहिए। साथ ही किसी भी प्रकार की बुरी संगति से बचकर सत्संगति की ओर अग्रसर होना चाहिए। । विद्याथी जीवन में अनुशासनहीनता हानिकारक सिद्ध हो सकती है। जो घर में तथा विद्यालय में अनुशासन का पालन नहीं करता, वह स्वयं अपने हाथों से अपना भविष्य बिगाड़ता है।

अध्यापकों का अपमान करना, विद्यालय के नियमों का उल्लंघन करना आदि अनुशासनहीनता के ही रूप हैं। विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वह दुर्गुणों से दूरी बना ले, तभी उसका विकास संभव है। उसे अच्छी आदतें अपनानी चाहिए। बड़ों का सम्मान करना चाहिए, मीठा बोलने का महत्व समझ लेना चाहिए, पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।

विद्यार्थी को चाहिए कि वह विद्यालय में रहकर सभी नियमों का पालन करे। शिक्षकों द्वारा पढ़ाए जा रहे सभी पाठों का पूरे मन से अध्ययन करे। विद्यालय में होने वाली सभी प्रकार की गतिविधियों में भाग लेकर उसे अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहिए। उसे अपने लक्ष्य को कभी नहीं भूलना चाहिए।


Vidyarthi Jiwan Me Charitra Nirman का अर्थ

‘विद्यार्थी’ शब्द दो शब्दों के योग से बना है- ‘विद्या’ और ‘अर्थी’ अर्थात विद्यार्थी उसे कहते हैं जो विद्या के अर्थ का संधान करता है एवं उसके अनुसार आचरण व व्यवहार करता है। विद्यार्थी जीवन किसी व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का वह महत्त्वपूर्ण समय है जिसमें प्राप्त की गई शिक्षा उसका हमेशा मार्गदर्शन करती रहती है।

चरित्र निर्माण की आवश्यकताएँ

किसी का भी व्यक्तित्व उसके गुणों का परतदार संपुट होता है। जिस प्रकार के गुण होते हैं वैसा ही उसका व्यक्तित्व व उसके चरित्र होता है। उदाहरण के लिए प्याज पर परत-ही-परत होती है। सभी परतों को मिलाकर प्याज बनी होती है। यदि एक-एक परत को उतारते जाएँ तो प्याज का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

इसी तरह विद्यार्थी जीवन में परिश्रम, ईमानदारी, सच्चाई, परोपकार, करुणा, सहानुभूति, शील, सम्मान करने की भावना जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। चरित्र निर्माण की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि परिश्रम से सफलता के शिखर पर तो पहुँचा जा सकता है परंतु वहाँ पर बने रहने के लिए उत्तम एवं आदर्श चरित्र की आवश्यकता होती है। 

Vidyarthi Jiwan Me Charitra Nirman के माध्यम

शिक्षा प्राप्त करने के माध्यम ही चरित्र निर्माण के माध्यम हैं। प्रायः हम जाने-अनजाने विभिन्न माध्यमों से सीखते रहते हैं। उदाहरण के लिए घर, विद्यालय, प्रदर्शनी, समारोह, टेलीविज़न, मेले, पर्यटन, इंटरनेट ऐसे ही माध्यम हैं। इनके अलावा भी घर में हम माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची सभी से कुछ-न-कुछ सीखते हैं।

इसी तरह विद्यालय में भी शिक्षक/शिक्षिका, प्रयोगशाला, वार्तालाप, गोष्ठी, संवाद, नाट्यमंचन के द्वारा भी छात्र सीखते हैं। सीखने व चरित्र निर्माण में मित्रों की भूमिका भी कम नहीं होती। विद्यार्थी जीवन में चरित्र निर्माण के लिए आदर्श व उत्तम मानवीय मूल्यों को बल देने वाली कहानियाँ एवं बाल-पत्रिकाओं को भी पढ़ना चाहिए। महात्मा गांधी, होमी जहाँगीर भाभा, स्वामी विवेकानंद की जीवनी भी पढ़नी चाहिए।

लाभ

चरित्र निर्माण का विशेष लाभ यह है कि व्यक्ति हर जगह सफलता के साथ-साथ सम्मान भी प्राप्त करता है। इससे उनका मनोबल ऊँचा रहता है तथा वह दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत होता है।

निष्कर्ष

अतः भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए विद्यार्थी जीवन से ही चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।


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