Full Dhritarashtra and Pandu Story | धृतराष्ट्र और पांडव की कहानी

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Full Dhritarashtra and Pandu Story | धृतराष्ट्र और पांडव की कहानी

विचित्रवीर्य को साथ लेकर भीष्मजी जैसे ही काशी पहुंचे तो उन्होंने काशी नरेश की तीन लड़कियों को देखा-वह तीनों ही बहुत सुन्दर, सुशील, गुणवान कन्याएं थी- भीष्मजी को यह पता था कि इस राजकुमारी से शादी करने के लिए देश-विदेश से बहुत से राजकुमार आए हैं, यदि यह मौका हाथ से निकल गया तो शायद विचित्रवीर्य की शादी कभी भी न हो इसलिए उन्होंने बलपूर्व तीनों कन्याओं को अपने रथ में डाल लिया और हस्तिनापुर ले आये।

इनमें से एक लड़की अम्बा ने भीष्पजी से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मैं पहले से ही शाल्वराज से प्यार करती हूं और मन-ही-मन उन्हें अपना पति मान चुकी हूं। इसलिए आप मुझे शाल्वराज के यहाँ पहुंचा दीजिए तो मेरा जीवन सुखी हो जायेगा।

भीष्म दयालु थे-उन्होंने उसी समय अम्बा को अपने रथ में बिठाया और राजा शाल्व के यहां ले गए, परन्तु जैसे ही वे लोग वहां पहुंचे और शाल्वराज को यह पता चला कि अम्बा को तो भीष्म ने अपहरण किया है तो उन्होंने ऐसी लड़की से शादी करने से इन्कार कर दिया ।

अम्बा जब चारों और से दुःखी में घिर गयी तो उसने भीष्म से कहा कि अब तो आप ही मुझसे शादी कर लीजिए तभी मेरा जीवन बच सकता है।

‘नहीं अम्बा यह नहीं हो सकता-मैं तो जीवन भर ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर चुका हूं।’

भीष्म के मुंह से यह निराशाजनक उत्तर सुनकर अम्बा को क्रोध आ गया-उसने भीषन से साफ कह दिया ।

देखो- भीष्म जी आपने मेरा अपहरण करके मेरा जीवन नष्ट कर दिया। मेरे माथे पर कलंक का टीका आपने लगाया। अब यदि आप मुझसे शादी नहीं करते तो मैं शिवजी की उपासना करके आपसे बदला लूंगी। यह कहकर अम्बा शिव तपस्या के लिए जंगलों में निकल गयी ।

विचित्रवीर्य की दो रानियां अम्बिका और अम्बालिका थी, जिनसे दो बेटे धृतराष्ट्र और पांडव पैदा हुआ । धृतराष्ट्र जन्मजात अंधे थे। अम्बिका और अम्बालिका की एक बहुत ही प्रिय दासी थी । जिसे वह अपनी बहन के समान मानती थी। जैसे ही उन दोनों ने अपने पुत्रों को जन्म दिया।

उसके साथ ही उस दासी ने भी एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम बिदुर रखा गया । भीष्मजी ने बिदुर को भी अपने वंश का एक अंश समझकर धृतराष्ट्र और पांडव के साथ ही पाला पोसा ।

जैसे ही वह दोनों भाई बड़े हुए तो धृतराष्ट्र चूंकि बड़े थे। उनकी शादी गन्धार जिसे अब (अफगानिस्तान) कहते हैं काबुल गंधार के नाम से प्रसिद्ध हुई है। वहां के राजा की लड़की का नाम गन्धारी पड़ गया । जब गन्धारी को यह पता चला कि उसका पति अन्धा है तो उसने भी प्रतिज्ञा की कि मैं सारी उम्र अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर रखेंगी।

पांडव का विवाह यदुवंशी राजा शूरसेन की बेटी कुन्ती से हो गया । जिसका असली नाम पृर्था था । कुन्ती श्रीकृष्ण की फूफी लगती थी । वह शुरू से ही साधु स्वभाव की थी।

देवी देवताओं की तपस्या करना कुन्ती का सबसे बड़ा शोक था। एक बार कुन्ती ने दुर्वासा ऋषि की बहुत सेवा की तो उन्होंने कुन्ती को यह वरदान दिया कि मैं तुम्हें ऐसा मंत्र दे रहा हूजसका शक्ति से तुम जिस भी देवता को चाहो आहान कर सकती हो-इस मंत्र की परीक्षा के लिए कुन्ती ने एक बार सूर्य का आहान किया । सूर्य के आग्रह से उसे एक पुत्र ही प्राप्ति हुई।

उस समय तो वह कुंवारी थी इसलिए संसार के बदनामी के डर से उसने अपने पुत्र को लकड़ी के बक्से में बन्द करके उसे नदिया में बहा दिया ।

यही पुत्र शूरवीर कर्ण के नाम से महाभारत में प्रसिद्ध हुआ इस बालक को कौरवों के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी ने मिलकर पाला था । सारथी द्वारा कर्ण का पालन-पोषण किए जाने के कारण उसे सूतपुत्र भी कहा जाता है।

धृतराष्ट्र तो अन्धे होने के कारण केवल राज्य सलाहकार बनकर रह गए थे । राजकाज तो केवल पांडव ही देखते थे, जिनसे प्रजा बहुत खुश थी । राजा पांडव ने दो शादियां की-जिसमें कुन्ती के तीन पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन पैदा हुए।

दूसरी नारी की कोख से नकुल और सहदेव ने जन्म लिया, क्योंकि जब पांचों पांडत छोटे थे तो राजा पांडव की पहाड़ों पर मृत्यु हो गई। उनके साथ ही छोटी रानी भी सती हो गयी, अब पांचों पांडवों का पालन-पोषण कुन्ती ही करने लगी थी।

कौरवों के एक सौ पुत्र थे-जिनमें सबसे बड़े’ का नाम दुर्योधन था, जो बचपन से ही बहुत चालाक, चार सौ बीस, हेरा-फेरी में मास्टर जाना जाता था। उसे पता था कि मैं ही घृतराष्ट्र का सबसे बड़ा बेटा हूं। इसलिए हस्तिनापुर के राज्य पर मेरा ही अधिकार है ।

भीम और दुर्योधन बचपन से ही एक-दूसरे के साथ लड़ते-झगड़ते रहते थे । भीम सदा दुर्योधन को बेईमान कहता था जिससे वह बहुत चिढ़ता था। इसी कारण एक बार दुर्योधन ने भीम के खाने में जहर मिलाकर खिला दिया।

इसी जहर के नशे के कारण भीम नदी में गिर गए । जब बहुत रात बीत जाने पर भीम घर नहीं आये तो चारों पांडवों को बहुत चिन्ता हुई। उधर भीम जैसे ही बेहोश होकर गंगा में गिरे तो एक सांप ने उन्हें डंस लिया, जिसके कारण उनके शरीर का सारा जहर उस सांप के अन्दर चला गया ।

भीम बचकर गंगा से बाहर निकल कर बड़े आनन्द से अपने घर की ओर चलने लगे । दुर्योधन ने जब भीम को जीवित देखा तो वह हैरान हुआ और चिंतित भी।


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