1 Best Essay on Bhagya and Purusharth | भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में भाग्य और पुरुषार्थ – Bhagya and Purusharth पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं

क्या आप खुद से अच्छा निबंध लिखना चाहते है या अच्छा निबंध पढ़ना चाहते है तो – Essay Writing in Hindi


भाग्य और पुरुषार्थ – Bhagya and Purusharth

भाग्य और पुरुषार्थ का अर्थ

यह संसार कर्मक्षेत्र है। इस कर्मक्षेत्र में जीवन की सार्थकता एवं सफलता तभी संभव है जब इसे आवश्यक एवं कल्याणकारी कार्यों में लगाया जाए। यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि भाग्य में जो लिखा होगा वह अवश्य प्राप्त होगा। यदि ऐसा होता तो न तो विकास की गति होती और न ही जीवन में सक्रियता। जो लोग भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं उनका जीवन घोर अंधकार में डूब जाता है। वे कभी भी न तो यश प्राप्त कर पाते हैं और न ही धन।

इसी तरह ‘पुरुषार्थ’ शब्द का अर्थ है- ऐसा कार्य करना जो उत्तम एवं कल्याणकारी हो। हमारे शास्त्रों में पुरुषार्थ के परिणाम को चार पदार्थ के रूप में प्रस्तुत किया गया है- अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष।

भाग्यवाद से हानि

इन सभी की प्राप्ति श्रम से होती है भाग्य से नहीं। भाग्यवाद के प्रति लगाव किसी भी व्यक्ति को मानसिक रूप से कुंठित, शारीरिक रूप से शिथिल एवं आत्मिक रूप से भ्रमित कर देता है। उसके जीवन का वास्तविक उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं होता। कई बार तो ऐसा भी होता जब वह किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। जो व्यक्ति परिश्रमी एवं पुरुषार्थी होता है उसे संसार के सभी पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। इसी परिणाम को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में लिखा कि

सफल पदारथ हैं जग माहीं।
कर्महीन नर पावत नाहीं।।

पुरुषार्थ से लाभ

विश्व में जितने भी महापुरुष व नामचीन हस्तियाँ हुईं वे अपने कर्मों के प्रभाव से ही लोगों के लिए प्रेरणा का विषय रहीं। महात्मा गांधी अधिकतर कार्य स्वयं करते थे। उनके पास देश के हर भाग से पत्र आते थे। उन सभी पत्रों का जवाब वे स्वयं लिखते थे। स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर भी सारा कार्य स्वयं करते थे। स्वामी विवेकानंद ने तो इतना पुरुषार्थ किया कि भारत का नाम विश्व में रोशन किया।

जीवन में निरंतर पुरुषार्थ करते रहने के परिणामस्वरूप ऐसा करने के लिए व्यक्ति मानसिक रूप से सक्रिय बना रहता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी समस्या व असफलता से घबराता नहीं बल्कि उसका सकारात्मक समाधान ढूँढता है। यहाँ यह भी समझना ज़रूरी है कि जो लोग भाग्य में भरोसा करते हैं उन्हें कर्म के बाद ही इसके बारे में सोचना चाहिए। इसका कारण यह है कि भाग्य का संबंध आत्मसंतुष्टि एवं संतोष से है।

निष्कर्ष

और यह तभी प्राप्त हो सकता है जब पूरे मन से कर्म किया गया हो। कहा गया है कि अकर्म का आशय कर्म का अभाव नहीं बल्कि कर्तव्य का क्षय है। दूसरे शब्दों हम कह सकते हैं कि जो व्यक्ति कर्म नहीं करता वह अपनी वास्तविक ज़िम्मेदारी को नहीं निभाना चाहता। ऐसे लोगों के अपूर्ण या अधूरे कार्य का कोई परिणाम नहीं होता। सारांश में यह कहा जा सकता है कि भाग्य के प्रति लगाव समस्या का कारण है जबकि पुरुषार्थ इस समस्या का समाधान है।


तो दोस्तों आपको यह भाग्य और पुरुषार्थ – Bhagya and Purusharth पर यह निबंध कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस निबंध में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।

हमारे Instagram के पेज को फॉलो करें – Hindifacts

6 thoughts on “1 Best Essay on Bhagya and Purusharth | भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध”

  1. Hello there, just became alert to your blog through Google,
    and found that it’s truly informative. I’m gonna watch out for brussels.
    I’ll be grateful if you continue this in future.
    Numerous people will be benefited from your writing.
    Cheers! Escape rooms hub

    Reply

Leave a Comment