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संघर्ष और जीवन – Sangharsh Aur Jeevan
यद्यपि निराश हुए व्यक्तियों को प्रेरित करते हुए विद्वानों ने अनेक रूप में सार्थक जीवन की परिभाषा देते हुए संघर्ष की उपयोगिता को, संघर्ष के महत्व को दर्शाया है महापुरुषों के जीवन संघर्ष से भी यही स्पष्ट होता है कि जीवन की सार्थकता संघर्षों में है। अनेक विद्वानों ने जीवन को इस रूप में देखा है या जिया है कि जीवन एक संघर्ष है, संघर्ष-हीन जीवन मृत्यु का पर्याय है।
अन्तर मात्र इतना है कि जीवित सांस लेते हैं। संघर्ष वह अज्ञात शक्ति है जो व्यक्ति को निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। अतः संघर्ष के अभाव में जीवन का सही आनन्द नहीं उठाया जाता है। इस सन्दर्भ में कवि श्री जगदीश गुप्त ने लिखा है कि
सच हम नहीं, सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम।
मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति और संघर्ष
प्रत्येक मनुष्य की नैसार्गिक प्रवृत्ति है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर कीर्तिमान बने। उसकी यही कामना होती है कि जीवन के क्षेत्र में शिखर-स्पर्शी सफलताएँ प्राप्त कर दूसरों के लिए उदाहरण बने, प्रेरणा-स्रोत बने और मैं सभा साधन-सम्पन्नता को प्राप्त कर लूँ। परन्तु मनुष्य को सफलताएँ सहजता से या कल्पना मात्र से प्राप्त हो जाती थीं तो जगत से नीरसता आ जाती। सभी प्राणी जड़वत हो जाते और जीवन के आनन्द से विमुक्त हो जाते।
संसार में ऐसे बहुत कम व्यक्ति हैं, जिनके जीवन में बिना संघर्ष के सफलताएँ प्राप्त हुई हों।जिन व्यक्तियों को पैतृक परम्पराओं से सुख-सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं उन्हें उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जो संघर्ष से हट जीवन जीने के आदी हो गए वे शीघ्र ही उस सुख-सुविधा से वंचित हो गए और घृणित जीवन-जीने के लिए विवश हुए। इसलिए अनिवार्य है कि महापुरुषों ने जीवन की सार्थकता को बनाए रखने के लिए जो आदर्श बताए थे उनको आचरण में लाते हुए संघर्ष करते रहना चाहिए।
संघर्ष के लिए अपेक्षित इच्छा-शक्ति
जीवन में सफलताओं का आनन्द तभी सम्भव है जब मनुष्य में संघर्ष के लिए अपेक्षित इच्छा-शक्ति हो और दृढ़ इच्छा-शक्ति हो। इच्छा-शक्ति के अभाव में सामर्थ्यवान व्यक्ति भी अपने ध्येय तक पहुँचने में सफल नहीं हो सकता है। दृढ़ इच्छा-शक्ति और धैर्य उसके साथी हों तो सफलताएँ सदैव चरण चूमती हैं, अन्यथा इसके अभाव में ध्येय के निकट पहुँचकर भी धड़ाम से नीचे गिर सकते हैं। और अन्ततः निराशा ही हाथ लगती है और हाथ मलते रह जाते हैं।
दृढ़ इच्छा शक्ति को बनाए रखने के लिए निरन्तर शुभ-चिन्तन, सावधानी, सजगता और क्रियाशीलता आवश्यक है। ध्येय की प्राप्ति न हो पाने पर बिना निराश हुए ध्येय तक पहुँचने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहने पर सफलता मिल जाती है। जीवन को जय-यात्रा के रूप में समझना मनुष्य की प्रथम सफलता है। इस जय यात्रा का शुभारम्भ जन्म लेने पर ही शुरू हो जाता है। यह जय-यात्रा मृत्यु होने पर समाप्त हो जाती है।
खाने-पीने व वस्तुओं का उपभोग करने तक जीवन सीमित नहीं है। किसी प्रकार जीवित रहने का नाम जीवन नहीं है अपितु बिना निराश हुए सदैव प्रगति-पथ पर बढ़ते रहने की लगन का नाम जीवन है। यह इतना सस्ता नहीं है जो हवा के एक झोंके में ही ढह जाए।
जीवन एक युद्ध क्षेत्र के रूप में
जीवन किसी की स्थायी सम्पदा नहीं है। यह तो एक धरोहर है। इसका जितना सही उपयोग किया जा सकता है करना चाहिए क्योंकि ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ का भी विचार कर सदुपयोग करना अपेक्षित है। इसलिए जीवन को एक युद्ध क्षेत्र समझना उचित है। इस युद्ध क्षेत्र में वही विजयी होता है जो एक योद्धा की तरह प्रतिफल सजग रहता है, आपदाओं से भिड़ने को आतुर होता है। एक सजग योद्धा की तरह जीवन के प्रत्येक पल का सदुपयोग करते हुए जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। जीवन में संघर्ष अपेक्षित है।
उपसंहार
संघर्ष के बिना मनुष्य शीघ्र ही निराश होकर, असफल होकर घुट-घुट कर जीवन जीने को विवश होता है। मृतप्रायः होता है। धन-वैभव, मान-सम्मान सब पलायन कर जाते हैं। घायल व्यक्ति की तरह तड़पने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। आपदाएँ घेरे रहती हैं। लोग चिढ़ाते हैं, प्रकृति चिढ़ाती है। हतप्रभ हो आत्महत्या की ओर चिन्तन करने लगता है। अर्थात् सर्वथा विनाश ही दिखाई देता है। अतः मनुष्य उनसे प्रेरणा ले जो सामान्य होते हुए श्रेष्ठता की ऊँचाई को छूने में समर्थ हुए और संघर्ष को अपना साथी बनाकर आगे बढ़े।
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