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शिक्षा का व्यवसायीकरण – Essay on Commercialization of Education
व्यावसायीकरण का करण
शिक्षा का व्यवसायीकरण वर्तमान लोकतांत्रिक भारत के लिए शिक्षा जगत की सबसे बड़ी चुनौती है। समानता को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान में सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गई। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि ऐसा करने से शैक्षिक संतुलन स्थापित होगा। एवं अमीर-गरीब की दुरी निरंतर कम होती जाएगी।
दुर्भाग्य की बात है कि यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकारी विद्यालयों में हालात इतने बुरे हैं कि न तो उसमें पर्याप्त संख्या में अध्यापक और न ही हमारी सरकारें व्यावहारिक स्तर पर इस समस्या को समझने की कोशिश करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या और भी जटिल है। प्राथमिक विद्यालयों में पूरे दिन की पढ़ाई मिड-डे मील योजना की भेंट चढ़ जाता है। भ्रष्टाचार इतना अधिक है कि खेल के सामान तक बेच लिए जाते हैं एक तरह से अराजकता की स्थिति बनी हुई है।
शिक्षा का प्रभाव
छात्रवृत्ति वितरण, लैपटॉप वितरण में भी केवल घोटाला ही होता है। कागजी घोड़े दौड़ाना लोगों का राजनीतिक चरित्र हो गया है। जिन बच्चों का व्यक्तित्व निखारा जाना चाहिए उनको पहले से भी अधिक बिगाड़कर छोड़ दिया जाता है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाना चाहिए। शिक्षा के निजीकरण के कारण ही उच्च शिक्षा में व्यावसायिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कई संस्थान तो ऐसे हैं जो धोखे से रुपये लेते हैं। ऐसी व्यवस्था में छात्र एवं अभिभावक दोनों परेशान हैं।
विद्यालयों की स्थिति
इस व्यवस्था को ठीक करने के लिए सरकारों का हस्तक्षेप बहुत ही अनिवार्य है। व्यावसायीकरण की प्रक्रिया के कारण निजी स्वामित्व का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। पारंपरिक शिक्षा तो लगभग समाप्त होती जा रही है। रोज़गार के लिए प्रशिक्षित करने के लिए खोले गए संस्थानों के बाद भी प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में बेरोजगार बढ़ रहे हैं। भारत में छात्रों की संख्या विश्व के सभी देशों की तुलना में अधिक है।
उपसंहार
हमारे नेताओं में राजनीतिक इच्छा शक्ति की इतनी कमी है कि शिक्षा पर दी जाने वाली सब्सिडी कम होती जा रही है। इसका असर यह पड़ रहा है कि महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों व उच्चस्तरीय संस्थानों की फीस कई गुना अधिक बढ़ती जा रही है। इसके कारण आर्थिक रूप से पिछड़ चुके लोगों की दशा और भी दयनीय होती जा रही है। शिक्षा में व्यावसायीकरण को रोकने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकारी विद्यालयों, विश्वविद्यालयों में न केवल सुविधा उपलब्ध कराई जाए बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित की जाए।
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