1 Best Essay on Bhartiya Samaj Me Nari Ka Sthan | भारतीय समाज में नारी का स्थान

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भारतीय समाज में नारी का स्थान – Bhartiya Samaj Me Nari Ka Sthan

प्राचीन काल में नारियों का योगदान

किसी भी राष्ट्र का समुचित विकास तभी संभव है जब उसके निवासियों में नर-नारी का भेदभाव न किया जाता हो। स्त्रियों को पूर्ण विकास करने और आगे बढ़ने की पूर्ण स्वतंत्रता हो। आज के वैज्ञानिक युग में नारी पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। चिकित्सा, व्यापार, उद्योग, विज्ञान, हस्तकला आदि सभी क्षेत्रों में नारी पुरुषों का बराबरी कर रही है।

प्राचीन युग की गार्गी और मैत्रेयी जैसी नारियों का नाम आज भी श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का आदर्श अनुकरणीय है। जब लक्ष्मण अपने भाई के साथ चौदह वर्ष वन में रहे तो त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर उर्मिला ने अयोध्या में ही रहकर सभी के लिए मंगल कामना की। महाभारत गांधारी और द्रौपदी ने बुद्धिमत्ता और धैर्य का आदर्श रखा परंतु मध्यकाल आते-आते नारी की स्थिति में बहुत अंतर आ गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति में योगदान बदलती परिस्थितियाँ

समाज में उसकी स्थिति बहुत दुर्बल हो गई और वह केवल घर की चारदीवारी में कैद होकर रह गई। उसे अपनी इच्छा से कुछ भी करने की स्वतंत्रता नहीं थी। इन विषम परिस्थितियों में भी अनेक नारियों ने इतिहास में अपना स्थान बनाया; जैसे- पद्मिनी, चाँदबीबी, चेन्नम्मा, रजिया सुलतान, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, किरण बेदी आदि।

स्वतंत्रता संग्राम के समय पहली बार महिलाएँ घर से बाहर निकलीं और उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। यह उनमें आई जागरूकता का ही परिणाम है कि देश के आजाद होने के बाद भी सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, इंदिरा गांधी आदि ने राष्ट्र के उत्थान और उन्नति में अपना योगदान दिया।

आज नारी की दशा सुधारने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। उसे शिक्षा की सुविधाएँ दी जा रही हैं जिससे उसमें जागरूकता आई है और उसकी आत्मनिर्भरता बढ़ी है। वह अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठा रही है। देश के कोने-कोने में फैले अनेक स्वयंसेवी संगठनों ने नारी की स्थिति सुधारने के लिए अथक संघर्ष किया है। इससे भारत के नारी समाज में चेतना का प्रसार हुआ है।

आज की नारी जीवन के हर क्षेत्र में सक्रिय है। वह राजनेता है, अर्थ शास्त्री है, न्यायविद है, उद्योगपति है, डॉक्टर है, इंजीनियर है, वैज्ञानिक है। उसने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी सामर्थ्य और योग्यता सिद्ध कर दी है। वह निरंतर आगे बढ़ रही है। अत्यंत पिछड़े क्षेत्रों में भी भारतीय नारियों ने अपनी मेहनत और लगन से कई आश्चर्यजनक कार्य संपन्न किए हैं। वन लगाकर राजस्थान की शुष्क भूमि को हरा-भरा करने का काम नारियों के ही हाथों हो रहा है।

निष्कर्ष

दशा सुधर जाने के बाद भी नारी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आज भी कुछ स्थानों में उसे पुरुषों से हीन समझा जाता है। उसे प्रताड़ित किया जाता है। घर और समाज में भी नारी को अप्रिय बातें सुननी पड़ती हैं। सरकार और समाज में नारी-उत्थान के प्रयासों को देखकर कहा जा सकता है कि वह निरंतर प्रगति कर रही है, परंतु पश्चिमी जगत की नारियों से अभी भी वह बहुत पीछे है। नारियों को उनकी प्रगति और भी अधिक अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।


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