1 Best Essay on discipline in Hindi | अनुशासन पर निबंध

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अनुशासन : आवश्यकता एवं महत्त्व – अनुशासन पर निबंध | Essay on discipline in Hindi

अनुशासन का अर्थ Anushasan ka Arth

‘अनुशासन’ शब्द का अर्थ है- स्वयं को नियंत्रण में रखकर अधिकारी, नियम एवं व्यवस्था के नियंत्रण में रहकर सही आचरण व व्यवहार करना। प्राचीनकाल में यह शब्द विनय एवं निवेदन के रूप में प्रयोग किया जाता था परंतु वर्तमान में यह अंग्रेज़ी के ‘डिसिप्लिन’ शब्द का हिंदी पर्याय माना जाने लगा। विगत कई वर्षों से इसे इसी रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। स्वयं को अनुशासित न रखना या अनुशासन में रहकर कार्य न करना अनुशासनहीनता का लक्षण है।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन – Vidyarthi Aur Anushasan Par Nibandh

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का विशेष महत्व है। समय पर उठना, समय पर सोना, समय पर विद्यालय पहुँचना एवं कार्य पूरा करना तथा बड़ों का सम्मान करना अनुशासित विद्यार्थी के लक्षण होते हैं। जो विद्यार्थी अनुशासित होते हैं वे विनम्र भी होते हैं। इसके परिणामस्वरूप शांत चित्त से किया गया परिश्रम उनकी सफलता का आधार बन जाता है। इसके विपरीत जो विद्यार्थी लापरवाह होते हैं अथवा मनचाहा कार्य करते हैं उन्हें परीक्षा में भी असफलता मिलती है। ऐसे विद्यार्थियों का भविष्य घोर अंधकार में डूब जाता है। विषम परिस्थितियाँ उन्हें और भी भ्रमित करती हैं।

सार्वजनिक जीवन में अनुशासन का महत्त्व Sarvjanik jiwan me Anushasan

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का विशेष महत्व है। यह अनुशासन पुस्तकों से हटकर कार्यो एवं व्यवहार में दिखाई देता है। समाज में कई ऐसे लोग होते हैं जो अपने समयानुपालन, किसी भी कार्य के प्रति प्रतिबद्धता एवं ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। ऐसे लोग ही समाज व देश के लिए आदर्श होते हैं। जो लोग सार्वजनिक जीवन में अनुशासित होते हैं वे हर तरह के भ्रष्टाचार से मुक्त होते हैं। वे चाहते हैं कि किसी भी रूप में उनके द्वारा ऐसा कार्य न हो कि लोग मानवता को भूलने लगे। ऐसे लोग शांति, कर्तव्य के प्रणेता होते हैं। यह अनुशासन वाक् संयम में भी होना चाहिए।

अनुशासन का महत्त्व Anushasan Ka Mahatav

वाक् संयम न होने का परिणाम भी बुरा ही होता है। उदाहरण के लिए अयोध्या के महाराज दशरथ ने राम को राजा बनाने की केवल बात ही कही थी। यह बात उस समय कही गई थी जब भरत अपने ननिहाल में थे। इसके कारण इतना उपद्रव हुआ कि राम का वनवास हो गया। राजा दशरथ की मृत्यु हो गई और रानियों को वैधव्य मिला। यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि वाणी भी अनुशासित होनी चाहिए। बात करते समय हमें श्रोता के पद, प्रतिष्ठा, गरिमा, बोलने के समय, भाव की विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि-“पहले तोलो फिर बोलो।”

निष्कर्ष

निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि जीवन के हर पल में हमें अनुशासित रहना चाहिए। एक ऐसा परिवेश तैयार करना चाहिए कि हमारे आसपास रहने वाले भी अनुशासन में रहें। ऐसा होने से अनुशासन व्यवस्था की एक श्रृंखला बन जाएगी। यह अनुशासन का एक वैश्विक रूप होगा।


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