Hatim Tai and 2nd Question full Story in Hindi | हातिमताई और दूसरा सवाल

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Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi | हातिमताई और पहला सवाल


Hatim Tai and 2nd Question full Story in Hindi | हातिमताई और दूसरा सवाल

अब हातिम को हुस्नबानू दूसरा सवाल सुनाने लगी (नेकी कर और नदी में डाल) इसका भेद लाओ, कि क्या कारण है और उसमें ऐसी चीज कौन सी है? हातिम ने पूछा-वह कहां रहता है? हुस्नबानू ने कहा – मेरी धाय उसे उतर दिशा में बताती है।

इतना सुन ईश्वर का नाम ले हातिम चल दिया और चलते-चलते एक विकट वन में पहुंचा। वहां एक पेड़ के नीचे बैठ गया । अचानक एक आदमी के रोने की आवाज आई । हातिम ने उससे जाकर पूछा-हे भाई क्यों रो रहा है? वह युवक बोला-मैं एक सौदागर हूं । एक हारस सौदागर की बेटी बहुत ही सुन्दर है, मैं उसके स्वरूप पर न्यौछावर हूं और चाहता हूं कि उसके साथ मेरा विवाह हो । परन्तु वह उसके साथ व्याह करेगी जो उसके तीन सवालों को जवाब लायेगा। और तीन सवाल ये हैं

१. इस शहर के पास एक गुफा की थाह लाओ । २. इस वन में एक शब्द सुनाई देता है कि मैंने वह काम नहीं किया कि जो आज की रात मेरे काम आता । ३. मोहर परीशाह का मोहरा है, वह मेरे लिये ला दो । हातिम ने कहा-अब तू धीरज धर और मुझे उस शहर में लेक चल अच्छा हो, तेरा काम भी मेरे हाथ से पूरा हो जाए । यह सुनते ही वह युवक हातिम को लेकर शहर की ओर चल दिया । जब शहर में दोनों पहुंचा तो हातिम ने उसे सराय में ठहरया और आप उसके द्वार पर पर जाकर बोला- आपकी बेटी केसाथ व्याह करना चाहता हूं।

द्वारपाल ने जाकर हारस सौदागर की बेटी को खबर की तो उसके आज्ञा दी कि उसे मेरे पास ले आओ । निदान हातिम उसके पास पहुंच तो वह परदे के अन्दर से कहने लगी । मेरे साथ व्याह करना चाहता है? हातिम ने कहा-मैं ब्याह करना नहीं चाहता हूं। तेरे सवालों का जवाब देना चाहता हूं और जवाब देकर मैं तेरा मालिक हूं, चाहे जिससे मैं तेरा ब्याह कराऊं । यदि इस बात पर राजी हो तो बोल, तेरी क्या इच्छा है? सौदागर की बच्ची कहने लगी-मैं इस बात को जरूर मानूंगी । तू मेरे सवालों का जवाब ला। – तब हातिम बोला-अपने सवाल बताओ।

वह बोली-मेरा पहला सवाल ये है कि इस शहर के पास एक पहाड़ी गुफा है। तू उसका पता ला दे वह कितनी लम्बी है और उसके भीतर क्या है ? अब हातिम वहां से चलकर उस भयावनी गुफा में घुस गया । एक दिन और रात चलता ही रहा, तो एक मैदान में जा पहुंचा और उसमें एक तालाब दिखाई पड़ा, आगे चला तो एक दीवार ऐसी ऊंची दिखाई दी कि उस दीवार में एक दरवाजा था, हातिम घुस गया तो एक शहर पर नजर पड़ी ।

जब वह उस शहर में पहुंचा तो वहां देवों का मुखिया हातिम को लेकर बादशाह के पास आया और कहने लगा-यह मनुष्य बड़ा परोपकारी है। बादशाह बोले-हे मनुष्य, मेरी बेटी बहुत बहुत दिनों से बीमार है यदि तू ठीक कर दे तो जो मांगेगा वही दंगा । हातिम बोला-आप मुझे दिखाएं, ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा बादशह ने अपनी बेटी दिखाई जो अति कमजोर हो रही थी हातिम ने उसे देखकर कहा कि पन्द्रह दिन में यह ठीक हो जायेगी मोहरे को शर्बत में घिसकर पिलाते रहे तो ठीक हो गई और उसका सब रोग जाता रहा ।

अब तो बादशाह हातिम से बोला-कि तूने मेरे साथ बड़ा उपकार किया है । अब तू जो मांगेगा वही दूंगा । हातिम ने कहा-मैं यह मांगता हूं कि आपके यहां जितने मनुष्य जेल में हैं, वह सबको छोड़ दें। बादशाह ने सब बन्दी को रिहा कर दिए और हातिम को धन माल देकर गुफा के बाहर पहुंचाया । तब हातिम ने थोड़ा धन तो उन्हीं लोगों में बाँट दिया और फिर सारे धन को उस सौदागर बच्चे को दिया, जिसका ब्याह हारस की बेटी से करना था।

सौदागर का लाल हातिम के पैर चूमने लगा । तब हातिम ने समझाया कि-हे भाई, मेरे पैर न चूम, उसी को याद कर, जिसने तुझे बनाया है । इसलिए तू ईश्वर को मत भूल । उसकी कृपा हुई तो तेरा काम जल्दी ही बन जाएगा। सौदागर बच्चे को समझा कर हातिम हारस की बेटी के पास गया। उसने परदे में से पूछा तो हातिम ने गफा का सारा हाल सुना दिया और फिर बोला-तेरे एक सवाल का जवाब तो मैंन ला दिया, अब तेरा दूसरा सवाल क्या है?

तब हारस की बेटी बोली-हर शुक्रवार को इस वन में उसे आवाज आती है-“मैंने वह काम नहीं किया जो आज रात मेरे काम आता” इसका भेद लाकर दे । यह सुनते ही हातिम फिर चल दिया और चलते-चलते एक गांव में पहुंचा । इतने ही में रात हुई वह शब्द सुनाई पड़ा । हातिम शब्द की सीध बांध कर रात में हीं उसी समय चल दिया।

बहुत देर चलने पर एक ऊंचा टीला दिखाई दिया जिस पर पांच सात घुड़सवार जाते हुए दिखाई पड़े । जब हातिम टीले पर पहुंचा तो क्या देखता है घुड़सवार तो वहां कोई नहीं मर्दो की कब्र बनी हुई है । जिन्हें देखकर हातिम ने सोचा कि मेरे विचार में वह आवाज यहीं से आती है। इतने में सवेरा हो गया और हातिम ने वहीं कब्रो से कुछ दूर एक स्थान पर बैठ कर दिन बिताया। रात में उन कब्रों से कई सिद्ध पुरूष निकलें और वह सब अपने-अपने बिछौने बिछाकर बैठ गए।

अब क्या देखा कि उन सबके सामने भोजनों के थाल आए उस मनुष्य के सामने एक कटोरा थुहर के दूध से भरा व रोटियो की जगह पत्थर के टुकड़े और गिलास में पीव भरा रखा था जिसे देखकर उस मनुष्य ने हाथ के साथ कई आवाज लगाई । मैंने वह काम नहीं किया, जो आज की रात मेरे काम आता । अब तो हातिम बहुत प्रसन्न होकर कहने लगा कि बस मेरा काम पूरा हुआ। मगर उस आदमी की दुर्दशा पर बड़ी दया आई ।

हातिम ने उन सिद्धों से पूछा किउस मनुष्य को थुहर का दूध और पत्थर के टुकड़े क्यों दिए? इस पर सिद्ध बोले- कि इसका कारण तो उसी पूछो हम कुछ नहीं जानते । अब तो हातिम तत्काल उठकर उस मनुष्य से, पूछने लगा कि हे भाई तेरी ऐसा दशा क्यों है? इतना सुनते ही वह बोला- मैं ऐसा लोभी था कि दान-पूण्य में किसी भी दी को कभी एक कौड़ी भी नहीं देता था।

फिर एक समय मैं बहुत नौकर चाकरों को साथ ले सौदागर के लिए जा रहा था । इसी जगह पर डाकुओं ने सब माल छीन लिया, हम सबको जान से मार दिया । अब तुमने देख लिया कि मेरे नौकर-चाकर सब मजे कर रहे हैं और मेरी यह दुर्दशा है मैंने वह काम नहीं किया, जो आज रात मेरे काम आता।

यह सुनकर हातिम ने कहा कि-अब कोई उपाय है जिससे तेरा यह दुःख दूर हो ? तू भी आनन्द कर । दीन बोला-मेरा दुःख दूर हो सकता है, लेकिन मेरी सहायता कौन करेगा? भाई मैं चीन का निवासी हूं। मेरे घर के सामने एक पेड़ के नीचे धन गड़ा हुआ है और मेरी सन्तान कौड़ी-कौड़ी को तरस रही रही है । यदि कोई ऐसा परोपकारी हो तो चीन जाकर मेरे बाल-बच्चों को उस धन का पता बता दे और उससे एक भाग बाल-बच्चे अपने काम में लाए ।

तीन भाग ईश्वर की राह में बांट दे, तो मैं भी इन सबकी तरह आनन्द प्राप्त कर सकता हूं। नहीं तो इसी तरह दुःखी रहूंगा। इतना सुन हातिम ने चीन की राह ली और चलते-चलते चीन में पहुंचकर सौदागर के मकान पर पहुंचा और उसके लड़कों को अपने पास बुलाकर कहा- इस हवेली के द्वार पर जो पेड़ है उसके नीचे बहुत सा धन पड़ा है। उसे खोदकर निकालो और उसमें से एक भाग लेकर तुम आनन्द करो और तीन भाग ईश्वर की राह में पुण्य कर दो, जिससे तुम्हारे पिता का दुःख दूर हो ।

लड़कों ने यह सुनकर जमीन को खोदा तो एक बड़ा भारी खजाना निकल आया । लड़के बड़े बड़े प्रसन्न हुए । लड़को से विदा लेकर हातिम वहां से चला और शहर सूरत में जाकर हारस की बेटी को सारा हाल बताया और बोला-मैंने तेरे पहले व दूसरे सवाल का जवाब ला दिया अब तू अपने तीसरे सवाल को भी कह । इतनी सुन चन्द्रमुखी ने कहा-अब माहरू परीशाह का मोहरा लाओ । हातिम चल दिया और एक सराय में आया, फिर माहरूपरीशाह का मुहरा लेने चला जाता है। चलते-चलते हातिम देवों के गांव में पहुंचा तो देवों ने बड़ा सम्मान किया ।

देवों का बादशाह कहने लगा कि-हे प्यारे अच्छे तो हो, बोलो यहां पर कैसे आना हुआ ? तब हातिम बोला-मुझे परीशाह का मुहरा चाहिए । तब बादशाह ने कहा-तुझे माहरूपरीशाह का मुहरा मिलना तो बहुत कठिन है । इसलिए मेरे कहने से इस बात को भूल जाओ, उसे लाने का नाम भीन लो । हातिम बोला-प्रतिज्ञा नहीं टूट सकती । आप दो-चार देव मेरे साथ कर दीजिए ।

जो मुझे वहां तक पहुंचा आवें । बादशाह ने धीरज दिया और तीन चार देवों को आज्ञा दीजाओ इसको माहरूपरीशाह की सीमा पर पहुंचा दो, और फिर जब तक यह न लौट आवे तब तक वहीं बैठे रहो । चार देव हातिम के साथ हो लिए। एक महीने तक चलते-चलते देव माहरूपरीशाह की सीमा पे गए। वहां पहुंचकर हातिम सक कहने लगे कि-अब हम आगे नहीं जा सकते ।

हातिम ने कहा-यह तो मैं भी जानता हूं। ऐसे कहता हुआ आगे बढ़ा और थोड़ी ही दूर चला था कि इतने में एक परीजादों का झुण्ड उसके पास आया और हातिम को देखकर एक ने पूछा -क्यों रे मनुष्य ! तुझे यहां कौन लाया है ? तब हातिम ने कहा-भूख के मारे प्राण होठों पर है । मुझे खाने को दो । भूख को बुझाना बड़ा भारी धर्म हैं । यह सुनकर सब परीजाद हातिम को वस्ती में ले गए और तीन चार दिन तक सम्मान पूर्वक उनकी पहुनाई की ।

जब हातिम की दशा सम्भल गई तो कहने लगा- भाई परीजादों, अब मैं जाऊंगा । मुझे तुम्हारे बादशाह से बहुत जरूरी काम है । यह सुनते ही परिजाद थर्राये और बोले-अरे मनुष्य, तू क्या कहता है? उससे हम तुझे छिपाना चाहते हैं तू उसी के पास जाना चाहता है? अरे पागल वहां तो. न तेरी कुशल हैं न हमारी । इसलिए यहां से लौटकर अपने घर की राह ले । हातिम ने कहा-ऐसा कभी नहीं हो सकता कि मैं यहां से लौट जाऊं ।

माहरूपरीशाह से अवश्य मिलूंगा। यह सुनकर परीजादों ने अपने सरदार का सब हाल सुनाया तो वह कांप गया, और हातिम से आकर बोला-क्यों भाई ! तू आप भी मरना चाहता है, हमें भी मरवायेगा । यह सुनकर हातिम हंस गया, और हातिम से आकर बोला-क्यों भाई ! तू आप भी मरना चाहता है, हमें भी मरवायेगा । यह सुनकर हातिम हंस गया फिर कहने लगा- मैंने ईश्वर की राह में परोपकार पर कमर बांधी है । तभी तो जिनको मारने का काम है उन्हीं को मेरे उपर दया आ जाती है । इसलिए मुझे आशा है कि बादशाह भी मेरे ऊपर दया ही करेंगें ।

मैं उनके पास जरूर जाऊंगा और वहां से जीवित ही आऊंगा । सरदार ने कहा-जब अपने आप वहां जाता है तो हम ही इसे बादशाह के पास भेज दें। यह सुन सब बोल उठे-ठीक ऐसा ही किया जाए । सरदार ने हातिम को बन्दी बना बादशाह को अर्जी लिखी कि सरकार आली, एक आदमी लाल सागर जो आज्ञा हो वही काम किया जाए । नौकर दो दिन में अर्जी लेकर माहरूपरीशाह के दरवार में पहुंचा और अदब के साथ वह अर्जी सामने रख दी । बादशाह ने पढ़ते ही उसी परचे की पीठ पर लिख दिया- उस आदमी को जल्दी यहां भेज दो । नौकर लौटकर आए, सरदार को पर्चा दिया।

अपने बादशाह की आज्ञा पढ़ते ही सरदार ने हातिम को राजा की ओर भेजा । हातिम के पहुंचने से पहले ही शहर में हल्ला हो गया कि आज यहां एक आदमी बन्दी के रूप में आ रहा है। जो लाल समद्र के तट पर से पकड़कर बादशाह के सामने ला रहे है । परीजाद की बेटी ने सुना जिसका नाम हंसना था । सुनते ही अपनी सहेलियों से कहने लगी- एक पकड़ा हुआ आदमी अब शाही दरबार में आ रहा है, चलो देखें तो कैसा है।

हंसना अपनी मां के पास जाकर बोली-अम्मी आज बाग में जाना चाहती हूं। मां ने आज्ञा ने दी । हंसना मां की आज्ञानुसार सहेलियों को साथ लेकर बाग में पहुंच गई। इतने में दस बारह सिपाही दिखाई दिये । सहेली ने उसके पास जाकर पूछा कि तुम कौन हो? कहां से आये हो ? तब सिपाही कहने लगे-हम लाल सागर के चौकीदार हैं । आज रात को यही विश्राम करेंगे और प्रातः काल बादशाह के सामने ले जाएंगे ।

सहेली की नजर हातिम के अन्दर स्वरूप को देख मन में धन्य कहने लगी । बाग में पहुंच हंसना से कहने लगी-प्यारी यह राह में बैठे वही सिपाही है जो उस आदमी को बादशाह के पास ले जा रहे हैं । जब पहर बीता और वह सिपाही गहरी नींद में सो गए तो हंसना और चार सखी वहां पहुंची और हातिम को सोता हुआ उठाकर बाग में ले गयी।

जब सोते हुए हातिम की नींद खुली तो सामने चंद्रमुखी हंसना को देखा और चकित होकर बोला-अरी तू कौन है? मुझे यहां कैसे ले आई? यह सुन हंसना कहने लगी- हे प्यारे तू कुछ सोच न कर, यह बाग परीजाद का है और मैं उसकी बेटी हूं। मेरा नाम हंसना है । मैंने सहेलियों के हाथ उन सिपाहियों के बीच में से तुझे निकलवाया है। अब तेरे ऊपर तन मन से बलिहार हूं, इसलिए तू किसी भी प्रकार की चिन्ता न कर ।

हातिम ने कहा-तू मेरे काम में बाधा डाल रही है । मुझे जहां से लाई वहां पहुंचा दे । हंसना बोली-प्यारे तुझे क्या काम करना है, मुझे बता । हातिम कहने लगा- मुझे माहरूपरीशाह का मोहरा लाना है । अब तो एकदम हंसना कंपकंपा उठी और आंखों में आंसू भरकर कहने लगी-अरे मेरे हृदय को दुखाने वाले, तेरे में आंसू भरकर कहने लगी-अरे तेरे हृदय को दुखाने वाले, तेरे सिर पर तो वैसे ही मृत्यु नाच रही । मैंने जहां से मंगवाया है यदि वहां पहुंचा दूं तो कल सबेरे ही बादशाह की आज्ञा से कत्ल हो जाएगा।

जिस पर तू हमारे बादशाह का मोहरा चाहता है, भला तेरे जीवन का क्या ठिकाना है । यह सुनकर हातिम ने कहाहे परी । यदि वह मोहरा मुझे नहीं मिला तो यहीं पर मर जाऊंगा । मैं अपनी जीवित अपने घर नहीं जा सकता। हंसना । हंसना बोली कि-अच्छा तेरा यह प्रण है तो बुद्धि से काम ले । तू मेरे पास विश्राम कर, जिससे तेरे इस कठिन काम में सहायता कर सकूँ।

यह सूनकर हातिम बड़ा ही प्रसन्न हुआ और हंसना के साथ उस बाग में आनन्द करने लगा । वहां प्रातः काल होने पर सिपाही जागे तो अपने बीच में बन्दी मनुष्य को न पाकर बड़े घबराए और सब हाल दरबार में जाकर कहा । जिसे सुनकर बादशाह के हृदय में बड़ी बेकली हुई और मंत्री को आज्ञा दी- फौजी सिपाहियों को चारों ओर भेजकर जल्दी ही तलाश करोओ । बादशाह की आज्ञानुसार बहुत से सिपाही तो खोज लगाते फिर रहे थे और हातिम हंसना परी के साथ बाग के पास पहुंचा । हातिम को देखकर तत्काल दरबार में आया ।

बादशाह से कहा- वह आदमी को मीना परीजाद की बेटी हंसना ने अपने बाग में छिपा रखा है। इतना सुनते ही बादशाह क्रोध में आया और सिपाहियों को हुक्म दियाजाओ उसको मनुष्य सहित दरबार में लाओ। यह सुनते ही सिपाही टूट पड़े और मीना परीजाद को गिरफ्तार कर लिया।

उधर बीस-पच्चीस सिपाही बाग में धर झपटे और हंसना को हातिम सहित पकड़ लिया और दरबार को ले चले । इधर मीना को सहित दरबार में लाए । जब मीना, हंसना और हातिम तीनों को ले जाकर राजा के सामने खड़ी किया तो बादशाह की आंखे लाल हो गई और मीना की ओर मुंह करके कहने लगे-क्यों, तूने अपनी बेटी के द्वारा इस मनुष्य को बाग में छिपाया है? ठहर तुझे सूली पर चढ़ाया जाएगा। मीना यह सुनकर थरथरा गई और शपथ खाकर कहने लगी-हे सरकार, इसमें हमारा कोई अपराह नहीं है ।

यह काम तो इस चाण्डाल लड़की ही का है । इसने मेरे कुल को कलंक लगा दिया । बादशाह से ऐसा कह अपनी बेटी के मुंह पर दोनों हाथ मारकर बोली-अरे कुल कलकिनी तूने आज सब परीजादों को नीचा दिखा दिया । ऐसा देख बादशाह को विश्वास हो गया कि इसमें मीना का कोई अपराध नहीं।

उसे छोड़ दिया गया । इतने में एक दर्द भरी आवाज आई, जिसे सुनकर बादशाह उदास हो गए। तब हातिम ने कहा-यह कौन दर्द के मारे रो रहा है? जिसकी आवाज को सुनकर आप पर उदासी छा गई । यह सुनकर बादशाह ने उत्तर दिया- तू पूछाकर क्या करेगा । यह आवाज मेरे लड़के की है, जिसकी आंखों में साल भर से बड़ा दर्द होता है । हातिम बोला-शहजादे की आंखों को मैं पांच मिनट में अच्छा कर सकता हूं। तनिक भी दर्द नही रहेंगा। यह सुनते ही बादशाह ने कहा- यदि तू मेरे बेटे की आंखो को अच्छा कर देगा तो तेरी जान बख्शी जाएगी और मुंह मांगा इनाम मिलेगा।

हातिम ने कहा-इस बात की प्रतिज्ञा कीजिए । तब बादशाह हातिम को शहजादे के पास ले गए। तब हातिम ने अपनी पगड़ी खोलकर मुहरा तीन बार पानी में घिस-घिसकर उसकी आंखों में लगाया । जिसके लगते ही सारा दर्द खत्म हो गया और शहजादा हंसकर कहने लगा-अब मेरी आंखों में तनिक भी दर्द नहीं, परन्तु दिखाई नही देता । तब बादशाह कहने लगा-हे प्यारे, तूने दर्द दूर कर दिया तो दीखने की भी कोई दवा कर । तू बड़ा भारी बैद्य है ।

हातिम कहने लगा-अंधकार (जुल्मात) में एक पेड़ है, जिसका नाम नुरतेज है । उसके पानी की दो-तीन बूंद मिले तो शहजादे की आंखों में डालते ही ज्यों की ज्यों ज्योति आ जायेगी। यह सुनते ही बादशाह दरबार में आकर बोले-परीजादों तुम, में कोई ऐसा भी है जो नुरतेज पेड़ का पानी ला दे । यह सुन सब थर्रा गए । तब हंसना परी कहने लगी- व्याकुल क्यों होते हो । यदि आप जान बख्शे और इस मनुष्य को मुझे दें तो उसे पेड़ का पानी मैं लाऊंगी । बादशाह बोला- अच्छा हंसना जो तूने मांगा वह मैंने दिया । तू जा और उस पेड़ का पानी ला । अपने कई सखियों को साथ ले हंसना वहां से उड़ी

और उड़ते-उड़ते 40 दिन में अंधकार में पहुंच गई । वहां जाकर देखा कि नुरतेज पेड़ इतना ऊंचा है जिसकी चोटी ऊपर आकाश तक पहुँची है और उससे पानी टपक रहा है। संयोगवश उस सराय मे वहां कोई रहने वाला उस समय नहीं था । हंसना ने निर्भय हो नीचे हो नीचे उतर कर एक शीशी उसके पानी से भरी और तत्काल उड़कर वापस आई और बादशाह के सामने वह पानी भरी शीशी रख दी । वह कहने लगे-हे प्यारे अब तू मेरे बेटे की आंख बना दे ।

हातिम ने शहजादे के पास जा उस शीशी के पानी में एक बार मुहरा घिसा और उसकी आंखो में लगाया, ऊपर से पट्टी बांध दी, जो आठ दिन पीछे खोली । पट्टी खोलते ही शहजादे की आंखें अच्छी हो गई और अपने माता-पिता के दर्शन करके हातिम के चरणों में गिर पड़ा । हातिम ने शहजादे को छाती से लगा लिया। अब तो सारे शहर में आनन्द छा गया वह खुशी के नाच रंग होने लगे।

दरबार में आकर माहरूपरीशाह हातिम से बोले-हे प्यारे तूने मेरा वह काम किया है, जिसे कोई न कर सका । अब तू मांग क्या मांगता है? जो मांगेगा, वह मिलेगा । हातिम ने कहा-अपन मुहरा मुझे दीजिए । बादशाह बोले-अच्छा मैं जान गया । यह मुहरा हारस की बेटी ने मंगाया है । यह लें, तुझे देता हूँ | माहरूपरीशाह का मुहरा हातिम ने जब अपनी भूजा पर बांधा तो सारे संसार का जमीन का गांड़ा हुआ धन दिखाई देने लगा । जब हातिम बादशाह से आज्ञा मांगकर कुछ दिन हंसना के पास रहा और उसके साथ भोग विलास किया ।

फिर वहां से विदा होकर चल दिया और देवों के पास आया। जब देवों ने हातिम को देखा तो खुशी का ठिकाना न रहा। फिर हातिम को साथ लेकर अपने बादशाह के पास लाए । देवों का बादशाह इसे देखकर प्रेमपूर्वक मिला और उसके पुरुषार्थ की बड़ाई करने लगा। कुछ दिन में हारस की बेटी के द्वार पर पहुंचा । द्वारपाल ने सूचना दी कि वह आदमी जो आपके सवालों का जवाब लेने गया था, द्वार पर खड़ा है। हारस की बेटी बोली-तुम माहरूंपरीशाह का मोहरा ले आए।

यह सुन हातिम ने मुहरा उसके हाथ में दे दिया तो वह प्रसन्न हो कहने लगी- हे वीर युवक तूने तीनों सवालों का जवाब दिया । अब बोल तेरी क्या आज्ञा ? तू जो कहेगा वही करूंगी। हातिम बोला-मेरा इच्छा बदल नही सकती, जो, पहले थी वही अब है। सज्जनों ! अब क्या था कि हातिम ने सरााय में से सौदागर बच्चा को बुलाया और सौदागर बच्चे के साथ मृगनयनी का ब्याह करा दिया । पति व पत्नी बड़े आनन्द को प्राप्त हुए ।

अब हातिम दुःख भोगता एक नदी के तीर पर आ पहुंचा तो क्या देखता है कि राजाओं का सा महल खड़ा हुआ है, उस पर लिखा पाया कि नेकी कर और नदी में डाल। हातिम उसे पढ़कर बड़ा खुश हुआ। इतने ही में उस मकान के भीतर से कई दास और दसी निकले, जो हातिम को बड़े प्रेम पूर्वक उसमें ले गए। भीतर जाकर क्या देखा कि एक बुड्ढ़ा सौ साल की उम्र का एक सिंहासन पर विराजमान है ।

वह उठकर हातिम से मिला और बड़े सत्कार से भोजन कराया । यह भोजन साधारण नहीं था। जब हातिम भोजन कर चुका तब पूछने लगा-बाबा इस द्वारा पर (नेकी कर और नदी में डाल) किस लिए लिखा है? यह सुनकर बुड्ढा कहने लगा- मैं पहले भारी लुटेरा था और मुसाफिरों को लूटा करता था । परन्तु दिन में मेहनत करके कुछ पैसा कमाता था और शाम को दो रोटी घी में डूबा ऊपर शक्कर रखकर इस नदी में डाल देता था फिर कहता था कि यह काम मैंने परमेश्वर की राह में किया है।

जय हम काम करते-करते बहुत दिन हुए तो मैं बीमार पड़ा और मेरा जीवन एक दिन इस शरीर से निकल गया । यमराज के दूत नरक मे ले गए। तब तक धर्मराज के दूत वहां पहुंच गए और कहने लगे- इसे हम नरक में नही भटकने देंगे। क्योकि यह स्वर्ग के योग्य है । मूझे दूत स्वर्ग में ले गए। इतने ही में धर्मराज बोले-इसकी वृद्धावस्था अभी बहुत है, इसे यहां पर क्यों ले आए हो? इसी नाम का दूसरा प्राणी है, जाओ उसे ले आओ। यह सुनते ही दो युवक मुझे पहुंचा गए और कह गए कि हम वही दो रोटी है ।

जिन्हें तू भगवान की राह में डालता था । अब मुझे होश आया । हे प्रभु, आगे मैं ऐसा कोई कर्म नहीं करूंगा जो तुझे अप्रिय हो । फिर रात को स्वप्न में देखा कि एक अति शोभायमान पुरुष कहता है हे भक्त मुझे भगवान ने आज्ञा दी है एक सौ दीनार प्रतिदिन तुझे दूं। जिसमें से कुछ तू अपने लिए खर्च कर और कुछ ईश्वर की राह मे दे।

मेरी नींद भंग हुई तो मैंने मकान बनवाया और उसके द्वार पर लिख दिया कि भलाई कर और नदी में छोड़ । सौ दीनार अब भी मुझे प्रतिदिन मिल जाते हैं जिनको मैं हारे थके दीन मुसाफिरों को बांटता रहता हूँ। सौ वर्ष तो इस मकान को बने हो गए, अब सौ वर्ष मेरी अवस्था में और शेष है। यह सुन हातिम वहां तीन दिन ठहरा । चौथे दिन विदा हो शाहाबाद की ओर चल दिया और ढाई साल व पन्द्रह दिन बाद शाहाबाद की सराय मुनीरशामी के पास आया ।

जिसे देखकर मुनीरशामी बड़े प्रेम से मिला । यह समाचार हुस्नबानू ने पाया तो हातिम को आदर के साथ बुलाकर पूछने लगी-युवक बता मेरे दूसरे सवाल का जवाब लाया है ? यह सुनकर हातिम ने बूढ़े मनुष्य की सारी कथा हुस्नबानू को सूनाई । सुनकर बड़ी खुशी हुई और वह हातिम की बड़ाई करने लगी। हातिम हुस्नबान से बोला-तेरा तीसरा सवाल क्या है । तब वह बोली-कोई मनुष्य जंगल में खड़ा होकर कह रहा है कि किसी के साथ बद न कर, जैसा करेगा वैसा पायेगा। इस बात की खोज निकाल कर ला ।


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