Hatim Tai and 3rd Question full Story in Hindi | हातिमताई और तीसरा सवाल

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Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi
| हातिमताई और पहला सवाल
Hatim Tai and 2nd Question full Story in Hindi | हातिमताई और दूसरा सवाल


Hatim Tai and 3rd Question full Story in Hindi | हातिमताई और तीसरा सवाल

का जवाब तलाश करके लाना ईश्वर का नाम लेकर हातिम फिर चल दिया और क्या देखा कि एक पहाड़ आकाश को छू रहा है और एक सुन्दर युवक रो-रोकर पुकारता है-हे प्यारी जल्दी आ, तेरे बिरह में अब धीरज नहीं है-हे प्यारी आ, तेरे बिरह में अब धीरज नहीं है । हातिम को बड़ी दया आई और पूछा-तू कौन है? युवक बोला-तुम क्यों पूछते हो ? सैकड़ों मेरे दुःख को सुन-सुनकर चले गए ।

हातिम बोला-हे जवान, तू अपना दुःख प्रकट कर मैं उसे दूर करने का प्रयल करूंगा । इतनी बात सुनकर वह जवान बोला-मैं सौदागर का बच्चा हूँ । एक समय मैं अपने काफिले के साथ देश को जा रहा था कि मैं अकेले उस काफिले से बिछड़ गया और अनेक दुःख उठाता हुआ यहां आ गया। यहां एक अति सुन्दर स्त्री जो परी थी, उस परी पर मेरी नजर पड़ी जिसे देखते ही मैं जमीन पर गिर पड़ा। थोड़ी देर बाद होश आया तो क्या देखता हूँ कि वह मेरे सिर को अपनी जांघ पर धरे बैठी है और अपने आंचल से मेरे चेहरे की धूल झाड़ रही है ।

उसका पूर्ण प्रेम अपनी ओर देखकर मैंने पूछा कि-हे प्यारी, तू अकेली यहां फिरती है। वह बोली-हे प्यारे मैं एक सुन्दर मनुष्य की खोज में बहुत दिन से फिरती थी, सो तू मिल गया । ईश्वर ने मेरी अभिलाशा परी कर दी। अब तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और वह भी आनन्द के मारे फूली नही समाई, यहीं पर दोनों बिहार करने लगे।

एक दिन मैंने कहा-हम इस वन के बजाए, किसी नगर में जा बसें । मेरी इस बात को सुनकर वह बोली-कि अच्छी बात है। मुझे तू जहां ले चलेगा मैं वहीं चलूंगी । परन्तु मैं अपने मां-बाप से मिल आऊं । मैंने कहा-हे प्रिये, कब लौटकर आयेंगी? उसने कहा-मेरे आने जाने में केवल सात दिन लगेंगे, पर एक बात कहे जाती हूं, जो तू मेरे आने से पहले यहां से कहीं चला गया तो जन्म भर पछतायेगा । हे भाई-वह यह कह कर चली गई और आज तक नहीं आई।

अब तू बोल मैं कैसे धीरज धरू ? हाय, मैं कहीं उसे ढूंढने को भी नहीं जा सकता, क्योंकि वह कहीं पीछे से यहां आ पहुंची तो न जाने क्या करेगी ? देख भाई सात वर्ष से भोजन के भी दर्शन नहीं किए । पेड़ के पत्तों से अपनी भूख मिटाता हूं और झरने के पानी को पीता हूं। यह सुनकर हातिम सोचने लगा कि यह तो बड़ा भारी दुखिया है। पहले मुझे इसी का दुःख मिटाना है । हातिम ने कहा-उसका नाम जानते हो तो मुझे बताओ ।

वह बोला-उसका नाम अलगन परी है और एक दिन उसने यों भी कहा था कि मेरा कुटुम्बी अलका पर्वत पर रहते हैं । इतना पता पा करके हातिम प्रसन्न हो बोला-हे जवान, अब तू संतोष कर, मैं अलका पर्वत पर जा रहा हूं सो उनसे मिलकर आऊंगा। ऐसा कह हातिम भगवान का नाम लेकर एक ओर चल पड़ा और कुछ दिनों में दूसरे पहाड़ पर जा पहुंचा। वहां एक बहुत ही रमणीक सुन्दर मकान मिला ।

उस मकान में घुसा और साफ स्थान में लेट गया । लेटते ही नींद ने दबा लिया। इतने में चार परी वहां आई और हातिम को जगाकर यूँ पूछने लगी-हे मनुष्य, तू यहाँ क्यों आया है । हातिम ने जवाब दिया-मुझे यहां पर मेरा भगवान लाया है और अलगन परी को देखने अलका पर्वत पर जा रहा हूं।

परियों ने कहा कि-अलगन परी का तू क्या करेगा? हातिम ने कहा वह एक युवक को वचन दे आई है कि सात दिन में तुझसे आकर मिलूंगी । परन्तु सात वर्ष हो गये, उसने अपनी सूरत नहीं दिखाई, वह उसके बिरह में दिन-रात रोता है और ऐसा ज्ञात होता है कि मर न जाये। तो परियों, मैं उसे समझाने जा रहा हूं। चारों परियां कहने लगी-ओ बावले मनुष्य, अलगन परी तो अलका पर्वत की शहजादी है, वह किसी को ऐसा वचन क्यों देगी? तू मूर्ख है तो जो अलका पर्वत पर उसे देखने जा रहा है।

यह सुनकर हातिम बोला-अब चाहे जो हो, पर जाए बिना नहीं मानूंगा । उसकी अटूट प्रतिज्ञा को देख वह साथ ही चल दी । जब चलते-चलते सात दिन बीत गए तो स्थान पर पहुंचा। वहां परियां कहने लगी- हमारी सरहद यहीं तक है, अब आगे नहीं जा सकती। अलका पर्वत का यही रास्ता है, तभी तू कई दिनों में पहुंचेगा। ऐसा कहकर परी तो लौट गई और हातिम अकेला आगे को बढ़ा तो रोने की आवाज सुनाई पड़ी तो क्या देखा कि अति सुन्दर मनुष्य रो रहा है । हातिम ने कहा- अरे जवान तू क्यों एसा विलाप कर रहा है ? यह सुनकर दुखिया बोला-हे प्यारे मैं सिपाही हूं। अपने घर से नौकरी पर जा रहा था।

मार्ग में एक शोभायमान बाग मिला । उसे देखते ही मेरी इच्छा हुई कि इसकी सैर करूंगा । परियों ने मुझे रोक लिया और मुझे एक मकान में ले जाकर मीठी-मीठी बातें करने लगी । हे प्यारे-वह मसखरे जादूगर वहां आ गया और मुझे देख क्रोध के मारे लाल पड़ गया । कहने लगा यह कौन है ? उसकी बेटी बोली-पिताजी मेरा अपराध कुछ नही, यह खुद ही यहां आया है ।

यह सुनकर उसका क्रोध कुछ कम हुआ। तब बेटी की धाय कहने लगी, आपकी बेटी ब्याह योग्य हो गई है। युवक बड़ा ही सुन्दर और सुशील है । इसलिए मेरी समझ से इसी के साथ बेटी का ब्याह कर देना चाहिए। धाय की बात सुनकर मसखरे जादूगर ने मेरे स्वरूप को ध्यान से देखा और अपनी बेटी से कहने लगा- बोल बेटी, त क्या चाहती है ? बेटी प्रसन्न हो बोली-पिता जी मैंने तो इसी को अपना पति मान लिया है ।

आपकी मर्जी, ब्याह करें या न करें। मसखरे जादूगर ने कहा-बहुत बात है और फिर मझसे बोला कि-हे युवक, तू मेरे तीन बचनों को पूरा कर दे, मेरी बेटी तुझे मिल सकती है अन्यथा नहीं। मैंने पूछा-वह कौन से वचन हैं ? तब उसने वह वचन सुनाये।

१. एक जोड़ा परीरूप जानवर का मेरे लिए ला दे । २. लाल सांप का मुहरा ला दे। ३. गरमागर्म घी से भरी कड़ाही में नहा ले । तब मैं इसका ब्याह तेरे साथ करूंगा । अरे भाई मैंने यह समझा था कि इस नवयौवन चन्द्रमुखी का विवाह अभी मेरे साथ हुआ जाता है । लेकिन इन वचनों को सुनकर मेरा धीरज टूट गया और उन्हें पूरा करने का बहाना कर वहां से भाग आया ।

अब मुझे इस वन में रोते दो साल हो गए । हातिम ने कहा-अच्छा, मैं तेरे भी दुःख को दूर करूगा । क्योकि ईश्वर की राह में इन हाथों से जितने भी अधिक जनों के दुःख मिटे, उतने ही अच्छे हैं । तू धीरज धर, मैं तेरे बदले उन वचनों को पूरा करने के लिए जा रहा हूं। यह सुनकर उस युवक को कुछ सन्तोष हुआ ।

हातिम वहां से चलकर परिरूप जानवर के जंगल में पहुंचा और परीरूप जानवर से मिला। तो वे हातिम को देख बड़े खुश हुए और बोले-हमने तो तुमको बड़ा दयालु और परोपकारी सुना है । अब तू उस काम को बता, जिसके लिए तू यहां आया है । तब हातिम कहने लगा-मुझे तुम्हारा एक जोड़ा चाहिए।

क्योंकि एक युवक मसखरे जादूगर की बेटी पर मोहित है, उसके बिरह में बेचैन है । परन्तु मसखरे ने उससे कहा कि तू मेरे तीन बचनों को पूरा कर दे, तो मैं तेरे साथ में अपनी बेटी का विवाह करूंगा । उन वचनों में एक वचन यह भी है कि परीरूप जानवर का जोड़ा ला दे।

इस बात को सुनकर परीरूप जानवर कहने लगे-हे हातिम, हम तेरा काम अवश्य करेंगे। हातिम से ऐसे कह-वह जानवर आपस में सलाह करने लगे-हे भाई, इसे तो अपने बच्चों का एक जोड़ा अवश्य दे दो । क्योंकि यह बड़ी आशा करके हमारे पास आया है । इतना सुनकर एक परीरूप कहने लगा-ईश्वर ने मुझे दो बच्चे दिए हैं, सो एक जोड़ा मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ हातिम को देता हूं। निदान उस जोड़े को पाकर हातिम को आनन्द की सीमा न रही और उन जानवरों के गुण को गाता चल दिया । चन्द दिन में मसखरे जादूगर के शहर में पहुंच गया।

परन्तु पहले उस दुखिया युवक से मिला और कुशल क्षेम पूछकर बोला-हे भाई परीरूप जानवर का जोड़ा तो ले आया हूँ, तू इसे ले जाकर मसखरे जादूगर को दे । परीरूप जानवर को देखकर वह बहुत हर्षित हुआ और हातिम को छाती से लगा लिया । तब हातिम ने आपनी यात्रा का सारा हाल उस जवान को सुनाया।

फिर कहने लगा-हे जवान, जब इस जोड़े को लेकर मसखरे जादूगर को देना, परन्तु यों न कहना कि इसे कौन लाया है । अपना ही लाया हुआ बताना । इतनी सुन जोड़े सुन जोड़े को लेकर युवक चल दिया और मसखरे से बोला-लो परीरूप जानवर का जोड़ा मैं ले अया? जादूगर बड़ा खुश हुआ और पूछा-इसे तू कहां से ले आया? तो उसने सब हाल सुना दिया । सुनकर जादूगर कहने लगा- अच्छा तू मेरे दूसरे बचनों को पूरा कर अर्थात् लाल सांप का मोहरा ला दे ।

जवान ने पूछा-लाल सांप रहता कहा है? तो उसने कहा-वह कोकनाभ के लाल वन में रहता है। यह सुनते ही जवान चला और हातिम से कहने लगा- अब उसने लाल सांप का मोहरा

मंगाया है, जो लाल वन में रहता है । बस फिर क्या था. हातिम ने फिर ईश्वर का नाम ले कोकनाभ की ओर कच कर दिया और चलते-चले कई दिन पीछे लाल वन में पहुंचा । वहां पर जिस समय सांपों को मनुष्य की गन्ध आई, एकदम हातिम की ओर आए।

लेकिन हातिम ऐसा देखकर एकदम एक स्थान पर बैठ गया और बादशाह का दिया हुआ डण्डा लिया, उसे अपने आप मोड़ लिया । सांप हातिम को चारों ओर से घेरकर बैठ गए और सारी रात बैठे रहे, फिर सुबह होने पर अपने घरों को चले गए और हातिम आगे चल दिया । इतने में लाल सांप को हातिम की गन्ध आई तो क्रोध के मारे फुफकार मारने लगा । उस सांप का फन चट्टानों के समान और धड़ ऐसा था जैसे तुण्ड का पेड़ होता है ।

रीछ की बेटी वाले मुहरे ने हातिम पर उसके फुफकार का कुछ प्रभाव न पड़ने दिया । जब सांप की नजर हातिम पर पड़ी तो क्रोध के मारे जहर उगलने लगी, इसी प्रकार सारी रात बीत गई।

हातिम ज्यों का त्यों जमा रहा । लाल सांप को बड़ा सोच हुआ कि यह तो कोई महा बलवान मालूम होता है । कहीं ऐसा न हो कि मैं इसके हाथ से समाप्त हो जाऊं । ऐसा सोच मुहरे को उगल अपनी बाबी में चला गया । हातिम उस मुहरे के पास पहुंचा और मुहरे को अपनी पगड़ी में बांध लिया और लौट कर थोड़े दिन में उस युवक के निकट आ पहुंचा और कहने लगा- हे भाई, मैं लाल सांप का मोहरा भी ले आया ।

तू इसे मसखरे जादूगर को दे और फिर उसके दूसरे वचन को भी पूरा कर । युवक मुहरे को लेकर मसखरे जादूगर के पास गया । मुहरे को उसके सामने रखकर कहने लगा-मैंने तुम्हारे दो वचन पूरे कर दिए, अब तीसरे वचन को पूरा करने के लिए तैयार हूं।

मसखरा लाल सांप के मुहरे को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ, फिर बोला-अब तू मेरे तीसरे वचन को पूरा कर । ऐसा कह नौकरों को आज्ञा दी कि तत्काल ही एक घी का कढ़ाव में घी डालकर चूल्हे पर रख दिया और नीचे आग लगा दी । जब घी अच्छी तरह खौलने लग गया तो जादूगर कहने लगा-ये प्यारे, अब तू इस कढ़ाव में कूद और घी में नहा ।

यह सुनकर जवान की छाती थर्राने लगा । तब हातिम के पास जा कर बोला-भाई अब गर्म घी तैयार है । उसमें किस प्रकार स्नान करके जीवित बच सकता हूं । तब हातिम ने उसके हाथ में रीछ की नेटी वाला मुहरा दे दिया । फिर समझाया-इसे मुंह में रखकर निर्भय हो कढ़ाव में कूद जाना। ईश्वर की दया से जीवित ही निकलेगा ।

तब वह मुहरा को मुंह में रखकर पहुंचा और ईश्वर का नाम लेकर कढ़ाव में कूद पड़ा, तो क्या देखा कि वो बिल्कुल ठण्डा पानी के समान है । अब तो उसने खूब घी मल-मल कर नहाया और फिर बाहर निकलकर कहने लगा- मैंने तुम्हारा तीसरा वचन भी पूरा किया । अब तो अपनी प्रतिज्ञा का पालन करो।

जादूगर ने बड़ी खुशी से लड़की की शादी कर वचन पूरा किया । फिर वह युवक हातिम के चरणों पर गिर पड़ा । अब हातिम ने युवक से अपना मुहरा लिया और विदा होकर आगे चला । चलते-चलते उसे एक ऐसा विशाल पहाड़ दिखाई दिया जिसकी चोटी तक पक्षी भी पेर न मार सके । तब ही हातिम को एक गुफा दिखाई दी।

हातिम गुफा में घुस गया। थोड़ी दूर पहुंचकर क्या देखा कि एक बहुत ही स्मणीक लम्बा चौड़ा मैदान है । आगे चलकर एक मकान के द्वार पर पहुंचा तो बहुत से परीजादों ने घेर लिया और कहने लगे-क्यों रे मनुष्य तू यहां कैसे आया? और तुझे इस जगह का राह किसने बताई ? हातिम बोला-भाईयों पहले तुम यह बातओ कि इस पर्वत का नाम क्या है, और यह मकान व बाग किसका है । परीजादों ने बताया-भाई इस पर्वत का नाम अलका है और अलगन परी का यह बाग और मकान है । बसन्त ऋतु की बहार के लिए दो एक दिन में अलगन परी भी यहां आएगी आर फिर चालीस दिन तक यहाँ उपवास करेगी।

बावले तू यहां से भाग जा, नहीं तो बेमौत मारा जाएगा। हातिम बोला-अरे भाईयों मरने का तो मझे डर नहीं । मैं तो यही चाहता हूं कि परमहित में मेरे प्राण भी चले जाए तो ईश्वर का अद्वितीय प्यारा बन सकू। यह सुनकर परीजादे उस पर ऐसे दयालु हुए कि एक स्थान में ले जाकर उसे अनेक प्रकार के उत्तम-उत्तम भोजन कराये ओर दो-तीन दिन वहीं: बड़े आदर सत्कार से रखा।

अचानक ही अलगन परी की सवारी शहर से बहार की ओर आ गई । सब परीजादे उसे आगे लेने को दौड़े और बड़े ही स्वागत के साथ बाग में ले आए । अलगन परी एक मनमोहन सिंहासन पर, जो बाग के बीच बिछा हुआ था, बड़ी शान-बान के साथ बैठ गई। उधर हातिम के पास तीन चार परीजादे पहुंचे और कहने लगे-हे मनुष्य अब शहजादी आ गई और चालीस दिन तक यहीं ठहरेगी । बोल तेरे प्राण हम किस प्रकार बचावें और कैसे हम जीवित रहें यह सुनके हातिम समझाने लगा-तुम पकड़कर मुझे शहजादी के पास ले चलो।

उससे कह देना कि मनुष्य बरजोरी से यहां आया है सो हमने पकड़ रखा हैं । यह बात उन गरीजादों की समझ में आ गई। जिस समय अलगन परी को देखा तो दोनों एक दूसरे पर मोहित हो मूर्छित हो गए । परी तो सिंहासन पर गिर पड़ी और हातिम जमीन पर गिर पड़ा। लेकिन थोड़ी देर में सावधान हो गया ।

कुछ देर पीछे परी भी सावधान हुई और परीजादों से बोली-मनुष्य मेरे बाग में कैसे आया ? परीजादे विनय पूर्वकह कहने लगे-शहजादी साहिबा, यह मनुष्य बरजोरी यहां आया है । हमने बहुतेरा भगाया, मगर नहीं भागा, यहां तक कि मरने को तैयार है । अब जो आपकी आज्ञा हो सो करें ।

यह सुनकर अलगन परी हातिम से कहने लगी-हे जवान तू कहां से आया है ? यहां तेरा क्या काम है और तेरा नाम क्या है ? हातिम ने उत्तर दिया-मैं मुल्क यमन का रहने वाला शहजादा हातिम हूं।

इतना सुनते ही अलगन परी सिंहासन से उतर हातिम के सामने पर खड़ी हो गई और बोली-तुम देश यमन के शहजादे हातिम हो तो मैं आपकी दासी हूं। हातिम ने कहा-यह तुम्हारी महान कृपा है । अब परी ने पूछा-कहिए यहां किसलिए आए तब हातिम ने कहा-हे शहजादी ! मैं शाहाबाद से अहमर वन को जा रहा था, राह में एक पेड़ के नीचे तुम्हारे बिरह में एक युवक को रोते देखा । मैंने उससे रोने का कारण पूछा तो वह बोला-अलगन परी सात दिन में आने को कह गई थी। आज सात वर्ष हो गए, परन्तु सूरत नहीं दिखाई । मैंने कहा-तू उसे खोजता क्यों नहीं।

रोकर बोला कि वह कह गई कि जब तक मैं नहीं आऊं तब तक कहीं न जाना, नहीं तो पछतायेगा। इसलिए मैं यहीं पड़ा रहता हूं । हे शहजादी उसने ७ वर्ष से तेरे बिरह में अन्न के दर्शन नहीं किए, उसी पेड़ के पत्तों को खाकर जीता है । तुमसे उसकी सच्ची प्रीत देख कर मैंने अपना काम छोड़ दिया और कठिन दुःखों का सामना करता हुआ तुम्हारे पास आया हूं और कठिन दुःखों का सामना करता हुआ तुम्हारे पासा आया हूं और जब तक तुमको उससे न मिला दूं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा।

हातिम के इस प्रण को देखकर अलगन परी को यही कहना पड़ा-हे हातिम, मैं तेरा कहना मानकर अभी परीजादों के द्वारा उस दुखिया को यहां बुलाती हूं। अलगन परी ने चार परीजादों को पता लगाकर आज्ञा दी, कि जाओ जल्दी ही उस दुखिया मनुष्य को मेरे पास लाओ।

परी की आज्ञा पाते ही परीजादे चले और थोड़ी ही देर में उस पेड़ के नीचे आ गए । सब समाचार सुनकर कहने लगे-अब तू हमारे साथ जल्दी ही चल दे। युवक परीजादों के साथ चल दिया । परीजादों ने एक ही दिन में उस युवक को ले जाकर अलगन परी के सामने खड़ा किया। अब अलगन परी बड़े ही प्रेम से उसे अपने पास बैठाकर कहने लगी-अब भली-भांति तू देख ले। अपनी बहुत दिनों से बिछड़ी हुई प्यारी को देखकर युवक को मूर्छा आ गई, तब परी ने उसके मुंह पर गुलाब जल छिड़का और उसे होश में लाई ।

अब तो शहजादी की आज्ञा पा अनेक के नाच-रंग होने लगे। लेकिन हातिम के मन में यही लगन लगी थी कि जल्दी से जल्दी इस जवान का विवाह परी के साथ हो जाये । कहने लगा-हे अलगन परी, जब तक तुम इस बिरह के मारे युवक के साथ अपना विवाह न करोगी, तब तक यक नाच-रंग मुझे और इसे नहीं सुहायेगा । शहजादी बोली-अच्छा हातिम मैं अपने माता-पिता से अभी जाकर कहती हूं और तुम्हारी अभिलाषा पूरी हो जाती है, तुम यहाँ बैठो।

ऐसा कहकर अलगन परी अपने माता-पिता से कहने । लगी-मेरे योग्य वर एक मनुष्य अति सुन्दर अपने ही बाग में आया है, मैं उस पर तन-मन से न्यौछावर हूं। इसलिए आप मेरा विवाह उसके साथ कर दो । नहीं तो में आत्मघात कर प्राण गवां दूंगी । बेटी की इस बात को सुनकर माता-पिता बोले-हम तो मनुष्य के साथ तेरा विवाह नहीं करना चाहते थे। परन्तु तेरी यही इच्छा है तो हमें भी कोई इन्कार नहीं ।

फिर माता-पिता ने बड़े आदर के साथ बेटी का विवाह उस युवक के साथ कर दिया तो युवक ने अपना सिर हातिम के चरणों में रखा फिर अलगन परी कहने लगी-हे हातिम, अब तुम कहां जाओगे? हातिम ने कहा-मैं यहां से अहमर के वन को जाऊंगा । तब परी ने कई परीजादों को आज्ञा दी-जाओ इन्हें अहमर के वन में छोड़ आओ और जब तक इनका काम पूरा न हो तब तक यहां न आना। – परीजादे हातिम को लेकर चल दिये और थोड़ी देर में अहमर के वन में आ गए ।

वहां पहुंचकर हातिम को आवाज सुनाई दी (किसी के साथ बुराई न कर, जो करेगी वही पावेगा) तो परीजादों के साथ चल दिया । थोड़ी ही दूर चलकर गया तो क्या देखा कि एक बुड्ढा मनुष्य पिंजरे में बन्द है । हातिम ने उससे पूछा-क्यों भाई तू इस वाक्य का बार-बार उच्चारण क्यों करता है? वह बोला-पहले तू अपना नाम प्रकट कर तब बताऊंगा । हातिम ने कहा-मेरा नाम हातिम है।

तब तो वह बूढ़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा-तूने बहुत दिनों में मेरी सुध ली । देख मेरा नाम अहमद सौदागर है। मुझे अपने कर्त्तव्य को कहने में लाज आती है । इसलिए इतना ही कहूंगा कि एक मनुष्य जिसने मेरे साथ बड़ी भलाई की, उसके साथ मैंने बड़ी बुराई की । वह मनुष्य भेष बदल कर मेरे पास आया और बोला-मेरे पास एक ऐसा सुरमा है जिसको लगाने से जमीन में गड़ा धन दिखने लगता है। यह सुनकर अपनी आंखों में सुरमा लगाने की उसने प्रार्थना की है।

वह मनुष्य मुझे यहां ले आया और मेरी दोनों आंखो में सुरमा लगा दिया जिसके लगते ही मैं अन्धा हो गया । वह कहने लगा-यह तेरी बुराई का परिणाम है। तू चाहता है कि सुझता हो जाऊं तो इस पिंजड़े में बैठे और यह पुकारे-किसी के साथ बुराई न कर जो करेगा वो बुरा फल पाएगा । तब मैंने कहा-मेरी आंखो की औषधि क्या है, कहां मिलेगी? तब उसने उत्तर दिया-कि सत्य पुरुष हातिम नाम का आएगा। वह नुररेज घास लाकर उसका पानी तेरी आँखों में डालेगा, सुझता हो जायेगा । सो हे हातिम तभी से मैं बैठा इस वाक्य को पुकारता हूं।

हातिम ने उस अन्धे को धीरज बन्धाया और पीरजादों से कहने लगा-अब तुम नुररेज घास लाओ। परीजादे नुररेज घास ल उस बूड्ढ़े के पास आ गए । फिर हातिम ने उस घास का पानी आंखों में निचोरा तो दोनों आंखें खुल गई। अब तो बुड्ढ़ा हातिम के चरणों में गिर गया और धन्य-धन्य पुकारने लगा।

अब हातिम परीजादों से बोला-भाई तुम भी जाओ और अलगन परी से मेरा कुशल कह देना और हातिम शाहाबाद की ओर चल दिया । शाहाबाद में आकर मुनीरशामी को साथ लेकर लगी-कहो मेरे तीसरे सवाल का जवाब लाए? यह सुन हातिम ने अपनी यात्रा का सारा हाल सुनाया। जिससे हुस्नबानू अति प्रसन्न हुई । हातिम ने हुस्नबानू से पूछा-तेरा चौथा सवाल क्या है ? वह बोली-(सत्यवादी सदा सुखी) इसका जवाब लाकर दें।


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