1 Best Essay on Health and Exercise in Hindi | स्वास्थ्य और व्यायाम पर निबंध

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Essay on Health and Exercise in Hindi (700 Words)

प्रस्तावना

प्रायः भौतिक जगत में भौतिक सोच को अधिक महत्त्व दिया जाता है। भौतिकता के चकाचौंध में गरीबी, को सबसे बड़ा अभिशाप कहा जाता है, किन्तु मेरे विचार से जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है अस्वस्थ शरीर और परतन्त्र असम्भावित जीवन। अस्वस्थ शरीर अपने, समाज और देश के लिए बोझ होता है। नित्य घुट-घुट कर मरता है। दूसरों की बात तो अलग अपने लोग पास नहीं पटकते। सामाजिक अपमान, उपहास घर से बाहर तक उसे थोड़ी देर के लिए भी चैन से नहीं रहने देता है।

यद्यपि गरीबी अभिशाप है किन्तु स्वस्थ शरीर के रहते गरीबी के अभिशाप से मुक्त होने का मनुष्य प्रयास करता है, कार्य करने का उत्साह होता है किन्तु अस्वस्थ शरीर मिट्टी के लोथड़े से भी घिनौना होता है। अस्वस्थ शरीर की कल्पना मात्र से मन सिहर उठता है। अतः स्वास्थ्य के लिए सर्वथा प्रयास करना अपेक्षित है। व्यायाम करणीय है।

राष्ट्र की धरोहर मानव

किसी राष्ट्र की उन्नति मनुष्य की क्षमता पर निर्भर है जिस राष्ट्र के मानव जितने स्वस्थ होगें, कार्य करने की बलवती इच्छा और क्षमता होगी, वह राष्ट्र उतना ही उन्नत होगा। मानव शरीर केवल सुख भोगने के लिए ही नहीं, अपितु राष्ट्र को भी मनुष्य से अपेक्षाएँ हैं। जिस देश के मनुष्य जितने कर्मठ होंगे, उत्साही होंगे वही राष्ट्र उन्नत ही नहीं, अपने स्वाभिमान को सुरक्षित रख सकता है, अन्यथा दूसरों के हाथ उस देश की मर्यादा पर हाथ डालने के लिए बढ़ते रहते हैं। आँखें उठती रहती हैं।

अतः स्वस्थ मनुष्य ही देश की मर्यादा को सुरक्षित रख सकते हैं। अस्वस्थ शरीर राष्ट्र के लिए कलंक होता है। मात्र भौतिक सम्पदा हासिल करने से कोई सुख का अनुभव नहीं कर सकता है जब तक उसके पास शक्ति न हो। इसलिए राष्ट्र कवि दिनकर जी ने कहा है

क्षमा शोभती उसी भुजंग की
जिसके पास गरल हो।

अतः कवि वर की इस पंक्ति से प्रेरणा मिलती है कि भौतिक सुख की आपा-धापी में समय निकाल नियमित व्यायाम अपेक्षित है, नहीं तो ढुल-मुल अस्वस्थ शरीर के होने पर किसी क्रूर भेड़िये की जिस दिन आँखें उठ-जाएंगी, सब कुछ छीनकर ले जाएगा। इसलिए राष्ट्र को भीड़ नहीं, स्फूर्तिवान शक्तिशाली मनुष्य चाहिए।

पुरुषार्थ और स्वास्थ्य

जीवन के सम्पूर्ण कार्य पुरुषार्थ-धर्म-अर्थ-काम मोक्ष सबका मूल आधार स्वस्थ शरीर है। लुंज-पुंज शरीर से मनुष्य किसी भी श्रेत्र में उन्नति नहीं कर सकता। ऐसा शरीर तो प्रभु-स्मरण से भी वंचित रह जाता है। स्वास्थ्य के महत्त्व को समझने वाले ऋषियों ने भी प्रभु-भक्ति से भी अधिक स्वास्थ्य को अधिक महत्त्व दिया है क्योंकि इसके अभाव में तो कोई कार्य सम्भव नहीं है। स्वामी विवेकानन्द का स्वास्थ्य ही था, स्फूर्ति ही थी, आत्मविश्वास ही था जो विदेश में जाकर ललकारने में समर्थ हुए।

आत्म-विश्वास, सफुर्ति पौरुष तभी साथ देते हैं जब स्वयं बलिष्ठ हों। छत्र-पति अफ़जल खाँ को दबोचने में समर्थ हुए, स्वामी दयानन्द अपने विरोधियों के सामने नहीं झुके, राणा प्रताप जंगल में रहते हुए हर चुनौती से लोहा लेते रहे। यह सब स्वस्थ शरीर का आत्मबल ही था। यदि मनुष्य में इच्छा शक्ति है, उत्साह है विवेक है, किन्तु शरीर साथ नहीं देता तो सब व्यर्थ है। अतः स्वस्थ शरीर का अपना प्रभाव है। इसलिए मनीषियों ने कहा है कि

उद्यमेन हिसिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविंशति मुखे मृगाः।।

स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम अपेक्षित

मनुष्य को चाहिए कि जिस स्वास्थ्य पर और स्वस्थ शरीर पर जीवन की, समाज की, राष्ट्र की अनेक अपेक्षायें हैं तो शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखने के दैनिक नियमित व्यायाम अपेक्षित हैं। ऐसा न करने पर शरीर आलसी. निरुत्साही हो जाता है। अपने दूर भागते हैं, पराए आँख दिखाते हैं: बात-बात पर खिल्ली उड़ाते हैं। जो लोग नियमित व्यायाम करते हैं. वे निरोग रहते हैं। शरीर में स्फूर्ति रहती है। पाचन-शक्ति बढ़ती है,। मन प्रसन्न रहता है।

समाज में आदर मिलता है, प्रभुत्व बना रहता है। प्रसन्न रहने पर लोग आत्मीय सम्बन्ध बनाते हैं। लक्ष्मी अक्षुण्ण रहती है। शत्रु आँख नहीं उठाते हैं। मस्तिष्क में आए विचार सकारात्मक होते हैं। निराशा को कोई स्थान नहीं मिलता है। जीवन सर्वथा आनन्दित रहता है। अस्वस्थ शरीर होने पर मन में दृढ़ इच्छा शक्ति साथ छोड़ जाती है। बिना बुलाए अनेक आपदाएँ घेर लेती हैं। अतः स्वस्थ शरीर के लिए नियमित व्यायाम अपेक्षित है।

उपसंहार

अन्ततः भौतिक सुख की कामना करते हुए मनुष्य को समय निकाल कर शरीर को स्वस्थ बनाए रखने का प्रयास करते हुए अपेक्षित व्यायाम करते रहना चाहिए। स्वस्थ मस्तिष्क का विकास स्वस्थ शरीर में ही सम्भव है-ऐसा प्रबुद्धों का मानना है। स्वस्थ शरीर होने पर भौतिक, दैहिक, दैविक, सामाजिक सभी सुखों की अनुभूति सम्भव है।


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