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Essay on Horse in Hindi | घोड़ा पर निबंध
हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Horse in Hindi पर 3 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं।
10 lines Essay on Horse in Hindi
- घोड़ा एक पालतू जानवर है।
- वह संसार के सभी भागों में पाया जाता है। लेकिन अरेबियन घोड़े बहुत प्रसिद्ध है।
- घोड़ा (Horse) विशाल और मजबूत जानवर होता है।
- इसके चार लंबे पैर, दो आंखें, दो कान, और एक झब्बेदार पूछ होती है। इसकी गर्दन पर लंबे बाल होते हैं।
- इसके खूर मजबूत और फटा हुआ नहीं होता है
- घोड़ा विभिन्न रंगों और आकारों के होते हैं। कुछ उजले कुछ काले कुछ भूरे और कुछ चितकबरे रंग के होते हैं।
- कुछ घोड़े बड़े होते हैं और कुछ छोटे।
- घोड़ा हरा चना, जई और भूसा खाता है लेकिन हरा चना बहुत पसंद करता है।
- घोड़ा लाभदायक जानवर है। यह सवारी दौड़ और सामान ढोने के काम में आता है।
- युद्ध में भी काम आता है। घोड़ा वास्तव में वफादार आज्ञाकारी और चालाक जानवर होता है।
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Essay on Horse in Hindi (200 Words)
घोडा एक चौपाया जानवर है । घोड़े कई रंगों में पाए जाते है। घोडा हरी घास, भूसा, चारा तथा चना खाना पसंद करता है। घोडा प्राय: संसार के प्रत्येक भाग में पाया जाता है। घोडे की गरदन लम्बी होती है। इसके चार मजबूत पैर होते हैं। इसकी पँछ भी रोमिल होती है। इसके दो लम्बे-लम्बे कान होते हैं।
इसकी दो चमकीली और बड़ी-बड़ी आँखें होती हैं। यह पानी में तैर सकता है। घोड़ा बहुत तेज दौड़ सकता है। इसका शरीर बड़ा एवं भारी होता है । यह सवारी तथा शिकार करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह बहुत बार जानवर होता है। घोड़े की प्रवृत्ति लड़ाकू होती है। दूल्हा घोडी पर चढ़कर शादी रचाने जाता है, या दूसरे शब्दों में यह कहें कि शादी के शुभ अवसर पर दूल्हे राजा को घोड़ी पर सवार कराया जाता है।
इसके बछड़ा या बछड़ी बड़े प्यारे लगते हैं। घोड़े का खुर पैना होता है। घोड़े कभी-कभी हिनहिनाते भी हैं। घोड़े तांगा तथा गाड़ी खींचने में भी प्रयोग में लाए जाते हैं। घोड़ा अपने मालिक का बड़ा वफादार होता है। घोरा अपने पीठ पर भारी वजन ढो सकता है। घोरा घुड़साल में रखा जाता है।
Essay on Horse in Hindi (600 Words)
आरम्भ
मेरा आकार-विस्तार जानना चाहते हैं, रूप-रंग जानना चाहते हैं, तो मार भवभूति के ‘उत्तररामचरित’ के चौथे अंक में ब्रह्मचारियों द्वारा यह वर्णन देखें
पश्चात्य वहति विपुलं तच्च घूनोत्यजत्रं
दीर्घग्रीवः स भवति खुरास्तस्य चत्वार एव ।
शष्पाण्यत्ति प्रकिरति शकृत्पिण्डकानाम्रमात्रान
किण्वाख्यादैजति स पुनर्दूरमेहि यामः।
अर्थात्
पीछे बड़ी पृष्ठ है, जिर’ यह निरन्ता हिलाता है। वह लम्बी गर्दनवाला है। खुर उसके बार ही हैं। वह कोमल धास खाता है। आम के आकार की लीद (पुरीषपिण्ड गिराता है। …………।
इतिहास
किन्तु, इतना ही मेरा पूरा परिय कदापि नहीं है। वैदिककाल से आज तक मैंने अभ्यता के विकास में कितना योग दिया है, शायद आप नहीं जानते। वैदिक यज्ञों में अश्वमेघ की महिमा कौन नहीं जानता? जब-जब किसी सम्राट ने विश्व-विजयी बनन मोडक स्वप्न देखा तब उसने मेरे ही ललाट पट्ट पर यह दर्पवाक्य लिखा जा मेरा प्रभुत्व नहीं स्वीकारते, वे ही इस अश्व का पथ रोक सकते हैं।” मैं उनकी विजय का प्रतीक बना। मुझ निर्बन्ध के मार्ग में भले ही अनगिन वेदही पुत्र, ब्रभुवाहन मिले, फिर भी मैं कभी निराश-हताश नहीं हुआ और न मालूम कितने मर्यादापरुषोत्तमों एवं धर्मराजों के मस्तकों को मैंने विजय-तिलक से विभूषित किया।
मैं भयंकर वज्र गिरानेवाले देवराज इन्द्र का वाहन ‘उच्चैःश्रवा’ अर्थात् ऊँचा सुननेवाला लगभग बहरा हूँ, क्योंकि मैं हर युद्ध में इन्द्र को लेकर गया और इन्द्र के वज्र की आवाज ने मेरे कान के पर्दे फाड़ दिये। खैर, मै सुनु या न सुन, पर लगाम का हल्के-से-हल्का इशारा तो भाँप ही लेता हूँ!
पर्याय
मैं मध्यकाल की चतुर्वाहिनी-गजदल, हयदल, रथदल और पैदल – में एक अतिशक्त रणसहायक के रूप में काम करता रहा, राष्ट्रों की सुरक्षा का भार अपने सबल कन्धों पर वहन करता रहा। मेरी पीठ संयुक्ताओं की मनःकामनाओं का सम्पूर्ति करती रही। कभी शेरशाह की उर्वर कल्पना ने लोगों की रंग-बिरंगी भातियों को राज्य के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचाने के लिए मेरी पीठ का सहारा लिया, कभी मैं चेतक नाम धारण कर महाराणा प्रताप का सर्वोत्तम सखा बनकर राष्ट्र को स्वतत्र करने की साध लिये दुर्लध्य पर्वतों को रौंदता रहा, कभी झाँसी का राी लक्ष्मीबाई तथा कुँवरसिंह का अनुचर बनकर जालिम गोरों के दाँत खट्टे करता रहा।
राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता, उसकी स्वतंत्रता-रक्षा एवं जीवन स्तर वृद्धि में मैं सर्वाधिक सहायक रहा हूँ, इसलिए घोटक हूँ (घुट परिवर्त्तने); . त्वरा अर्थात् गतिशीलता मे अप्था रखता हूँ, इसलिए तुरग, तुरंग, तुरंगम हूँ (तुरेण त्वरया गच्छति); मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ, इसलिए अश्व हूँ (अशू व्याप्तौ); मै भारवहन करता हूँ, इसलिए वाह हूँ, मैं सेना को पहुँचाता हूँ, इसलिए सप्ति हूँ (सपति सेनायां समवेति, षप् समवाये। इस तरह मेरे अनेक नामों में मेरे काम की महिमा छिपी है।
महत्त्व
सप्तसप्ति (सात घोड़ोंवाला) सूरज जब मेरे-जैसे सात घोडों द्वारा खींचे गये रथ पर निकलता है, तब समग्र संसार से अंधकार का दैत्य भागता है। सूरज की सुहावनी किरणों का उपहार पाकर पक्षिगण सरगम अलापते हैं, लता-पादप अपने प्रसूनों से इत्र का छिड़काव करते हैं, नर-नारी अपने कर्म-पथ पर उल्लास का राग अलापते बढ़ निकलते हैं।
जब मेरी लगाम स्वयं नटनागर श्रीकृष्ण धर्म-क्षेत्र कुरुक्षेत्र में. थाम लेते थ, तो अक्षौहिणी-महारथियों से घिरे हुए भी अर्जुन का मन विचलित नहीं होता था। जिस पीताम्बर की पीताम्बरो के एक स्पर्श के लिए कितनी रुक्मिणियों और सत्यभामाओं के प्राण मचलते रहे, वही पीताम्बर अपनी पीताम्बरी में चने के दाने और दूब लिये मुझे खिलाते थे और उसी पीताम्बरी से मेरे गीले मुखड़े को पोंछते थे। भला, मेरे सौभाग्य से कौन ईर्ष्या नहीं करेगा? मैं युद्धभूमि का अडिग वीर उच्चैःश्रवा हूँ. – गीता में ऐसा कहकर श्रीकष्ण ने मेरे प्रति अगाध प्रेम का प्रदर्शन किया है, जिसके लिए मेरा रोम-रोम उनका आभारी है।
आज भी जब भारत के राष्ट्रपति की सवारी निकलती है, तब वे सिर वातानुकूलित कीमती कार पर सवार नहीं होते, वरन् मेरे द्वारा खींचे गये रथ पर, होते हैं। इस वैज्ञानिक युग में बड़े-बड़े यंत्रों की शक्ति मेरी शक्ति से ही मापी जाती ‘हार्स पॉवर आप जानते हैं? क्या आपने कभी ‘एलिफेण्ट पॉवर’ भी सना है मैं श्यामकर्ण हूँ। शुभदर्शन ही नहीं, शुभकर्मा भी हूँ। कठोपनिषद् इन्द्रियों को घोडा बतलाती है (इन्द्रियाणि हयानाहुः) और मन को लगाम (मनः प्रग्रहमेव च)। ऋषियों की जो मर्जी ! मुझे तो आप अपना एक विश्वासी सेवक ही समझिए।
उपसंहार
अतः आप मुझे केवल तुच्छ पशु ही न समझें। मेरा अतीत जितना गौरवमय था, वर्तमान उतना ही महिमामय है; भविष्य कैसा रहेगा, इसकी भविष्यवाणी मैं कैसे करूँ?
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जीवनी पढ़ें अंग्रेजी भाषा में – Bollywoodbiofacts
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