10+ Best Chhote Bachcho Ki Kahani | बच्चों की कहानियां

Chhote Bachcho Ki Kahani के इस आर्टिकल में आप सभी का बहुत – बहुत स्वागत है। इस आर्टिकल में आपको छोटे बच्चो के लिए शिक्षाप्रद नैतिक कहानियाँ (Moral stories in Hindi) संग्रह मिलेगा।


नहले पे दहला – Chhote Bachcho Ki Kahani

किसी जंगल में एक ऊँट और एक गीदड़ पास-पास रहते थे। पास रहने में उनमें दोस्ती हो गई। वे दोनों साथ खाते, साथ खेलते और साथ ही घूमते-फिरते थे। कभी कोई किसी को अकेला न छोड़ता था।

एक साल वर्षा न होने के कारण जंगल में चारे की कमी हो गई। उस गीदड़ से मालूम हुआ कि नदी के उस पार का जंगल बड़ा हरा भरा है, वहाँ सभी खेत-अनाज और शाकभाजी से भरे पड़े हैं।

दूसरे गीदड़ की बात सुनकर वह गीदड़ बड़ा खुश हुआ ! उसने आकर ऊँट से कहा-‘नदी पार हरे-भरे खेत हैं, अगर चल सको तो वहाँ खूब पेट भर भोजन पा सकेंगे।

ऊँट बोला-‘यह कौन-सी बड़ी बात है ? तुम मेरी पीट पर सवार हो जाना, बड़ी आसानी से नदी पार हो चलेंगे। जरा रात हो जाने दो, रात हो जाने पर जब खेत वाले सो जायें, तब चलेंगे और खा-पीकर फिर लौट आयेंगे।

रात हो जाने पर दोनों दोस्त चले। ऊँट ने गीदड़ को अपनी पीठ पर बिठाकर नदी-पार कर दिया। वे दोनों एक मक्का के खेत में जा पहुँचे, उसी खेत में फूट भी थे, गीदड़ ने फूट-ककड़ी खाकर झट अपना पेट भर लिया, वह ऊँट से बोला-‘मुझे हूक आ रही है ।

ऊँट ने कहा-‘भाई, थोड़ी देर रुक जाओ। मैं बहुत भूखा था, मेरा पेट अभी नहीं भरा, पेट भर जाने दो।

ऊँट के कहने पर गीदड़ थोड़ी देर के लिए रुक गया, मगर वह अधिक न रुक सका, ऊँट अभी खा ही रहा था। कि गीदड़ हू-हू चिल्लाने लगा।

गीदड़ की चिल्लाहट सुनकर किसान जाग पड़ा, गीदड़ तो उसको आता देख झट भाग निकला, किसान ने ऊँट को डण्डे बरसाना शुरू कर दिया और मारकर भगा दिया। जब.ऊँट नदी पर पहुँचा तो गीदड़ से वह नाराज होकर बोला-‘तुमने मेरी बात न मानकर मेरा तो कचूमर ही निकलवा दिया, अब मैं तुम्हारे साथ कभी न आऊँगा।’

ऊँट की पीठ पर सवार होकर गीदड़ नदी पार अपने घर आ गया तो उसने ऊँट से खुशामद करके मना लिया। दूसरे दिन रात हो जाने पर वह फिर उसी खेत में जा पहुँचे।

गीदड़ का पेट भर गया तो पहले दिन की तरह फिर ऊँट से कहने लगा-‘मुझे हूक उठती है।’ । ऊँट के कहने पर थोड़ी देर तो वह रुका रहा, मगर फिर एक साथ चिल्ला उठा! किसान ने जागने पर तो ऊँट की खूब मरम्मत कर दी। वह भागकर नदी पर पहुँचा। – गीदड़ नदी पर पहले से ही पहुँच गया था। जाते ही ऊँट ने गीदड़ को अपने पीठ पर चढ़ा लिया। वह बीच धार में पहुँच गया तो बोला-‘भाई गीदड़, मुझे लुटलुटी आ रही है।

गीदड़ बहुतेरा रोया-चिल्लाया की नदी पार पहुँचकर ही लोटना, मगर ऊँट न माना। गीदड़ को लिए हुए वह नदी में लोट गया, पीठ के नीचे दबकर गीदड़ कीचड़ में में गड़ गया और थोड़ी देर में ही उसकी जान निकल गई।

इस बच्चों की कहानी से सिख : गीदड़ ने ऊँट के साथ जैसा किया था, वैसा ही उसे भी फल मिला।

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लालच बुरी बला है – बच्चों की कहानियां

एक मजदूर जब वृद्ध हो गया और मजदूरी करने की उसमें सामर्थ्य न रही, तो पेट भरने के लिए उसने कोई रोजगार करना चाहा। मजदूर गरीब तो था ही, रोजगार के लिए उसके पास रुपया कहाँ था? बगैर रुपये रोजगार कैसे हो सकता था?

खूब सोच-विचार के बाद एक-सौ रुपये कर्ज लेकर उसने कुछ मुर्गियाँ खरीद ली। मुर्गियाँ जो अण्डे देती, उन अण्डों को बेचकर वह अपने बाल-बच्चों का पालन करने लगा।

उन मुर्गियों में उसे एक ऐसी मुर्गी मिल गई, जो रोज एक सोने का अण्डा देती थी। मजदूर रोज सोने का अण्डा पाकर बड़ा खुश था। वह उस अण्डे को रोज बेच देता और बड़े आराम के साथ बाल-बच्चों को गुजर करता था।

एक दिन उसने सोचा, मुर्गी रोज सोने का एक ही अण्डा देती है, एक अण्डा को बेचकर मैं अपने बाल-बच्चों का पेट ही पाल सकता हूँ, उससे ज्यादा पैसा नहीं मिल सकता । अगर एक साथ अधिक सोने के अण्डे मिल जाये तो उन्हें पाकर मैं अमीर बन सकता हूँ।

ऐसा सोच-विचार कर वह ज्यादा अण्डे पाने के लिए उतावला हो गया, उसी उतावलेपन में उसने अधिक अण्डे पाने की गरज से उस मुर्गी का पेट चीर डाला। पेट चीरने पर ज्यादा अंडे मिलना तो दूर रहा, उसे.एक अंड भी-जो मुर्गी रोजाना देती थी-न मिला, बल्कि वह मुर्गी भी हाथ से जाती रहीं। . मुर्गी के मर जाने पर वह मजदूर बहुत दुःखी हुआ और अपनी समझ को कोसने लगा। वह मन में कहने लगा-‘यदि मैं लालच न करता तो मुर्गी क्यों मेरे हाथ से जाती?’

इस बच्चों की कहानी से सिख : ज्यादा लालच बुरी बला है।

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दुष्ट की संगति का फल – Bachcho Ki Kahani

बहुत दिनों पूर्व की बात है उज्जैनी के पास पीपल का एक बहुत बड़ा वृक्ष था। वृक्ष के ऊपर एक कौवा और एक हंस दोनों पड़ोसी की भाँति रहा करते थे। दोनों की प्रकृति में बड़ा अन्तर था। हंस तो अच्छे विचारों का था, किन्तु कौवा बड़ा दुष्ट था।

एक दिन दोपहर का समय था। सूर्य तप रहा था। एक शिकारी थका-मांदा पीपल के वृक्ष के नीचे पहुंचा। धनुष-बाण को बगल में रखकर उसकी ठंडी छाया में वह गहरी नींद सो गया। सोए हुए शिकारी के चेहरे पर पीपल के पत्तों से छन आती हुई सूर्य की धूप पड रही थी। हंस ने देखा तो उसके मन में दया आई। उसने सोचा कि शिकारी थका हुआ और गहरी नींद में है।

कहीं ऐसा न हो कि चेहरे पर धूप पड़ने के कारण उसकी नींद में बाधा आए। अतः उसने पीपल के उन पत्तों के बीच में अपना पंख फैला दिया जिनसे छनकर धूप शिकारी के चेहरे पर ना पड़े। कौवा हंस के इस सज्जनतापूर्ण कार्य को देखकर जल-भून गया। और उसने नीचे जाकर शिकारी के चेहरे पर बीट कर दी। इ

से शिकारी की नींद तो खुल ही गई, वह क्रोधित भी हो उठा। कौवा तो चेहरे पर बीट करके उड़कर दूसरे वृक्ष पर चला गया किन्तु हंस अपने स्थान पर ही विद्यमान था। उसे शिकारी से डरकर भागने की क्या आवश्यकता थी? उसने तो शिकारी कि प्रति अच्छा व्यवहार किया था और उसे सुख पहुँचाने का प्रयत्न किया था।

शिकारी ने क्रोधित होकर जब वृक्ष के ऊपर देखा तो उसे डाल पर बैठा हुआ हंस दिखाई पड़ा। उसने सोचा कि हो-न-हो इस हंस ने ही मेरे चेहरे पर बीट की है। उसने धनुष को उठाया और उस पर बाण चढ़ाकर हंस की ओर चला दिया। बाण हंस की छाती में जा धंसा और वह भूमि पर गिर पड़ा और छटपटा कर मर गया। हंस की मृत्यु दुष्ट प्रकृति के कौवे के साथ रहने के ही कारण हुई।

इस बच्चों की कहानी से सिख : जो लोग दुष्टों की संगत में रहते हैं वे हंस की भाँति अपने प्रणों से हाथ धोते हैं।

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Bachcho Ki Kahani

बहुत दिनों पहले की बात है, एक बार पक्षियों के राजा गरुड़ समुद्रतट पर घूमने के लिए गए। पक्षियों को जब यह बात पता चली तो वे झुंड-के-झुंड गरुड़ का – दर्शन करने के लिए समुद्र पर पहुँचने लगे। एक वृक्ष के ऊपर एक कोवा और एक बटेर दोनों साथ-साथ रहते थे। कौवे के कानों में जब गरूड़ के आगमन की खबर पड़ी तो वह भी उनके दर्शन के लिए चल पड़ा।

बटेर भी गरूर का दर्शन करना चाहता था, अतः वह भी कौवे के पीछे-पीछे चल पड़ा। कौवे को मार्ग में एक ग्वालिन दिखाई पड़ी। वह अपने सिर के ऊपर दही की मटकी रखे हुए थी। दही को देखकर कौवे के मुँह में पानी वह मटकी पर जा बैठा और उसके भीतर उतरकर चोंच से दही खाने लगा।

बटेर ने भी कौवे का अनुकरण किया। वह भी दही खाने के लिए मटकी के भीतर जा पहुँचा। ग्वालिन ने अपने घर पहुँचकर जब मटकी को नीचे उतारकर रखा तो कौवा उड़कर भाग गया। किन्तु बटेर भागा नहीं क्योंकि वह अपने को निरपराध समझता था । ग्वालिन के पकड़ में कौवा तो नहीं आया, किन्तु उसने बटेर को पकड़ लिया। उसने बटेर को गले को इतने जोर से दबाया कि बटेर के प्राण निकल गए।


परछाईं पर किसका हक – bachchon ki kahani

एक व्यक्ति ने यात्रा पर जाने के लिए गधा किराए पर लिया और उस पर सामान

आदि लादकर यात्रा पर निकल पड़ा। गधे का मालिक गधे को हांकता-हांकता उसके पीछे चल रहा था। चलते-चलते दोपहर हो गई तो यात्री ने कुछ देर आराम करने की सोची।

मगर आसपास कोई भी छायादार वक्ष नहीं था। अत: यात्री ने गधे की परछाईं में आराम करने का फैसला किया। इस पर गधे के मालिक ने सख्त एतराज उठाया और बोला कि गधे की परछाई में मैं आराम करूँगा।

यात्री बोला-“क्यों भाई? तुम क्यों आराम करोगे? गधे की छाया में आराम करने का अधिकार तो मेरा है क्योंकि मैंने तुम्हें गधे का किराया दिया है।”

“तुमने सिर्फ गधे पर सामान ढोने का किराया दिया है, उसकी परछाईं में आराम करने का नहीं।”

इस प्रकार उन दोनों में बहस होने लगी। जब गधे ने देखा कि वे दोनों आपस में ही उलझे हुए हैं तो नज़र बचाकर वह वहां से चलता बना और निकट के जंगल में जाकर आजादी की सांस ली। अपनी पीठ पर लदा सामान फेंक दिया और मज़े से हरी-हरी घास और मुलायम पत्तियां खाकर आनन्द मनाने लगा।


बारहसिंघे के सींग – chhote kahani

एक मोटा-ताजा बारहसिंघा एक जलाशय पर पानी पीने गया। जलाशय का जल शांत तथा स्वच्छ था, अतः उसे उसमें अपनी परछाईं नज़र आई। अपने सींगों की परछाईं पानी में देखते ही वह उनकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गया।

फिर अचानक उसकी नज़र अपने पैरों पर पड़ी। उसकी टांगें पतली तथा सूखी थीं। उन्हें देखकर बारहसिंघा उदास हो गया और सोचने लगा कि कैसी सूखी-सूखी और बदसूरत टांगें हैं।

तभी उसे कुछ आहट सुनाई दी। उसने पलटकर देखा तो एक शेर को अपनी घात में बैठा पाया। वह प्राण बचाने के लिए तेजी से भाग खड़ा हुआ।

उसके पवि पतले और बदसूरत ज़रूर थे, मगर थे मजबूत। कुछ ही देर में बारहसिंघा एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया। उसने चैन की सांस ली और एक झाड़ी मे घुसकर पत्ते खाने लगा।

कुछ देर बाद आहट फिर सुनाई दी तो देखा कि उसे ढूंढता हुआ शेर वहाँ आ पहुंचा था। बारहसिंघे ने फिर भागना चाहा मगर इस बार उसके खूबसूरत सींग झाड़ियों में फंस गए। लाख यत्न करने पर भी वह अपने सींगों को न छुड़ा सका।

उसने सोचा, इन खूबसूरत सींगों की वजह से ही आज मैं मारा जाऊँगा। इससे तो अच्छे मेरे बदसूरत पैर ही हैं।

तभी शेर ने उसे दबोच लिया।


चतुर मेमना – छोटे बच्चों की कहानियां

सुबह होते ही बकरी ने जंगल की ओर जाने की तैयारी की। जाते समय उसने अपने बच्चे से कहा-बेटा, किवाड़ बन्द कर लो। देखो, कहीं किवाड़ खोलकर बाहर मत चले जाना। यदि कोई घर पर आकर तुम्हें बुलाए और कहे कि भेड़िये का सत्यानाश हो जाए तो उसे ही अपना मित्र समझना और उसी से मिलना। यदि कोई यह बात न कहे तो उसे अपना शत्रु समझना और उससे मिलने-जुलने की कोशिश मत करना। समझ गए न?

यह कहकर बकरी चल दी और बच्चे ने किवाड़ बन्द कर लिया।

बकरी के जाते ही एक भेड़िया वहाँ आ पहुँचा। वह चुपचाप बकरी की सभी बातें सुन चुका था। वह उसके बच्चे को खाने की तलाश में था। दर गजे पर पहुँचते ही उसने आवाज लगाई-क्या कर रहे हो मित्र? किवाड़ तो खोलो, हाय-हाय इस भेड़िये ने कितना उधम मचा रखा है? इसका सत्यानाश हो।

भेड़िये की आवाज़ सुनते ही बकरी के बच्चे के कान खड़े हो गए। उसने मन ही मन सोचा-यह कैसा मित्र है? न बकरी के समान बोलता है, न ही बकरे के सामान। फिर वह किवाड़ की दरार से बाहर झांकने लगा। सामने भेड़िया खड़ा था। उस पर नजर पड़ते ही बकरी का बच्चा बुरी तरह डर गया। उसने मन में कहा-यह तो भेड़िया है। यदि मैं इसकी बोली पर विचार किये बिना किवाड़ खोल देता तो यह अब तक मुझे चीर-फाड़कर खा डालता।

तभी बकरी का बच्चा जोर से बोला-यह तो बताओ तुम हो कौन?

भेड़िये ने उत्तर दिया-अरे, तुम मुझे नहीं जानते? मैं बकरा हूँ, तुम्हारा मित्र। किवाड़ खोलो मित्र। बाहर यह भेड़िये उधम मचा रहे हैं। सत्यानाश हो इनका।

बकरी के बच्चे ने कहा-अच्छा, तुम बकरे हो। फिर तुम्हारी दाढ़ी कहाँ है और यह आवाज भेड़िये जैसी क्यों है?

अब तो भेड़िया बहुत लज्जित हुआ और वहां से भाग गया। बकरी का बच्चा बोला-भगवान का शुक्र है, जो मैं भेड़िये की आवाज़ पहचान गया। चला था मुझे बुद्धू बनाने। यदि मैं अकल से काम न लेता तो मारा जाता!


स्वार्थी मित्र से बचो – bacchon ka kahaniyan

एक बार एक चूहे और मेंढक में दोस्ती हो गई। चूहे का एक दोस्त और था। वह भी चूहा था। उसने अपने मित्र को समझाया कि भाई, दोस्ती अपने स्वभाव वाले के साथ ही करनी चाहिए। मगर वह चहा न माना।

एक दिन मेंढक अपने मित्र चूहे से बोला, भाई चूहे, यहाँ रहकर तो मन उकता गया। मैं सोचता हूँ कि क्यों न हम विदेश की सैर पर चलें।

तुमने तो मेरे मन की बात कह दी मित्र ! मैं भी पिछले कुछ दिनों से यही सोच रहा था। मगर मेरा प्रिय मित्र चूहा राजी नहीं हो रहा था। चलो, अब हम दोनों चलते हैं।

इस प्रकार दोनों मित्रों ने विदेश जाने का कार्यक्रम बना लिया। चूहा कहीं से दौड़कर एक रस्सी ले आया और बोला मित्र, हम कहीं बिछड़ न जाएं अत: क्यों न हम दोनों इस रस्सी को अपनी-अपनी पीठ पर बांध लें, इससे हम बिछड़ने ना पाएंगे।

मेंढक को चूहे की बात पसंद आई। उसने रस्सी का एक सिरा अपनी पीठ पर बांध लिया। चूहे ने दूसरा सिरा अपनी कमर से बांध लिया। इसके बाद दोनों चल दिए, विदेश यात्रा पर।

जब वह चलने लगे तो चूहे के पुराने मित्र ने उसे समझाया कि देखो भाई तुम्हारा और मेंढक का यात्रा पर जाना उचित नहीं। वह पानी का जीव है तुम धरती के।

चूहे ने अपने मित्र की सलाह पर कोई ध्यान न दिया और चल दिया मेंढक के साथ। चलते-चलते दोनों कई दिन बाद जंगल से बाहर आ गए। अब रास्ते में एक नदी पड़ी।

भाई मेंढक, यह नदी कैसे पार होगी?

भाई, मेरे लिए तो कोई मुश्किल बात नहीं है। मैं तैर सकता हूँ। तैर तो मैं भी सकता हूँ, मगर गोता नहीं लगा सकता।

फिर क्या चिन्ता? आओ मैं तो कई दिनों से पानी में तैरने को मरा जा रहा हूँ। बहुत दिन हो गए पानी में तैरे हुए। कहकर मेंढक ने एक लम्बी छलांग लगाई और नदी में कूद गया-छपाक।

उसकी रस्सी से बंधा चूहा भी उछलकर पानी में गिरा-छपाक। पानी में जाते ही मेंढक को मस्ती सुझी। वह पानी में नीचे की ओर उतरने लगा। अरे-अरे मित्र क्या करते हो, पानी में से ऊपर आओ वरना मैं डूब जाऊँगा।

बस अभी आता हूँ। मेंढक कुछ और नीचे चला गया। उसे तो पानी में मज़ा आ रहा था। चूहा बड़ी मुश्किल से हाथ-पैर मारकर अपनी नाक और मुँह पानी से बाहर निकाले हुआ था। मेंढक और नीचे जाने लगा तो चूहा चिल्लाया-अरे भाई मेंढक, मान जाओ। तनिक तो ध्यान करो कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। इस तरह से मेरे जीवन से मत खेलो।

भाई चूहे, पानी में तैरना तो मेरा स्वभाव है। पानी में जितना गहरे जाओ, उतना ही आनन्द आता है।

अब चूहे को अपने मित्र चूहे की शिक्षा याद आई कि दोस्ती अपने स्वभाव वाले से ही करनी चाहिए। वह ठीक कहता था। उसने समझ लिया कि यह मेंढक स्वार्थी है।

चूहे और मेंढक में पानी में ही खींचातानी चल रही थी जिससे पानी में हलचल मच गई। इस हलचल के कारण एक चील की नज़र भी पानी पर पड़ गई। उसने अपने प्रिय चूहे को देखा तो खुश हो गई और एक झपटा मारकर उसे अपने पंजों में दबाकर ले गई। चूहे के साथ मेंढक बंधा था अतः वह भी चूहे के साथ-साथ चील का भोजन बन गया।


जैसे को तैसा – Chhote Bachcho Ki Kahani

एक शेर बुड्ढा हो गया था, उसके पैर में शिकारी की गोली लग चुकी थी, चोट मामूली लगी थी, इस कारण घाव तो थोड़े ही दिनों में भर गया, मगर चोट के कारण वह लँगड़ा हो गया, जिससे वह चलने-फिरने में भी लाचार हो गया। दौड़ने-भागने में लाचार हो जाने से वह अब शिकार भी नहीं कर पाता था। बेचारा भूखे मरने लगा। वह भूख के कारण सूख-सूख कर काँटा हो गया।

शेर को दुःखी देखकर एक चालाक लोमड़ी उसके पास आई और उससे बोली-“महाराज! आप इस जंगल के राजा हैं। आपको आजकल दुःखी और दुबला देखकर मुझे बहुत दुःख है। मैं आपकी सेवा करना चाहती हूँ। मसीबत के समय अपने राजा की सहायता करना अपना धर्म समझकर ही मैं आपके पास आई हूँ।

अगर आप वायदा करें कि आप मुझे कभी नहीं मारेंगे, तो में सदा आपकी सेवा करती रहूँगी, आप शिकार को अपने पास आने पर, मार कर खा लिया करें। आपके खाने के बाद उस शिकार में से जो कुछ बचा रहा करेगा, मैं उसी से अपना पेट भी भर लिया करूंगी।

लोमड़ी की ऐसी प्रेम भरी बातें सुनकर शेर बहुत खुश हुआ। वह बोला-‘तुम मेरे बुढ़ापे और मेरी लाचारी पर तरस खाकर ही मेरी सहायता करना चाहती हो तो फिर मैं तुम्हारे साथ क्या कभी धोखा कर सकता हूँ? मैं तो तुम्हारे इस अहसान को सदा याद रखूगा और तुम्हारा प्रिय बनकर रहूँगा।

लोमड़ी शेर के वचन सुनकर बहुत खुश हुई और हर – रोज अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसाकर भोले जानवरों को शेर के पास लाने लगी। शेर जानवर को देखते ही उस पर टूट पड़ता और मारकर उसे खा जाता, बचा-खुचा माँस लोमड़ी खाकर अपना पेट भर लेती। इस प्रकार दूसरों की सहायता पाकर दोनों बहुत आनन्द के साथ अपना जीवन बिताने लगे।

इसी तरह कुछ दिन बीत जाने पर जानवरों को लोमड़ी की चालाकी मालूम हो गई। वे लोमड़ी से बहुत नाराज हुए। एक दिन जंगल के सब जानवरों ने पंचायत की, उसमें यह फैसला किया गया कि किस तरह लोमड़ी ने धोखा देकर हम जानवरों को सताया है, उसी तरह उसको भी शेर के हाथों मरवा डाला जाय । ऐसा करने से हमारा शेर से पीछा छूट जायगा और वह भी भूख से तड़प-तड़प कर मर जायेगा। अपने किये का फल पा जायेगा।

-यह फैसला हो जाने के बाद उन जानवरों में से कुछ पंच मिलकर उस शेर के पास गये और जाकर उससे कहा-‘यह जानकर कि आपके पैर में चोट आ गई है, हम लोगों को बड़ा दुख है। इस चोट के कारण आप चलने-फिरने से भी मजबूर हैं। इसलिए जब तक आपकी चोट ठीक नहीं हो जाती, हम लोग खुद ही आपके लिए एक जानवर हर रोज भेज दिया

करेंगे। साथ ही हम लोग इस चोट की दवा भी मालूम कर आये हैं। यदि किसी लोमड़ी का ताजा खून आप पैर से मलेंगे चोट बहुत जल्दी ठीक हो सकती है, इसलिए यदि हो सके तो आप इस इलाज को जरूर करें।’ यह कहकर जानवर चले गये।

थोड़ी देर बाद लोमड़ी शिकार फंसाकर शेर के पास ले आई। शेर ने शिकार छोड़ दिया-वह लोमड़ी पर टूट पड़ा और पकड़ कर उसे मार डाला। उसका खून अपने पैर से मला जो खून बच रहा-उसे वह पी गया।

इस तरह मरकर लोमड़ी ने अपने किये का फल पाया। उसके मारे जाने से बेचारे गरीब जानवरों की जान भी बच गई।


पूँछ कटा सियार – chhote chhote bacchon ki kahaniyan

एक सियार जंगल में भोजन की तलाश में भटक रहा था कि वह एक शिकारी द्वारा लगाए गए फंदे में फंस गया। सियार ने बड़ी कोशिश की कि किसी प्रकार फंदे से छूट जाए, मगर छूट न सका। सुबह से शाम हो गई। शाम होने पर शिकारी वहां आया और किसी उपयोगी जानवर को फंदे में न फंसे देखकर वह निराश हो गया।

उधर सियार का दमं सूख गया। उसने समझ लिया कि अब उसके प्राण नहीं बचेंगे, मगर वह भी बड़ा धूर्त था। अपने इस धूर्त स्वभाव के कारण वह कई बार मृत्यु को धोखा दे चुका था। अतः इस बार भी उसने अपनी बुद्धि दौड़ाई और रोते-रोते शिकारी से बोला-शिकारी जी, मैं ठहरा एक तुच्छ जीव, मैं आपके भला किस काम आऊँगा। मुझे मारकर भी आपको कुछ न मिलेगा बल्कि एक हत्या का पाप और आपके सिर लग जाएगा। हां, अगर मुझे क्षमा कर दिया तो आपको पुण्य प्राप्त होगा।

शिकारी ने सोचा, सियार बात तो यह ठीक ही कह रहा है, मगर इसे यूं ही छोड़ना भी ठीक न होगा। इसे कुछ तो दण्ड देना ही होगा। ऐसा सोचकर शिकारी ने निशानी के तौर पर उसकी पूँछ काटकर अपने पास रख ली और सियार को छोड़ दिया।

पूँछ कटते ही सियार वहां से नौ दो ग्यारा हो गया। कुछ देर जाकर उसने सोचा कि पूँछ काटने के कारण मेरी सारी सुन्दरता नष्ट हो गई। अब मैं अपनी बिरादरी के भाइयों को क्या मुँह दिखाऊँगा? अब तो दल की सियारनियां भी मुझे देखकर मेरा मज़ाक उड़ाएंगी। इससे तो अच्छा था कि वह शिकारी मेरे प्राण ही ले लेता।

यह सोच-सोचकर सियार बहुत दु:खी हुआ। मगर जैसा कि पहले कहा गया है कि वह महाधूर्त था, अतः उसकी धूर्त बुद्धि विचार करने लगी कि ऐसी क्या चाल चली जाए जिससे ये कटी पूँछ ही मेरी इज्जत का कारण बन जाए। सारी बिरादरी के भाई अगर अपनी-अपनी पूँछ कटवा लें तो मैं पूंछ कटा कहलाने से बच जाऊँगा। जब सभी बिरादरी के भाई मेरे जैसे हो जाएंगे तो फिर कैसी बेइज्जती और कैसी शर्म?

बस, यह सोचकर पूँछ कटा सियार अपनी बस्ती के निकट जाकर ज़ोर-ज़ोर से हुआ-हुआ करने लगा।

उसकी हुआ-हुआ सुनकर सभी सियार वहां आकर एकत्रित हो गए। एक बूढ़े सियार ने पूछा-क्या बात है, बेसमय क्यों चिल्ला रहे हो?

चाचा, बात ही ऐसी है। सियार चिल्ला कर बोला-जरा मेरी ओर तो देखो और बताओ कि कहां गई मेरी पूँछ? सभी चुप। क्या जवाब देते? धूर्त सियार पुनः बोला-अरे मैंने उसे कटवाकर फेंक दिया। मगर क्यों?

क्योंकि आज ही मैंने शहरी सियार को देखा। उसने बताया कि शहरों में अब यही नया फैशन चल रहा है। उसने यह भी बताया कि यह व्यर्थ का बोझ होती है हम सियारों पर। इससे हमारी सुन्दरता भा प्रभावित होती थी। मनुष्यों को देखिए, क्या उनके पूँछ होती है? अरे आजकल के मर्द तो मूंछ का भार ढोना भी नहीं चाहते, फिर हम सियार पूँछ का भार क्यों ढोएं? हमें भी फैशन के साथ चलना चाहिए। भाईयो! मेरी मानो और यह इस बेवजह के भार को अपने शरीर से अलग करके मेरी तरह सुन्दर बनो।

पूंछ कटे सियार का यह उपदेश सुनकर एक बूढ़ा सियार ज़ोर से हंसा और बोला-भाईयो! इस पूंछ कटे की बात में न आना। यह बड़ा मक्कार है और इसका कहा भी झूठा है। मुझे लगता है कि किसी ने इसे अपमानित करने के लिए इसकी पूँछ काट दी होगी इसी कारण इसे शर्म महसूस हो रही होगी और साथ ही डर भी सता रहा होगा कि अब सब उसे पूँछ कटा कहकर चिढ़ाएंगे। इसलिए यह चाहता है कि हम सब भी अपनी-अपनी पूँछ कटा कर इसके जैसे बन जाएं। भला काना कब चाहेगा कि किसी की दो आँखें हो, वह तो यही चाहेगा कि सभी ही काने हों तो कोई भी उसे काना कहकर न चिढ़ाए।

ये हमें बरगलाने आया है, मारो इसे। किसी सियार ने यह कहा ही था कि पूंछ कटे सियार ने वहां से भागने में अपनी भलाई समझी। पिटाई होने के डर से वह वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।


तो दोस्तों आप यह Chhote Bachcho Ki Kahani कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आप किसी अन्य कहानी को पढ़ना चाहते है जो इसमें नहीं तो वो भी बताये। हम उसे जल्द से जल्द अपलोड कर देंगे।

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