1 Best Essay on Mazhab Nahi Sikhata Aapas Mein Bair Rakhna in Hindi | मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना

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Mazhab Nahi Sikhata Aapas Mein Bair Rakhna in Hindi – मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना

धर्म का उदेश्य

मजहब अर्थात जाति और धर्म जिसे जीवन में बहुत उच्च स्थान दिया जाता है। इसे बाहरी व्यवहार की अपेक्षा आत्मा और मन से स्वीकार किया गया है। आत्मा और मन से माना गया धर्म न देश की शांति भंग करता है, न हिंसा को बढ़ावा देता है और न ही भाई को भाई से लड़वाता है।

संप्रदायवाद से हानियाँ – Mazhab Nahi Sikhata Aapas Mein Bair Rakhna

मज़हब, जाति या धर्म जब धार्मिक कट्टरता के परदे में मन और आत्मा से बाहर आते हैं तो अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए वे दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं। यही समाज में दंगे फसाद कराते हैं। अपने को श्रेष्ठ बताना ठीक है पर उसे दूसरों पर जबरदस्ती थोपना उचित नहीं है। अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए दूसरे के धार्मिक प्रतीकों को नष्ट करना और अपने प्रतीक खड़े करना सांप्रदायिकता की भावना और आपसी मन मुटाव को जन्म देता है। उग्र होने पर यह मज़हबी दंगों का रूप ले लेता है जो रक्तपात और तोड़-फोड़ के बाद ही शांत होता है।

धार्मिक साहिष्णुता से लाभ

हमारी सभ्यता आरंभ से ही ‘जियो और जीने दो’ को मानने वाली रही है। बहुत से आक्रमणकारी यहाँ आए और यहीं के होकर रह गए। वे कुछ इस तरह घुल-मिल गए कि उनकी कोई अलग पहचान ही नहीं रह गई। हमारे देशवासी ईश्वर को घर-घर में विद्यमान मानते हैं। ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं पर वह एक है। यह विचारधारा प्रेम और भाईचारे की शिक्षा देती है। दुख की बात तो यह है कि आज मनुष्य अंदर के सच को न समझकर बाहरी दिखावे को अपनाता है जो झगड़े का कारण है।

निष्कर्ष

कोई भी धर्म परस्पर लड़ने और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को नष्ट करने की बात नहीं करता। अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाते हुए भारत में मज़हबी उत्पाद को इतना बढ़ा दिया कि धर्म के आधार पर देश का बँटवारा हो गया। आज बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता को देखकर इकबाल की ये पंक्तियाँ बरबस याद आती हैं

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिंदी हैं हम वतन हैं, हिंदोस्तां हमारा।


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