2 Best Mera Gaon Essay in Hindi | My Village | मेरा गाँव पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Mera Gaon Essay in Hindi पर 2 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं

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10 lines on Mera Gaon Essay in Hindi | My village essay 10 lines

  1. मैं एक बड़ा गांव में रहता हूं। इसका नाम करपी हैं।
  2. यह अरवल जिला में है। यह एक पहले दर्जे का गांव है।
  3. इस गांव में लगभग ढाई सौ परिवार रहते हैं जनसंख्या लगभग 10,000 की है।
  4. ग्रामीण शिक्षित है। औरतें भी शिक्षित है।
  5. गांव एक अच्छा सामाजिक जीवन व्यतीत करता है। यहाँ विभिन्न जाति के लोग रहते हैं।
  6. मेरे गांव में एक डाक खाना भी है।
  7. यहां प्राइमरी और मिडिल स्कूल भी है। ग्रामीण सीधे और सहायता करने वाले हैं।
  8. खाने पीने की कमी गांव में नहीं है। लेकिन वह धनी नहीं है।
  9. ग्राम पंचायत काफी सक्रिय है। यह ग्रामीण को सुखी बनाने के लिए काफी कोशिश करता है।
  10. मैं अपने गांव को बहुत पसंद करता हूं।

Mera Gaon Essay in Hindi (1000 Words)

प्रस्तावना

आज गाँवों के सौन्दर्य में पहले की अपेक्षा में परिवर्तन आ गए। आज गाँव सुख-सुविधा सम्पन्न हैं। इसके साथ ही संस्कृति में भी परिवर्तन आ गया है। कभी गाँव में आत्मीयता के दर्शन होते थे। “वसुधैव-कुटुम्बकम” का आभास गाँव की संस्कृति में होता था। सभी एक दूसरे के सुख-दुःख में समान रूप से पारिवारिक भावना से सहभागी होते थे। कोई भी अकेले-पन का अहसास नहीं करता था।

सामान्य से झगड़ों का निपटारा पड़ोस द्वारा हो जाता है। अब वे दिन स्वप्न से प्रतीत होते हैं। कुछ दबंगों का वर्चस्व बढ़ता गया। अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए राजनीति की तरह भेदनीति का राग अलापने लगे और परिणाम यह हुआ कि पारिवारिक संस्कृति में धीरे-धीरे परिवर्तन आ गया। सम्पन्न तो हुआ परन्तु विवाद बढ़े। अकेलेपन की संस्कृति ने जन्म ले लिया।

मेरा गाँव और पहचान

यह Mera Gaon के आस-पड़ोस के सभी गाँव की स्थिति। Mera Gaon कभी पहलवानों के गाँव से जाना जाता था। जो उत्तरप्रदेश के हाथरस जनपद में छोटे से नगर (शहर) सिकन्दरा-राऊ के समीप टीकरी-खुर्द । यह मेरा गाँव केवल पहलवानों के लिए ही नहीं अपितु सुसंस्कृत माना जाता था, जिसमें सुशिक्षित और सम्पन्न लोग रहते थे। पारस्परिक प्रेम था कृषि में गेहूं, चावल और गन्ना की उपज से यहाँ के किसानों की गणना की जाती थी। जिसमें सभी वर्ग और समुदाय के लोग रहते थे और रहते हैं। कृषक कर्मठ थे। विवाद बहुत कम थे। अलग-अलग समुदाय और सम्प्रदाय के रहते हए कभी विवाद नहीं हआ।

अपनी इस श्रेष्ठता के लिए इसकी अलग ही पहचान था किसा क अनुचित कार्य करने पर उसे सुधारने का गाँव का सामुहिक दायित्व समझा जाता था। लोगों में परस्पर स्नेह था। बुजुर्गों का आदर करते थे। सब सभी के हित की चिन्ता करते थे। आज सब कुछ बदल गया है। अतीत की सभ्यता और सस्कृति मात्र स्मृति की बात रह गई। पारस्परिक सौहार्द्र, घणा में बदल गया। दबंग सिर उठाने लगे। राजनीति ने भी पैर पसारना शुरू किया।

पहलवानी छोड लोग दकियानुसी बातें करने लगे। इस तरह मेरे गाँव को किसी को कुद्राष्ट लग गई। सवा सम्पन्न होते हुए पहले जैसी सराहनीय पहचान नहीं रही। मेरा गाव टाकरा खुद जिसे प्रायः लोग छोटी टीकरी भी कहते हैं, जिसे आज भी कुछ लोग जगेन्द्र सिंह पहलवान वाली टीकरी के नाम से जानत है, क्योकि जुगेन्द्र सिंह की तुलना का पहलवान क्षेत्र में दुसरा नहीं था।

Mera Gaon और भौगोलिक संरचना

Mera Gaon के एक ओर कृषि क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहर-गंग का केनाल है जिसे बम्बा कहते हैं। गाँव में प्रवेश करते ही छोटे-छोटे आम के बाग हैं, जिन्होंने गांव की प्राकृतिक छटा में वृद्धि की है, जिसमें प्रायः मोरों का झुण्ड अपने केकारव से गाँव को गुंजायमान करता है। गाँव के एक ओर गाँव से बाहर एक शिवमन्दिर है, जिसमें सम्पूर्ण गाँव के लोग पूजा करते हैं। गाँव केकारव की ओर समाधि मन्दिर है।

यह मन्दिर के नाम पर मात्र एक चबूतरा है। जो बाबा पूरण-दास के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर की परम्परा और विशेषता है कि पूजा के नाम पर गाँव के सभी समुदाय और सम्प्रदाय के लोग कुत्तों को भोजन कराते हैं। इसलिए यहाँ स्वस्थ कुत्तों का जमघट लगा रहता है। शहर सिकन्दराऊ से गाँव तक सड़क जाती है। गाँव में प्रवेश करते ही जूनियर और प्राइमरी विद्यालय है। इसी सड़क पर पीली-कोठी के नाम से सुप्रसिद्ध एक कृषक परिवार का विशाल पशु-पालन घर है, जहाँ अब परिवार भी रहने लगे है।

गाँव के चारों ओर तालाब है। उमरारे नाम के तालाब में कमल खिलते हैं जिसमें विविध पक्षी कलरव करते रहते हैं। इसी कमल तालाब के किनारे आचार्य चाणक्य-प्रशिक्षण संस्थान के नाम से प्रसिद्ध विद्यालय है जिसका संचालन गाँव के ही आदमी यतीश शर्मा व साहित्य शर्मा और हरेन्द्र यादव मिलकर कर रहे हैं। इस तरह नाई नगला, कपसिया, सहादत पुर, चन्द्र नगर से घिरा सम्पन्न गाँव है।

शिक्षा-क्षेत्र में अग्रणीय

जैसे ही गाँव में प्रवेश किया जाता है तो प्रवेश करते ही स्पष्ट हो जाता है कि यह गाँव शिक्षा के क्षेत्र में आज कितना अग्रणीय है। यहाँ आज प्राइमरी विद्यालय है जिसका निर्माण कहते हैं कि एक साधु हरियल बाबा के प्रयास से हुआ था। अतीत में, जब मैं पढ़ता था तो उसके प्रधानाध्यापक एक विशाल वार्षिक यज्ञ शिव-रात्रि के समय पर कराते थे। जो कई दिन चलता था, जिसमें उपदेष्टा उपदेश करते थे।

उसका ऐसा प्रभाव हुआ कि सभी गाँव के लोग एकता और स्नेह के सूत्र में बंध गए थे। आज उसी के प्रभाव से शिक्षा के क्षेत्र में गाँव सर्वथा सम्पन्न है। प्राइमरी, जूनियर विद्यालय और शिक्षण-संस्थान है, जहाँ कई गाँवों के छात्र पढ़ने आते हैं। पूरा गाँव शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय है। इस गाँव से अनेक प्रतिभाशाली निकले है जो अनेक उच्च-पदों पर आसीन हैं। यहाँ के लोगों में अध्यापक प्राचार्य, अधिवक्ता, अभियन्ता इन्स्पेक्टर कितने सुयोग्य पुरुष अपनी ईमानदारी और कर्मठता से काम करते हुए गाँव की प्रतिभा में वृद्धि कर रहे हैं।

इतना सब कुछ होते हुए भी कुछ ऐसा भी कार्य करते हैं जिन्हें अपनी दकियानूसी प्रवृत्ति के कारण दूसरों की प्रगति रास नहीं आती है और वह कोई न कोई दकियानूसी चाल चलते रहते हैं और व्यवधान खड़े करते रहते हैं। वे राजनीति का पर्याय बन चुके हैं।

कृषि सम्पन्न गाँव

हर क्षेत्र की तरह मेरा गाँव कृषि में भी अग्रणीय है। मेरे गाँव का कृषक प्रचलित नई-नई तकनीक नई-नई प्रविधि से कृषि करता है। खेतों में लहलहाती हुई धान की खेती, जहाँ धुंआ और गुड़ की सुगन्धि छोड़ते हुए कोल्हू गाँव के कृषक की सम्पन्नता की कहानी कहते हैं। जब से बिजली की सुविधा हुई तब से तो कृषि में अप्रत्याशित पैदाबार बढ़ी है।

टैक्ट्ररों की भरमार है। गाएँ चराता हुआ, या गन्ना चूसता हुआ या बैलगाड़ी पर गुनगुनाता हुआ किसान प्रसन्नता और उत्साह में दिखाई पड़ेगा। मेरे गाँव का कृषक शिक्षित कृषक है। उसकी खुशहाली देखते ही बनती है। वह मिट्टी या फूस के बने घर में नहीं रहता है। बड़ी-बड़ी अट्टलिकाएँ और उनमें जगमग करती बिजली उसकी कर्मठता की कहानी दोहराती है।

उपसंहार

हमें दकियानूसी लोगों से सावधान रहते हुए अपने कर्म करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाहन उत्साह से करें तो नगरीय जीवन की छटा गाँव के लोगों को आकर्षित नहीं कर पाएगी, जहाँ नगरों में एकाकापन है, प्रदूषित पर्यावरण है, घुटन है। अस्वस्थ शरीर है। मेरा गाँव सन्देश देता है-चलो गाँव की ओर मुड़ो प्रकृति की ओर।


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