30+ Best Panchtantra short stories in Hindi with Moral । पंचतंत्र की कहानी

पंचतंत्र की कहानियाँ (Panchatantra With Moral Values)

Panchtantra short stories in Hindi के इस आर्टिकल में आप सभी का बहुत – बहुत स्वागत है। इस आर्टिकल में आपको छोटे बच्चो के लिए शिक्षाप्रद (Panchtantra short stories in Hindi with Moral) मिलेगा।

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1. प्यासा कौआPanchtantra short stories in Hindi

गर्मी का दिन था। एक कौवा बहुत प्यासा था। वह पानी की तलाश में इधर उधर भटक रहा था। इस प्रकार व एक बगीचे में पहुंचा वहां पर एक पात्र देखा जिसमें जल थोड़ा था। लेकिन पानी तक उसकी सोच नहीं पहुंच पा रही थी। तो कौआ ने आसपास कुछ कंकड़ देखें। उसने एक एक करके कंकड़ घड़े में डाल दिए। पानी का तल उपर आ गया कौवे ने जी भर के पानी पिया और उड़ गया।

Moral of the story – इस कहानी से यह हमें शिक्षा मिलती है कि जहां चाह होती है वहां राह मिल जाती है।

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2. लोभी लोमड़ीPanchtantra short stories in Hindi

एक लोमड़ी थी जो बहुत भूखा थी। उसे एक रोटी का टुकड़ा मिला। वह एक नदी पर बने पुल से जा रहा थी। वह मन ही मन सोच रहा थी कि नदी के उस पार जाकर वह रोटी को खाएगी। किंतु तभी उसकी नजर पानी पर पड़ी। पानी में उसकी परछाई दिखाई दे रही थी। उसने सोचा कोई दूसरी लोमड़ी रोटी लिए जा रही है। उसके मुंह में पानी भर आया उस रोटी के टुकड़े को लेने के लिए उसने अपनी परछाई पर गुर्राना शुरू कर दिया। उसके मुंह से रोटी भी पानी में गिर गया। बेचारी भूखा भी रह गयी।

Moral of the story – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि लालच बुरी बला है।


3. गड़रिया का लड़का और भेड़ियाPanchtantra short stories in Hindi with moral

एक गड़रिया का लड़का अपनी भेड़ों के झुण्ड को चरा रहा था। एक दिन उसके मन में शरारत सूझी तो उसने गाँववालों की खिल्ली उड़ाने की सोची। इसलिए वह जोर से चिल्लाया, “भेड़िया, भेड़िया”। गाँववाले उसकी आवाज को सुन कर अपने हाथों में लाठी-डंडा लेकर उसकी सहायता के लिए दौड़े।

लेकिन वहाँ कोई भेड़िया न पाकर बहुत अप्रसन्न हुए तथा गाँव वापस आ गए। अगले सप्ताह भी उस लड़के ने फिर से वही चाल चली। लेकिन गाँववाले उसकी सहायता के लिए नहीं गए। एक दिन वास्तव में एक भेड़िया आ गया।

वह लड़का चिल्लाने लगा, लेकिन कोई भी उसकी सहायता के लिए नहीं आया। भेड़िया कई भेड़ों तथा लड़के को घायल करके भाग गया। गडरिया के लड़के को एक शिक्षा मिल गई कि झूठ का परिणाम कैसा होता है।

Moral : झूठे पर कोई विश्वास नहीं करता।

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4. दो मित्र एवं भालू (panchatantra short stories in hindi)

दो दोस्त थे। उन्होंने आपस में यह प्रतिज्ञा की कि वे एक दूसरे की मुसीबत में हमेशा सहायता करेंगे। एक दिन वे दोनों घूमने के लिए बाहर गये। वे दोनों एक जंगल से जा रहे थे। उन्होंने सामने से एक भालू जानवर को आते देखा। उनमें से एक तुरत एक पेड़ पर चढ़ गया। दूसरा पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता था।

वह अपनी सांस रोकर जमीन पर लेट गया। भालू उसके पास आया तथा उसे सूंघा। भालू ने यह समझा कि वह मर चूका है। भालू चला गया। पेड़ पर चढ़ा उसका दोस्त नीचे उतरा तथा अपने मित्र से पूछा कि भालू उसके कान में क्या बोल रहा था। उसके मित्र ने जवाब दिया कि भालू ने उसके कान में यह कहा है कि झूठे मित्रों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।

Moral : मित्र वही जो मुसीबत में काम आए।


5. खरगोश एवं कछुआ (panchatantra short stories in hindi)

एक खरगोश को अपनी चाल पर बड़ा घमंड था। एक दिन उसने एक कछुए को धीमी गति से चलते देखा। खरगोश कछुए का मजाक उड़ाने लगा। इस पर कछुआ बड़ा नाराज हुआ। गुस्से में कछुए ने खरगोश को दौड़ के लिए चुनौती दे डाली। उन दोनों ने एक पेड़ को जीतस्थल निर्धारित किया। दौड़ शुरू हुई।

चंद क्षणों में खरगोश आँखों से ओझल हो गया। वह जीत के प्रति आश्वस्त था। खरगोश ने सोचा कि कछुआ बहुत पीछे है, अतः मैं थोड़ी देर आराम कर लूँ। इसलिए वह एक पेड़ के नीचे सो गया। कछुआ अपने मंद गति से चलता रहा। सोए हुए खरगोश को वह पार कर गया। जब कछुआ लक्ष्य तक पहुँचने वाला था, तो खरगोश की नींद खुली। वह तेज भागा लेकिन जीतस्थल तक कछुआ पहले ही पहुँच चुका था। खरगोश दौड़ में हार गया।

Moral : धीमे परन्तु नियमित काम करने वालों की विजय होती है।


6. शेर और चूहा (panchatantra short stories in hindi)

एक दिन की बात है। एक शेर जंगल में सो रहा था। उसके शरीर पर एक चूहा उछल कूद करने लगा। शेर की नींद खुल गई। उसने देखा एक नन्हा चूहा उसके शरीर पर बिना किसी डर के दौड़ रहा था। शेर को गुस्सा आ गया तथा उसने चूहे को पकड़ लिया। शेर चूहे को मार डालना चाहता था

किन्तु चूहा स्वयं को छोड़ देने के लिए शेर की बहुत मिन्नतें करने लगा तथा यह प्रतिज्ञा की कि शेर की इस दयालुता का बदला वह अवश्य चुकाएगा। शेर को उस पर दया आ गई तथा उसने चूहे को छोड़ दिया। एक दिन की बात है, शेर एक जाल में फँस गया। जब चूहा उसे शेर को जाल में फंसा देखा तो उसको पुरानी बात तथा प्रतिज्ञा याद आ गयी। चूहे ने अपने तेज दांतों का प्रयोग करके जाल को कुतर दिया तथा शेर को जाल से मुक्त कर दिया। इस प्रकार शेर की जान बच गई। शेर चूहे का बहुत आभारी हुआ।

शिक्षा : अच्छा करोगे तो अच्छा पाओगे।

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7. चतुर लोमड़ी और कौआ (short stories of panchtantra in hindi)

एक दिन एक भूखी लोमड़ी इधर-उधर भोजन की तलाश में घूम रही थी। उसने एक पेड़ पर एक कौआ देखा। कौए की चोंच पनीर का एक टुकड़ा था। धूर्त लोमड़ी उस पनीर के टुकड़े को लेने के लिए लालायित हो गई। लोमड़ी कोए से बोली, “मित्र, आपकी आवाज सुरीली है, यदि आप कोई गाना सुनाते, तो बड़ा आनंद आता।”

लोमड़ी की चाल काम आ गयी तथा कौए ने खुश होकर ज्योंही अपना मुँह गाने के लिए खोला, उसकी चोंच से पनीर का टुकड़ा नीचे गिर पड़ा। लोमड़ी पनीर का टुकड़ा लेकर चंपत हो गयी।

शिक्षा : चापलूसों से सदा सावधान रहना चाहिए। चापलूस कभी स्वाभिमानी नहीं हो सकता।


8. बिल्ली के गले में घंटी बाँधना (short stories of panchtantra in hindi)

एक घर में बहुत चूहे थे। वहाँ पर एक बिल्ली भी थी। बिल्ली उन चूहों के लिए आतंक थी। वह प्रतिदिन एक या दो चूहों को चट कर जाती थी। चूहे इस बिल्ली रूपी आतंक से मुक्ति चाहते थे। इसलिए उन सभी ने एक बैठक बुलाई। उनमें से एक चूहे ने यह प्रस्ताव रखा कि बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दी जाए। इस प्रस्ताव का सभा न अनुमोदन किया।

इसमें एक बूढ़ा चूहा उठा एक बूढ़ा चूहा उठा तथा सभी के सामने यह प्रश्न रखा कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। सभी चूहे चुप हो गये, कोई भी खतरा मोल लेने के लिए तैयार नहीं हुआ। तभी सामने से बिल्ली आती दिखाई दी। सभी चूहे भाग कर अपने बिलों में जा घुसे। समस्या ज्यों की त्यों रह गयी।

शिक्षा : कहना तो आसान है, किन्तु पूरा करना बड़ा कठिन।


9. एकता में बल हैPanchtantra short stories in hindi with moral

एक किसान था। उसके छ: बेटे थे। वे आपस में लड़ा करते थे। एक दिन किसान ने अपने बेटों को बुलाया। किसान ने अपने नौकर को लकड़ियों का एक बंडल उनके सामने रखने को कहा। किसान अपने बेटों को उस बंडल को तोड़ने के लिए कहा। उसके सभी बेटे एक-एक करके कोशिश करने लगे, किन्तु तोड़ने की बात तो दूर, कोई उसे टेढ़ा तक भी नहीं कर सका।

इसके बाद किसान ने बंडल को खोल दिया तथा उन सभी को एक-एक लकड़ी देकर तोड़ने को कहा। सभी ने आसानी से अपनी लकड़ी का तोड़ दिया। किसान ने अपने बेटों को यह सिखाया कि सदा मिलकर रहें क्योंकि एकता में बल होता है। मिल कर रहने से कोई उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। यह बात किसान के बेटों को समझ में आ गयी तथा उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे अब से फिर कभी नहीं लड़ेंगे तथा मिल कर रहेंगे।

शिक्षा : मेल से प्रगति होती है तथा बेमेल से पतन।


10. कुसंगPanchtantra short stories in Hindi with moral

एक आदमी था। उसकी इकलौती संतान कुसंगति में पड़ गई। लड़का अपने पिता की सलाह को नजरअंदाज कर जाता था। उसके पिताजी उसे बार-बार समझाते थे कि कुसंगति का फल अच्छा नहीं होता किन्तु वह ध्यान ही नहीं देता था।

एक दिन लड़के के पिता के दिमाग में एक युक्ति सूझी। उन्होंने एक टोकरी सेब खरीदे तथा उस टोकरी में एक सड़ा सेब रख दिया। अगले दिन लड़का यह देखकर हैरान हो गया कि टोकरी के सारे सेब सड़ गए हैं। पिता ने अपने लड़के को समझाया कि इसका कारण एक सड़ा सेब ही था, जिसने सारे सेबों को सड़ा दिया। लड़के को एक सबक मिल गया। उसने अपनी बुरी संगति परित्याग कर दिया। वही लड़का बड़ा होकर एक सज्जन व्यक्ति बना।

शिक्षा : एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है


11. लोमड़ी और अंगूर (short stories of panchtantra in hindi)

एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह एक बगीचे में पहुंचे। वहां पर बगीचे में उसने अंगूरों के गुच्छों को देखा, जो अंगूर की बेल पर लटक रहे थे। उसके मुख में पानी भर आया। वह अंगूरों को खाना चाहती थी। इसके लिए बार-बार वह उछल कर अंगूरों तक पहुँचना चाह रही थी, किन्तु प्रत्येक प्रयास में वह असफल रही। कुछ देर बाद उछल कूद करते-करते वह थक गयी तथा यह कहते वहाँ से चल दी कि अंगूर खट्टे हैं।

शिक्षा : मनुष्य असफल होने पर बहाने बनाता है।


12. टोपी विक्रेता और बंदर (panchtantra short stories in hindi)

एक गाँव में एक टोपी विक्रेता रहता था। एक दिन वह अपनी टोपियों को बेचने बाजार जा रहा था। वह टोपी विक्रेता एक जंगल से गुजरा। चलते-चलते वह थक चुका था, एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए लेट गया। तत्काल हो उसको नींद आ गई। उसके सिर पर एक टोपी लगी हुई थी।

पेड़ पर कुछ बंदर थे। वे सभी नीचे उतरे तथा टोपियों के बंडल को लेकर पेड़ पर चढ़ गए। उनमें से प्रत्येक बंदर ने एक-एक टोपी लेकर अपने सिर पर रख ली। टोपी विक्रेता की नींद खुली तो उसने देखा कि प्रत्येक बंदर के सिर पर एक टोपी लगी हुई है। टोपी विक्रेता ने अपनी टोपी को नीचे फेंक दिया। बंदर भी अपनी टोपियों को नीचे फेंकने लगे। टोपी विक्रेता ने टोपियों को इकट्ठा किया तथा अपने लक्ष्य की ओर चल दिया।

Moral of the story : बुद्धिर्यस्य बलं तस्य (बुद्धि बल से श्रेष्ठ है)


13. सिंह और खरगोश (panchtantra short stories in hindi)

एक जंगल में एक सिंह रहता था। वह प्रतिदिन कई जानवरों को मारा करता था। जानवरों ने एक बैठक बुलाई तथा यह निर्णय हुआ कि प्रत्येक दिन एक जानवर स्वयं सिंह के पास भोजन के लिए आ जाएगा। इस प्रकार दिन गुजरने लगे। एक दिन एक खरगोश की बारी आई। वह सिंह के पास बड़ी देर से पहुँचा। सिंह को बड़ा गुस्सा आया तथा उसने खरगोश को बहुत बुरा-भला कहा।

इस पर खरगोश ने कहा कि रास्ते में एक दूसरा सिंह मिल गया था तथा वह अपने को ही जंगल का राजा कहता है। इस पर सिह को बड़ा गुस्सा आया, वह गुस्से में खरगोश को बोला कि वह तत्काल उसके पास चले। खरगोश उसको एक कुएं के पास ले गया। सिंह ने कुएं पर पहुँच कर गर्जन की तथा अपनी प्रतिध्वनि को दूसरे मित्र समझ कर कुएं में कूद पड़ा तथा उसी में छटपटा कर मर गया।

शिक्षा : क्रोध पाप का मूल है तथा यही इंसान की असली भूल है।


14. सारस एवं लोमड़ी (panchtantra short stories in hindi)

एक सारस तथा एक लोमड़ी में बड़ी पक्की दोस्ती थी। एक दिन लोमड़ी ने सारस को अपने यहां खाने के लिए आमंत्रित किया। उसने चावल के पतले मीठे व्यंजन तैयार किए तथा सारस के सामने प्लेट में खाना परोस दिया। सारस अपने लम्बी चोंच की वजह से कुछ नहीं खा सका। लोमड़ी अपनी प्लेट साफ कर गयी।

सारस ने इस पर अपने को अपमानित समझा। सारस ने लोमड़ी को शिक्षा देने की मन में ठानी। उसने भी लोमड़ी को अपने घर दावत पर बुलाया। उसने भी दूध और चावल व्यंजन बनाए तथा लोमड़ी को पतले मुंह वाले बर्तन में खाना या। लोमड़ी कुछ भी खा नहीं सकी, किन्तु सारस ने भरपेट भोजन किया।

शिक्षा : जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है।


15. जल के देवता एवं लकड़हारा (panchtantra short stories in hindi)

एक दिन एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काट रहा था वह पेड़ एक नदी के तट पर था। उसकी कुल्हाड़ी अचानक नदी में गिर गई। वह फूट-फूटकर रोने लगा। जल के देवता उसके सामने प्रकट हुए। उनको लकड़हारे पर दया आ गई। वे जल में कूद पड़े तथा डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर ऊपर आए तो सोने की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देने लगे। लकड़हारे ने सोने की कुल्हाड़ी लेने से इंकार कर दिया।

फिर जल के देवता ने पानी में डुबकी लगाई तथा इस बार चांदी की कुल्हाड़ी लेकर ऊपर आए। लकड़हारे ने इस कुल्हाड़ी को लेने से भी इंकार कर दिया। तीसरी बार जल के देवता लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आए। ईमानदार लकड़हारा अपनी लोहे की कुल्हाड़ी देखकर बड़ा खुश हुआ तथा लोहे की कुल्हाड़ी स्वीकार कर ली। वह जल के देवता का बहुत शुक्रगुजार हुआ। जल के देवता ने उस ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसे सोने तथा चांदी वाली कल्हालिन कुल्हाड़ी भी दे दी।

Moral of the story : सच्चाई की होती जीत सदा और झूठ सदा ही हारा है।


16. दर्जी तथा हाथी (panchtantra short stories in hindi)

एक हाथी था। वह प्रतिदिन नहाने के लिए नदी में जाया करता था। रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। वह प्रतिदिन हाथी को कुछ न कुछ खाने को देता था। एक दिन दर्जी किसी बात पर नाराज था। जब हाथी उसके दुकान से गुजरा तो वह उसकी सैंड में सुई चुभो दी। इस पर हाथी ने अपने को अपमानित महसूस किया।

जब हाथी स्नान करके लौट रहा था तो अपनी सूंड़ में गंदा पानी भरकर लाया तथा दर्जी की दुकान में उड़ेल दिया। दुकान के सारे कपड़े गंदे हो गए। दर्जी ने अपने किए हुए पर बहुत पछतावा किया।

शिक्षा : शठे शाठ्यं समाचरेत् (जैसे को तैसा)।

17. राबर्ट ब्रूस एवं मकड़ा (panchtantra short stories in hindi)

राबर्ट ब्रूस राजा था। एक बार उसके राज्य पर दुश्मनों कब्ज़ा हो गया। राबर्ट ब्रूस ने अपने देश को स्वतंत्र कराने का हरसंभव प्रयास किया, किन्तु सफल नहीं हो सका तथा बार-बार हारता ही रहा। वह युद्ध के मैदान से भाग गया। उसने अपने आप को एक गुफा में छिपा लिया। गुफा में वह एक मकड़े को देखा।

मकड़ा अपने जाले से गिर गया। वह मकड़ा अपने जाल तक पहुँचने के लिए प्रयत्न कर रहा था, किन्तु सफल नहीं हो पा रहा था। अन्त में वह सफल हो गया। राबर्ट ब्रूस यह सब तमाशा देख रहा था। इस घटना से उसे एक शिक्षा मिली। उसने अपनी सेना को इकट्ठा किया तथा अपने दुश्मनों को हरा कर अपना राज्य वापस ले लिया।

शिक्षा : मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।


18. सिंह तथा दास(Panchtantra short stories in hindi)

एक व्यापारी था। वह बहुत ही निर्दयी था। व्यापारी के पास एक दास था। व्यापारी अपने दास के साथ बहुत सख्ती का व्यवहार करता था। दास अपने मालिक के व्यवहार से तंग आ चुका था। एक दिन वह अपने मालिक के घर से भाग गया। वह जंगल में एक गुफा में पहुँचा। वह गुफा में छिपकर रहना चाहता था।

थोड़ी देर बाद एक घायल सिंह वहाँ आया। उसका पैर फूला हुआ था तथा वह लंगड़ा कर चल रहा था। दास को उसके पंजे में एक कांटा गड़ा दिखाई दिया। उस दास ने सिंह के पंजे से काँटा निकाल दिया। सिंह को राहत महसूस हुई। कुछ दिनों तक दोनों साथ-साथ रहे । एक दिन वह दास पकड़ा गया तथा उसे भूखे सिंह के सामने छोड़ देने का आदेश हुआ।

जब उस दास को भूखे सिंह के पास छोड़ा गया तो सिंह उसके पास आकर उसका पैर चाटने लगा। यह वही सिंह था। जिसके पंजे से दास ने कांटा निकाला था। दास का मालिक यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ तथा दास को मुक्त कर दिया तथा सिंह उसको पुरस्कार स्वरूप दे दिया।

शिक्षा : दया का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। 


19. मधुमक्खी और फाख्ता (panchatantra short stories in hindi with moral)

एक मधुमक्खी और एक फ़ाखता एक पेड़ पर रहते थे। यह पेड़ नदी के तट पर स्थित था। एक दिन मधुमक्खी नदी के किनारे पानी पी रही थी। नदी की तेज धार ने उसे बहा दिया। फाख्ता ने पेड़ का एक पत्ता मधुमक्खी के सामने गिरा दिया। मधुमक्खी पत्ते पर चढ़ गयी। जब उसके पंख सूख गए तो वह उड़ गयी।

एक दिन की बात है कि एक बहेलिया उस पेड़ के नीचे आया तथा फ़ाख्ता पर निशाना लगाया। मधुमक्खी यह सब देख रही थी। मधुमक्खी उड़कर बहेलिया के पास पहुंची तथा उसके बाँह में डंक गड़ा दिया। बहेलिया का निशाना चूक गया तथा फ़ाख्ता का जीवन बच गया। फ़ाख्ता उड़ गई।

Moral of the story : कर भला तो हो भला।


20. ऊँट और सियार (panchatantra short stories in hindi with moral)

एक ऊंट और एक सियार आपस में मित्र थे। वे दोनों एक नदी के समीप रहते थे। एक दिन सियार ऊँट की पीठ पर बैठ गया तथा दोनों नदी के उस पार पहुंचे। वहाँ खरबूजा, तरबूज एवं हरी-हरी ककड़ियों को देखा। दोनों उन फलों को खाने में जुट गए। सियार ने जल्दी-जल्दी खाकर अपना पट भर लिया। इसके बाद वह ‘हुँआं’,’हुँआं’ चिल्लाने लगा। ऊँट ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, किन्तु वह नहीं माना तथा यह कहा कि पेट भर जाने के बाद चिल्लाने की उसकी आदत है।

आवाजें सुनकर खेत का मालिक किसान वहाँ आ गया उसे आता देखकर सियार भाग गया। उसने जमकर ऊँट की पिटाई की और उसे भगा दिया। कुछ समय बाद ऊँट तथा सियार ने पुनः खेत में जाने का निश्चय किया। सियार पहले की भाँति उसकी पीठ पर बैठ गया। जब ऊँट बीच नदी में पहुँचा तो पानी में लेटने लगा तथा बोला कि भोजन के बाद उसकी पानी में लेटने की आदत है। इस प्रकार सियार पानी में डूब गया।

शिक्षा : जैसा बोवोगे, वैसा काटोगे।


21. जिसकी लाठी, उसकी भैस (panchatantra short stories in hindi with moral)

किसी गाव में ब्रह्मदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह विद्वान और बुद्धिमान था। वह लोगों को कथा सुनाकर आर पूजा पाठ करा कर अपना निर्वाह करता था। उसे स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रहता था। वह हृष्ट-पुष्ट था।

एक दिन वह एक भैंस खरीदने के लिए पास के गाँव में गया। मार्ग में एक घना वन था। एक स्वस्थ भैंस लेकर जब वह उस वन से गजरा तो उसे एक अहीर ने रोक लिया। अहीर के पास एक मजबूत लाठी था। लाठी का भय दिखाते हुए उसने भैंस छीन ली। ब्राह्मण निहत्था था। अत: वह भैंस प्राप्त करने के उपाय सोचने लगा। ब्राह्मण ने अहीर की शक्ति तथा धर्म में आस्था की प्रशंसा करते हुए उसे भैंस के बदले कुछ देने को कहा। उसने उसे भय दिखाया कि यदि वह कुछ नहीं देगा तो उसे ब्राह्मण से छीने गए माल के कारण पाप लगेगा।

अहीर ने अपनी जेबों को टटोला। जेबें खाली थीं। ब्राह्मण के कहने पर उसने भैंस के बदले उसे अपनी लाठी दे दी। लाठी पाकर ब्राह्मण ने उसे ललकारा। उसने अहीर की पीठ पर लाठी का प्रहार करते हुए उसे भैंस छोड़ने को कहा। जब अहीर ने पूछा-क्यों? तब ब्राह्मण ने कहा कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। अहीर मार खाकर भाग गया। ब्राह्मण अपनी भैंस लेकर घर लौटा। गाँव में आकर उसने सब लोगों को यह घटना सुनाई।

शिक्षा – सबने एक ही बात कही, “जिसकी लाठी, उसकी भैस,” जहाँ शक्ति है, वहीं अधिकार है, वहीं दबदबा है।


22. जैसे को तैसा (panchatantra short stories in hindi with moral)

नरेन्द्रगढ़ गाँव में रामपाल नामक एक ग्वाला रहता था। वह बहुत बेईमान था। वह थोड़े दिनों में अमीर बन जाना चाहता था। अत: वह दूध में पानी मिलाकर नगर में बेचने जाता था। महीने के अन्त में वह लोगों से हिसाब करके रुपये लेकर खुश-खुश गाँव लौटता था।

एक बार वह हिसाब कर रुपयों से भरा थैला लेकर गाँव लौट रहा था। उस दिन गरमी अधिक थी। मार्ग में एक नदी थी। नदी के किनारे एक पेड़ था। उसने वहाँ अपने कपडे उतारे। रुपयों के थैले के साथ कपड़े रख कर वह नदी में स्नान करने लगा।

पेड़ पर बैठा एक बन्दर चुपके से नीचे उतरा। वह उसी क्षण रुपयों से भरा थैला लेकर पेड़ पर चढ़ गया। यह देखकर ग्वाला बहुत दु:खी हुआ और चिल्लाया। वहाँ कई लोग इकट्ठे हो गए। सबने देखा कि बन्दर रुपयों के थैले में से रुपये निकाल कर कुछ नदी में और कुछ पेड़ के नीचे रेत में फेंक रहा था। रुपये खत्म होने पर उसने थैला नीचे फेंक दिया।

ग्वाले ने किनारे पर पड़े रुपयों को थैले में भरा और रोता-रोता घर को लौटा। सारी घटना उसने अपनी पत्नी को सुनाई। पत्नी हँसी और बोली, “जानते हो, हनुमान जी ने तुम्हें ईमानदारी का पाठ पढ़ाने के लिए ही यह सब किया है। उन्होंने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।

शिक्षा – भविष्य में ईमानदारी नहीं बरतोगे तो सब किया-कराया मिट्टी हो जाएगा।


23. लोभ का फल (panchatantra short stories in hindi with moral)

पुराने जमाने मैं दिल्ली मैं सहसरूप नामक एक व्यक्ति रहता था। जमुना नदी में जाल फेंक कर मछली पकड़कर उन्हें बाजार में बेचकर उससे होने वाली आमदनी से अपने परिवार का बड़े आराम से गुजारा चलाता था।

इतने में ही उसका परिवार सुखी और संतुष्ट था। एक दिन उसने जमुना नदी के घाट पर जल में जाल फेंका तब एक भी मछली उसके जाल में ने नहीं फसी। अबकी बार उसने जाल फेंका तब उसके जाल में एक बहुत बड़ा कछुआ फस गया। तब उसने सोचा कि इसी को बेचकर दो पैसे कमा लूंगा। वह कछुए को अपने थैले में डालने लगा तो कछुआ बोला, दोस्त मुझे बेचकर तुझे कितनी आमदनी हो जाएगी।

मुझे एक बार तुम मुझे मेरे घर तक जाने दो मैं तुम्हारे लिए एक बेशकीमती मणि में लाकर दूंगा। जिससे तुम जिंदगी में बड़े आराम से खाओगे, तो भी नहीं घटेगा। उसने कछुए पर विश्वास करके उसे जल में छोड़ दिया। कछुआ पानी में घुस कर अपने घर तक पहुंच कर एक लालमणि लाकर सहसरूप को सौंप दिया। लालमणि की लाल रोशनी ने उसे चकरा दिया। सहसरुप के दिल में एक दूसरा लालमणि और पाने की लालसा जाग गई। उसने उस लालमणि को अपने जेब में डाल लिया, और कछुए को एक दूसरा लालमणि और लाने को कहा। कछुआ भी चतुर था।

उसने उसके अति लोभ को भाप लिया। कछुए ने उसे सबक सिखाने का विचार कर लिया, और कहां मेरे प्यारे दोस्त मेरे घर में तरह-तरह के लालमणि भरे पड़े हैं। तुम मुझे यह लालमणि दे दो ताकि मैं इससे मिलान करके लाने में कामयाब हो सकूं। सहसरूप ने वह लालमणि दूसरे लालमणि को पाने के लोभ में कछुए को दे दिया।

कछुआ लालमणि को लेकर यमुना के गहरे जल में गोता लगाकर गहराई में लालमणि रखकर पानी से बाहर आकर सहस रुप से बोला। मेरे लालची दोस्त तुमने दूसरे लालमणि को पाने के चक्कर में पहले लालमणि भी अपने हाथ से खो दिए। अब वह लालमणि को खोने के गम में घाट पर बैठ कर रोने लगा। कछुआ तो कह कर पानी के अंदर समा गया।

वह अपने आप में पश्चाताप करने लगा काश मैंने लोभ ना किया होता। तो आज दुख नहीं देखना पड़ता, उसने सौगंध खाई कि भविष्य में कभी लोग नहीं करूंगा


24 . दो खच्चर (पंचतंत्र की लघु कहानियां)

एक व्यापारी के पास दो खच्चर थे। वह उन पर सामान लाकर पहाड़ों पर बसे गांव में ले जाकर बेचता था। एक दिन उनमें से एक खच्चर कुछ बीमार हो गया। व्यापारी को इस बात का पता नहीं था। उसको गाँव में बेचने के लिए आटा, दाल, चावल, नमक आदि ले जाना था। उसने दोनों खच्चरों पर बराबर-बराबर सामान लाद दिया और दूसरे गाँव की ओर निकल पड़ा।

रास्ता बहत उबड़-खाबड़ होने के कारण बीमार खच्चर को बहुत कष्ट हो रहा था। उसने अपने साथ वाले खच्चर से कहा- मित्र आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए बहुत थकावट महसूस हो रही है। मैं ऐसा करता हूँ कि अपनी पीठ पर से एक बोरा गिरा देता हूँ तुम यहीं खड़े रहो हमारा स्वामी वह बोरा तुम्हारी पीठ पर रख देगा। मेरा भार कुछ कम हो जायेगा। तो मैं तुम्हारे साथ ही चल सकूँगा। तुम आगे चले जाओगे तो गिरा बोरा स्वामी फिर मेरी ही पीठ पर रख देगा। दूसरा खच्चर बोला- ‘मैं तुम्हारा भार ढोने के लिये क्यों खड़ा रहूँ? मेरी पीठ पर कोई कम भार लदा हुआ है ? मैं तो अपने हिस्से का ही भार ढोऊँगा।

मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। बीमार खच्चर यह सुनकर बहुत दुखी हुआ और चुप हो गया। परन्तु उसकी तबीयत और अधिक खराब हो रही थी। चलते-चलते एक पत्थर से टकराकर गिर पड़ा और लुढ़कता चला गया। व्यापारी अपने एक खच्चर के मर जाने के कारण बहुत दुखी हुआ वह थोड़ी देर खड़ा रहा फिर उसने उस खच्चर के सारे सामान को दूसरे खच्चर की पीठ पर ही लाद दिया।

अब तो वह खच्चर पछताने लगा और मन ही मन सोचने लगा यदि मैं अपने साथी की बात मान लेता और उसका एक बोरा अपनी पीठ पर ले लेता तो वह अभी मेरे साथ होता और इतना बोझ भी मेरे ऊपर नहीं होता।

पंचतंत्र की इस शिक्षाप्रद कहानी से शिक्षा

शिक्षा – संकट और कष्ट की घड़ी में अपने साथी की सहायता नहीं करने से पछताना ही पड़ता है।


25. गुरु और शिष्य (short stories of panchatantra in hindi)

एक घने जंगल में एक तपस्वी तपस्या करते थे। वह इतने सिद्ध पुरुष थे कि उनका कोई आश्रम नहीं था बल्कि वे खुले वन में वट वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाये रहते थे। उनकी सिद्धि के तेज से हिंसक पशु पक्षी उनपर आक्रमण नहीं करते थे। जंगल में ही कुछ दूरी पर एक जंगली कबीला था। जिसने वहाँ अपनी एक सुरक्षित बस्ती बना रखी थी।

हालांकि जंगली कबीला हिंसक था। किन्तु बुद्धिजीवी युवकों ने इन तपस्वी महाराज को अपना गुरु बना रखा था। सुबह होने के बाद बहुत समय तक गुरुजी अपने इन शिष्यों को शिक्षा देते थे और दोपहर तक ये शिष्य वापस अपनी बस्ती में चले जाते थे। किन्तु एक शिष्य ऐसा था जो अपना सारा समय गुरुजी के चरणों में उनकी सेवा में ही गुजारता था। दिन हो या रात। तपस्वी गुरु उसे बहुत चाहते थे। उसने तपस्या कर करके अपनेशरीर को बहुत कमजोर बना लिया था ताकि वह भी परम ज्ञान प्राप्त कर सके।

एक दिन दोपहर में गुरु और शिष्य गुरुजी इन शिष्यों को जंगल में अपने नियत स्थान पर बैठे हुए तपस्या कर रहे थे और चेला उनके चरणों में बैठा हुआ था। अचानक शिष्य यह देखकर घबरा गया कि सामने एक चीता उसे खाने के लालच में आगे बढ़ रहा है। शिष्य गुरुजी से बोला-गुरुजी मुझे बचाइये वरना यह चीता मुझे खा जायेगा। गुरुजी ने अपनी आदित्य शक्ति से अपना हाथ शिष्य के सिर पर रख दिया जंगल प्रकाश से जगमगा उठा जैसे चमत्कार हुआ अपने से बड़े चीते को देखकर आने वाला चीता घबराकर भाग गया।

चीता बना शिष्य जो कि कन्द-मल फल खाकर जावन यापन करता था स्वरूप बदल जाने से उसकी प्रकृति भी बदल गई। वह वन्य पशुओं को मारकर खाने लगा। एक दिन ऐसे ही गुरुजी तपस्या कर रहे थे और शिष्य पास ही में बैठा था अचानक उसने देखा कि सामने से एक मदमस्त भयंकर हाथी उसकी तरफ बढ़ा आ रहा था। तपस्वी गुरु को दिव्य दृष्टि से आने वाले खतरे का आभास हो गया। उन्होंने चीता बने शिष्य पर अपना हाथ रखा और एक तेज रोशनी के साथ ही चीता बना शिष्य भयानक मदमस्त हाथी बन गया।

आने वाला हाथी अपनी ही प्रजाति पशु को देखकर वहाँ से चलता बना। गुरुजी का शिष्य भी हाथी बनकर मदमस्त हो जंगल के पेड़-पौधों को उखाड़ने लगा धरती को अपने पैरों तले रौंदने लगा। इसी तरह एक दिन गुरु शिष्य दोनों बैठे थे कि अचानक एक बब्बर शेर वहाँ आ गया। यह देख गुरुजी ने अपने शिष्य को एक क्रोधित व दुगुने आकार का शेर बना दिया।

यह देख आने वाला शेर वहाँ से चला गया किन्तु शेर बना शिष्य अपने गुरु पर ही गुर्राया और उनपर ही आक्रमण करदिया। गुरु के शरीर के चारों ओर एक अदृश्य सरक्षा कवच था। शेर उससे टकराया तो बिजली के झटके से दूर जा गिरा तब गुरुजी ने बोला-हे दुष्ट मानव मैंने अपने तपोबल से आने वाली हर विपत्ति से बचाया। तने बार-बार अपना स्वरूप बदलते अपना स्वभाव भी बदल डाला । वास्तव में शक्ति उसी को शोभा देती है जो उसे धारण करने योग्य हो।

तू मेरा सबसे प्रिय शिष्य था तू अपना स्वरूप बदलने पर अपना स्वभाव नहीं बदलता तो तुझे मैं अपनी सारी सिद्धियाँ प्रदान करता। किन्तु अब तू सिर्फ़ एक कुत्ता बने रहने के लायक है। कम से कम मेरा वफादार तो रहेगा। इस तरह गुरु के शाप से शिष्य कुत्ता बन गया वह बहुत पछताया किंतु शाप वापस नहीं लिया जा सकता था। उसने सारा जीवन अपने गुरु के चरणों में प्रायश्चित रूप में गुजार दिया।


26. तीन चोर – पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां

काफी समय पहले की बात है। किसी शहर में रमन, घीसा और राका तीन चोर रहते थे। तीनों को थोड़ा-थोड़ा विद्या का ज्ञान था। तीनों चोरों को विद्या का ज्ञान प्राप्त होने के कारण बहुत घमण्ड था। विद्या द्वारा तीनों चोर शहर में बड़े-बड़े लोहे की तिजोरियों को तोड़ देते थे और

बैंकों को लूट लिया करते थे। इस तरह तीनों चोरों ने शहर के लोगों की नाक में दम कर रखा था।

एक बार तीनों चोरों ने एक बड़े बैंक में डकैती करके सारा माल उड़ा दिया। तब पुलिस को खबर हुई तो तीनों चोरों को पकड़ने के लिए तलाश करने लगी। मगर तीनों चोर पास ही के एक घने जंगल में भाग गए।

तीनों चोरों ने देखा कि जंगल में बहुत-सी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं। रमन ने अनुमान लगाकर कहा-‘ये तो किसी शेर की हड्डियाँ हैं। मैं चाहूँ तो सभी हड्डियों को अपनी विद्या के ज्ञान द्वारा जोड़ सकता हूँ।’ घीसा को भी विद्या का घमण्ड था सो वह बोला-‘अगर ये शेर की हड्डियां हैं तो मैं इनको अपनी विद्या द्वारा शेर की खाल तैयार कर उसमें डाल सकता हूं।’ रमन और घीसा की बात सुनकर राका का भी घमण्ड उमड़ पड़ा और उसने कहा-‘तुम दोनों इतना काम कर सकते हो तो मैं भी अपनी विद्या द्वारा इसमें प्राण डाल सकता हूँ।

तीनों चोर अपनी विद्या का प्रयोग करने लगे। कुछ देर बाद रमन ने सारी हड्डियों को जोड़ दिया और घीसा ने शेर की हुबहू जान डाल दी। थोड़ी देर में तीनों चोर सामने एक जीवित भयानक शेर को देखकर थर-थर कांपने लगे। मगर शेर के पेट में तो एक दाना नहीं था। वह भूख के मारे गरजता हुआ तीनों चोरों पर हमला कर बैठा और मारकर खा गया। शेर मस्त होकर घने जंगल की ओर चल दिया

पंचतंत्र की इस शिक्षाप्रद कहानी से शिक्षा

शिक्षा – दोस्तों, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए। घमण्डी को हमेशा दुख का ही सामना करना पड़ता है। यदि तीनों चोर अपनी विद्या का घमण्ड न करते तो उन्हें जान से हाथ न धोने पड़ते । हमें अपनी विद्या का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।


27. चतुर नाई – पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां

किसी समय रायगढ़ रियासत में राजा चक्रधर सिंह राज्य करते थे। उनकी अनेक सनक थी। जिस समय राजा को हजामत बनवानी होती उस दिन सुबह-सुबह नगर के 5-10 नाई अपने औजारों के साथ महल में उपस्थित होते। जब राजा हजामत बनवाने आते । तब उनके महामंत्री. सेनापति और कुछ सैनिक भी रहते । पलटन को देख बेचारे नाइयों को तो वैसे ही पसीना छूटता था क्योंकि थोड़ी गलती हुई नहीं कि कोड़े पड़ने शुरू।

राजा भी कम न थे, न जाने उन्हें क्या मजा आता कि एक नाई से सामने के बाल तो दूसरे से बाएँ के, तीसरे से दाएँ के बाल कटवाते थे। परन्तु चौथे से पीछे के बाल कटवाते तो उस बेचारे नाई की शामत आ जाती। एक वार ऐसा हुआ कि एक नाई नया-नया ही उनके राज्य में आया था। उसे राजा की हजामत के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। संयोग से राजा ने उसे पीछे के बाल काँटने को कहा। नया नाई बड़ी उलझन में फंस गया। उसने बड़ी हिम्मत करके नम्रता के साथ कहा-महाराज ! मुझे आपके सर के पीछे के बाल काटने हैं तो जरा…..।

‘जरा क्या ?’ ‘थोड़ा हुजूर क्या।’ ‘अब हुजूर क्या ?’ ‘थोड़ा हुजूर….सर झुकाइए ना।’

क्या कहा? राजा ने लाल-लाल आंखें दिखाते हुए कहा- ‘मेरा सर और उस पर तेरा अधिकार ?’ बेवकूफ राजा तू कि मैं ? एक तरफ तो तू मुझे महाराज कहता है । और दूसरी तरफ सर झुकाने के लिए भी कहता है ? सेनापति इस बदतमीज को 25 कौड़े मारे जाएँ।

नाई 25 कोड़े की मार के डर से भाग खड़ा हुआ। आगे-आगे नाई, उसके पीछे राजा, राजा के पीछे महामंत्री, महामंत्री के पीछे सैनिक । नगरवासी यह अनोखा नजारा देख हंसने लगे। किसी तरह नाई को पकड़ा गया। उसने राजा के बाल बनाए। उसके बाद राजा ने बड़े प्रेम से उसे 25 कोड़े लगाने के लिए एक सैनिक से कहा। 25 कोड़े. की मार के बाद वह नाई कराहते हुए जोर-जोर से रोने लगा। राजा भी आश्चर्यचकित होकर बोले- ‘आज तक कोई भी नाई 25 कोड़े की सजा के बाद तो नहीं रोया, जितना तू चिल्ला रहा है।

महाराज आपने तो इस सैनिक को हल्के से कोड़े मारने के लिए कहा था लेकिन यह तो जोर-जोर से कोड़े मारकर अपनी जाति-दुश्मनी निकाल रहा है।

कैसी जाति-दुश्मनी ?

महाराज कुछ दिन पहले इसकी बकरी मेरी बाड़ी की सारी सब्जी खा गई थी। मैंने उसकी बकरी की पिटाई की और आज यह उसका बदला इस तरह निकाल रहा है।

सेनापति इस सैनिक को सैनिक विधि के अनुसार जो टूण्ड दे सको दे दो। अगर नाइयों को इस तरह पीटा जाएगा तो कल को मेरे राज्य में कोई भी नहीं रहेगा।

महामंत्री नाई को 5 रजतमुद्रा और एक स्वर्ण मुद्रा दी जाए।

जो आज्ञा महाराज ! महामंत्री ने कहा।

महाराज मेरी समझ में नहीं आता कि सजा के साथ यह ईनाम कैसा?

राजा बोले- ‘तू मेरे राज्य में नया-नया आया है। तू ने अपने राजा का सर झुकाया, इसीलिए तुझे इसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए। यह सजा तो यहाँ हमेशा दी जाती है। मूर्ख, मैं नहीं जानता था कि इतने कोड़े खाने के बाद कुछ दिन तू काम करने योग्य न रहेगा। मैं तेरा राजा हूँ। प्रजापालक हूँ। मैं जब सजा दे सकता हूँ तो. ईनाम भी दे सकता हूँ फिर मेरे कारण तेरे बाल-बच्चे क्यों भूखे मरे ?’ इसीलिए आर्थिक सहायता के रूप में तुझे ईनाम भी दिया जा रहा है। सैनिकों इसे उठाकर राजकीय दवाखाने ले जाओ।

और इस तरह उस चतुर नाई को सजा के साथ-साथ ईनाम भी मिल गया।


28. सबसे अमीर कौन ? (panchatantra short stories in hindi)

सूरज नगर में सूर्यसेन नाम का राजा राज्य करता था। वह बड़ा ही न्यायप्रिय प्रजापालक और साधु सन्तों का आदर करनेवाला था। एक बार उसके दरबार में एक वृद्ध सन्यासी पधारे उनके पास लोहे का एक बहुत बड़ा बक्सा था। जिसे वह अपने साथ राज दरबारमें लेकर आये थे। राजा सूर्यसेन ने वृद्ध सन्यासी का उचित आदर सत्कार किया।

उन्हें अपने पास आदर पूर्वक आसन पर बिठाया। वह बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा को अपने आने का कारण बताया-राजन मेरे पास बकसे में बहुत-सा धन है मैं वह धन किसी योग्य व्यक्ति को देना चाहता हूँ। राजा सूर्यसेन ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा और पूछा-लेकिन आपके पास यह धन आया कहाँ से? साधु सन्यासी तो सिर्फ़ दो वक्त की भिक्षा ग्रहण करते हैं। सन्यासी ने उत्तर दिया-राजन इस धन की एक लम्बी कहानी है बस इतना ही जान लो कि कई साल पहले मेरा फला फूला व्यापार था।

व्यापार दिन दूना रात चौगनी तरक्की पर था परन्तु उन दिनों मैं बहुत कंजूस हुआ करता था। मेरे दिमाग में पैसा ही पैसा समाया रहता था। मेरा एक ही बेटा था वह लोगों की बहुत ही सहायताकिया करता था। उनके सुख-दुख में शामिल होता था। मैं उसकी इस आदत से बहुत खफा रहता था। एक दिन उसने एक गरीब की लड़की की शादी के लिए मुझसे पैसे माँगे। मैंने गुस्से में आकर उसके हाथ पर जलता हुआ कोयले का अंगारा रख दिया था। वह परेशान होकर गुस्से में घर से भाग गया। उसी के विछोह में मैंने सन्यास ले लिया। उसके बिना यह धन मेरे किस काम का ?

किन्तु मैं अपने बेटे को उसकी अमानत लौटाकर प्रायश्चित करना चाहता हूँ। इसलिए यह धन मैंने अपने साथ रखा। परन्तु राजन अब मेरा अन्त समय आ गया और मैं चाहता हूँ यह धन किसी योग्य व्यक्ति को दूँ जो मेरे बेटे की तरह इसका सही इस्तेमाल कर सके। सभी सभासद सन्यासी की ओर हैरानी से देख रहे थे। राजा ने नम्रता से पूछा -किन्तु महात्माजी आपकी दृष्टि में योग्य व्यक्ति कौन हो सकता है ? राजन मैंने इसका फैसला किया है कि योग्य व्यक्ति वही माना जायेगा जो मेरी दृष्टि में सबसे अमीर होगा।

अतः राजन आप घोषणा करवा दें कि सबसे अपनी अपनी अमीरी का प्रदर्शन करें। राजा ने घोषणा करवा दी। एक विशाल राजकीय मैदान में प्रदर्शन का आयोजन किया गया। सभी अमीरों ने अपने-अपने तम्बू को एक लाइन से लगा दिया। जिसमें सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात व अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ सजाकर रख दी। सभी अपने आपको अमीर साबित करने पर तुले थे। सन्यासी निर्णायकों के साथ प्रत्येक तम्बू में जाते देखते और निराश लौट आते । गरीबों की दर्शक टोली एक किनारे आयोजन का आनन्द ले रही थी।

सन्यासी घूम-घूमकर करीब सभी तम्बुओं को देख चुके थे। निराश हताश वे एक पेड़ की छाँव में जाकर बैठ गये। तभी एक भिखारी वहाँ आया और तम्बुओं के सामने जाकर पैसे माँगने लगा। किसी भीअमीर ने उसे फूटी कौड़ी भी नहीं दी। उन्होंने सोचा कि भिखारी को देने से उनका धन कम हो जायेगा। अन्त में निराश होकर भिखारी गरीबों की टोली की ओर बढ़ गया। वहाँ फटेहाल से एक युवक ने पैबन्द लगे दुशाले को उस भिखारी को ओढ़ा दिया और अपनी जेब के सारे पैसे निकालकर दे दिये।

सभी अमीर गरीब उसके इस कार्य को बड़ी हैरानी से देख रहे थे। मिल गया मिल गया सबसे अमीर मिल गया। कहता हुआ सन्यासी उस फटेहाल गरीब युवक की ओर दौड़ पड़ा। वहाँ पहुँचकर उसने उसे गले से लगा लिया। सभी सन्यासी की तरफ आश्चर्य से देखने लगे। उसने सिपाहियों से बड़ा बक्सा उस को सौंपने को कहा।

सभी अमीरों का सर लज्जा से झुक गया। तब तक राजा भी वहाँ पहुँच गया। उसने सन्यासी से पूछा-यह क्या महात्मा आपने तो धन किसी अमीर को देने की घोषणा की थी? सन्यासी ने मुस्कुराकर कहा-क्या राजन आपने इसकी अमीरी नहीं देखी? इसके पास तो दुनिया की सबसे नायाब दौलत है इसकी इंसानियत । जिसके पास इंसानियत नहीं वह तो सबसे गरीब है।

इन अमीरों की दौलत तो खर्च होने पर घटती है। किन्तु इंसानियत की दौलत खर्च करने पर और बढ़ती ही है। यह लोग तो खुद इतने गरीब हैं कि बेचारे भूखे को अन्न का एक दाना भी नहीं दे सकते । लोभियों को धन देने से क्या लाभ ? जो गरीबों की सहायता ही नहीं कर सकते। सभी अमीरों के सर लज्जा से झुक गये। गरीब खुश होकर तालियाँ बजाने लगे।

सन्यासी के स्नेह भाव से उस युवक का हाथ अपने हाथों में ले लिया तो उसकी हथेली पर काला निशान देखकर चौंक गया। काँपते हुए उसने पछा-बेटे यह हाथ पर काला निशान केसा है ? युवक ने मस्कराकर उत्तर दिया एक बार मैंने अपने कंजूस पिता सेएक गरीब की सहायता के लिए पैसे माँगे तो उन्होंने यहाँ अंगारा रख दिया था।

सन्यासी भौचक्क सा रह गया था उसने युवक को झट से अपने गले लगा लिया और बोले-बेटा मैं ही तेरा वो अभागा बाप हूँ। तेरी खोज में कहाँ-कहाँ नहीं भटका हूँ। उन्होंने उस धन से एक विशाल धर्मशाला बनवा दी जहाँ दोनों गरीबों और राहगीरों की सेवा करके अपने दिन काटने लगे।


29. हाजिर जवाब – पंचतंत्र की लघु कहानियां

इस बार कहानी कहने के लिये भरत खड़ा हुआ। कहा-“मैं जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ उसका शीर्षक है “हाजिर जवाब ।”

एक बार टुनटुन झा जमीन्दार कल्लू सिंह की मुसीबत में काम आया। जमीन्दार ने टुनटुन झा की चतुराई पर खुश होकर पाँच वीघा जमीन देने की बात कबूल की । जब जब टुनटुन झा कहे कि वादे के अनुसार कबूल की गयी जमीन उसे रजिस्ट्री कर दी जाय । लेकिन कल्लू सिंह को तब लोभ लग गया। जब भी टुनटुन झा अपनी जमीन माँगता, कल्लू सिंह उसे टालमटोल कर जाता। टुनटुन झा लगा अब सोचने कि कैसे जमीन हासिल करे । एक दिन मौका मिल ही गया।

कल्लू सिंह-“लोग अंधे, बहरे, लंगड़े क्यों होते हैं ? अगर इस प्रश्न का सही-सही उत्तर कल सुबह हमारी मजलीश में बता दोगे तो तुम्हारी जमीन तुम्हें अवश्य मिल जाएगी।”

“ठीक है, मैं कोशिश तो जरूर करूँगा।” ऐसा कहकर टुनटुन झा अपने घर चला गया। रात भर चिंतित रहा…. आखिर बोले तो क्या बोले । सुबह हुआ । टुनटुन झा जमीन्दार कल्लू सिंह की मजलीश में पहुँचा । कल्लू सिंह ने पुनः पूछा “टुनटुन झा ! देर न करके अविलंब उत्तर दो।”

“जमींदार साहब।” हाथ जोड़कर टुनटुन झा उत्तर देने को प्रस्तुत हो गया-“पूर्व जन्म में जो लोग अपने वचन से मुकर जाते हैं वे ही लोग अंधे, बहरे, लंगड़े होते हैं।”

टुनटुन झा की बात सुनकर जमींदार कल्लू सिंह के कलेजे में बात लगी। तभी पुन: टुनटुन झा ने बोला- “नहीं मानने वालों के लिये तो सही उत्तर भी गलत हो जाता है।”

“नहीं टुनटुन झा, तुम्हारा उत्तर बिल्कुल गलत नहीं है । मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न होकर तुम्हें पाँच बीघा खेत अभी देता हूँ।” और जमींदार कल्लू सिंह ने जमीन रजिस्ट्री करने के लिए कचहरी की ओर चल दिया।


30. नीबू चोर – panchatantra short stories in hindi with moral

इस बार कहानी सुनाने के लिए राजेश खड़ा हुआ और बोला-मैं जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ उसका शीर्षक है “नींबू चोर ।”

एक दिन की बात है टुनटुन झा की पत्नी टुनटुन झा से बोली-“हर पर्व में सबों के घर में दामाद आते हैं और हमारे घर में नहीं। पाँच वर्ष से बेटी दामाद के दर्शन नहीं हो पाये हैं। क्यों नहीं जाकर दामाद और बेटी को ले आते हैं।”

इस पर टुनटुन झा खीझकर कहते हैं, “धुर्र पगली कहीं की ! दामाद और बेटी को लाओ…..दामाद और बेटी को लाओ….रट लगा रखी है। दामाद-बेटी को लाना क्या साधारण बात है। कितना खर्च है यह तुम्हें क्या पता । अगर तुम जानती तो बेटी-दामाद लाने की बात ही नहीं बोलती।”

लेकिन टुनटुन झा की पली जिद लगा दी “मैं कुछ नहीं सूनँगी । बेटी-दामाद को लाना ही होगा। आपकी कंजूसी इस बार नहीं चलेगी।” टुनटुन झा ने सोचा उसकी पत्नी इस बार किसी बात पर नहीं मानेगी। कहा……”अच्छा जाता हूँ लाने ।”

तैयार हुआ और चल दिया। रास्ता में चलता और सोचता कि एक तीर में दो निशान कैसे लगाऊँ कि और कभी पत्नी महारानी बेटी-दामाद को लाने की जिद न करे और न दामाद ससुराल की बात बोले। दामाद के घर पहुंच गया। खूब सुन्दर-सुन्दर खाना पका ।

पुआ पकवान छना। बेटी-दामाद के सत्कार में कोई कमी नहीं हुई। टुनटुन झा को लेकिन यह सब खर्च अच्छा नहीं लग रहा था। करता भी क्या ! अभी पत्नी महारानी की बात चल रही थी। जब बेटी-दामाद का खाना-पीना हो गया तब अपने दामाद को एकांत में बैठाकर कहा, “हमारे गाँव में नींबू चोर की संख्या खूब बढ़ गयी है।

अतः आप थोड़ी देर नींबू पेड़ के नीचे स्टूल पर इस तरह बैठकर रहें कि कोई जान न पाये । तभी तो चोर पकड़ा जायेगा। टुनटुन झा की बात । पर दामाद महाशय ने वैसा ही किया।

टुनटुन झा खाना खाने के लिये बैठा और बोला-“एक टुकड़ा नींबू के बिना खाना नहीं खाता हूँ।”

“नींबू आज आपके लाया है ? जो नीबू काटकर दूँ ?” पत्नी ने जवाब” नहीं लाया हूँ तो क्या हुआ अपने गाछ से तोड़ककर ले आओ ।’ टुनटुन झा की पत्नी चली लालटेन लेकर नींबू तोड़ने। रास्ते में ही लालटेन हवा के कारण बुझ गयी। घर के पिछवाड़े में ही तो नींबू का पेड़ था ।

अत: अंधकार में ही सोची एक नींबू तोड़ लाएगी। जैसे ही नींबू तोड़ी थी कि दामाद महाशय ने अपनी सास को दोनों बाहों में सिमेट लिया और “नींबू चोर.. ..नींबू चोर…..” का हल्ला किया । टुनटुन झा तुरन्त दूसरा लालटेन लेकर हाजिर । कहा-“छी….छी…..छी….छी..। दामाद होकर तुमने अपनी सास को इस तरीके से पकड़ा।

“और फिर अपनी पत्नी की बेइज्जती की- “इसलिए कहती थी कि बेटी-दामाद को लाओ कैसा मजा लगा । दामाद होकर पकड़ा।

छी….छी…..छी…..।

“इसी समय बेटी भी घर के पिछले दरवाजे खोलकर देख चुकी थी कि उसकी माँ को पकड़ रखा है…..तो अपने पति पर शक-सन्देह हो गया । टुनटुन झा की बेटी ने सोचा और इसे कभी ससुराल आने की इजाजत नहीं दी जाएगी ।

मेरी माँ पर आकर्षित हो गया है और इधर दामाद को जो लाज आई सो तो वही जान रहा था। सुबह सूर्य उगने के पहले ही दामाद अपने घर भागा।

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