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पर उपदेश कुशल बहुतेरे – Par Updesh Kushal Bahutere
सूक्ति का अर्थ
इस उक्ति का अर्थ है दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है लेकिन उन उपदेशों को अपने जीवन में उतार पाना बहुत कठिन है। प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव के अधीन होता है। स्वभाव को बदलना बहुत कठिन होता है। मनुष्य लोभ, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष जैसी सामान्य बुराइयों से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाता है। इन्हीं की तरह मनुष्य दूसरों को उपदेश देने से भी स्वयं को रोक नहीं पाता। प्रायः होता यह है कि जैसा व्यवहार वह स्वयं नहीं कर पाता, वैसा करने के लिए दूसरों से कहता है। इसी को लक्ष्य करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।
आचरण एवं व्यवहार
अधिकतर व्यक्ति बिना माँगे सुझाव और अनावश्यक उपदेश देते रहते हैं। इस प्रकार उपदेश देने वालों के मन में ये बातें बैठी रहती हैं पर स्वयं वे उन पर आचरण नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति कहीं-न-कहीं इस हीनभावना से ग्रस्त होते हैं कि स्वयं उन अच्छाइयों को अपने जीवन में नहीं उतार पा रहे हैं जिनका वह उपदेश दे रहे हैं। दूसरों को उपदेश देने वाला अपने आप को अन्य लोगों की अपेक्षा ज्ञानवान समझता है। उसका यह अहंकार उसे उपदेश देने को प्रेरित करता है। व्यक्ति स्वयं को प्रदर्शित करने की भावना और दिखावा करने का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाहता।
निष्कर्ष
वास्तव में उपदेश देने का अधिकार उसे ही है जो स्वयं उसे अपने जीवन में उतारता है। वह जो कह रहा है वह दूसरों के लिए ही नहीं उसके लिए भी लागू होता है। कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। जो नैतिक रूप से साहसी होता है, वही ऐसा कर पाता है। ऐसे व्यक्तियों के चरित्र पर कोई उँगली नहीं उठा सकता है। इससे उपदेश देने वाले व्यक्ति की महानता और गंभीरता प्रकट होती है।
ऐसे व्यक्ति को समाज में आदर मिलता है और उसका चरित्र दूसरों के लिए अनुकरणीय बन जाता है। इससे समाज को सही नेतृत्व मिलता है और समाज के विकास को एक सकारात्मक दिशा मिलती है।
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