3 Best Pustakalaya Par Nibandh | Library in Hindi Essay | पुस्तकालय पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में पुस्तकालय पर निबंध – Pustakalaya par Nibandh | Library in Hindi Essay पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं

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Contents

10 Lines Essay on Pustakalaya in Hindi | Short Essay on Pushtakalaya

  1. प्रत्येक विद्यालय में एक पुस्तकालय होता है। पुस्तकालय में अनेक विषयों पर पुस्तकों के संग्रह होते हैं।
  2. यह ज्ञान के स्रोत हैं छात्र गण पुस्तकालय से लाभान्वित होते हैं।
  3. मेरे विद्यालय में भी अच्छा पुस्तकालय है। यह सार्वजनिक पुस्तकालय से सर्वथा भिन्न है।
  4. हमारे विद्यालय का पुस्तकालय केवल हम लोगों के लिए है।
  5. पुस्तकालय के लिए एक पृथक कमरा है। वहां वाचनालय है। यहां विभिन्न विषयों पर पुस्तकें हैं।
  6. पुस्तकालय में 9000 पुस्तकें हैं, यह अलमारियों में अच्छी तरह रखी जाती है।
  7. यह काफी संख्या में समाचार पत्र एवं पत्रिका प्राप्त करते हैं।
  8. एक पुस्तकालय अध्यक्ष पुस्तकालय की देखभाल करता है, वह शिक्षकों एवं छात्रों को पुस्तके जारी करता है।
  9. यहां कहानियों कविताओं नाटक उपन्यास तथा विज्ञान की पुस्तकें हैं।
  10. यह पुस्तकें हिंदी अंग्रेजी और उर्दू भाषा में है हमारे विद्यालय का पुस्तकालय हम लोगों के लिए बहुत सहायक है।

पुस्तकालय पर निबंध – Pustakalaya par Nibandh |
Library in Hindi Essay

‘पुस्तकालय’ शब्द ‘पुस्तक+आलय’ से बना है। इसका अर्थ है पुस्तकों का घर। ‘पुस्तकालय सरस्वती का मन्दिर’ कहलाता है। यहाँ देश-विदेश की कई भाषाओं और कई विषयों की पुस्तकें होती हैं। यहाँ एक वाचनालय होता है, जहाँ पाठक बैठकर समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ते हैं। खाली समय बिताने का यह उत्तम स्थान है। यहाँ शान्ति होती है तथा लोगों को ऐसे धन और सुख की प्राप्ति होती है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उत्तम भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार मानसिक विकास के लिए अच्छी पुस्तकों की आवश्यकता होती है। पुस्तके मनुष्य का सच्चा साथी हैं। वे मानव का मार्गदर्शन करती हैं। वे उसे बराई से हटा कर अच्छाई की ओर ले जाती हैं। ये ज्ञान का भंडार होती हैं। इनसे मनोरजंन भी होता है।

माता-पिता द्वारा दिया गया विद्यारूपी धन वास्तव में बच्चों की सच्ची पूँजी है। विद्यार्थी विद्या पाने के लिए अनेक पस्तकें पढता है। पुस्तकें पढ़कर वह चिन्तन और मनन करता है। फिर वह जीवन में महान् बनता है। महान् पुरुषों की जीवनियाँ और शिक्षाप्रद कहानियाँ लोगों का जीवन बदल देती हैं। अत: छात्रों को आरम्भ से ही पस्तकालय में जाकर पुस्तकें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए।

पुस्तकालय दो प्रकार के होते हैं-निजी पुस्तकालय और सार्वजनिक पुस्तकालय। प्राचीन काल में अधिकतर पुस्तकालय वैयक्तिक थे। राजा-महाराजा ही इनके स्वामी होते थे। आधुनिक युग में सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या दिनादिन बढ़ती जा रही है। ये पुस्तकालय प्राय: सरकारी अनुदान से चलते हैं। भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय ‘राष्ट्रीय पुस्तकालय’ कलकत्ता में है। दिल्ली में दिल्ली पब्लिक पुस्तकालय भी बड़ा प्रसिद्ध है। चलती-फिरती पुस्तकालय योजना देश की बहुत सेवा कर रही है।

हमारे विद्यालय में भी दूसरे विद्यालयों की तरह एक सुन्दर पुस्तकालय है। पुस्तकालय अध्यक्ष छात्रों एवं अध्यापकों को घर में पढ़ने के लिए पुस्तकें देते हैं सचाई यह है कि पुस्तकालय एक कल्पतरु है। सब छात्रों को पुस्तकालय स लाभ उठाना चाहिए। उनमें से कोई कागज नहीं फाड़ना चाहिए। पुस्तक पर कुछ लिखना भी उचित नहीं होता। पुस्तके पढकर समय पर लौटा देनी चाहिए ताकि दूसरे लोग पुस्तकालय से लाभान्वित हो सक।


प्रेरणा का स्रोत पुस्तकालय

स्कूल पुस्तकालय का गठन

स्कूल पुस्तकालय का अच्छी प्रकार से गठन किया जाना चाहिए। उसकी ओर उचित ध्यान देना चाहिए। पुस्तकालय तथा वाचनालय के लिए उचित जगह होनी चाहिए और प्रशिक्षित लाइब्रेरियन को उनका इंचार्ज बनाना चाहिए। पुस्तकालय को अच्छी प्रकार से सुसज्जित करने के लिए स्कूल की आय का कुछ भाग उन पर खर्च किया जा सकता है।

पुस्तकालय की स्थापना के पश्चात् विद्यार्थियों को उसका महत्व भी बताना चाहिए। विद्यार्थियों में पुस्तकालय का उचित प्रचार भी होना चाहिए। यदि सम्भव हो तो विद्यार्थियों के माता-पिता को भी पुस्तकालय का प्रयोग करने देना चाहिए। जो पुस्तकें कम हों उन्हें पुस्तकालय में बैठकर पढ़ने की आज्ञा देनी चाहिए। ऐसी पुस्तके केवल एक रात के लिए ही विद्यार्थियों को घर पर ले जाने के लिए देनी चाहिए।

अच्छे पुस्तकालय के गठन के सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ ठाकुर का कथन है कि “मेरे विचार में एक छोटा पुस्तकालय वह है जिसमें प्रत्येक विषय पर पुस्तके हों, चुनी हुई, पुस्तकें, ऐसा नहीं जिसमें पुस्तकों की संख्या की पूजा होती हो बल्कि जहां पुस्तकें अपने गुणों के कारण विद्यमान हों, जहां का लाइब्रेरियन अपने काम के प्रति समर्पित हो, जिसमें किसी प्रकार का स्वार्थ न हो उसमें एक मेजबान के गुण हों, एक स्टोर कीपर के नहीं।”

पुस्तकालय के लिए पुस्तकें पुस्तकालय में वे पुस्तकें होनी चाहिए जिनका बच्चों के लिए महत्व हो। अतः यह आवश्यक है कि पुस्तकालय के लिए पुस्तकों का चयन करते समय विद्यार्थियों की रूचियों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाए। बच्चों को पुस्तकालय की ओर आकर्षित करने के लिए सचित्र पुस्तकें भी रखी जानी चाहिए। भले ही पुस्तकों में पूरी सूचना न हो परन्तु उनमें जो कुछ भी दिया हो रोचक ढंग से दिया गया हो। सैकेण्डरी शिक्षा आयोग ने इस बात पर बल देकर कहा है कि पुस्तकालय की पुस्तकों का चयन न्याय संगत होना चाहिए।

निम्नलिखित प्रकार की पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिए

  • यात्रा, साहसपूर्ण कार्यों, खोजों आदि की पुस्तकें।
  • महापुरूषों और महान् नारियों की जीवनियां।
  • स्कूल में लगी हुई पाठ्य-पुस्तकें जिनका प्रयोग अध्यापक भी कर सकते हैं।
  • बुक बैंक में पाठ्य-पुस्तकें प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए ताकि निर्धन विद्यार्थी उनका प्रयोग कर सकें।
  • मनोरंजक पुस्तकें-कहानियां, आदि ।
  • उच्च विषयों पर अच्छे स्तर की पुस्तकें।
  • अध्यापकों के मार्ग-दर्शन के लिए।
  • संदर्भ पुस्तकें-शब्द-कोष, विश्व कोष आदि।

पुस्तकालय कक्ष

पुस्तकालय स्कूल-भवन के एक कोने में स्थित होने चाहिए। जहां कक्षाओं के शोरगल से किसी प्रकार की बाधा न हो। उसमें पुस्तकें तथा अलमारियां रखने के लिए उपयोगी कमरे हों और सुसज्जित वाचनालय हो। पुस्तकालय चार्ट और चित्रों से सजा होना चाहिए। वाचनालय हो। वाचनालय में बैठने का सुप्रबन्ध होना चाहिए तथा हवा और प्रकाश की सुव्यवस्था होनी चाहिए।

उसमें कृत्रिम प्रकाश का भी प्रबन्ध होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रयोग किया जा सके। पुस्तकालय में धम्रपान और बातें करना वर्जित होना चाहिए।

इस संदर्भ में श्री एस. आर. रंगानथन ने कहा है।

“पुस्तकालय प्रचुर मात्रा में आकर्षक सुमुद्रित एवं सुचित्रित पुस्तकों,” आरामदेह फर्नीचर ‘ओपन शैल्बज’, आकर्षक चित्रों, लटकते हुए फलों तथा ज्ञानप्रद रूप से सुसज्जित होना चाहिए और उनका लाइब्रेरियन ऐसा होना चाहिए जिसे बच्चों और पुस्तकों दोनों से प्यार हो।

पुस्तकालय का प्रचार और उसके नियम

स्कूल के प्रत्येक व्यक्ति को स्कूल पुस्तकालय के प्रयोग का ज्ञान होना चाहिए। पुस्तकालय के नियमों को नोटिस-बोर्ड पर चिपकाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना जरूरी है-

  • प्रत्येक कक्षा के लिए पुस्तकालय पीरियड नियत किया जाए।
  • स्कूल-पुस्तकालय के खुलने तथा बन्द होने का समय सभी को पता होना चाहिए।
  • पुस्तकें लेने और देने का समय निश्चित होना चाहिए।
  • विद्यार्थियों को उन पुस्तकों का रिकॉर्ड रखने को कहना चाहिए. जो वे पढ़ रहे हैं। उन पुस्तकों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भी चोट करनी चाहिए।
  • बच्चों को पुस्तकें खराब न करने की चेतावनी देनी चाहिए।

विद्यार्थियों में अतिरिक्त-अध्ययन की आदतों का विकास

विद्यार्थियों में अतिरिक्त-अध्ययन की आदत के विकास की ओर आजकल ध्यान नहीं दिया जाता। विद्यार्थी केवल अपनी पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रहते हैं। अधिकांश विद्यार्थी तो केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए सस्ते नोट्स पर ही आश्रित रहते हैं। परिणामस्वरूप स्थिति निरन्तर बिगड़ती जा रही है।

इस दिशा म पयाप्त प्रयास करने की आवश्यकता है अर्थात् विद्यार्थियों में अतिरिक्त अध्ययन की आदत को विकसित करने की आवश्यकता है और पुस्तकालय इसके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

रविन्द्रनाथ टैगोर के कथनानुसार,

“इस पुस्तकालय के पूर्ण प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि इसी सामग्री की ओर स्पष्ट एवं विशिष्ट रूप से ध्यान दिलाया जाए नहीं तो एक साधारण व्यक्ति के लिए पुस्तकालय में अपना मार्ग ढूंढना कठिन हो जाएगा और पुस्तकालय एक नगर के समान बनकर रह जाएगा जिसमें जगह तो बहुत है परन्तु आवागमन के साधन बहुत कम है।”

  • विद्यार्थी अतिरिक्त पुस्तकें तभी पढ़ते हैं जब उन्हें पुस्तकालय के प्रयोग का ज्ञान हो। अध्यापक को उन्हें पुस्तकालय का ज्ञान देना चाहिए।
  • पुस्तकालय में सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी पुस्तकें होनी चाहिए। बच्चों के लिए, बड़ों के लिए, अध्यापकों के लिए, प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थियों के लिए अर्थात् सभी के लिए उचित पुस्तकें होनी चाहिए।
  • नई पुस्तकों की सूचना नोटिस-बोर्ड पर लगानी चाहिए। यदि सम्भव हो सके तो उन पुस्तकों के कवर नोटिस-बोर्ड पर प्रदर्शित करने चाहिए।
  • विद्यार्थियों का एक पुस्तकालय संघ बनाना चाहिए। उन्हें पुस्तकालय में कुछ कामों पर लगाना चाहिए जैसे अलमारियों की सफाई करना, पुस्तकों को तरीके से लगाना आदि। ये काम करते समय उनकी दृष्टि कई पुस्तकों पर पड़ेगी और उनके मन में उन्हें पढ़ने का शौक भी पैदा होगा।
  • पुस्तकालय सेवा कुशल होनी चाहिए। पुस्तकालय स्टॉफ का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। उन्हें विद्यार्थियों की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
  • विषय-अध्यापकों को भी अपने-अपने विषयों में निपुण होना चाहिए। उन्हें पुस्तकालय की पुस्तकें पढ़ने का शौक होना चाहिए। उनके शौक को विद्यार्थियों की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
  • विषय-अध्यापकों को भी अपने-अपने विषयों में निपुण होना चाहिए। उन्हें पुस्तकालय की पुस्तकें पढ़ने का शौक होना चाहिए। उनके शौक को विद्यार्थी भी अपनाने लगेंगे।
  • अध्यापक को उन विद्यार्थियों की कक्षा में घोषणा करनी चाहिए जो अतिरिक्त-अध्ययन करते है। इससे एक तो उन विद्यार्थियों को स्वीकृति प्राप्त होगी और दूसरा अन्य विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलेगी।
  • जहां तक सम्भव हो सके पुस्तकालय में ओपन-शैल्फ-सिस्टम रखना चाहिए ताकि विद्यार्थी पुस्तकों तक आसानी से पहुंच सकें।
  • अध्यापक को चाहिए कि पुस्तकालय की पुस्तकों में से पढ़ी कहानियां विद्यार्थियों को सुनाए। इससे उन्हें पुस्तकें पढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।
  • कक्षीय शिक्षण को इस प्रकार गणित किया जाए कि विद्यार्थी पुस्तकालय के प्रयोग के बिना अपनी पढ़ाई को अधूरा समझें। अपने कक्षीय ज्ञान को पूर्ण करने के लिए उन्हें पुस्तकालय की पुस्तकें पढ़ने की आवश्यकता अनुभव हो। पूरक-पुस्तकों का नाम अध्यापकों द्वारा बताना चाहिए।
  • जिन पुस्तकों की विद्यार्थियों द्वारा अधिक पढ़े जाने की आशा होती है। उनकी प्रतियां पर्याप्त संख्या में रखी जानी चाहिए।
  • पुस्तकालय का अधिकतम प्रयोग करने वाले विद्यार्थी को पुरस्कार दिए जाने चाहिए।
  • परीक्षाओं में भी कुछ प्रश्न पूरक-पुस्तकों में से पूछे जाने चाहिए। इससे विद्यार्थी पूरक-पुस्तकें पढ़ने के लिए बाध्य होंगे।

विद्यार्थी आसानी से पुस्तकालय में पहुंच सके इसके लिए आवश्यक है कि लाइब्रेरियन का व्यवहार प्रभावशाली हो। उसे छोटे बच्चों की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। लाईब्रेरियन का काम केवल पुस्तकें देना और लेना नहीं है। यह भी वस्तुतः एक अध्यापक होता है जो व्यावहारिक शिक्षण प्रदान करता है। वह मौन अध्यापक है।

पुस्तकालय स्कूल का निष्क्रिय-भाग नहीं होना चाहिए। वह ऐसा हो कि प्रत्येक व्यक्ति उसका अस्तित्व अनुभव करे। पुस्तकों, फर्नीचरों अलमारियों आदि से सुसज्जित पुस्तकालय एक अच्छा पुस्तकालय होता है। उसकी सफलता के लिए उचित कैटालॉग की व्यवस्था भी आवश्यक है। कैटालॉग के बिना पुस्तकालय ऐसे भवन के सामान है जिसमें प्रकाश और आवागमन का कोई प्रबन्ध नहीं। टैगोर के कथनानुसार, “पुस्तकालय को तभी मेहमान-नवाज” कहा जा सकता है जब उसमें पाठकों को आमन्त्रित करने की उत्सुकता हो। यह मेहमान-नवाजी ही पुस्तकालय को वास्तविक महानता प्रदान करती है। पाठक पुस्तकालय को बनाते हैं। यह समूची सच्चाई नहीं, पुस्तकालय भी पाठाकों का निर्माण करता है।

स्कूल पुस्तकालय के लाभ

  • पुस्तकालय कक्षा में प्राप्त ज्ञान को पूर्णता प्रदान करता है।

सैकेण्डरी-शिक्षा-आयोग के कथनानुसार, “व्यक्ति कार्य, ग्रुप-प्रॉजैक्ट का काम, शैक्षणिक मनोरंजन कार्यों तथा पाठ्य-सहायक क्रियाओं के लिए एक अच्छा एवं कुशल पुस्तकालय अत्यन्त आवश्यक है। विद्यार्थियों की रूचियों को विस्तृत करना, उनकी शब्द-शक्ति को बढ़ाना, कक्षा में न पाठ्य-पुस्तकों में पढ़े प्रकरणों के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान प्राप्त करना-यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि विद्यार्थियों को पुस्तकालय में कितने साधन प्राप्त हैं।”

  • बहुत से विद्यार्थियों में विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में जानने की इच्छा होती है। पुस्तकालय के द्वारा ही उनकी यह इच्छा सन्तुष्ट हो सकती है।
  • इससे विद्यार्थियों का दृष्टिकोण विकसित होता है। कई विद्यार्थियों तो इतने प्रेरित हो उठते हैं कि उनमें नई पुस्तक लिखने की इच्छा जागने लगती
  • इससे विद्यार्थियों में आनन्द और मनोरंजन के लिए पढ़ने की आदत का विकास हो सकता है।
  • पुस्तकालयों में रखी पुस्तकों को पढ़कर कई विद्यार्थियों के जीवन में नया मोड़ आ जाता है।
  • पुस्तकालय अवकाश के सदुपयोग का अच्छा साधन है।
  • पुस्तकालय में बैठकर पढ़ने से विद्यार्थियों में मौन-पाठ की आदत का विकास होता है। यह आदत उन्हें घर में पढ़ने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होती है। विशेषकर उस में जहां पढ़ने वाले कई बच्चे हों।
  • पुस्तकालय पुस्तकों के उचित प्रयोग का प्रशिक्षण प्रदान करता है। पुस्तकालय-नियमों की मांग होती है कि पुस्तकें साफ-सुथरी रखी जाएं। इस नियम का पालन करने में विद्यार्थियों में पुस्तकों को साफ-सुथरा रखने की आदत विकसित हो जाती है।

इस सन्दर्भ में एच.सी. डेण्ट का कथन है,

‘स्कूल के अच्छे पुस्तकालय-जिसका व्यापक प्रयोग होता हो- से बच्चों को पुस्तकों का कुशल प्रयोग सिखाना, सम्भव हो सकता है। यह एक ऐसी शिक्षा है जिसे सीखना आसान नहीं और न ही इसे कोई सिखाता है।’

  • पुस्तकालय की पुस्तकों को समय पर लौटना पड़ता है। अतः पुस्तकालय का प्रयोग करने वाले विद्यार्थी समय के भी पाबन्द हो जाते है।
  • यह विद्यार्थियों को सुअनुशासित बनने में सहायता प्रदान करता है। जब भी उनके पास खाली समय होता है, उसे वे पुस्तकालय में बिताते हैं।

एडमान्सन का कथन है,

“आधुनिक स्कूल पुस्तकालय के सुयोग्य सेवा विभाग माना जाता है, यह रूचियों के विकास और विस्तार की सामग्री प्रदान करता है। अपने सन्दर्भ साधनों विषय-सूचियों, पुस्तक-सूचियों तथा कैटलाग द्वारा यह ज्ञान का भण्डार खोला जाता है। विद्यार्थियों को पुस्तकों तथा पुस्तकालयों का प्रयोग सिखाने, सूचना प्राप्त करने तथा अध्ययन करने में शिक्षण के अन्य साधनों के साथ पुस्तकालय भी सहयोग प्रदान करता है। पुस्तकालय अपने बुलेटिन, पोस्टरों तथा वातावरण द्वारा अनौपचारिक शिक्षण प्रदान करता है। अपनी पुस्तकों के परिचय द्वारा यह जीवन पर्यंत रोचक अध्ययन का सुझाव देता है।”


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