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साहित्य और समाज पर निबंध | Sahitya Aur Samaj Par Nibandh
समाज और साहित्य का अर्थ – Sahitya Aur Samaj Ka Arth
समाज ऐसे लोगों के मिलने से बनता है जो शांतिपूर्ण तरीके से आपस में मिल-जुलकर रहते हैं। यह अमूर्त अवश्य होता है परंतु स्थायी होता है। साहित्य मानव समाज की अनुभूतियों एवं विचारों का लिखित रूप है। अनुभूतियों एवं विचारों पर आधारित होने के कारण ही इसे विस्तार मिलता गया। साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी समाज का सही प्रतिबिंब वही खींच सकता है जो उस समाज के अधिक नज़दीक रहा हो। तत्कालीन साहित्य का विश्लेषण करते समय समकालीन लेखकों व रचनाकारों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इसी तरह के साहित्य सामाजिक अंतक्रिया को समझाने में सक्षम होते हैं।
साहित्य का कार्य
साहित्य का कार्य होता है समाज के विघटनकारी तत्त्वों के दुष्प्रभावों से लोगों को सचेत करना एवं आदर्श समाज के निर्माण के लिए समन्वयवादी एवं विकासोन्मुखी सुझाव प्रस्तुत करना। मानवीय संवेदनाओं की समझ विकसित करना भी साहित्य का विशेष कार्य है।
साहित्य का समाज पर प्रभाव
साहित्य का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। किसी भी विषय का साहित्य ऐसा होना चाहिए जो पाठकों में चरित्र निर्माण का भाव जगा सके। वर्तमान भारत में बाल-साहित्य का लेखन प्रचुरता से किया जाना चाहिए। इसे विदयालयों व अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं तथा शिक्षा निकायों के माध्यम से बच्चों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। हमारी नई पीढ़ी सोशल मीडिया के मकड़जाल में जिस तरह फँस रही है उससे किसी का कुछ भला होने वाला नहीं है। इससे तो हम भावी भारत के निर्माण के मूल को ही नष्ट कर रहे हैं।
देश के भावी कर्णधारों का जीवन साहित्य से दूर होकर धनलोभ वृत्ति में फँसता जा रहा है। किसी भी साहित्य पर तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था का भी प्रभाव पड़ता है। लेखकों की यह नैतिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी होती है कि उनके द्वारा लिखा गया साहित्य निष्पक्ष एवं राष्ट्रवाद की भावना का विकास करने वाला हो।
निष्कर्ष
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि समाज की समस्याएँ एवं उनका समाधान साहित्य का केंद्र होना चाहिए। किसी देश में वहाँ के समाज के स्तर का पता वहाँ के साहित्य को पढ़कर लगाया जाता है, इसीलिए कहा जाता है कि समाज साहित्य की विषय वस्तु है और साहित्य समाज का दर्पण है।
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Very helpful and thank you so much for your awesome help……