Full Story and Biography of Shivaji | छत्रपति शिवाजी की कहानी

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Full Story of Chhatrapati Shivaji | छत्रपति शिवाजी की कहानी पर 2 कहानी लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। शिवाजी की कहानी पढ़कर आपको प्रेरणा मिलेगी। इसलिए एक बार समय निकाल कर जरूर पढ़ें।

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Shivaji Biography in Hindi – छत्रपति शिवाजी की कहानी

भारत भूमि को अपने जिन सपूतों की वीरता, देशभक्ति, साहस, त्याग-बलिदान और सच्चरित्रता पर अभिमान है, उनमें छत्रपति शिवाजी का नाम बड़े आदर के साथ स्मरण किया जाता है। अपने चमत्कारी कार्यों से, अपनी अनुपम सूझ-बूझ और अपने पराक्रम से उन्होंने ऐस-ऐसे कार्य किए कि इतिहास में शिवाजी अपने ढंग के अलग ही महापुरुष दिखाई देते हैं।

वीर शिवाजी का जन्म पूना के शिवनेर दुर्ग में सन् 1627 ई. में हुआ। उनके पिता शाहजी बीजापुर राज्य में उच्च पदाधिकारी थे।

शिवाजी की माँ जीजाबाई एक साहसी, दृढ़ संकल्पमयी, धार्मिक और ईश्वरभक्त महिला थीं। वीर मा का प्रभाव शिवाजी के रक्त में इतना घुला-मिला था कि बड़ा होने पर भी वे अपनी माता की आज्ञा को सर्वोपरि समझते थे।

पति के दूसरा विवाह कर लेने पर जीजाबाई शिवाजी को लेकर पूना चली गईं। यहां शिवाजी दादा कोणदेव और रामदास जैसे प्रसिद्ध संतों के सम्पर्क में आए। संत रामदास ने उनके भीतर देश-भक्ति की भावना कूट-कूटकर भर दी।

बचपन से ही शिवाजी युद्ध-कुशल थे। पूना के जंगलों में मावलियों के साथ खेल-खेल में वे व्यूह-रचना करते और घने जंगलों में निर्भय घूमा करते। इससे एक ओर उनके हृदय में जहां निर्भयता के भाव भर गए; वहीं दूसरी ओर उनके ये भाव आगे के जीवन में उनके लिए बड़े काम के सिद्ध हुए।

शिवाजी के मन में बचपन से ही बड़े-बड़े दुर्गों को जीतकर अपनी वीरता की धाक जमाने और अपना राजय स्थापित करने की सुदृढ़ इच्छा थी। उन्नीस वर्ष की अल्पावस्था में ही उन्होंने चमत्कार कर दिखाया। अपने तीन साथियों और एक हजार सिपाहियों को साथ लेकर उन्होंने बीजापुर के ‘तोरण’ दुर्ग को जीत लिया।

इस अभियान में उन्हें बहुत सारा धन प्राप्त हुआ। इस विजय ने उनके उत्साह में चार चांद लगा दिए। वे अपनी सेना का विस्तार करने में जुट गए और शीघ्र ही उन्होंने सूपा, चाकण, पुरंदर और कोंकण के किले जीत लिए। कल्याण दुर्ग पर अधिकार करने की कहानी इतिहास प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि कल्याण दुर्ग के स्वामी की अत्यन्त सुन्दर पुत्रवधू का अपहरण करके जब उनके सेनापति आबाजी सोनदेव ने उसे उपहार के रूप में शिवाजी को देना चाहा तो शिवाजी क्रोध में तमतमा उठे। उन्होंने कल्याण दुर्ग के अधिपति अहमद की पुत्रवधू को ‘माँ’ कह कर पुकारा और उसको सम्मान-सहित कल्याण भेज दिया।

शिवाजी के पवित्र और उच्च चरित्र की इस प्रकार की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उन्होंने अपने सेनानायकों को स्पष्ट आदेश दे रखा था कि युद्ध में किसी वृद्ध, बालक अथवा नारी की हत्या न की जाए तथा किसी भी धर्मस्थल का अपमान न किया जाए। उनकी सेना में सभी धर्मो और जातियों के लोग थे।

रायगढ़ और सिंहगढ़ दुगों पर भी शिवाजी ने बड़ी वीरता के साथ अपना अधिकार स्थापित किया। सिंहगढ़ विजय करते समय उनके वीर सेनानायक तानाजी की मृत्यु हो गई थी, जिसे सुनकर उनके मुंह से निकला था , सिंहगढ़ आया, पर सिंह चला गया।”

दिल्ली का बादशाह ओरंगजेब शिवाजी की शक्ति को फूटी आँख देखना नहीं चाहता था। शिवाजी का बल-प्रताप उसकी आंखों में दिन-रात कांटे की तरह खटकता रहता था। उसने शिवाजी को अपने वश में करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए। बीजापुर का नवाब भी शिवाजी को मिटा देना चाहता था।

उसने अफजलखां को बारह हजार सैनिकों के साथ शिवाजी को पकड़ने अथवा मारने के लिए भेजा। अफज़ल खाँ बड़ा चालक था। वह चाहता था कि प्रेम और मित्रता का ढोंग रचकर शिवाजी को मार डाले। अतएंव उसने शिवाजी को मित्रता का संदेश भेजा और उन्हें अकेले ही एक स्थान पर बातचीत के लिए निमंत्रित किया। शिवाजी भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेले थे। वे अफज़ल खाँकी सारी चालाकी ताड़ गए। कवच के ऊपर अंगरखा पहनकर वे अफज़ल खां से मिलने गए।

जब वे आपस में गले मिलने लगे तो क्रुर अफज़ल खां ने उनकी पीठ में छुरी, भोंक दी, किन्तु शिवाजी सावधान थे। उन्होंने बघनखा से अफजल खाँ का पेट चीर डाला और उनकी सेना को परास्त करके बीजापुर पर भी अधि कार कर लिया।

औरंगजेब की आज्ञा से दक्षिण का सूबेदार शाइस्त खाँ शिवाजी को मारने के इरादे से पूना पहुँचा। एक रात शिवाजी बारात के रूप में पूना में घुस गए और राजमहल में पहुंचकर शाइस्त खाँ के कमरे तक जा पहुँचे। भयभीत शाइस्त खाँ प्राण बचाने के लिए एक खिड़की से कूद गया। शिवाजी ने इसी बीच उसके हाथ की उंगलियां काट डाली। शाइस्त खां के दो पुत्र मराठों की तलवार के घाट उतर गए।

औरंगजेब ने राजा जयसिंह को भेजकर शिवाजी के सामने सन्धि का प्रस्ताव रखा। शिवाजी राजा जयसिंह का बड़ा सम्मान करते थे। जयसिंह के समझाने बुझाने से वे किसी तरह मुगल दरबार में जाने को तेयार हो गए। औरंगजेब ने दरबार में उनका अपमान किया और उन्हें पांच हजार सुबदारों के समीप खड़ा कर दिया। शिवाजी क्रोध में भरकर दरबार से जाने लगे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

जेल में शिवाजी ने बीमार होने का बहाना बनाया और दान-पुण्य करने के इरादे से उन्होंने अनेक गरीबों को नित्य भोजन कराना आरम्भ कर दिया। एक दिन वे स्वयं एक टोकरे में बैठकर पहरेदारों की आंखों में धूल झोंकते हुए भाग खड़े हुए और दक्षिण जा पहुंचे।

शिवाजी ने रायगढ़ जाकर अपना राज्याभिषेक कराया। उन्होंने पचास हजार ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न किया और गरीबों की मुक्तहस्त होकर सहायता की।

तीन अप्रैल, 1680 को महाराष्ट्र का यह सूर्य सारे देश को चकाचौंध करता हुआ अस्त हो गया।


Shivaji Story in Hindi- शिवाजी की मर्यादा

छत्रपति शिवाजी – भारत में मराठा राज्य की नींव डालने वाले मराठा सरदार।
आवाजी सोनदेव – शिवाजी के सेनापति।
मुल्ला अहमद – बीजापुर के नवाब का एक सूबेदार तथा कल्याण के किले का किलेदार।
गौहरबानू – मुल्ला अहमद की पुत्र-वधू।
मोरोपन्त – शिवाजी के पेशवा।

स्थान

पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में स्थित कल्याण का किला।
(आवाजी सोनदेव ने कल्याण के किले पर अचानक हमला करके उसे जीत लिया है। ‘छत्रपति शिवाजी की जय’, ‘माँ जीजाबाई की जय’, ‘भवानी की जय’ बोलते हुए मराठे सैनिक, कल्याण की गलियों में घूम रहे हैं। एक घुड़सवार घोड़ा दौड़ाता हआ आता है और घोड़े से उतरकर सेनापति के पास अभिवादन कर खड़ा हो जाता है।)

पहला दृश्य

सोनदेव – क्या समाचार है, सैनिक? कल्याण का सूबेदार मुल्ला अहमद पकड़ लिया गया कि नहीं?

सैनिक – नहीं श्रीमान् ! वह अपने स्त्री-बच्चों के साथ किले के बाहर निकल गया है। उसके साथ थोड़े से सिपाही और घुड़सवार हैं।

सोनदेव – वह किधर गया है?

सैनिक – बीजापुर की ओर श्रीमान् !

सोनदेव – क्या उसकी पुत्र-वधू गौहरबानू भी उसके साथ चली गई है?

सैनिक – ऐसा ही जान पड़ता है श्रीमान् ! क्योंकि सूबेदार का पूरा खानदान उसके साथ हैं।

सोनदेव – तो तुम फौरन ही सौ घुड़सवारों के साथ मुल्ला अहमद का पीछा करो। वह चाहे हाथ आये या न आये, गौहरबानू को पकड़ लाओ।

सैनिक – जो आज्ञा, लेकिन छत्रपति की तो आज्ञा है कि किसी भी स्त्री को कैद न किया जाय, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान

सोनदेव – जानता हूँ, लेकिन तुम सैनिक हो! तुम्हारा काम आज्ञा पालन है। बहस मत करो, जाओ और गौहरबानू को बन्दी बना लाओ।

सैनिक – बन्दी बनाकर उसे कहाँ लाया जाय?

सोनदेव – यहीं।
(सैनिक आवाजी सोनदेव को सिर झुकाकर घोड़ा दौड़ाता हुआ चला जाता है।)

दूसरा दृश्य

(शिवाजी, कल्याण के किले में युद्ध में प्राप्त सामान का निरीक्षण कर रहे हैं। पाँच सौ से अधिक फौजी घोड़े हैं। सूती, मखमली और रेशमी कपड़ो का ढेर लगा है। हज़ारों तलवारें और बन्दूकें हैं। खजाने में काफी रूपया, पैसा, सोना, चाँदी हाथ लगा है। बहुमूल्य रत्नों को सोने-चाँदी की थालियों में सजाकर रखा गया है। सेनापति आवाजी सोनदेव शिवाजी को यह सब सामान दिखा रहे हैं। शिवाजी के साथ उनके मन्त्री पेशवा मोरोपन्त भी हैं।)

शिवाजी – (प्रसन्न होकर) भवानी की कृपा और माता जीजीबाई के आशीर्वाद से हमारी जीत हुई है। यह अच्छी बात है कि अधिक रक्तपात नहीं हुआ। जीत का सारा सामान सैनिकों में बाँट दो, सबको हिस्सा मिले, कोई छूट न जाय । सोना, चाँदी, हीरे, मोती और अस्त्र-शस्त्र रायगढ़ के किले में भेज दिए जाएँ। इसका उपयोग मराठा राज्य को बढ़ाने के लिए किया जायेगा।

सोनदेव – जैसी आज्ञा श्रीमन्त की।

शिवाजी – आवाजी! मैं तुम्हारे साहस और चतुराई से बहुत प्रसन्न हूँ। मैं आज तुम्हें अपना मोअज्जमदार नियुक्त करता हूँ। मोरोपन्त जी, इस बात की घोषणा कल ही हो जाय।
(आवाजी सिर झुकाकर शिवाजी का अभिवादन करते है।)

सोनदेव – (उठाकर म्यान में तलवार रखते हुए) एक प्रार्थना और करनी है श्रीमन्त! जीत का एक रत्न अभी बाकी है। उसे मैं आपके चरणों में अर्पित करना चाहता हूँ। मेरी प्रार्थना है कि श्रीमन्त कम से कम इस रत्न को तो अपने लिए रख लें। यह इस जीत का सबसे अनमोल रत्न है, श्रीमन्त!

शिवाजी – वह कैसा रत्न है, आवाजी! जिसे तुमने पहले से ही चुनकर मेरे लिए रख लिया है?

सोनदेव – वह रत्न है कल्याण प्रदेश के सूबेदार मुल्ला अहमद की पुत्र-वधू गौहरबानू !

शिवाजी – (गम्भीर आवाज़ में) गौहरबानू! तो स्त्री है। तुमने स्त्री को क्यों कैद किया? क्या तुम मेरी आज्ञा भूल गये?

सोनदेव – नहीं महाराज! भूला नहीं। इसीलिए युद्ध में हमने स्त्रियों को कैद नहीं किया। मस्जिद की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचाया। कुरान की कहीं बेइज्जती नहीं होने दी। मैं चाहता तो सूबेदार के सारे परिवार को बन्दी बना सकता था। लेकिन किसी को हाथ भी नहीं लगाया। किन्तु गौहरबानू साधारण स्त्री नहीं है, श्रीमन्त ! मुझे इस गलती के लिए क्षमा किया जाय।

शिवाजी – किन्तु-परन्तु कुछ नहीं सोनदेव! प्रत्येक स्त्री, स्त्री है। तुमने राजाज्ञा का उल्लंघन किया है। तुम अपराधी हो। तुम्हें क्षमा नही किया जा सकता। जाओं, तुरन्त गौहरबानू को दरबार में ले आओ। (दरबार में शिवाजी सिंहासन पर बैठे हैं। उनके दायें-बायें मोरोपन्त और दसरे सरदार हैं। सैनिक और चोबदार अपनी-अपनी जगह खड़े हैं। गौहरबानू का प्रवेश। उसके मुख पर पतला सा नकाब है। गौहरबानू के प्रवेश करते ही शिवाजी सिंहासन से उठ खड़े होते हैं।)

शिवाजी – (आदर के साथ) आइए, गौहरबानू ! आपको बन्दी बनाकर मेरे सरदार ने बड़ी गलती की है और मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। मैं उसे सज़ा दूंगा, लेकिन मेरे सरदार की गलती के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए।

गौहरबानू – आप मुझसे माफी न माँगें। मैं बहुत छोटी हूँ।

शिवाजी – इसमे छोटे-बड़े का क्या सवाल है, गौहरबानू ! गलती के लिए क्षमा माँगनी ही चाहिए। मेरे लिए प्रत्येक स्त्री माँ के समान है। (शिवाजी की बात सुनकर गौहरबानू आगे बढ़कर नकाब उलट देती है।

शिवाजी – (उसे देखकर) क्या ही अच्छा होता कि मेरी माँ भी आपकी तरह सुन्दर होती तो मैं भी सुन्दर होता। आपको बहुत कष्ट हुआ है, गौहरबानू! मैं इसके लिए क्षमा माँगता हूँ।

गौहरबानू – मुझे शर्मिन्दा न कीजिए, श्रीमन्त! शिवाजी – आप मुझे ‘श्रीमन्त’ न कहें, ‘शिवाजी’ कहें। मेरी माँ भी मुझे इसी नाम से पुकारती है। आप मेरी मेहमान हैं। मैंने प्रबन्ध कर दिया है। आपको मुल्ला अहमद के पास बीजापुर पहुँचा दिया जाएगा। आप आवाजी को भी क्षमा कर दीजिए। आवाजी! तुमने जो गलती की है, उसके लिए माफी माँगो।

(आवाजी घुटने टेककर गौहरबानू से माफी माँगते हैं। गौहरबानू की आँखों में आँसू आ जाते हैं। सरदार और सिपाही ‘शिवाजी की जय’ बोल उठते हैं।)


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