2 Best Swadesh Prem Essay in Hindi | स्वदेश प्रेम पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Swadesh Prem Par Nibandh in Hindi पर 2 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं

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Swadesh Prem Par Nibandh | Swadesh Prem Essay in Hindi | Swadesh Prem Par Nibandh

प्रस्तावना

स्वदेश की अपनी अलग पराकाष्ठा है, अपना अलग प्रेम है, अनेक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करके भी मनुष्य समय-समय पर अपनी संस्कृति अपनी जन्मभूमि को याद करता है, अर्थात् किसी भी सुखद परिस्थिति में भी नहीं भुला पाता है, क्योंकि जन्मभूमि के प्रेम को भुलाया जाना संभव नहीं है। अपने देश से प्रेम के लिए प्राणों का भी सौदा करना पड़े तो भी सस्ता है। इसलिए कहा है “देश प्रेम का मूल्य प्राण हैं देखें कौन चुकाता है।

स्वदेश प्रेम (Swadesh Prem) एक सूक्ष्म और पवित्र-भावना

देखें कौन सुमन शैया तज, कण्टक पथ अपनाता है।” अपनी मातृभूमि का ही तो प्रेम था, जो स्वर्ण-लंका का वैभव श्रीराम को आकर्षित नहीं कर सका। मातृभूमि के प्रति प्रेम का कोई भी सौन्दर्य बाधित न बन सका। उन्होंने लक्ष्मण से कहा लक्ष्मण! स्वर्णमयी लंका में न रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। देश प्रेम की भावना मात्र इतनी ही नहीं है कि दूसरे देशों के आक्रमण करने पर अपने प्राणों की बाजी लगा देना और शत्रु का मुकाबला करना। अपने ऐसे देश-प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए शत्रुओं की बाट जोहना और वीरता दिखाते हए प्राणाहति देना। देश प्रेम की सूक्ष्म भावना पवित्र भावना है कि देश की संस्कृति से प्रेम करना, ऐसे कार्य करना जिससे देश की पराकाष्ठा में वृद्धि हो। जिस देश में जन्म लेकर, उसका अन्न, जल, हवा लेकर बड़े होते हैं।

उस देश के प्रति सजग बना कि हमसे ऐसा कोई कार्य न हो जिससे देश की प्रतिष्ठा को आँच आए। अपनी भूमि, जिसका जल अमृत के सम शीतल है. जिसकी रज में लोटकर इतने बड़े हुए हैं। माता के समान जिसकी गोद में आनन्द की अनमति की हम अपने देश की मातृभूमि को भारत-माता कर पुकारते हैं।

माता-पुत्र का सम्बन्ध स्थापित कर प्रेम करते हैं। संसार में अन्य ऐसा कोई देश नहीं है। जो माता कर पुकारा जाता हो। न कोई चीन माता कहता है न कोई अमेरिका माता या है। सम्पूर्ण विश्व में अपना एक ऐसा देश है जिसकी भूमि से माता-पुत्र का सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध ने कहा है जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।

वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।। देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत मनुष्य देश के प्रति निःस्वार्थ भावना रखता है। अपने प्रेम के प्रतिकार में देश से कछ अपेक्षा नहीं रखता है। अपेक्षा रखता है तो देश के गौरव की। अपने देश की प्रतिष्ठा के लिए कितने ही ऐसे महापुरुष हए जिन्होंने हँसते-हँसते हुए प्राणाहुति दे दी, जिनके हम नाम तक नहीं जानते हैं।

महापुरुष और देश प्रेम

विशालता देश की सीमाओं से नहीं अपितु उस देश के महापुरुषों से होती है। महापुरुषों के चरित्र से होती है। देश का गौरव देश के राजानन्द, राजा जयचन्द जैसे विलासी लोगों से नहीं अपितु झोपड़ी में रहने वाला के लिए क्षण-क्षण का सदुपयोग करने वाले आचार्य चाणक्य, छत्रपति शिवाजी, वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचन्द्र बात, क्रान्तिकारी पुरुष आजाद चन्द्रशेखर, भगतसिंह, बिस्मिल, गान्धी, तिलक, मालवीय, मंगल-पाण्डेय, लक्ष्मीबाई के महान चरित्र से हैं। स्वामी दयानन्द से है स्वामी विवेकानन्द से है, जिन्होंने देश के गौरव के लिए अपना सुख त्यागकर दशक लिए अर्पित रहे।

इस देश की परम्परा रही है कि जब-जब देश पर आपदाएँ आईं तब-तब इस भूमि से जनता में देश प्रेम का मन्त्र फूंकने वाले महा-पुरुष सामने आए और मातृभूमि के प्रति प्रेम का निनाद किया। इतिहास साक्षी है कि विषम परिस्थितियों में निस्तेज हुए भारतीयों के श्री तुलसी के मानस ने दिशा दी, गीता ने कर्म की प्रेरणा दी। हताश जन समुदाय इनसे प्रेरणा पाकर देश के गौरव के लिए जागरूक हो उठा। अपना देश भारत देश जिसकी छटा में विविधता है।

स्वदेश प्रेम (Swadesh Prem) एकता का मूलमन्त्र

भाषा, बोली, धर्म, सम्प्रदाय, वर्ण, संस्कृति, सभ्यता के स्तर पर विविधता ही विविधता है। ऊपर से देखने पर सब अलग-अलग प्रतीत होते हैं किन्तु देश प्रेम की भावना सर्वत्र एक ही व्याप्त है। देश प्रेम की भावना एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। एकता के सूत्र में बँधे हुए विविध वर्गों के पुष्पों की माला की तरह सभी एकता के भाव से सजे-धजे हैं। जब-जब देश पर शत्रु देश भारत-भूमि पर आक्रमण किये तब-तब Swadesh Prem की सुगठित, संगठित भावना का परिचय देखते ही बना है।

Swadesh Prem की भावना का एक ऐसा अटूट बन्धन है, अटूट धागा है जो कोई भी चाहकर हमें छिन्न-भिन्न नहीं कर सका। सदियों से गुलाम रहने पर भी कोई भी हमारी भावना मिटा न सका। अपने देश के देशवासियों की प्रेम-भावना से अभिभूत होकर देवता भी इस भूमि पर जन्म लेने की कामना करते है और जन्म लेकर स्वयं को धन्य मानते हैं। यही कारण है कि राम, कृष्ण, बुद्ध की पावन भूमि पर जन्मने वाला मानव हर विषम परिस्थिति में अपनी मातृभूमि से अनुराग रखता है।

उपसंहार

अपनी मातृभूमि की यह अलौकिक सम्पदा है कि मानव स्वयं प्रेरित होकर स्वदेश के प्रति विषम परिस्थितियों में प्रेम करता है। जिस देश के लोगों को अपने देश से प्रेम नहीं होता है उस मनुष्य की, उस देश की गरिमा शीघ्र ही नष्ट हो जाती है, उस देश की सीमाएँ असुरक्षित होती हैं। आताताई आँखें उठाते रहते हैं।

कोई भी अत्याचारी रावण हमारी मान-मर्यादा में हाथ बढ़ाने के लिए उतारू हो जाता है। देश प्रेम ही एक ऐसी भावना है जो कठिन परिस्थिति में धैर्य से विपदाओं से लोहा लेने के लिए तत्पर रहता है। यही भावना ऐसी है जो अपने अस्तित्व को अक्षुण्ण बनाए रखने में समर्थ है।

इसलिए यह भावना सार्थक हो कि –

‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’


Swadesh Prem in Hindi Par Bhashan in (500 Words)

माननीय अध्यक्ष महोदय, गुरुजनों और मेरे प्रिय साथियो!

Swadesh-Prem-in-Hindi

अपने देश से, अपनी भूमि से, अपने देश के नद-निर्झरों और खेत-खलिहानों से, अपने देश के नर-नारियों से, अपने देश के ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों से, अपने देश के महापुरुषों और नेताओं से, अपने देश की संस्कृति और सभ्यता से तथा अपने देश की उपलब्धियों और कीर्ति से कौन होगा जो प्यार नहीं करता!-यदि कोई है भी तो मैं उसे अभागा कहूँगा, निस्सार कहूँगा-उसे धिक्कारूँगा मैं।

साथियो! यह हमारे वश में नहीं है कि हम किस देश में जन्म लें, किन माता-पिताओं के यहाँ, किस धर्म-जाति और समाज में हम पैदा हों; किन्तु जहाँ की मिट्टी में हम जन्म लेते हैं, जहाँ हम खेलते-कूदते हैं, जहाँ का अन्न-जल ग्रहण करके हम बड़े होते हैं तथा जहाँ के साधनों का उपयोग करके हम ज्ञान-विज्ञान प्राप्त करके अपनी मनुष्यता को धन्य करते हैं, उस देश का, उस पुण्यमय धरती और वहाँ के निवासियों का हम पर ऐसा महान उपकार है कि हम उसे चुका ही नहीं सकते। स्वदेश के कर्ज़ से हम कभी कर्तव्यमुक्त हो ही नहीं सकते।

Swadesh-Prem-Par-Nibandh

व्यक्ति चाहे अफ्रीका में जन्म ले अथवा श्रीलंका में, चाहे वह कांगो के जंगलों में पैदा हो अथवा मध्यप्रदेश के घने जंगलों में वह अपने देशवासियों से निश्चय ही प्यार करेगा। उसे अपना देश स्वर्ग से अधिक सुंदर प्रतीत होगा तथा उसकी रक्षा करने के लिए वह अपना तन-मन-धन सब कुछ अर्पित कर देगा। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब

राष्ट्रभक्ति और देश प्रेमियों ने अपने देश और जाति के सम्मान की रक्षा के लिए अपने बहुमूल्य प्राण हँसते-हँसते दे दिए: जब अपने देश की स्वाधीनता के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए देशभक्तों ने अपने परिवारों को कुर्बान कर दिया; अपना घर-बार, धन-दौलत, पद-मर्यादा और सुख-चैन सब गँवा दिया। देशभक्तों ने अपने देश पर आई विपत्तियों को देखकर सदैव अपने देशवासियों को जगाते हुए कहा है :

सुख-चैन से जो आज भी सोता है, वह गद्दार है।
आरामतलबी में समय खोता है जो, गद्दार है।।

विश्व-इतिहास की बात जाने दीजिए; अपने ही देश में सैकड़ों-हज़ारों ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जब देश-भक्तों ने सब-कुछ छोड़कर देश-सेवा में ही अपने को अर्पित कर दिया। महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा

करते हुए अनेक वर्ष जंगलों और वनों की खाक छानी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, सम्राट बहादुर शाह जफर, तात्या टोपे, | राजा साहब बानपुर, कुमार साहब, आदि देशभक्तों ने देश-रक्षा के लिए अमूल्य बलिदान दिए।

तिलक, गोखले, मालवीय, गांधी, सुभाष, नेहरु, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, हकीम अजमल खां आदि ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए कितने-कितने कष्ट सहे! क्रान्तिकारी वीरों के अद्भुत कारनामों से इतिहास भरा पड़ा है। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और बटुक दत्त ने फांसी के फंदे अपने गले में विजय गान की तरह पहने!

मित्रो? सचमुच वह व्यक्ति भाग्यशाली है, जिसे अपने देश के लिए कुछ करने का अवसर मिलता है। 

यह बात भी ध्यान में रखने की है कि स्वदेश-प्रेम केवल किसी एक क्षेत्र में ही दिखाई नहीं पड़ता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने देशवासियों की तन, मन, धन से सेवा करना ही सच्चा स्वदेश प्रेम (Swadesh Prem) है।

समय कम है और विषय बहुत गहरा है; अतएव आज मैं इतना ही कहकर अपनी बात समाप्त करता हूँ। धन्यवाद!


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