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यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता? | Yadi Main Pradhanacharya Hota
यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता? जिन लोगों को हम प्रशंसा-भरी दृष्टि से देखते हैं, जिनके लिए हमारे हृदय में सम्मान और आस्था है, जिनके व्यक्तित्व से हम आकर्षित होते हैं तथा जिनके कार्यों और कार्यशैली से हम प्रभावित होते हैं, जाने-अनजाने हम वैसा बनने की आकांक्षा अपने मन-प्राणों में सँजोए रहते हैं। विद्यार्थी काल में निश्चय ही ऐसा व्यक्ति प्रधानाचार्य अथवा प्रधानाचार्या ही होती है जिसके व्यक्तित्व की छाप हमारे मन-प्राणों पर बड़ी गहराई के साथ अकित हो जाती है।
मैं चिरंजीव भारती, पालम विहार की छठी कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैं हर दिन सुबह-सुबह उपासना सभा में जैसे ही जाकर खड़ा होता हूँ, अपने प्रधानाचार्य श्री नरेन्द्र मोहन भाटिया के प्रभावशाली व्यक्तित्व को देखकर एक सुखद गर्व से रोमांचित हो उठता हैं।
उनका व्यक्तित्व जहाँ मझे एक सभ्य और आकर्षक गरिमामय व्यक्ति के रूप मावशष रूप स प्रभावित करता है, वहीं दूसरी ओर उनका शालीन व्यवहार, सधी हुई संयत वाक्धारा, कभी भी असंयमित और निरंकुश न हो पाने वाली उनकी निर्णायिका बुद्धि, उनका मुस्कराता हुआ सौम्य रूप और उनकी गहरी शैक्षिक समझ-बूझ जहाँ हमारे लिए गर्व का कारण है, वहाँ उनके ये गुण जाने-अनजाने मुझमें यह आकांक्षा भी जगाते हैं कि काश मैं ही इस विद्यालय का प्रधानाचार्य हुआ होता!
अनेक बार आकांक्षा और स्वप्न का यह बादल मेरे मन-प्राणों पर तैरा है, इस इच्छा की बिजली जब-तब मेरे रक्त में चमकी और तड़की है, मैं सोचने लगा हूँ-मान लिया देवकांत तुम चिरंजीव भारती स्कूल के प्रधानाचार्य बना दिए गए तो बताओ तो सही कि तुम क्या करोगे? कौन सा नया चमत्कार पैदा कर दोगे लाला?
उस समय मैं लाचार-सा बगलें नहीं झाँकता। बड़ी दृढ़ता के साथ मेरे भीतर से जैसे कोई उत्तर देता है-देवकांत यदि इस विद्यालय का प्रधानाचार्य बन जाए तो वह सचमुच चमत्कार कर देगा। और तब मै। अपने आपसे पूछता हूँ, “भला क्या कर दोगे तुम’?
चिरंजीव भारती स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में सबसे पहले यह क्रान्तिकारी कदम उठाऊँगा कि खेल-कूद के दो पीरयड नित्य ही अनिवार्य कर दूंगा। खेल-कूद में पूरे मनोयोग और उत्साह से भाग लेना हर विद्यार्थी के लिए अनिवार्य होगा और आधे से अधिक शिक्षक पूरी सचेतनता के साथ खेल-कूद के विविध कार्यक्रमों में भाग लेंगे। दो पीरयड़ के बाद गर्मागरम दूध का एक-एक गिलास हर विद्यार्थी को पीने के लिए दिया जाएगा।
इन दो कालाओं में जो शिक्षक क्रियात्मक रूप में भाग नहीं लेंगे, वे इस समय का सदुपयोग अपने-अपने विषय की उत्तरपुस्तिकाओं के जाँच-कार्य में करेंगे तथा शेष कार्य में अपनी विभिन्न शैक्षिक प्रवृत्तियों और गतिविधियों की परियोजनाओं पर कार्य करेंगे।
मैं अपने शिक्षकों को दूसरे विद्यालयों के शिक्षकों से बेहतर वेतनमान दूंगा तथा उनसे अपेक्षा करूँगा कि वे थोडा अधिक समय और श्रम देकर शिक्षा के स्तर को तुलनात्मक रूप में श्रेष्ठतर बनाएँगे। अपने शिक्षकों के प्रति मैं एक ओर जहाँ बहत उदारता बरतने के पक्ष में हूँ, वहीं दूसरी ओर अपने कर्तव्यों में की गई किसी भी शिथिलता को मैं एक पल के लिए भी सहन न करूँगा।
विद्यालय के समग्र अनुशासन के प्रति मैं हर पल सजग-सचेत रहूँगा। किसी भी विद्यार्थी के असामाजिक और अशिष्ट आचरण तथा भाषा को किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जाएगा। मैं हर महीने के अंतिम शनिवार को प्रतिनिधि विद्यार्थियों की एक मीटिंग करूँगा, जिसमें विद्यालय के कार्यों और परियोजनाओं पर मक्त भाव से चर्चा हुआ करेगी।
यों तो मेरे पास प्रधानाचार्य के रूप में ढेर सारी योजनाएँ हैं; किन्तु मैं आरंभ में इन्हीं योजनाओं की सफलता-असफलता को परखना चाहूँगा; बाद में उन विशिष्ट योजनाओं को हाथ में लूँगा जो सारे शैक्षिक जगत में तहलका मचा टेगी।
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