हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Birsa Munda in Hindi पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं।
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Essay on Birsa Munda in hindi
परिचय
भारत माता की परतंत्रता की बेड़ियों को काटने में जिन सपतों ने प्राणों की आहुति दी, उनमें Birsa Munda भगवान का नाम सर्वोपरि है। अंग्रेजो के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध इन्होंने जो सशक्त आवाज बलंद की वह आज भी हर भारतवासी के मानस में गूंज रही है।
प्रारम्भिक जीवन
Birsa Munda का जन्म राँची जिला के तमाड़ परगना के उलीहातू नामक ग्राम में 15 नवम्बर 1875 को हुआ था। ये आदिवासी समुदाय के मुंडा परिवार से थे। अन्य आदिवासियों की तरह इनका परिवार भी आर्थिक और शैक्षिक दष्टि से अत्यंत पिछड़ा था। लेकिन, शैक्षिक रुचि के कारण इनकी प्रारंभिक शिक्षा चर्च द्वारा संपोषित विद्यालय में हुई और आगे की पढ़ाई राँची में।
धार्मिक विचार
बचपन से ही इनमें कुछ विलक्षण प्रतिभाएँ विद्यमान थीं। शराब पीना, झूठ बोलना, चोरी करना आदि आदतों से ये हमेशा दूर रहते थे। ये अपने साथियों को भी इन बुरी आदतों से दूर रहने की सलाह देते थे। परिणाम यह हुआ कि ये आदिवासियों के आदर्श और चहेते बन गए।
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राजनीतिक जीवन
चाईबासा में आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चलाया जा रहा था। इन्होंने उस आंदोलन को पुनः संगठित किया और उसकी बागडोर अपने हाथों में ले ली। उधर चक्रधरपुर में जंगल-आंदोलन चल रहा था। इसका भी इन्होंने नेतृत्व किया। इनकी संगठनात्मक नेतृत्व क्षमता और जुनून के कारण पूरे प्रदेश में अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध के स्वर गूंजने लगे। अब अंग्रेजी हुकूमत को लगने लगा कि कहीं इस भू-भाग से सरकार के पाँव न उखड़ जाएँ।
परिणाम यह हुआ कि इन्हें अंग्रेजों का कोपभाजन बनना पड़ा। इन्हें जेल में लोहे की सलाखों के पीछे 1895 ई. से 1897 ई. तक रखा गया और इनके साथ घोर अत्याचार किए गए। लेकिन, अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध इनके आंदोलन में कोई कमी नहीं आई। इनका आंदोलन अबाध गति से चलता रहा। इन्हें पुनः जेल में डाल दिया गया। कहा जाता है कि जेल अधिकारियों द्वारा जेल में ही 9 जून 1900 ई. को इनकी हत्या कर दी गई।
उपसंहार
Birsa Munda आज हमारे बीच नही हैं, लेकिन इनके त्याग, बलिदान और शोषण के विरुद्ध छेड़े गए संघर्षों की गाथाएँ चिरकाल तक गाई जाएगा। इनके संघर्षों का ही सुखद परिणाम है कि अँगरेजों को हारकर ‘छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1903’ लागू करना पड़ा और जमीन के हस्तांतरण का अवैध घोषित किया गया। धन्य है वह धरती, जहाँ बिरसा-जैसा व्यक्ति पैदा हुआ।
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