हल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Bonsai tree (बौनसाई पेड़-पौधे) in Hindi के बारें में डिटेल में बताया है इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप Bonsai tree (बौनसाई पेड़-पौधे) in Hindi के बारें में आप सब कुछ जान जाएंगे।
बौनसाई पेड़-पौधे – Bonsai tree in Hindi
बौने पेड़-पौधे कोई एक हजार साल पहले चीन और जापान में उगाए गए थे और तब से ऐसे बौने पेड़-पौधे उगाने और बढ़ाने की कला को जापान में खास तौर से लोकप्रियता मिली। ये बौने पौधे Bonsai कहलाते हैं।
Meaning of Bonsai tree in Hndi
बौन क अर्थ है ट्रे या गमला और साई का अर्थ है पौधा, जापान में तो ऐसे पौधों की प्रर्दशनियां अकसर लगाई जाती है। भारत में भी यह कला लोकप्रिय हुई।
बहुत से लोगों ने प्रयोगशाला में बौने पौधों क विकास किया और बहुत से प्रकृति प्रेमियों ने ऐसे पौधों को अपने छोटे-छोटे बगीचों में पनपाकर घर के कमरों को सजाने के प्रयोग किए। ऐसी एक प्रदर्शनी 1970 में लगी जिसका उद्घाटन तब के राष्ट्रपति वराहगिरि बैंकट गिरि ने किया था। अब तो इनका फैशन इतना बढ़ चला है कि कई सरकारी संस्थाओं में ऐसे पौधे बनाए जाते हैं और नए पौधों का विकास किया जाता है।
राष्ट्रपति भवन में ही इस समय लगभग पांच सौ से ऊपर पेड़-पौधे अनुसंधान प्रयोगशालाओं में भी अंसख्य बौनसाई पौधे बनाए जा रहे हैं। छोटे घर में भी कुछ बौनसाई दिख पड़ें तो आंखों को बहुत सुखद लगता है। यह आम धारणा है। कि हरियाली देखने से थकान जल्दी दूर हो जाती है। यही नहीं बौनसाई पौधों में फल भी लगते हैं।
बोनसाई प्लांट कैसे बनाते है How are bonsai trees made?
अगर जड़ों को आधा-आधा काट दिया जाए तो पौधा जिंदा तो रहेगा, पर उसकी बढ़ोत्तरी रूक सी जाएगी। इसी तथ्य के सहारे कभी लोगों ने बरगद के भीमकाय पेड़ के ‘बौनसाई’ बनाए, जो केवल तीस सेंटीमीटर ऊंचे थे। बौनसाई पौधे को समय-समय पर गमले या नांद से निकाल कर उनकी जड़ों का विशेष नियंत्रण किया जाता है। जिससे वह जिंदा तो रहें, लेकिन जिंदा रहने से अधिक तत्वों का शोषण जड़ों द्वारा न कर पाएं।
बौनसाई पौधों में एक या दो शाखाओं को छोड़कर बाकी को काट दिया जाता है। इससे उनकी बढ़वार पर नियंत्रण तो होता ही है, उनका विकास भी मनचाहे ढंग से किया जा सकता है। कई बार तांबे या लोहे के तार को शाखाओं में लपेट कर उनको विशेष आकृति दी जाती है। चौतरफा निकलने वाली शाखाओं को काट दिया जाता है जिससे कि उनकी बढ़वार कम हो। सचमुच बौनसाई अनेक कलात्मक तरीकों से बनाई जा सकती है।
विशाल बरगद के पेड़ का बौनसाई आसानी से बन जाता है। बरगद के बड़े पेड़ में टांका देकर तने से उसकी खाल उतार कर अंदर तने को ऐसी ही रहने दिया जाता है। फिर इस जगह पर उपजाऊ मिट्टी लगाई जाती है और उसे किसी अखबारी कागज से बांध देते हैं। रोजाना पांच-छह दफा फव्वारे से मिट्टी को गीला किया जाता है। तीन-चार हफ्ते में जब वहां जड़ें निकल आती है, वहां से काट कर ऐसे तने को विशेष नांद में लगा दिया जाता है।
कुछ समय बाद जैसे-जैसे पेड़ बढ़ता जाता है उसकी शाखाओं को नियंत्रण किया जाता है। आजकल जापान में सौ साल से भी अधिक पुराने बरगद के पेड़ हैं, जो पचास सेंटीमीटर से भी छोटे हैं।
फल का बोनसाई पौधा या पेड़ | Bonsai fruit Plant
फलदार पौधों को भी Bonsai आसानी से बनाई जा सकती है। अमरूद, चीकू, आलूचे और अंजीर के बौनसाई खासे लोकप्रिय हैं। इनमें वैसे ही फल लगते हैं जैसे कि साधारण वृक्ष में। – बौनसाई पौधों को बनाने के लिए विशेष प्रकार के गमलों या नांदों का इस्तेमाल होता है। इनके पेंदे के बीच एक छोटा सा छेद होता है ताकि अतिरिक्त पानी पौधे की जड़ों में रूक न जाए। कुछ गमलों में तीन पैर बने होते हैं, कुछ में चार, कुछ सपाट भी होते हैं।
अगर किसी बड़े पेड़ को बौनसाई बनाना हो तो ऐसा बर्तन लीजिए जिसका व्यास 15 से 30 सेंटीमीटर तक हो और यदि छोटे-छोटे फूल के पौधों को बौनसाई बनाना है तो गमले व्यास या चौड़ाई पांच सेंटीमीटर से लेकर बीस सेंटीमीटर तक ठीक रहेगी। अब सावधानी से इसी आकार की एक लोहे की जाली काट लीजिए और उसको गमले में सावधानी से बिछा दीजिए। फिर कुछ मोटी मिट्टी डालिए और फिर बारीक मिट्टी।
आजकल विशेष प्रकार की मिट्टी नर्सरी से मिल जाती है जो Bonsai पौधों को उगने में मदद करती है और उनमें कीड़ा भी नहीं लगता। ऐसी मिट्टी को कुछ विशेष रसायनों से ठीक किया जाता है जिससे कि बौनसाई वर्षों तक दीमक और दूसरे कीड़ों से मुक्त कर सके। जिस पौधे को आप बौनसाई बनाना चाहते हैं, उसे सावधानी से निकाल लीजिए और उसकी जड़ें एक कैंची से आधी-आधी काट दीजिए। जड़ें काटने के बाद पौधों को नांद में जमा दीजिए। इस तरह कि जड़ें पूरे गमले में फैल जाएं। अब थोड़ी और मिट्टी लेकर इन जड़ों को ढक दीजिए।
गमले को सी-ग्रास से ढंक कर हल्का-हल्का पानी छिड़क दीजिए। बसंत के दिनों में तीन-चार बार पानी छिड़कने से काम चल जाएगा,पर गर्मी में पांच से सात दफा तक पानी छिड़कना पड़ता है। नियमित देखभाल के साथ समय-समय पर तार लपेट कर पौधों को विशेष आकार दिया जा सकता है।
सिर्फ पानी में पेड़ कैसे उगाया जाता है – हाइड्रोपोनिक्स तरीका से पेड़ कैसे उगाये
जी हां, विज्ञान ने अब यह भी संभव करके दिखा दिया है कि भविष्य में खेती के लिए भूमि का मोहताज नही रहना पड़ेगा। भूमि में तो पौधों में पानी में पौधे उगाना ही जल संवर्धन कहलाता है। बिना भूमि के जड़े जमाने के लिए कंकरी बजरी, रेत, राख आदि में खनिज तत्वों वाले जल विलयन में पौधे को उगाना हाइड्रोकल्चर, हाइड्रोपोनिक्स (Hydrophonic) जल संवर्धन अथवा विना भूमि की खेती कहलाती है। अभी यह विधि कृषि के रूप में अपनाई जाती है, पर वह दिन भी दूर नहीं लगता जब यह विधि विकसित होने पर पूर्ण कृषि रूप में अपनाई जाएगी।
वैज्ञानिक क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी कदम होगा। विदेशों में पौध घरों व ग्रीन हाउसों में फल एव सब्जियों उगाने के लिए इस विधि को बराबर अपनाया जा रहा है। भारत में भी इस विधि को बड़े जोश से अपनाया जा रहा है। अब इस विधि से संबंधित तकनीकें और साहित्य उपलब्ध है, जिनसे पूरी तरह मदद ली जा सकती है।
विदेशों में इस विधि को हॉबी या शौक के रूप में भी लेते हैं। इस विधि में अधिक परिश्रम और कार्य की जरूरत होती है। कहा जाता है दूसरे महायुद्ध में जवानों के लिए सब्जियां उपलब्ध करने हेतु इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था, जहां पर कि बहुत कम भूमि थी या भूमि थी ही नहीं। एशिया में इस विधि का इस्तेमाल वहां किया गया जहां कि भूमि में कृमियों (वर्म) और अन्य मानव परजीवियों (पेरासाइट) की भरमार थी।
यह फसल उगाने की नई तकनीक है पर कहा जाता है क्रिया विज्ञानी (फिवियोलोजिस्ट) इस विधि को सौ साल पहले से इस्तेमाल कर रहे हैं। यह देखने के लिए कि पौधों को कौन-कौन से खजिन तत्वों की जरूरत होती है।
एरीजोना में ग्रीन हाऊस जादुई उद्यान (मैजिक गार्डन) है। इस जादुई उद्यान में इस विधि से ही सारा उद्यान से इस विधि से ही सारा उद्यान हरा-भरा है। इस विधि से पौधे भूखे या प्यासे हैं, इसका भी पता चल जाता है। इस विधि व तकनीक में सम्पूर्ण तंत्र में तापमान और वायु-परिसंचरण को भी सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाता है। आंधी, ओलों, पाले, सूखे, खर-पतवार तथा कीटों आदि को प्रविष्ट नहीं होने दिया जाता।
इससे टमाटर, खीरा, घास, सलाद, तरबूज-आदि फलों का उत्पादन किया जा रहा है। इससे फसलों की पैदावार भी बहुत अच्छी रही है। इस तकनीक से फूलों, फलों, सब्जियों, चारे की घास आदि के लिए अलग-अलग आकार के छोटे-छोटे एकक होते हैं। इन से मानव तथा पशुधन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति बड़े आराम से हो जाती है।
अमरीका में इस प्रकार की खेती काफी जोर पकड़ रही है। कैलीफोर्निया से मिनी सौटा, फ्लोरिडा तक इसका इस्तेमाल होने लगा है। कई विश्वविद्यालयों में इससे संबंधित अनुसंधान तथा प्रयोग चल रहे हैं। दुनिया के कई देशों में इन संदर्भो में अनुसंधान हो रहे है।
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केवल पानी में पौधे उगना
क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि बिना मिट्टी के पेड़-पौधे उगाए जा सकते हैं? परंतु वास्तव में अब यह संभव है। जीव विज्ञान के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोपोनिक विधि द्वारा बिना मिट्टी के पौधे उगाए जाने की विधि का विकास किया है।
हाइड्रोपोनिक का अर्थ है किसी पारदर्शी पात्र में पानी डाल कर पौधों को उगाया जाना। इस विधि में खाद, पानी में खुराक के तौर पर रासायनिक पोषक तत्व का मिश्रण पौधे की नस्ल, किस्म, और जलवायु को ध्यान में रखते हुए पौधा लगाते समय व बाद में समय-समय पर खुराक के रूप में दिया जाता है। सामान्यतया पौधे की वृद्धि के पांच मुख्य तत्वों जैसेपोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम नाइट्रोजन व फास्फोरस की आवश्यकता होती है।
हाइड्रोपोनिक विधि द्वारा उगाए गए पौधों के लिए इन्हीं पांच तत्वों को मिलाकर रासायनिक पोषक तत्व का मिश्रण तैयार किया जाता है। पौधों की सिंचाई मे जड़ों के पोषण व पौधे की वृद्धि के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। नाइट्रोजन का कार्य पौधे की पत्तियों की वृद्धि करना है व फास्फोरस में फल-फूलों में बढ़ोतरी व जड़ें मजबूत होती है। मैग्नीशियम से क्लोरोफिल का निर्माण होता है। यह पद्धति घर में उगाए जाने वाले पौधों के लिए विशेष रूप से आदर्श है क्योंकि हाइड्रोपोनिक पद्धति से उगाए जाने वाले पौधों से घर में जगह साफ-सुथरी बनी रहती है अतः कमरों के अन्दर सजावट के लिए ये उत्तम रहते हैं।
मिट्टी में कई प्रकार के कीटाणु भी उत्पन्न हो जाते हैं। रेत, बजरी आदि में घास-फूस व अनावश्यक बूटी भी नहीं उगती क्योंकि इसमें फालतू पानी इकट्ठा नहीं होता। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि रेगिस्तान में भी व जहां मिट्टी कम परन्तु रेत-बजरी मिट्टी में अधिक मिली रहती है, पौधों को उगाया जा सकता है। इस विधि से फसल अधिक मात्रा में तथा जल्दी उगती है।
कुछ पौधे केवल पानी में उगते हैं जिसके लिए न तो मिट्टी की आवश्यकता होती है और न रेत-बजरी की और न ही खुराक की। ‘मनीप्लान्ट’ एक ऐसा पौधा है जिससे सब भली-भांति परिचित हैं। यह किसी भी पारदर्शी पात्र में पानी डालकर सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसके लिये न बीज की आवश्यकता होती है न नर्सरी से पुनः रोपण करने की समस्या। इसके अलावा फ्रेब्रेन ड्रकेना व अंब्रेला प्लान्ट भी पानी में उगने वाले पौधे हैं। कुछ क्रोटन की की किस्में भी ऐसी हैं जा पानी में उगायी जा सकती हैं।
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