Hatim Tai and 4th Question full Story in Hindi | हातिमताई और चौथा सवाल

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Hatim Tai and 1st Question full Story in Hindi
| हातिमताई और पहला सवाल
Hatim Tai and 2nd Question full Story in Hindi | हातिमताई और दूसरा सवाल


Hatim Tai and 4th Question full Story in Hindi | हातिम का जाना और चौथे सवाल का जवाब तलाश करके लाना

अब हातिम शाहबाद से निकला और चलते-चलते बहुत दूर पहुंचा। रास्ते में एक बड़ा भारी पहाड़ मिला । जिसके नीचे एक नदी बह रही थी। उसने देखा कि पानी की जगह रुधिर बहा जा रहा है तो हातिम बड़ा ही विस्मित हुआ और सोचने लगा कि मुझे इसका भेद लाना चाहिए। ऐसा सोच वह उधर को ही चल दिया, जिधर से नदी बहती आ रही थी। दस-बारह कोस चलने पर एक ऊंचा पेड़ दिखाई दिया।

उसकी डाली में सैकड़ों स्त्रियों के शीश लटक रहे थे और उस पेड़ के नीचे एक-रमणीक तालाब निर्मल जल से भरा था। जिसमें उन टंगें शीशों से रक्त की बूंद टपकती ओर वहीं से रक्त मिला हुआ जल धीरे-धीरे उस नदी में जा रहा है। इसी कारण उसके जल का रंग लाल है।”

अब हातिम उस पेड़ के नीचे बैठ गया । उसे वहां बैठा देख कर सब शीश एकदम खिलखिलाकर हंस पड़े। थोड़ी देर पीछे उसकी नजर उस शीश पर पड़ी जो सब शीशों से ऊंचा लटक रहा था। जिसे देखकर हातिम को मूर्छा सी आने लगी । लेकिन सावधान हो विचारने लगा, अब तो मैं इस चरित्र का भेद लेकर ही जाऊंगा।

इतने में सूर्य नारायण अस्त हुए । रात होने को आई । हातिम छिपकर बैठा गया । तो वह सारे शीश पेड़ से टूट-टूट कर तालाब में गिर गए । तालाब के बीच एक बैठक बनी हुई थी । जिसमें तत्काल ही अति उत्तम बिछौना बिछ गया और उसमें एक ओर रलों से जड़ा सिंहासन नजर आने लगा । इतने ही में सैकड़ों परी तालाब से निकलकर बैठक में गई। जिसमें एक जो सबकी स्वामिनी थी, उस सिंहासन पर बैठ गई और शेष बिछौनों पर बैठ गई । सिंहासन पर बैठने वाली चन्द्रमुखी, मृगलोचनी, नवयौवना वही थी, जिसका शीश पेड़ में ऊंचा लटक रहा था।

उसके मुखारबिंद को देख हातिम को चैन नहीं पड़ता था। चाहता था कि इसके गाल को फूलों का रसिक भंवरा बनकर चूस लूं । लेकिन सावधान ही रहा । इतने में वहां गंध र्व समाज आकर नाच करने लगा और कामग्नि को भड़काने वाले गाने होने लगे । जब आधी रात समाप्त हई तो बैठक में सबके सम्मुख सोने चांदी की थाल षटरस व्यंजनों से सजे हुए आप ही आप आ गए । तब उस अधीश्वरी ने अपने अनुचरी को आज्ञा दी- जाओ बटोही को भी दे आओ । जो बहुत देर से पेड़ के नीचे विराजमान है।

अनुचरी भोजन का थाल लेकर हातिम के सामने पहुंची तो उसने कहा-तू कौन है? तेरी स्वामिनी का नाम क्या है? बता, तब मैं भोजन करूंगा नहीं तो मैं भूखा रहूंगा।

इतना सुनकर अनुचरी चल दी और इसका समाचार अपनी स्वामिनी से कहा तो वह बोली-उससे कहो अब तू भोजन कर ले फिर बता दिया जाएगा। यह सुन अनुचरी ने सब समाचार सुनाया तो हातिम ने बड़ी प्रसन्नता से भोजन किया। सज्जनों, अब हातिम बोला-अब अपनी स्वामिनि के पास मुझे ले चल । उसने कहा-अच्छा प्यारे, मेरे साथ-साथ चला आ ।

जब आगे-पीछे दोनों चले तो वह अनुचरी तो तालाब में कुद स्वामिनी के पास गई और हातिम उस तालाब में गोता मार कर आंख खोलता है तो क्या देखता है कि न वहां पेड़ है, न तालाब है, न वहां बैठक है। बल्कि एक रेतीला मैदन है। अब तो हातिम उस चन्द्रमुखी के बिरह में पागल हो गया और हाय प्यारी चिल्लाता हुआ इधर-उधर भागने लगा।

जब इसी दशा में सात दिन हो गए तब ईश्वर ने ख्वाजा खिजर को आज्ञा दी कि जाओ, हातिम एक स्त्री के बिरह में पागल हो गया है उसे होश में लाओ । इतना सुनते ही ख्वाजा खिजर हातिम के सामने प्रकट हो कहने लगे-हातिम तेरी क्या दशा है? ख्वाजा के चरणों में गिरकर बोला-हे गुरुदेव इस स्थान का नाम क्या है? और मैं इसमें कैसे आ गया ।

तब ख्वाजा ने समझाया कि इस वन का नाम खबरपुर्ज है, तू उस परी के साथ तालाब में कूदा था। इसी कारण से तू यहाँ आ गया है । क्योंकि वह तालाब माया का बना हुआ है । उन परियों के सिवाय जो भी उसमें कूदता है, यही वन में आ जाता है । वह स्थान अब यहां से तीन सौ कोस दूर है।

इतनी बात सुन कर हातिम लोट पोट हो गया और हाय प्यारी, हाय प्यारी फिर चिल्लाने लगा । तब ख्वाजा खिजर बोला-अरे हातिम तू क्यों अपने प्राण संकट में डालता है। उस सुलोचनी को पाना तेरे लिए कठिन नहीं असम्भव है । देख उसका पिता शाह अमर जादूगर है। हे हातिम, वह इसका विवाह करना ही नही चाहता, भला तू इस झगड़े में फंसकर क्या करेगा? इसलिए अपना काम कर । उसके प्रेम जाल से दूर रह।

हातिम बोला-क्या करूं? मेरे में अब यह सामर्थ्य नहीं कि उस सुन्दरी से दूर हो जाऊं । ख्वाजा ने कहा-अच्छा तेरी यही इच्छा है तो ले । ऐसा कहकर अपना पासा (डंडा) उस पेड़ पर मारा और इस्म आलम मुसलमानों का मन्त्र पढ़ कर फूंक दिया।

इतना काम करके ख्वाजा अतध्धान हुए और हातिम उस पेड़ पर चढ़कर अपनी प्यारी के शीश के निकट गया तो उसका भी धड़ कट कर तालाब में गिरं पड़ा और शीश उस झील के सामने लटकने लगा । जब रात हुई तो हातिम के शीश सहित सब शीश तालाब में टूट पड़े और अपने-अपने धड़ों से लग गए । लीजिए अब वहां वही चरित्र होने लगा जो सर्वदा होता रहता था। – आज हातिम भी सिंहासन के एक ओर हाथ बांधे हुए खड़ा है ।

तब वह सुन्दरी मीठी वाणी में पूछने लगी-हे युवक तू कौन है, तेरा नाम है, यहां क्यों आया है, कहां का निवासी है? हातिम बोला-हे प्यारी, अधिक पूछ कर क्या करोगी? मैं तो तेरा एक दास हूं। यह सुनकर उस सुन्दरी ने समझ लिया कि यह युवक मेरे प्रेम में फंस गया है । फिर मौन होकर नाच और गाने का आनन्द लेती रही । इसके पश्चात सबके सम्मुख भोजनों के थाल आए और सभी ने भोजन पाए । उस सुन्दरी ने हातिम को अपने निकट बिठाकर जिमाया ।

अब प्रातः काल के समय होते ही हातिम के शीश सहित सब शीश उस पेड़ पर जा लटके और रात को फिर वही चरित्र हुआ । इस प्रकार एक मास व्यतीत हुआ। तब उस पेड़ पर ख्वाजा उतरे । फिर तालाब में से धड़ निकाल उस पर शीश रख उसे जीवित कर पूछने लगे- हातिम तू इतने दिन कहां था? हातिम ने कहा-मैं उसी प्राणेश्वरी के दर्शन कर दिल भर रहा था ।

ख्वाजा बोले-तो दर्शन करके तेरा मन भरा नहीं ? तब हातिम रो-रोकर कहने लगा-दोहा क्यों मुझको अब बहुत दुख, रहे आप दिखलाया। इससे मेरा ब्याह हो तो, कुछ यल बताये ॥ यदि यह अभिलाषा मेरी, पूरन कभी न होई । तो मैं सच्चा कह रहा, प्राण देऊं निज खोई॥ यह सुन ख्वाजा खिजर कहने लगे-प्यारे हातिम, जब तक इसका पिता शाह अमर जादूगर नहीं करेगा, तब तक यह किसी की नहीं हो सकती ।

मैं तुझे एक मंत्र सिखाता हूं। तू सदा पवित्रता से रहना, दिन में व्रत कर रात को भोजन किया करना । ऐसे कह ख्वाजा खिजर ने हातिम को इस्म आजम की शिक्षा दी। फिर कहने लगे क अब तू निडर होकर शाह अहमद के पर्वत की ओर जा।

हातिम हाथ जोड़कर बोला- गुरुदेव, मैं उस पर्वत को कहां खोजता फिरूंगा । ख्वाजा बोले-अपनी आंख बन्द करो। हातिम ने आंखे बन्द की और कुछ समय बाद आंखें खोली तो क्या देखता है कि वह एक ऊंचे पर्वत पर खड़ा है। आगे बढ़ने लगा तो पत्थरों से उसके पैर ऐसे चिपक गए कि चढ़ा ही न जाता था ।

तब हातिम समझा यही शाह अहमद जादूगर का पर्वत है। थोड़ी देर सोचकर इस्म आजम की याद आई और उसका पाठ किया तो आगे बढ़ने लगा। कुछ देर चलकर क्या देखा कि एक पानी का सोता है जिसके चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हैं और पशु पक्षी वहां आनन्द कर रहे हैं।

हातिम ने कपड़े उतार कर उस सोते में स्थान किया । दूसरा कपड़ा धारण कर इस्म आजम का पाठ आरम्भ किया । जिसके प्रकोप से जितने पशु थे, सब भाग गए । यह खबर किसी ने शाह उमर ने कही और उसने अपनी ज्योतिष की पुस्तक पढ़ी तो जान गया कि आज हातिम आ गया । क्योंकि उस पुस्तक में लिया था कि एक दिन हातिम इस सोते पर आकर मन्त्र द्वारा माया को काटेगा ।

ऐसा सोच माया कृत सैकड़ों परियों बुलाई और बोला-वह युवक सोते पर मन्त्र पाठ कर रहा है उसके पास जाओ और छल करके उसे पकड़ लाओ । वह झट एक हाथ में मदिरा की बोतल और दूसरे में प्याले लेकर नाचती गाती हातिम के सामने पहुंची। जब हातिम ने उस परी को देखा तो समझा जादूगर की यही बेटी है । उसे देख बावला सा होने लगा और समझा कि यहां मुझे प्रसन्न करने आई है।

इतने में वह हातिम के बगल में बैठे कहने लगी-हे प्यारे जैसे-तैसे तुम्हें पाया है। मेरे हाथ की मदिरा तो पी ले। हातिम बड़े प्रेम से मंदिरा पीने लगा । जब भलीभांति तरह पी चुका तो उसके शरीर को कसकर शाह अमर के सम्मुख ले आई।

हातिम को देखकर जादूगर जल गया और आज्ञा दी कि जाओ इसे अग्नि कुण्ड में डाल दो। तुरन्त हातिम को कुण्ड में ले जाकर डाल दी । परन्तु रीछ की बेटी वाले मुहरे के प्रभाव से हातिम का कुछ नही बिगड़ा। शाह अमर ने ज्योतिष की किताब देखी तो जान गया कि हातिम मुहर के प्रभाव में नही जला।

यह समचार शाह अमर जादूगर ने सुना तो बड़ा ही क्रोधित हुआ । तुरन्त ही मंत्र द्वारा कामदेव को बुलाकर कहने लगा-हे मदन, ऐसा कोई युक्ति करो कि हातिम ये मुहरा मुझें दे दे कामदेव बोला- यह काम मेरे बस का नहीं है । क्योंकि ईश्वर की आज्ञानुसार उसकी सहायता ख्वाजा खिजर कर रहे हैं ।

अगर वह अचेत होजाए तो उसका वीर्यपतन करके उसको अपवित्र कर सकता हूं। यह सुन जादूगर बोला-बस तुम जाओ और उसे अपवित्र बनाओ। फिर किसी न किसी प्रकार से मैं मुहरे को ले ही लूंगा।

इतना सुन कामदेव ने सोते पर हातिम को अचेत करके उसका वीर्यपतन कर दिया। जिससे वह अपवित्रता के कारण मंत्र पाठ करने के योग्य न रहा । शाह अमर ने मायावी देव पहले ही भेज दिए थे। जब हातिम पवित्र होन के लिए स्नान करने चला तो उन्होंने पकड़ लिया और शाह अमर के सम्मुख जाकर खड़ा कर दिया ।

अमर बोला कि-मुझे मुहरा दे, नहीं तो तेरे जीवन की कुशल नही है। हातिम बोला-तू अपनी बेटी का ब्याह पहले मेरे साथ कर दे तो मैं तुझे मुहरा दे दूंगा । यह सुनकर जादूगर के हृदय में क्रोध की अग्नि भड़क उठी। उसने अपने मायावी देव को आज्ञा दी कि इसे लोहे की जंजीरों में कसकर पत्थर के खम्भे से बांध दो । देवों ने ऐसा ही किया।

हातिम उस खम्भे से सात दिन बंधा रहा और ईश्वर का ध्यान करता रहा । उसके मुख पर तनिक भी उदासी नहीं आई। शाम को अमर ने आकर देखा तो बड़ा अचरज हुआ। सब ने यही जाना कि अब शाह अमर की बुद्धि बिगड़ गई है। मायावी देवों से कहने लगा-देखो इसे यहीं घेरकर बैठे रहो । कहीं जाने आने नही पायेगा तो आप ही दो-चार दिन में भूखा-प्यासा मर जायेगा ऐसा कह शाह अमर तो अपने घर गया और उसके मायावी देवों हातिम की पहरेदारी करने लगे।

जब भूखे-प्यासे कई दिन हो गये तो अति व्याकुल हो हातिम देवों से बोला-उसी को मैं मुहरा दूंगा जो मुझे सोते पर पहुँचा देगा । यह सुनकर पहले दोनों ने कहा-हमें इस मुहरे की आवयकता नही है । लेकिन एक देव जिसका नाम सरतक था, उसने हातिम को संकेत द्वारा सूचित किया कि मैं तुझे वहां पहुंचा दूंगा । हातिम ने भी संकेत से बताया कि वह मुहरा तुझे ही मिलेगा।

ईश्वर की कृपा से उस रात को सभी पहरेदार नींद के वश में हो गए और एक सरतक ही जाग रहा था । वो तुरन्त अवसर पा कर हातिम को कंधे पर उठा ले गया और सोते पर पहुंचा दिया । सोते में वस्त्र धोकर स्नान कर इस्म आजम का पाठ करने लगा । तब सरतक ने कहा-ला भाई अब तो मुझे मुहरे को दे तब हातिम ने कहा-तुझे मुहरा कदापि नही दूंगा।

ये ईश्वर की राह में परोपकार के लिए है। इतनी सुनकर सरतक कहने लगा हमारा ईश्वर तो शाह अमर का गुरु कमलांक मयावी है । जिसने अलग ही सूर्य, चन्द्र व प्रकाश बना रखे हैं और वह माया के बल से चालीस सहस्त्र मायावी देवों का उत्पादक है जो उसी का भजन ध्यान व पूजा-पाठ करते हैं।

यह सुनते ही हातिम अति क्रोधित हो बोला-अरे नास्तिक मूर्ख पागल तू ईश्वर को छोड़कर, जो सारी सृष्टि को उत्पन्न करने वाले ईश्वार को नहीं मानता, मैं ऐसे नास्तिक के प्राण लिए बिना नहीं मानता । किन्तु तूने मेरे साथ कुछ भलाई की है । सरतक कहा-तू मुहरा देगा या नहीं देगा?

हातिम बोला-यह मोहरा तो मैं तुझे कदापि नहीं दूंगा। पर इस भलाई के बदले में किसी दिन शाह अमर को मारकर तुझे वहां का बादशाह बनाऊंगा । सरतक बहुत खुश हुआ और अपने जोड़ीदारों में आकर सो गया। प्रातः काल होते ही हातिम को न पाकर पहरेदार भाग गए और शाह अमर से सब सारी ताड़ ली। एक साथ हृदय में क्रोध की ज्वाला जल उठी आज्ञा दी कि जाओ सरतक को शीघ्र ही मेरे पास लाओ।

वहां सरतक को ज्ञात हुआ । उसने हातिम से कहा-तेरे को दया आ गई और बोला-तू जरा भी भयभीत न हों। मेरे पास बैठ जा, ईश्वर की कृपा से तेरा बाल भी बांका नहीं होगा । यहां शाह अमर को मालूम हुआ कि सरतक हातिम की शरण में पहुंचा है । उसने तत्काल ही एक मन्त्र पढ़कर ज्वाला उत्पन्न की। सरतक को भस्म करने के लिए एकदम सोते की ओर आई । जिसे देखकर सरतक का सारा शरीर थर्राने लगा । यह देख हातिम ने इस्म आजम को पढ़कर एक फंक मार दी जिससे क्षण में वह प्रबल ज्वाला बुझकर शान्त

हो गई । तब अपने मन्त्र पढ़ता हुआ सरतक को साथ ले हातिम शहर की ओर चला । शाह अमर को मालूम हुआ कि मेरी ओर मेरा बैरी हमला करने आ रहा है तो तुरन्त ही अपनी फौज को लेकर शहर से बाहर आया और माया फैलाने लगा।

शाह अमर ने ऐसी माया फैलाई कि एक साथ जमीन थर्रा गई। आंधी आई, प्रकाश घूमा, बादल गरजे, बिजली चमकी। यह देखकर सरतक ने हातिम को बताया-हे प्यारे, यह शाह अमर की माया है। किसी प्रकार इसे काट नहीं तो हम दोनों के प्राण गए । हातिम ने इस्म आजम को पढ़कर आकाश की ओर फूंका तो वह सारी माया उसी की सेना पर पड़ी।

जब जादूगर ने देखा कि हातिम ने मेरी माया काट दी तो दूसरी माया फैलाई कि एक पहाड़ जमीन में से उठा और हातिम को ओर चला । यह देख हातिम ने ईस्म आजम पढ़ा और आकाश की ओर फूंका दिया यह देख शाह अमर को बड़ा क्रोध आया और ऐसा मंत्र पढ़ा कि अपनी सेना के आगे पीछे पेड़ बना दिए।

अब अकेला ही मन्त्र पढ़ा और हातिम की ओर फेंकने लगा । सारी करामात निश्फल रही तो आकाश में उड़कर वह अदृश्य हो गया । हातिम ने सरतक से पूछा- क्यों भाई शाह अमर कहां गया ? तब सरतक बोला-हे प्यारे, अब वह अपने गुरु कमल के पास गया है जो बड़ा मायावी है और उसका स्थान यहां से सौ कोस है । हातिम बोला-हे सरतक ईश्वर की कृपा हुई दोनों एक ही साथ मरेंगें । सरतक बोला-मैंने इस्म आजम के प्रभाव को देख लिया । दूसरा उसके समान कोई नही हो सकता।

यह सुनकर हातिम ने प्रसन्न होकर कहा- अब मेरा विचार कमलांक को देखने का है । बोल तू मेरे साथ चलेगा कि नहीं तब सरतक ने विनय की-प्यारे हातिम, मैं तो तेरे संग चलूंगा ही । परन्तु वह जो पेड़ों के झुण्ड दीख रहे हैं शाह अमर की है । इसे तू जीवित कर दे तो यह सब तेरी हो जाएगी और तेरा साथ देगी।

इतना सुनकर हातिम ने इस्म आजम पढ़कर पेड़ों की फेंक दिया । सारे पेड़ सिपाही रूप हो गए और हातिम के चरणों में गिर पड़े। फिर बोले-हे दयालु हातिम ! क्या तुमने ही हमें सजीव किया है ? तब सरतक ने कहा-हां, इसी ने तुम्हें जीवनदान दिया । शाह अमर तो तुम्हें पेड़ बनाकर कमलांक के भाग गया। इतनी सुनकर सारी सेना धन्य-धन्य पुकार उठी हातिम बोला-मैं कमलांक नगर को जाता हूँ। तुम मेरे साथ चलोगे? सबने हातिम के साथ चलने को हां कर दी।

अब हातिम कमलांक पर्वत की ओर बढ़ने लगा । उधर शाह अमर ने कहा-गुरु जी क्या कहूं एक पुरुष जिसका नाम । हातिम है उसने मेरी माया काट दी और उसी डर के मारे मैं आपके पास आया हूं। यह सुनते ही कमलांक क्रोध के मारे भड़क गया और बोला-यदि वह यहां आ जाए तो मैं उसे राख में मिला दूंगा। फिर कमलांक ने ऐसा मन्त्र पढ़ा-कि पहाड़ के चारों ओर अग्नि दिखाई देने लगी।

हातिम के साथियों ने कहा- इस अग्नि से बचने का कोई उपाय करो, नहीं तो हम सब भस्म हो जायेंगे । यह माया कमलांक की है । हातिम ने सबों को धीरज दिया कि ईश्वर का भजन करो । हातिम ने ज्योहिं इस्म आजम को पढ़कर फूंका त्योंही एक पल में सारी अग्नि बुझ गई । ये देखकर कमलांक ने पहाड़ के चारों ओर जल भर दिया । हातिम ने इस्म आजम पढ़कर फेंक दिया और सारा जल सुख गया। अब तो कमलांक ने ऐसा मंत्र पढ़ा कि पत्थरों की वर्षा होने लगी।

तब हातिम ने मन्त्र पढ़कर पत्थर ऐसे उड़ा दिए जैसे चील उड़ती है । तब कमलांक ने मन्त्र पढ़कर अपने पर्वत को गायब कर दिया । हातिम ने इस्म आजम का पाठ किया। अन्त में यह माया भी कट गई और हातिम अपने साथियों को लेकर पर्वत पर चढ़ने लगा । अब कमलांक ने सोचा बैरी पर्वत पर चढ आया और मैं इसको सारे प्रयत्न करके भी न रोक सका तो अपनी सारी सेना और शाह अमर को साथ ले आकाश में पहुंचा जो कि उसने, पर्वत से तीन सहत्र गज ऊंजा बना रखा था।

जब हातिम साथियों सहित उसके नगर में पहुंचा तो देखा वहां कोई भी नहीं है और बाजार में सैकड़ों दुकान भांति भांति के मिष्ठानों से भरी पड़ी है । परन्तु खाने वाला कोई नहीं । हातिम ने पूछा-भाई यहां के रहने वाले कहां गये ? तो सरतक ने बताया-वह भय से उस आकाश पर पहुंच गया है। यह सुन हातिम हंसकर बोला-अच्छा तो पहले सब एक साथ पेट भर के मिठाई खाओ, पीछे मैं उस आकाश को भी देखूगा ।

तब सब साथियों ने हातिम के कहने से निर्भय होकर खूब पेट भर मिठाई खाकर अपनी भूख बुझाई । इसके बाद हातिम ने इस्म आजम को पढ़ा और ऊपर को फूंक दिया तो वह माया का आकाश पल में खण्ड-खण्ड होकर गिर पड़ा जिसके साथ सब मायावी पहाड़ पर गिरकर चकना चूर हो गए और वह दोनों गुरु-चेला कमलांक व शाह अमर एक ओर को भागे । यह देख हातिम ने भी उनका पीछा किया । तब तो वह व्याकुल हुए और दोनों एक साथ ही पहाड़ से गिरकर समाप्त हो गए।

दोनों दुष्टों को मारकर हातिम को असीम आनन्द हुआ । फिर सरतक से कहा-अब कमलांक व शाह अमर दोनो का राज्य मैने तुझे ही दिया । क्योंकि मैं पहले ही तुझसे कह चुका हूं। परन्तु ईश्वर को भी न भूलना और उसके जीव को कभी दुःख न देना । सारी प्रजा को प्राण के समान रखना। फिर सबको समझाया कि तुम सरतक का अपना स्वामी समझो ओर ईश्वर का भजन करो । मैं शाह अमर की बेटी के पास जा रहा हूं ।

अब भगवान का स्मरण करता हुआ हातिम वहां से चल दिया और थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गया तो देखा वहां अब पहले जैसा चरित्र नहीं था । तालाब के स्थान पर एक महल खड़ा है और उसमें चहल पहल हो रही है। इतने में एक सहेली भीतर से निकलकर महल के द्वार पर आई और हातिम से कहने लगी

दोहा-क्यों परदेशी कौन तू हमको शीघ्र बताए ।
यह सुनकर सूरत तेरी गई मारे मन भाए ॥

हातिम ने उत्तर दिया -मैं वही बटोही हूं, जा कुछ दिन . पहले तम्हारे पेड़ पर लटक रहा था। तू शाह अमर की बेटी को मेरे आने की सूचना दे दे । सहेली ने तत्काल जाकर सचना दी तो चन्द्रमुखी ने कहा-उसे मेरे पास लाओं । तब हातिम शाह अमर की बेटी परीपोश के पास पहुंचा तो उस मगनैनी ने बड़े आनन्द से अपने पास बैठा लिया । फिर बोली-आप इतने दिन से कहां रहें? तब हातिम ने सारा हाल सुनाया ।

जब उस यौवनवती ने अपने पिता की मृत्यु सुनी तो कुछ उदास होकर शीश झुका लिया । यह देख सखियां समझाने लगी- हे राजकुमारी ! इतना शोक क्यों करती हो ? ऐसा पिता तो मरा ही भला ।

हातिम बोला-हे प्यारी, मैंने यह सब तुम्हारे कारण किया है और इस शरीर पर बड़ी-बड़ी विपत्तिया उठाई है । तुम्हारे पिता नास्तिक थे। वह कमलांक के पीछे ईश्वर को भी नहीं मानता था। ऐसे दुष्ट का मर जाना ही अच्छा है। अब तुम्हें यही उचित है कि अपनी सुन्दर वाटिका की सैर कराओ । इतना सुन चन्द्रमुखी के चेहरे पर मुस्कराहट के चिन्ह दिखाई देने लगे। तब सखियां बोली-स्वामिनी अब न चुकिए । यह भी कोई साधारण मनुष्य नहीं, शहजादा हैं और पति बनाने योग्य हैं।

हातिम बोला-मैं मुल्क यमन के बादशाह का कुमार हूं। अब तो शाह अमर की बेटी फूलों न समाई और आनन्द पूर्वक हातिम के साथ अपना विवाह कर लिया। जब पत्नी के साथ रात शयनगार में पहुंचा तो एकाएक मुनीरशामी की याद आयी ओर पलंग से दूर हटकर यों विचार करने लगा कि हाय मझको कोटि-कोटिधिक्कार है कि परोपकार को छोड़कर भोग-विलास में फंसा जा रहा हूं और मुनीरशमी मेरी रहा देख रहा होगा ।हाय अन्त समय पर ईश्वर को क्या उत्तर दंगा।

हातिम इसी बीच में उदास खड़ा था कि शहजादी बोली-मझमें आपको क्या दोष दिखाई दिया जो अलग खडे हो ? वह बोला-तू निर्दोष है, लेकिन मेरे अलग खड़े होने का कारण कुछ और है । ऐसे वह अपना सारा समाचार प्यारी को सुना दिया। फिर समझाने लगा कि जब तक मैं मुनीरशामी क काम को पूरा नही कर दूंगा, तब तक भोग-विलास नहीं करूंगा।

हे प्रिय, तुम मेरी आज्ञानुसार मेरे पिता के पास चली जाओ, वह यमन के बादशाह हैं । वहां आनन्द पूर्वक निवास करो । मैं भी मुनीरशामी का कार्य पूरा करके जल्दी आऊंगा। परीपोश को ऐसे समझाकर हातिम ने अपने पिता को एक पत्र लिखा । इस पत्र चन्द्रवती के हाथ में देकर बोला कि तुम उधर जाओ और मैं इधर जा रहा हूं। निदान शाह अमर की बेटी यमन की ओर चल दी और हातिम शहर करम की ओर चल पड़ा ।

कुछ दिन में चलते-चलते वहां पहुंचा तो शहर के लोगों से पूछने लगा क्यों भाई यहां कोई ऐसा मनुष्य है जो सदा ये कहता रहता है कि सत्यवदी सदा सुखी । शहर के लोगों ने पता बता दिया। जब वह चल कर उस मकान पर पहुंचा तो द्वार पर यही वाक्य लिखा पाया।

उस द्वार पर जो नौकर खड़ा था उससे कहने लगा-हे भाई तुम्हारे स्वामी के दर्शन करना चाहता हूं। नौकर ने भीतर जाकर स्वामी को सूचना दी तो उसने बड़े हर्ष से हातिम को अपने पास बुलाया और कुर्सी पर बिठाकर पूछने लगा-तुम दिया- मैं मुल्क यमन का शहजादा हातिम हूं। फिर अपनी यात्रा का सारा हाल सुनाया ।

अब तो वह मनुष्य जो देखने में जवान, परन्तु वह बहुत ही बूढ़ा था फौरन उठा और हातिम के कण्ठ से लग गया । इसके पश्चात् बोला-कहो तुम्हें क्या आवश्यक कार्य है ?

हातिम बोला-मैं यह पूछना चाहता हूं कि आपने (सत्यवादी सदा सुखी) अपने दरवाजे पर क्यों लिख रहा है ? तब वह बूढ़ा बोला-हे हातिम यह शहर सात सौ वर्ष का बसा हुआ है और मैं इस समय आठ सौ वर्ष का हूं। जुआ खेलने में सब हार गया तो बादशाह के महल में चोरी करने गया और कमन्द के द्वारा भीतर पहुंचा । मैंने बादशाह के कण्ठ से

हीरों का जड़ाऊ तोड़ा उतारा और एक वन की ओर चल दिया। वहां एक पेड़ के नीचे चोर अपनी चोरी का माल बांट रहे थे।

उन्होंने पूछा कि यहां क्यों आया है ? मैंने अपना सच्चा हाल उन्हें बता दिया और वह हीरों का जड़ाऊ तोड़ा भी उन्हें दिखा दिया । जड़ाऊ तोड़े को देखकर उन्होंने चाहा कि झपट लें । इतने ही में उस वन में एक ऐसी गड़बड़ाहट हुई कि पथ्वी कांप उठी ओर चोर भय के मारे वहां से भाग गए। इसके पश्चात् एक मनुष्य आकर मुझसे बोला-तू यहां क्यों घूम रहा है ? मैंने सत्य बात उसे भी बतला दी ।

वह प्रसन्न होकर कहने लगा-तू सत्य बोला इसलिए इस तोड़े को मैं तुझे ही देता हूं और यदि तू चोरी और जुआ खेलना आज से त्याग देगा तो तेरी अवस्था ९०० वर्ष की हो जाएगी । मैंने उसी दिन से चोरी व जुए त्याग दिया । यह बड़ा भारी मकान मैंने रहने के लिए बनवाया । इसे देखकर जो मेरे मित्र थे, वो भी दुश्मन बन गए । उन्होंने कोतवाल से जाकर कहा कि इतना धन इसके पास कहां से आया जो आलीशान मकान बनवा लिए।

कोतवाल ने मुझे बुलाया और बादशाह के सामने खड़ा कर दिया । मैंने बादशाह से कहा-मैंने आपका तोड़ा चुराया था उसी का सारा वैभव है । बादशाह मेरे सत्य भाषण पर प्रसन्न होकर कहने लगे-तू सत्य बोला है, इसलिए मैंने तेरा अपराध क्षमा किया । बादशाह ने और भी धन दिया । जिसे अब तक बराबर खर्च कर रहा है परन्त धन घटता ही नहीं बढ़ता ही जाता है। तभी से मैंने अपने दरवाजे पर लिख दिया है (सत्यवादी सदा सुखी)

इतनी बात सुनकर यमन का शहजादा उससे विदा मांगकर चल दिया और शाहाबाद में पहुंच गया और हुस्नबानू के पास पहुंचा । हुस्नबानू ने पूछा-हे युवक, चौथे सवाल का तुम क्या जवाब लाये ? यह सुन हातिम ने उस बुड्ढ़े का सारा हाल कह सुनाया । जिसे सुनकर हुस्नबानू ने प्रशंसा की झड़ी लगा दी और रात को सराय में विश्राम कर मुनीरशामी से विदा होकर हातिम हुस्नबान से जाकर कहने लगा-सौदागर की बेटी, अब तू अपने पांचवे सवाल को बता ।

हुस्नबानू ने कहा-हे हातिम कोहनिदा अर्थात् शब्दबान पर्वत का भेद ला दे कि उसमें से जो शब्द निकलता है, उसमें बोलने वाला कौन है ? यह सुनते ही हातिम कोहनिदा को चल दिया ।


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