हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Full Story of Samudragupta in Hindi | भारत सम्राट समुद्रगुप्त की कहानी लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। समुद्रगुप्त की कहानी पढ़कर आपको प्रेरणा मिलेगी। इसलिए एक बार समय निकाल कर जरूर पढ़ें।
Story of Hatim Tai – हातिम ताई की कहानी
Full Story and Biography of Shivaji | छत्रपति शिवाजी की कहानी
Contents
भारत सम्राट समुद्रगुप्त की कहानी | भारत सम्राट समुद्रगुप्त की जीवनी
चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद 335 ई. में उसका तथा कुमारदेवी का पुत्र समुद्रगुप्त (Samudragupta) राजसिंहासन पर बैठा। समुद्रगुप्त का जन्म लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी के गर्भ से हुआ था। सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास में महानतम शासकों के रूप में वह नामित किया जाता है। इन्हें परक्रमाँक कहा गया है। समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जाता है। इस साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। समुद्रगुप्त ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
समुद्रगुप्त एक असाधारण सैनिक योग्यता वाला महान विजित सम्राट था। विन्सेट स्मिथ ने इन्हें नेपोलियन की उपधि दी। उसका सबसे महत्वपूर्ण अभियान दक्षिण की तरफ (दक्षिणापथ) था। इसमें उसके बारह विजयों का उल्लेख मिलता है।
समुद्रगुप्त एक अच्छा राजा होने के अतिरिक्त एक अच्छा कवि तथा संगीतज्ञ भी था। उसका देहांत 380 ई. में हुआ जिसके बाद उसका पुत्र चन्द्गुप्त द्वितीय राजा बना। यह उच्चकोटि का विद्वान तथा विद्या का उदार संरक्षक था। उसे कविराज भी कहा गया है। वह महान संगीतज्ञ था जिसे वीणा वादन का शौक था। इसने प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबन्धु को अपना मन्त्री नियुक्त किया था।
हरिषेण समुद्रगुप्त का मन्त्री एवं दरबारी कवि था। हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के राज्यारोहण, विजय, साम्राज्य विस्तार के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती
काव्यालंकार सूत्र में समुद्रगुप्त का नाम चन्द्रप्रकाश मिलता है। उसने उदार, दानशील, असहायी तथा अनाथों को अपना आश्रय दिया। समुद्रगुप्त एक धर्मनिष्ठ भी था लेकिन वह हिन्दू धर्म मत का पालन करता था। वैदिक धर्म के अनुसार इन्हें धर्म व प्राचीर बन्ध यानी धर्म की प्राचीर कहा गया है।
समुद्रगुप्त का साम्राज्य
समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्य पर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से पश्चचम में पूर्वी मालवा तक विस्तृत था। कश्मीर, परिचय पंजाब, पचिमी राजपूताना, सिन्ध तथा गुजरात को छोड़कर समस्त उत्तर भारत इसमें सम्मिलित थे। दक्षिणापथ के शासक तथा पश्चिमोत्तर भारत की विदेशी शक्तियाँ उसकी अधीनता स्वीकार करती थीं।
समुद्रगुप्त के काल में सदियों के राजनीतिक विकेन्द्रीकरण तथा विदेशी शक्तियों के आधिपत्य के बाद आर्यावर्त पुनः नैतिक, बौद्धिक तथा भौतिक उन्नति की चोटी पर जा पहुँचा था।
गुप्त राजवंश
(गुप्त राज्य लगभग 500 ई.) इस काल की अजन्ता चित्रकलागुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का एक स्वर्ण युग माना जाता है।
मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्यत, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चातनष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है।
गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था।
समुद्रगुप्त का राज्य
चंद्रगुप्त प्रथम के बाद समुद्रगुप्त मगध के सिंहासन पर बैठा। उसका समय भारतीय इतिहास में ‘दिग्विजय’ नामक विजय अभियान के लिए प्रसिद्ध है। समुद्रगुप्त ने मथुरा और पद्मावती के नाग राजाओं को पराजित कर उनके राज्यों को अपने अधिकार में ले लिया । उसने वाकाटक राज्य पर विजय प्राप्त कर उसका दक्षिणी भाग, जिसमें चेदि, महाराष्ट्र राज्य थे, वाकाटक राजा रुद्रसेन के अधिकार में छोड़ दिया था ।
उसने पश्चिम में अर्जुनायन, मालवगण और पश्चिम-उत्तर में यौधेय, मद्र गणों को अपने अधीन कर, सप्तसिंधु को पार कर वाल्हिक राज्य पर भी अपना शासन स्थापित किया । समस्त भारतवर्ष पर एकाधिकार कायम कर उसने ‘दिग्विजय’ की । समुद्र गुप्त की यह विजय-गाथा इतिहासकारों में प्रयाग प्रशस्ति के नाम से जानी जाती है ।
इस विजय के बाद समुद्र गुप्त का राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विध्य पर्वत, पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी और पश्चिम में चंबल औरयमुना नदियों तक हो गया था । पश्चिम-उत्तर के मालव, यौघय, भद्रगणों आदि दक्षिण के राज्यों को उसने अपने साम्राज्य में न मिला कर उन्हें अपने अधीन शासक बनाया ।
इसी प्रकार उसने पश्चिम और उत्तर के विदेशी सक और देवपुत्र शाहानुशाही कुषाण राजाओं और दक्षिण के सिंहल द्वीप-वासियों से भी उसने विविध उपहार लिये जो उनकी अधीनता के प्रतीक थे । उसके द्वारा भारत की दिग्विजय की गई, जिसका विवरण इलाहाबाद किले के प्रसिद्ध शिला-स्तम्भ पर विस्तारपूर्वक दिया आर्यावत में समुद्रगुप्त ने सर्वराजोच्छेत्ता, नीति का पालन नहीं किया।
आर्यावत के अनेक राजाओं को हराने के पश्चात उसने उन राजाओं के राज्य को अपने राज्य में मिला लिया । पराजित राजाओं के नाम इलाहबाद-स्तम्भ पर मिलते हैं -अच्युत, नागदत्त, चंद्र-वर्मन, बलधर्मा, गणपति नाग, रुद्रदेव, नागसेन, नंदी तथा मातिल । इस महान विजय के बाद उसने अश्वमेघ यज्ञ किया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी । इस प्रकार समुद्रगुप्त ने समस्त भारत पर अपनी पताका फहरा कर गुप्त-शासन की धाक जमा दी थी ।
उत्तरापथ के विजित राज्यों में मथुरा भी था, समुद्रगुप्त ने मथुरा राज्य को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया । मथुरा के जिस राजा को उसने हराया । उसका नाम गणपति नाग मिलता है | उस समय में पद्मावती का नाग शासक नागसेन था, जिसका नाम प्रयाग-लेख में भी आता है । इस शिलालेख में नंदी नाम के एक राजा का नाम भी है । वह भी नाग राजा था और विदिशा के नागवंश से था । समुद्रगुप्त के समय में गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी । इस साम्राज्य को उसने कई राज्यों में बाँटा ।
समुद्रगुप्त के परवर्ती राजाओं के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गंगा यमुना का दोआब अंतर्वेदी विषय के नाम से जाना जाता था । स्कन्दगुप्त के राज्य काल में अंतर्वेदी का शासक शर्वनाग था । इसके पूर्वज भी इस राज्य के राजा रहे होंगे । सम्भवः समुद्रगुप्तने मथुरा और पद्मावती के नागों की शक्ति को देखते हुए उन्हें शासन में उच्च पदों पर रखना सही समझा हो । समुद्रगुप्त ने यौधेय, मालवा, अर्जुनायन, मद्र आदि प्रजातान्त्रिक राज्यों को कर लेकर अपने अधीन कर लिया। दिग्विजय के पश्चात समुद्रगुप्त ने एक अश्वमेघ यज्ञ भी किया । यज्ञ के सूचक सोने के सिक्के भी समुद्रगुप्त ने चलाये । इन सिक्कों के अतिरिक्त अनेक भाँति के स्वर्ण सिक्के भी मिलते हैं ।
तो दोस्तों आपको यह Full Story of Samudragupta in Hindi | भारत सम्राट समुद्रगुप्त की कहानी कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस कहानी में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।
Your article helped me a lot, is there any more related content? Thanks!
hey there and thank you for your information – I have certainly picked up
anything new from right here. I did however expertise a few technical points using this site, as
I experienced to reload the website a lot of times previous to I could get
it to load properly. I had been wondering if
your hosting is OK? Not that I am complaining, but sluggish loading instances times will often affect your placement in google and could damage your high quality score if advertising and marketing with Adwords.
Anyway I am adding this RSS to my email and can look out for a lot more of your
respective interesting content. Make sure you update this again soon..
Lista escape roomów
Very interesting info!Perfect just what I was looking for!?
Tech to Trick Good post! We will be linking to this particularly great post on our site. Keep up the great writing
Nutra Gears There is definately a lot to find out about this subject. I like all the points you made