1 Best Essay on Tulsidas in Hindi | तुसलीदास पर निबंध और जीवनी


हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Essay on Tulsidas in Hindi पर 1 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं


Essay on Tulsidas in Hindi (900 Words)

प्रस्तावना

हिन्दी साहित्य जगत में ऐसे अनेक उद्भट कवि हुए, जिनकी प्रतिभा युगों तक सराही जाती रहेगी। ऐसे महान कवियों ने समाज को ऐसे ही संदेश दिए हैं, जिनसे मानव-समाज उनका चिर-ऋणी बन गया। वैसे तो सामान्य-असामान्य रूप से कवि का कोई उद्देश्य होता है। उनकी कविताएँ तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार चित्रित करती हैं और सन्देश देती हैं, किन्तु समाज पर दीर्घकालीन अपनी छाप नहीं छोड़ पाती हैं। अतीत के ऐसे अनेक महाकवि हुए हैं जिन्हें सदियाँ बीत जाने पर सम्मान के साथ उन्हें और उनके काव्य को आज भी सराहा जाता है। ऐसे ही थे मेरे प्रिय महाकवि तुलसीदास गोस्वामी जी।

उनके प्रति आकर्षण होने का कारण है कि जीवन के प्रारम्भिक काल से या कहा जाए कि जन्मते ही जिस पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा था, वह उन विषम परिस्थितियों में जीवित रह सका, या ईश्वर ने उन्हें जीवित रखा, यह ईश्वर कृपा ही कही जा सकती है जो असहाय होकर रहा और एक दिन घर-घर के लिए सम्पूज्य हो गया। ऐसी उनकी निश्चित ही प्रतिभा रही होगी, इसमें क्या सन्देह हो सकता है।

तुलसीदास जी का जन्म और परिस्थितियाँ

अन्य बहुत से कवियों की तरह उनके जन्मकाल और स्थान के बारे में सन्देह बना रहा है। अधिकतर विद्वानों ने उनकी रचनाओं के आधार पर प्रयास किया है कि उनका जन्म सन् 1532 ई. में शूकर क्षेत्र (सोरों) जनपद में हुआ। उनके जीवन में जन्मते ही ऐसी अप्रत्याशित घटनाएँ घटी, जिनके कारण इनका जीवन संघर्षपूर्ण हो गया। इनके पिता आत्माराम और माता हुलसी बाई थीं।

कहा जाता है कि इनके मुँह से ‘राम’ निकला, इसलिए इनका नाम राम-बोला पड़ गया। गाँव के दकियानूसी लोगों ने बत्तीस-दाँत साथ होने से गाँव के लिए अपशकुन माना, उनके माता-पिता को उन्हें लेकर गाँव छोड़ना पड़ा। इतना ही नहीं, कुछ अनहोनी घटनाएँ माता-पिता के साथ घटीं और अन्ततः उनका कारण तुलसी को ही माना। तुलसी पर ऐसा कहर टूटा कि उनके माता-पिता ने उनको भटकने के लिए छोड़ दिया।

अबोध बालक भूखा, असहाय इधर-उधर भटकता रहा। कहा तो यह भी जाता है कि बालक की दयनीय दशा देखकर सबसे बड़े लालची कहे जाने वाले बन्दरों को उस बालक पर दया आ गई और अपने इकट्ठे किए चने उन्हें खाने के लिए देने लगे, किन्तु मानवता के धनी मानव को इन पर दया नहीं आई। हाँ ईश्वर से उलाहना देते हुए विनम्र निवेदन किया –

‘पालि के कृपाल, ब्याल-बाल को न मारिए’

मानव समाज में लोकोक्ति में प्रचलित है कि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ नियति ने करबट बदला, भटकते हुए बालक पर एक सहृदय ममता एक सहृदय आचार्य श्री नरहरि’ की दृष्टि पड़ी। भटकते बालक की दुर्दशा को देखकर उनकी मानव एक साथ चीख पड़ी या यह कहा जाए कि बालक की प्रतिभा को उन्होंने पहचाना और वे अपने साथ ले आए।

गुरु सान्निध्य और अध्ययन

तुलसी से आचार्य नरहरि या नरहरि से तुलसी धन्य हो गए और तुलसी की काया-पलट यहीं से शुरू हो गई। आगे के सान्निध्य में अध्ययन करने लगे। भटकता हुआ बालक आगे चलकर, संस्कृत और हिन्दी भाषा के आचार्य , सुयोग्य और सम्माननीय हो गए। भारतीयता और भारतीय संस्कृति के वेत्ता बन गए। बादल सूर्य को कब तक ढककर रख सकता है, तुलसी की प्रतिभा को कब तक छिपाया जा सकता था।

कालान्तर में स्वयं ही उनकी प्रतिभा से लोग प्रभावित होने लगे, इर्ष्यालु ईर्ष्या करने लगे। ऐसे ही लोगों ने उनके अस्तित्व पर आघात किए किन्तु कोई भी आघात उनकी विनम्रता के आगे टिक न सका। अन्य सभी ईर्ष्यालु लोगों ने अपनी घिनौनी आदतों को एकट्ठा कर दीपक जलाने के असफल प्रयास और टिम-टिमाकर बुझ गए। कुछ ने सूरदास को आगे कर विवाद ही खड़ा करना चाहा।

‘सूर-सूर तुलसी शशी उड़गन केशव दास’

पत्नी और प्रेरणा

Tulsidas Jee की नियति में कुछ और ही था। इनका विवाह भी हुआ। यह सोच रहे थे, कि माता-पिता के स्नेह से वंचित पत्नी का प्यार मिलेगा। आशा और कल्पना के विपरीत पत्नी से भी धकियाए गए। पत्नी की यह अवमानना उनके जीवन के लिए प्रेरणा और वरदान बन गई। पत्नी ने अपमानित ही नहीं किया अपितु शिक्षा भी दे दी

अस्थि चर्म मम देह, तामें ऐसी प्रीति।
होती यदि श्री राम में तो होती भवभीति।।

यहाँ से तुलसी की दशा बदल गई, सोच बदल गई। श्री राम के प्रति विश्वास, श्रद्धा इतना बढ़ा कि उससे हटकर कुछ और, सोचना ही बन्द कर दिया, इसका परिणाम यह हुआ कि मानव समाज को अमर ग्रन्थ, घर-घर की शोभा का ग्रन्थ, ‘रामचरित मानस’ दे दिया। जिसकी सराहना उनके प्रति ईर्ष्या रखने वाले व्यक्तियों को भी विवश होकर करनी पड़ी। इस अमर-ग्रन्थ ने उन्हें जन-जन का हृदय-सम्राट बना दिया।

उपसंहार

इस तरह उनकी पत्नी रत्नावली की अवहेलना उनके लिए ऐसी प्रेरणा बनी, जिसे भुला न सके। आचार्य Tulsidas Jee ऐसे महाकवि थे जो विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे, धुन के पक्के थे, आपदाओं में धैर्य बनाए रखने में समर्थ थे। अपने आराध्य के प्रति विश्वास के आधार पर बड़े से बड़े आघातों को सरलता से सहन करते चले गए।

विषमताओं में भी अपनी विनम्रता और धैर्य को नहीं छोड़ा। क्रोध उन्हें छू भी न सका। ऐसे तुलसीदास जी को अपने ग्रन्थ या कहो कि महाकाव्य रामचरित-मानस के माध्यम से मानव जीवन को जो प्रेरणा और चेतना दी है वह सर्वथा अप्रत्याशित ही थी। जीवन के प्रत्येक पहलू को छूकर मनुष्य को नई दिशा दी। अतः ऐसे महाकवि मेरे ही नहीं, अपितु जन-जन के प्रिय और हृदय सम्राट बन गए।


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जीवनी पढ़ें अंग्रेजी भाषा में – Bollywoodbiofacts

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