इस लेख में हम आपको रामायण के तीसरे भाग अरण्य कांड – Aranya Kanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,
Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –
- बालकांड – Balakanda
- अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
- अरण्यकांड – Aranya Kanda
- किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
- सुंदर कांड – Sundara Kanda
- लंका कांड – Lanka Kand
- लवकुश कांड – Luv Kush Kanda
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण कथा के अरण्य कांड – Aranya Kanda में सति – अनसूया मिलन, शूर्पणखा वध, मारीच घटना और राक्षस रावण द्वारा सीता अपहरण का उल्लेख है।
अरण्य कांड रामायण कथा | Aranya Kanda Ramayan in Hindi
जंगल में साधु सन्तों से भेंट
रास्ते में…!
अत्रि मुनि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के पश्चात् श्री राम ने दण्डक वन में प्रवेश किया । इस जंगल में हजारो ऋषि-मुनि अपनी पूजा पाठ में खोए हुए थे । कुछ तो न जाने सदियों से ही पूजा कर रहे थे ।
श्रीराम के इस वन में आने का समाचार सुनते ही सारे के सारे मुनिवर, साधु संत बड़े ही प्रसन्न हुए। क्योंकि कुछ दिनों से इस जंगल के आस-पास राक्षस लोग घुम रहे थे। जो उनकी पूजा में विघ्न डालते थे, जिसके कारण वे सब दुःखी हो रहे थे। श्रीराम को अपने बीच में पाकर वे सब लोग बहुत खुश हुए। साथ ही उन्होंने इन खूनी राक्षसों की कहानी सुना डाली। जिनके डर के मारे वे लोग पूजा-पाठ करते भी डरते थे।
दूसरे दिन राम, लक्ष्मण और सीता वन में दूर तक निकल गए तो रास्ते में उन्हें काला मोटा ताजा एक दैत्य मिला उसने आगे बढ़कर सीता का हाथ पकड़ लिया।
दंडक का जंगल गंगा और गोदावरी के बीच का भाग है।
कौन हो तुम? इससे तुम्हें क्या लेना है । तुम जाकर अपना काम करो। तुम साधुओं के साथ ऐसी सुन्दर स्त्री अच्छी नहीं लगती।
मैं पूछता हूं तुम हो कौन जिसने सीता जी का हाथ पकड़ने की हिम्मत की?
मैं महाबली विराट हूं, अब तुम लोग यहां से भाग जाओ नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा।
तुम हमें खाने की हिम्मत रखते हो पापी… बस इतनी बात कहते हुए दोनों भाईयों ने उस पर वाणों की वर्षा कर दी।
उस राक्षस ने उस दोनों पर बड़े भयंकर आक्रमण किए । किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। राम और लक्ष्मण दोनों ने मिलकर उसे ऐसा मारा कि वह धरती पर गिर पड़ा । फिर उसमें उठने की हिम्मत ही नहीं रही।
वहां से चलकर वे सीधे शरभंग मुनि के आश्रम में पहुंचे। शरभंग मुनि तो जैसे अपने जीवन का अन्त करने के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। राम को सामने पाकर वे खुशी से बोले-आ गए
प्रभु! मैं तो केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। मैं जानता था मेरे प्रभु मुझे दर्शन देने अवश्य आयेंगे । अब मेरा जन्म सफल हो गया है अब मेरा जन्म सफल हो गया है। अब मुझे आज्ञा दें प्रभु… ।
मुनिवर, आप….!
प्रभु मैं जानता हूं कि आप पृथ्वी पर विष्णु का अवतार धर करके आये हैं। हम ऋषि मुनि इन राक्षसों से बहुत दुःखी रहते हैं अब तो आप ही हमें इनसे मुक्ति दिलवा सकते हैं।
मुझसे जो हो सकेगा, मैं अवश्य करूंगा। अब आप ही हमें मार्ग बताएं कि हम किस ओर चलें जिससे कि हमें भी शांति मिले। प्रभु आप यहां से सीधे पंचवटी पर्वत पर जायें , वहां पर राक्षस लोग तपस्वियों को तंग कर रहे हैं। आप ही उनका कल्याण कर सकते हैं प्रभु! यह कहकर मुनिवर ने अपने प्राण त्याग दिए।
खरदूषण से युद्ध
पंचवटी पहुंचकर लक्ष्मण ने गोदावरी नदी के किनारे एक बहुत सुन्दर-सी कुटिया बना ली। उस कुटिया को देखकर राम और सीता बहुत ही खुश हुए।
पंचवटी वास्तव में बहुत ही सुन्दर वन था। इसमें हजारों प्रकार के रंग बिरंगे फूल खिले थे। अनेकों प्रकार के खाने के फल थे, ताजा और मधुर हवाएं मन को मोह लेती थी।
भाई लक्ष्मण! अब तो हमें यहीं पर अपने वनकाल का कुछ समय व्यतीत करना है। इस स्थान पर तो जीवन के पूरे आनन्द हम लोगों को मिल सकता है।
जो आपकी आज्ञा भैया! मेरी खुशी तो आपकी और भाभी की खुशी के साथ है।
इस प्रकार से पंचवटी में उसका मन लग गया । समय भी अच्छी तरह व्यतीत हो रहा था।
तीन वर्ष बीत गए। एक दिन…।
राम, लक्ष्मण और सीता तीनों झोपड़ी के बाहर वाटिका में बैठे थे कि लंकापति रावण की बहन सूर्पनखा ऊधर से घूमती हुई आ निकली । उसने राम को जैसे ही देखा तो उसका मन उसकी सुन्दरता पर आ गया। वह राम के सामने जाकर बोली
हे सुन्दर युवक मैं लंकापति विश्व विजेयता रावण की बहन हूं । संसार में मेरे समान कोई और दूसरी नहीं है । मेरी इच्छा है कि आप मुझसे शादी कर लें।
राम बोले-मगर मैं तो शादी कर चुका हूं। यह मेरी पत्नी सीता है।
इसे छोड़ दो यह भी कोई सुन्दर है। यह तो कुरुप है, तभी तो तुम्हें लेकर जंगल में पड़ी है। मेरे साथ शादी करके तुम मेरे महलों में रहोगे।
नहीं देवी मैं एक स्त्री के होते हुए दूसरी स्त्री की कल्पना भी नहीं कर सकता।
ठीक है मैं तुम्हारे भाई के पास जाती हूं। यह कहकर सूर्पनखा लक्ष्मण के पास पहुंची।
देखो सुन्दर युवक मैं लंकापति रावण की बहन हूं! तुम मुझसे शादी कर लो, मैं तुम्हें दुनिया भर के आनन्द दूंगी।
तुम रावण की बहन हो अथवा किसी और की मुझे इससे कुछ लेना-देना नहीं। हां, तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ।
नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैं तुम्हें प्यार करती हूं। रावण की बहन जिसे प्यार करती है उसे पाकर ही रहती है। कहते हुए सूर्पनखा ने लक्ष्मण को अपनी बाहों में भरना चाहा।
क्रोध में आकर लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी।
रोती-पीटती, लहुलुहान हुई सूर्पनखा अपने भाईयों खर और दूषण के पास पहुंची यह दोनों रावण के चचेरे भाई थे। अपनी बहन की यह दशा देखकर उन दोनों को क्रोध आ गया। दोनों भाई सूर्पनखा से पूछने लगे कि किसने यह अत्याचार किया है।
सूर्पनखा ने राम लक्ष्मण का ठिकाना बताते हुए कहा कि वहां पर दो भाई हैं जिन्होंने मेरी इज्जत लूटनी चाही। जब मैंने उन्हें ऐसा करने से रोका तो उन्होंने मेरी नाक काट डाली।
खर, दूषण जैसे भाईयों के होते उसकी यह हिम्मत कैसे हुई कि वे मेरे देश में आकर, मेरी बहन की नाक काटे… मैं अभी इनकी खबर लेता हूं उन्हें यह बताता हूं कि हमारे पास कितनी शक्ति है।
खर-दूषण दोनों भाई अपनी सेना को लेकर राम और लक्ष्मण पर आक्रमण करने के लिए चल पड़े । राम ने राक्षसी सेना को अपनी ओर आते देखकर समझ लिया था कि यह लोग अवश्य उनसे युद्ध करने आ रहे हैं । इसलिए उन्होंने ने सीता को पहाड़ी गुफा में छुपा दिया। फिर दोनों भाई युद्ध के लिए तैयार हो गए।
राक्षस सेना ने पंचवटी को चारों ओर से घेर लिया था। उन्होंने यह सोचा कि हम इन दोनों को पल भर में ही खत्म कर देंगे उन्हें क्या पता था कि राम और लक्ष्मण के वाणों में कितनी शक्ति है। दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा।
राम और लक्ष्मण ने राक्षस सेना पर ऐसी वाण वर्षाई – उनकी आधी से अधिक सेना दम तोड़ गई। फिर खर-दषण क्रोध से भरे हाथी पर चढ़े हुए उनसे युद्ध करने के लिए आये तो उन्होंने भालों और तलवारों से दोनों भाईयों पर आक्रमण कर दिया।
राम का हर वार खर और दूषण के लिए भारी पड़ रहा था। दोनों ओर से भयंकर अस्त्रों का खुलेआम प्रयोग हो रहा था कभी खर वार करता तो कभी दूषण । उधर लक्ष्मण ने जैसे ही देखा कि इन खूनी राक्षसों ने राम पर भयंकर आक्रमण कर डाला है तो उसने क्रोध में आकर सैकड़ों बाण एक साथ अपने धनुष से निकाले जिसके कारण खर की गरदन हवा में उड़ती नजर आई।
उधर राम ने दूषण की छाती में वाण मारा तो उसकी जान भी निकल गई । इन दोनों को मरते देख राक्षस सेना भाग खड़ी हुई।
रावण और सीता हरण
सूर्पनखा का बड़ा भाई लंका का राजा रावण था। जिसकी शक्ति के आगे बड़े-बड़े वीर योद्धा झुकते थे । देवताओं के मन में भी रावण का इतना डर बैठ चुका था कि वे दूर-दूर तक भगवान की पूजा करने से भी डरने लगे थे।
खर दूषण के मरने के पश्चात सूर्पनखा रोती-पीटती रावण के पास पहुंची। उसने अपने भाई को कटी हुई नाक दिखा कर बोली-हे भईया देखो उन दो पापियों ने मेरा क्या हाल बना दिया है । कौन हैं वे, जिन्होंने तुम्हारी नाक काटने की हिम्मत की। क्या उन्होंने रावण का नाम नहीं सुना!
सुना भी होगा भईया, वे दोनों भाई किसी से नहीं डरते । उनके साथ एक सुन्दर नारी सीता है । उन लोगों ने खर और दूषण को जान से मार डाला। इसलिए कि मैंने उनसे यह कह दिया कि यह सुन्दर नारी, तुम्हारे जैसे भिखारियों के योग्य नहीं इसे तो मेरे भाई रावण के महलों की शोभा बढ़ानी चाहिए बस इसी बात से क्रोधित होकर एक भाई ने बाजू पकड़कर कहा । यदि मैं तुम्हें अपनी पत्नी बना लूं तो कैसा रहेगा।
मुझे पत्नी बनाने के लिए तुम्हें मेरे भाई रावण से आज्ञा लेनी होगी। मैं तुम्हारे जैसे साधु की पत्नी कैसे बन सकती हूं।
बस इसी बात पर उसे क्रोध आया। उसने मेरी नाक काट डाली । मैं खर और दूषण को लेकर उनके पास गयी, तो उन दोनों की हत्या कर दी भईया!
ठीक है, उनसे बहन के अपमान का और अपने भाईयों की मृत्यु का बदला लेकर रहूंगा । उस सुन्दरी को अब मैं लंका में लाऊंगा।’ यह कहकर रावण वहां से चल पड़ा।
उसे पता था कि श्रीराम ने विश्वामित्र के आश्रम में जिस मारीच को तीर मारा था वह सागर तट पर भक्ति कर रहा है। रावण अपने हवा में उड़ने वाले रथ को लेकर मारीच के पास पहुंचा उसने मारीच को अपने आने की सारी कहानी सुना डाली और कहा कि मैं सीता का हरण करना चाहता हूं इस काम में तुम मेरी सहायता करोगे ।
वह कैसे ?’
देखो मारीच! तुम सोने के हिरण का रूप धारण करके सीता की कुटिया के बाहर चक्कर काटना सीता सोने का हिरण देख कर राम से कहेगी कि मुझे यह सोने का हिरण लाकर दो।
बस राम तुम्हारे पीछे और लक्ष्मण को मैं अपनी चाल से वहां से हटा दूंगा फिर सीता को उठाकर लंका ले जाऊंगा।
रावण की बात सुनकर मारीच के प्राण सूखने लगे । उसने रावण को राम के वाण की घटना सुनाकर कहा कि मैं तो राम का नाम सुनते ही डर के मारे कांपने लगता हूं। वह तो शक्तिशाली राजा है उसके सामने जाते ही मेरी जान निकल सकती है।
देखो मारीच, मैं यहां पर तुम्हारे उपदेश सुनने नहीं आया,
यदि तुम मेरा कहा नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें मार दूंगा। यह हो सकता है कि तू राम के वाण से बच जाय । किन्तु मेरे वाण से बचना सम्भव नहीं है।
बात तो तुम्हारी ठीक है । तुम्हारे वाण से मरने से तो कहीं अच्छा है कि श्रीराम के हाथों मारा जाऊं। इससे मेरा कल्याण तो होगा।
ठीक है, चलो इस समय मेरे उड़ने वाले रथ में बैठो! जैसे ही कुटिया के बाहर सीता जी ने सोने के हिरण देखा तो बोली यह हिरण मुझे बहुत ही पसन्द है । बस मुझे यही हिरण लाकर दो।
ठीक है प्रिये! यदि तुम्हें यह हिरण पसन्द है तो मैं अभी इसे मार कर ले आता हूं यह कहकर राम, उस हिरण के पीछे चल पड़े । लक्ष्मण को उन्होंने सीता जी का ख्याल रखने के लिए कहा । रावण ने तो पहले से यह सारा षड्यंत्र रच रखा था।
थोड़ी देर के पश्चात उसने राम की आवाज निकालते हुए कहा-‘लक्ष्मण मुझे बचाओ ! मुझे बचाओ!’
राम की आवाज सुन सीता ने लक्ष्मण से कहा । तुम यहां बैठे क्या कर रहे हो जाओ भाई को जाकर बचाओ वे संकट में हैं । भाभी, राम भैया को खतरा नहीं । उन्होंने मुझे आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप रखी है. मैं तुम्हें छोड़कर कैसे जा सकता हूं।
ये क्यों नहीं कहते कि तुम्हारी नीयत में खोट है। भाभी! लक्ष्मण कह उठा था।
हां… हां…मैं सब समझती हूं एक भाई तुम्हें पुकार रहा है। तुम आराम की बांसुरी बजा रहे हो । यदि वास्तव में तुम सच्चे हो तो अपने भाई के प्राणों की रक्षा के लिए क्यों नहीं जाते ?
सीता की जली कटी बातें सुनकर लक्ष्मण भी जाने के लिए मजबूर हो गया… उसने जाने से पहले कुटिया के बाहर एक रेखा खींच दी और सीता से बोला, भाभी तुम इस रेखा से बाहर पाँव मत रखना, यह लक्ष्मण रेखा है। जो इसके अन्दर जायेगा वह भस्म हो जाएगा।
ठीक है, मैं इस रेखा से बाहर कदम नहीं रखूगी ।
लक्ष्मण तो चला गया, उसी समय रावण एक ब्राह्मण का रुप धारण कर कुटिया के बाहर भिक्षा के लिए आ खड़ा हुआ। ब्राह्मण भिक्षा लेने तुम्हारे द्वार पर आया है देवी हमें भिक्षा दो भगवान आपकी हर मनोकामना पूरी करेगा।
आप भिक्षा लेने आये हैं तो इस रेखा के अन्दर आ जाओ।
नहीं देवी ब्राह्मण अपने धर्म के पक्के हैं, किसी के घर में जाकर भिक्षा लेना हम पाप समझते हैं, यदि तुम हमें भिक्षा देना चाहती हो तो तुम्हें बाहर ही आना होगा, अन्यथा हम तुम्हें और तुम्हारे पति को श्राप दे देंगे। ‘
नहीं… नही ब्राह्मण देवता, ऐसा मत करना, मैं आपको भिक्षा देने के लिए बाहर ही आ रही हूं।
यह बात कहकर सीता ने लक्ष्मण रेखा पार कर ली।
बस रावण के लिए यही अवसर कीमती था, उसने सीता का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा फिर उसे कंधे पर लादकर वहां से दौड़ पड़ा। मुझे बचाओ ! मुझे बचाओ। राम! यह पापी मुझे पता नहीं कहां ले जा रहा है ?
मुझे बचाओ राम… हाय राम… हाय राम… हाय… राम… राम ।
तुमको रावण के हाथों से राम तो क्या स्वयं भगवान भी नहीं बचा सकेंगे अब तुम लंका की रानी बनोगी, लंका की रानी।
धोखेबाज पापी तू मानव नहीं राक्षस है । सीता जोर-जोर से रोती हुई उसे भला बुरा कह रही थी, उसकी हालत इतनी अधिक खराब थी कि मुंह में से आवाज भी नहीं निकल रही थी। उसे हर शब्द पूरी शक्ति से बोलना पड़ता था।
गिद्धराज जटायु! उस समय पहाड़ी पर बैठा ईश्वर को याद कर रहा था, उसने जैसे ही स्त्री के रोने चीखने की आवाजे सुनी तो उसने उड़कर रावण को ललकारा, रावण के रथ के आगे खड़ा होकर, उसने रावण के धनुष तक तोड़ डाले ।
छोड़ दे पापी इस औरत को छोड़ दें।
नहीं! यह औरत तो मेरी महारानी बनेगी, इसे इस संसार की कोई ताकत मुझसे नहीं छुड़वा सकती तुम भी हट जाओ, मेरे रास्ते से नहीं तो तुम्हारा भी खून कर दूंगा।
रावण, तुम एक महावीर हो, तुम्हें एक मजबूर और बेसहारा औरत को इस तरह से नहीं ले जाना चाहिए।
मैं कहता हूं, अपनी बकवास बन्द करो और हठ जाओ मेरे रास्ते से, वरना तुम्हारा भी खून कर दूंगा।
नहीं रावण, मैं इस औरत को छुड़वाये बिना नहीं रहूंगा।
बस फिर क्या था, रावण का क्रोध और तेज हो गया, उन दोनों में खुल कर युद्ध होने लगा। इस युद्ध का अन्त तो जटायु भी जानता था, उसे पता था मैं रावण से जीत नहीं सकता, किन्तु फिर भी उसने अपने कर्तव्य का पालन किया, रावण ने युद्ध किया।
जटायु बेचारा जख्मी होकर पहाड़ी पर गिर पड़ा, रावण सीता को लेकर लंका की ओर चला गया, रास्ते में पहाड़ पर बन्दरों की पूरी सेना बैठी थी, सीता ने अपने कुछ आभूषण साड़ी का पल्ला फाड़कर उसे बांधकर नीचे गिरा दिए।
राम बिरह और सीता की खोज
राम ने जैसे ही लक्ष्मण को अपनी ओर आते देखा था उसी समय उनका माथा ठनका कि यह अवश्य शत्रु की चाल है। किन्तु होनी को आज तक किसने टाला है, जो इस समय टल जाती । जिस बात का डर था वही हुआ, खाली झोपड़ी को देखकर राम का दिल डूबने लगा, सीता कहां गयी ? दोनों भाई रोते हुए जंगलों की ओर निकल गए, उनके होठों पर से एक ही आवाज आ रही थी।
सीते… सीते… सीते तुम कहां हो?
किन्तु उनकी यह आवाज इन संगदिल पहाड़ों से टकराकर वापस आ जाती, कोई भी उत्तर कहीं से नहीं आ रहा था, फिर वे इन पहाड़ों की ओर बढ़ते रहे और सीता को आवाज देते रहे।
अचानक उन्होंने पहाड़ पर तड़प रहे जटायु को देखाआपको सीता चाहिए। हां… हां हमारी सीता की खबर दो जटायु राज ।
देखो राम सीता को तो पापी रावण दक्षिण की ओर ले गया है, मैं उसे बहुत रोका, किन्तु उस पापी ने मुझे भी मार डाला, बस अब मेरा काम पूरा हो गया, मैं जा रहा हूं, मेरे राम मुझे मिल गए, मेरी हार्दिक इच्छा पूरी हुई, यह कहते हुए जटायु ने भगवान राम के चरणों में अपना सिर रखा दिया।
राम… राम… राम… कहते हुए जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए।
दक्षिण की ओर दोनों भाई फिर से सीता… सीता पुकारते चलने लगे। किन्तु सीता की आवाज तक को वह तरस गए, सीता का तो कुछ पता ही नहीं चल रहा था।
रात को दोनों भाई शबरी के आश्रम में पहुंच गए । शबरी ने जैसे ही भगवान राम को देखा तो झट से उनके पांव पर गिर पड़ी। प्रभु आप आ गए! मैं तो कब से आपकी प्रतीक्षा कर रही थी-मुनिवर्या! क्या आप हमें हमारी सीता का पता बता सकती
देखो प्रभु, सीता जिस चण्डाल के पास है, उसका पता पास के पहाड़ पर रहनेवाला वानर राज सुग्रीव ही आपको बता सकेगा।
अरण्य कांड – Aranya Kanda in Hindi का यह तीसरे भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।