Best Explained बालकांड रामायण कथा | Balakanda Ramayan in Hindi

इस लेख में हम आपको रामायण के पहले भाग बालकांड – Balakanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,

Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –

  1. बालकांड – Balakanda
  2. अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
  3. अरण्यकांड – Aranya Kanda
  4. किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
  5. सुंदर कांड – Sundara Kanda
  6. लंका कांड – Lanka Kand
  7. लवकुश कांड – Luv Kush Kanda

बालकांड – Balakanda महाकाव्य रामायण का पहला भाग है, जिसमें लगभग 2080 श्लोकों का वर्णन है। नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि को बालकाण्ड की कथा सुनाई थी।


बालकांड रामायण कथा | Balakanda Ramayan in Hindi

राम जन्म

सरयू नदी के किनारे कौशल नाम का एक प्रसिद्ध राज्य था, इस पर महातपस्वी और वीर राजा दशरथ राज करते थे, देश की राजधानी अयोध्या थी।

उस समय के सबसे बड़े और सुन्दर शहरों में अयोध्या का नाम ही सर्वप्रथम आता था। जिसकी सुन्दरता को देखने के लिए हर वर्ष हजारों लोग विदेशों से आते थे।

राजा दशरथ का महल शहर के बिल्कुल बीचो-बीच था। उस महल के साथ सीधी लम्बी-चौड़ी सड़क शहर के चारों ओर को जाती थी जिनके दोनों ओर रंग-बिरंग फूल खिले हुए अपनी भीनी-भीनी गन्ध से लोगों का मन मोह लेते थे।

राजमहल के साथ ही राजा दशरथ ने छोटे-छोटे खुबसूरत कई महल बनवा रखे थे। जिनमें उनके मंत्रीगण, सेनापति और  देश के चुने हुए बुद्धिजीवी लोग भी रहते थे । जो हर संकट के समय राजा को सलाह देते थे, देश पर आनेवाले किसी भी संकट के समय राजा उन्हीं सब लोगों से मंत्रण करते थे।

राजा दशरथ अपने समय के सबसे धर्मी और पराक्रमी राजा मानने जाते थे । उनकी प्रजा उन्हें भगवान समझकर उनकी पूजा करती थी। उनका राज पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ था।

इन मंत्रियों और बुद्धिजीवियों के अतिरिक्त, वासुदेवजी जो बालि आदि राज पुरोहित भी राजा की प्रजाहित के कार्यों को सलाह देते रहते थे।

ऐसे वीर और लोकप्रिय राजा के जीवन में तो संसार भर के सुख होते हैं दुःख नाम की कोई चीज उनके निकट तक नहीं आई थी।

संतान का दुःख

इस संसार में सारे सुख तो किसी प्राणी को नहीं मिल पाते । यही हाल राजा दशरथ का था उन्हें जीवन का हर सुख मिला, किन्तु घर में सन्तान न होने का दुःख तो घाव बनता जा रहा था । एक के बाद एक-एक करके उन्होंने अपनी तीन शादियां कर डाली। किन्तु सन्तान न तो कौशल्या, सुमित्रा और न ही कैकेयी की कोख से जन्म ले सका। यही कारण था कि राजा दशथ अक्सर उदास रहा करते थे।

सन्तान प्राप्त करने के अनेकों उपाय सोचे गए । अन्त में राजा के मंत्रियों ने यह सलाह दी कि एक ऐसा यज्ञ किया जाए जिसमें सारे देवी-देवताओं का पूजन हो उसमें ऋषियों, मुनियों को विशेष रुप से बुलवाया जाए।

मंत्रियों से विचार विमर्श करके यज्ञ की बात पक्की हो गई थी।

यज्ञ आरम्भ हुआ राज्य भर के पण्डित, साधु-संत, मुनिवर यज्ञ में भाग लेने के लिए आए । देश की जनता भी इस यज्ञ में आकर राजा के लिए सन्तान की प्रार्थना करने लगी सबके मुंह से एक ही आवाज निकली

हमारे राजा को सन्तान दो।

देश के वारिस दो।

ऋष्यअंग ने अग्नि देव से खीर का पात्र ले लिया। और राजा दशरथ को देकर कहा-यह खीर बड़ी आरोग्यदायक है इससे पुत्र का जन्म भी होगा इसलिए तीनों रानियों को खीर का सेवन करवा दें।

देवताओं का आशीर्वाद एवं जनता की दुआयें लेकर राजा जी खुशी-खुशी अपने महलों में खीर लेकर आए, आते ही उन्होंने सब रानियों को खीर खिला दी।

पुत्र प्राप्ति की आशा में तीनों नारियां खुशी-खुशी खीर खाने लगी उन्हें अपनी सूनी कोख पर रह-रहकर दुःख हो रहा था उनको यही आशा थी कि अब वो अवश्य ही मां बनेगी।

सबने खीर खाकर एक बार फिर प्रभु से संतान मांगी। समय व्यतीत होने लगा।

फिर चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी को बड़ी रानी कौशल्या की कोख से बालक राम ने जन्म लिया।

आज इसे हम नवमी अर्थात भगवान राम के जन्मदिन के रुप में मनाते हैं।

फिर रानी कैकेयी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम भरत रखा गया ।

फिर रानी सुमित्रा ने इकट्टा दो बेटे को जन्म दिया, जिसमें से एक का नाम लक्ष्मण और दूसरे का नाम शत्रुध्न रखा।

जिस महल में लोग एक बेटे की शक्ल देखने के लिए तरसते थे वहां पर चार बेटों के जन्म की खुशी मनाई जा रही थी सारे महलों की उदासी दूर हो गई देश भर में राजकुमारों के पैदा होने की खुशियां मनाई जा रही थी।

चारों राजकुमार अत्यन्त सुन्दर थे। बड़े भाई राम के माथे पर एक विचित्र-सी चमक नजर आ रही थी, जैसे कोई ज्योति जल रही हो । स्वयं मां कौशल्या जब अपने बेटे को आंख में झांककर देखने लगती है तो उसे डर लगने लगता है जैसे कोई उनको उनसे छीन कर ले जा रहा हो।

वह अपने बेटे को गोद में बिठाकर मुंह चूमने लगती है। और कान के करीब काला टीका लगाकर कहती है। भगवान मेरे बेटे को दुनियां की बुरी नजर से बचाना ।

चारों भाई एक साथ बड़े होने लगे माँ-बाप के प्यार के साथ-साथ उनका आपसी प्यार भी बढ़ने लगा था चारों इकट्ठे ही खेलने इकट्ठे ही सोने लगे, इनका प्यार देखकर स्वयं माँ-बाप भी हैरान थे।

शिक्षा

जैसे ही चारों राजकुमार बड़े हुए तो माँ-बाप ने उनकी शिक्षा के लिए गुरु विश्वामित्र के आश्रम में भेजा।

आश्रम में चारों राजकुमारों की शिक्षा बड़े अच्छे ढंग से चलने लगी वेद-शास्त्रों का अध्ययन उन्होंने थोड़े ही समय में पूरा कर लिया था । स्वयं विश्वामित्र जी हैरान थे कि इस छोटी-सी आयु में चारों भाईयों की बुद्धि कितनी तेज है बस एक बात का जरा से इशारे पर ही वे समझ जाते हैं।

आश्रम से बाहर जंगल में जाकर चारों भाई गुरुजी के लिए हर रोज ताजा फल-फूल लाते । उसके स्नान के लिए सुबह उठते ही नदी से ताजा जल लेकर आते ।

समय के साथ-साथ वे बड़े होते गए, फिर उनकी शिक्षा भी पूरी हो गई।

चारों भाई गुरुजी के साथ वापस अयोध्या आ गए। राजकुमारों के वापस आने की खुशी में सारे शहर में हर्ष फैल गया था. फिर अयोध्या वासी अपने राम से प्यार भी तो बहत करते थे,चाहते थे कि उनके प्रिय राम उन्हें छोड़कर कहीं न जाय।

राजकुमार बड़े हुए तो राजा को उनकी शादी की चिन्ता होने लगी सब ओर संदेश भेजवा दिए गए थे।

कुछ समय के पश्चात् ऋषि विश्वामित्र अयोध्या में दशरथ के पास आये राजा दशरथ ने उनका शाही स्वागत करते हुए राज दरबार में उच्च स्थान देकर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा।

कहिए राजर्षि! आप कैसे रास्ता भूल गए ।

राजन, आज तो हम बहुत जरुरी काम से आपके पास आए हैं । आज्ञा करें महाराज मैं तो आपका सेवक हूं।

देखो राजन! जंगल में दो खूनी राक्षस राजा रावण के अनुचर हैं, हमलोगों को यज्ञ नहीं करने देते, इसलिए हम चाहते हैं कि आपके वीर पुत्र राम को अपनी रक्षा के लिए वहां ले जायें ।

क्या बालक राम राक्षसों से युद्ध कर पायेंगे दशरथ की आवाज डूबने लगी थी, फिर रावण के साथ मारीच और सुबाहु, वह सब लोग तो बहुत खूनी हैं । अकेला राम उन लोगों के सामने कुछ नहीं कर पायेगा यदि आप आज्ञा दे तो मैं अपनी सेना लेकर आपके साथ चलता हूं।

विश्वामित्र क्रोध से भर कर बोले । नहीं, हम दशरथ को नहीं राम को लेने आये हैं, यदि आप जैसे किसी राजा की जरुरत होती तो एक आवाज पर दस राजा भागे आते हमें केवल राम की ही आवश्यकता है, यदि आप मोह माया जाल में फंसकर इतने अन्धे हो गये हैं तो ठीक है मैं वापस जा रहा हूं, दशरथ जानते थे गुरु विश्वामित्र के क्रोध का परिणाम क्या हो सकता है-आप विनाश!

इसलिए उन्होंने झट से विश्वामित्र जी के चरण पकड़ लिए और अपना सिर उनके पाव में झुकाते हुए बोले

महर्षि, मैं आपकी आज्ञा का पालन करता हूं, आप अभी राम को ले जायें, राम मेरा बेटा नहीं आपका ही बेटा हे, आप ही इसके पिता हैं।

ठीक है राजन, आज हम बहुत प्रसन्न हुये आप राम को मेरे साथ भेज दो।

राम जैसे ही विश्वामित्र के साथ चलने लगे तो भाई लक्ष्मण गुरु जी से हाथ जोड़कर कहा

गुरुदेव! मैं राम भैया को अकेला नहीं जाने दूंगा। तुम क्या चाहते हो बेटे लक्ष्मण ।

आपका आशीर्वाद जिससे मैं अपने बड़े भाई की हर समय देख-भाल कर सकू।

लक्ष्मण यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो हम उसे अवश्य पूरी करेंगे, आज से तुम दोनों भाई हमारे साथ रहोगे।

आप धन्य हैं गुरुदेव ।

यह कहकर लक्ष्मण ने अपना सिर गुरुदेव के चरणों में रख दिया गुरुजी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए दोनों भाईयों को अपने सीने से लगा लिया।

सुबह होते ही गुरुदेव विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर सरयु नदी के किनारे-किनारे चलने लगे, फिर सरयु और गंगा के संगम पर जाकर सबने स्नान किया, वहीं पर बैठकर गुरुजी ने बताया कि इस जगल में ताड़का नाम की खूनी राक्षसी रहती है उस पापी और अत्याचारी के ही दो बेटे मारीच और सुबाहु हैं ताड़का के डर के कारण इस जंगल से सारे साधु-संत भाग गए हैं क्योंकि वह साधुओं को तप नहीं करने देती, अब सबसे पहले तुम्हें उस ताड़का से युद्ध करना होगा।

जो आज्ञा गुरुदेव! राम ने अपना सिर झुका दिया । और फिर अपनी कमान में से एक तीर जंगल में छोड़ा, जिसकी आवाज पूरे जंगल में गूंज उठी छोटे जानवर डर के मारे शोर मचाते हुए निकल कर भागने लगे।

ताडका ने जैसे ही तीर चलने की आवाज सुनी तो वह भी घबराकर उठ बैठी शेर की भाँति गर्जती हुई वहां से दौडी।

राम को सामने धनुष लिए खड़े देखकर उसने धूल में बादल उडाया फिर पत्थरों की वारिश शुरु कर दी और साथ ही अपनी लम्बी बांह फैलाकर राम का गला दबाने के लिए दौडी।

राम यदि जरा भी भूलकर जाते तो ताड़का उनका गला दबा देती किन्तु राम ने अपने बचाव के लिए ऊंची छलांग लगाई और एक भयंकर बाण ताड़का के सीने में दे मारा।

राम का वाण लगते ही ताड़का के सीने से खून का फब्वारा छूट पड़ा वह उसी समय धरती पर औंधे मुंह गिर पड़ी और दर्द के मारे तड़पने लगी।

क्यों चाची ताड़का अब और कुछ चाहिए ?

नहीं बेटे राम अब मेरा कल्याण तुम्हारे हाथों हो गया अब मैं परलोक जा रही हूं। तुम्हारे हाथों मरने से मुझे यही लाभ होगा कि मैं सीधा स्वर्ग लोक जाऊंगी इतना कहते ही ताड़का ने अपने प्राण राम के चरणों में त्याग दिए।

शाबाश! बेटे राम आज तो तुमने हमें यमदूतों से मुक्ति दिला दी इस राक्षसी ने तो हमारा जीना ही दुर्लभ कर रखा था प्यार से विश्वामित्र जी राम का मुंह चूम लिया।

फिर वे तीनों आगे जंगल की ओर बढ़ने लगे बहुत देर तक चलते-चलते वे एक पुराने आश्रम में पहुंचे जिसमें अब कोई भी नहीं रहता था।

बेटे राम यही वह जंगल है जिसमें खूनी राक्षस मारीच और सुबाहु रहते हैं, इन लोगों ने अपनी शक्तिशाली सेना की शक्ति से सारे साधु-सतों को इस स्थान से भगा दिए हैं, जो लोग नहीं भागे उन्हें मारकर वह कच्चा खा गए हैं, अब तो केवल तुम ही हमारे धर्म की रक्षा कर सकते हो।

आप चिंता न करें गुरुदेव आपका राम धर्म रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर सकता है किन्तु पीछे नहीं हटेगा, अब आप आश्रम में जाकर विश्राम कीजिए दोनों भाई आपकी रक्षा के लिए इधर ही बैठे हैं।

विश्वामित्र जी तो आश्रम में जाकर सो गए राम और लक्ष्मण वहीं बैठे पहरा देने लगे।

उधर मारीच अपने आपको इस जंगल का राजा समझ बैठा था, उसने जैसे ही इस जंगल में आदमियों का प्रवेश देखा तो क्रोध से भरा अपनी खूनी सेना को लेकर उधर ही आ गया वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था।

कौन हो तुम कौन हो आज तुम्हारी मौत तुम्हें मेरे पास ले आई है।

मौत दोनों में से किसी एक की तो अवश्य होगी मारीच हा.. हा.. हा… हा… हा.. अरे तुम छोटे से बालक होकर माराीच से लड़ोगे ? लगता है उस बूढ़े ऋषि ने तुम्हें मरवाने के लिए यह षड्यंत्र रचा है।’

बकवास बन्द करो कमीने राक्षस यदि हिम्मत है तो सामने आकर लड़ फिर देख हमारी शक्ति।

मारीच उसी समय राम, लक्ष्मण पर वाण वर्षा करने लगा किन्तु उसने देखा राम और लक्ष्मण तो उनके हर तीर को टुकड़े-टुकड़े करके फेंक देते हैं उसका हर वार बेकार जा रहा अपने जीवन में पहली बार घबड़ाया था मारीच किन्तु फिर भी वह अपनी भारी सेना को राम पर आक्रमण करने के आदेश देता हुआ आगे बढ़ा ।

श्री राम तो पहले ही जानते थे कि यह खूनी राक्षस अभी-अभी आकर उसका गला दबा देगा । ठीक उसी समय उन्होंने अपने धनुष से एक खूनी वाण मारीच पर चलाया जो मारीच को उड़ाता हुआ सागर तट तक ले गया वहां पर जाकर मारीच गिरा तो सोचने लगा कि जिस आदमी के वाण से वह इतनी दूर आ गिरा है उसके पास कितनी शक्ति होगी?

जैसे ही मारीच चलने योग्य हुआ तो वहां से दौड़ता हुआ दक्षिण की ओर जाने लगा। उधर श्री राम और लक्ष्मण ने मिलकर सुबाह का खून कर दिया, कुछ राक्षस सेना मारी गई कुछ डर के मारे भाग खड़ी हुई।

अन्दर से विश्वामित्र जो यह सारा दृश्य देख रहे थे, श्रीराम की विजय देखकर के खुशी से नाचते हुए बाहर निकले और राम लक्ष्मण को अपने सीने से लगाते हुए बोले वाह बेटा वाह! आज तो तुमने धर्म रक्षा का पूरा परिचय दे दिया वास्तव में ही तुम वीर हो वीर । मैं जो कुछ भी हूं गुरुदेव! आपके आशीर्वाद से हूं, अब यह बतालइये कि क्या कोई और राक्षस भी है इस जंगल में।

नहीं राम बस यही लोग थे, जिन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा था अब तो हम लोग मिथिला के राजा जनक के यहां शान्ति से जा सकेंगे।

वहां क्या है गुरुदेव?

बेटे राम राजा जनक एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं, जिसमें देश-विदेश के बड़े-बड़े वीर लोग भाग ले रहे है, इसलिए तुम भी हमारे साथ चलो तो अच्छा होगा । फिर वहां पर एक ऐसा विचित्र धनुष भी है जिसे इस संसार में कोई वीर अभी तक नहीं उठा सका।

फिर तो हम अवश्य वहां चलेंगे दोनों भाई एक साथ बोल उठे विशेष रूप से उनके मन में उस धनुष को देखने की चाह थी । जिसे आज तक कोई वीर उठा तक नहीं सका था।

कैसा होगा वह धनुष ?

बार-बार यही सोच रहे थे श्री राम, लक्ष्मण उनके मन में यही इच्छा अंगड़ाइयां ले रही थी किसी प्रकार से उड़कर वहां पहुंच जायं।

सारी रात इसी बेचैनी में उन्होंने काटी।

सीता स्वयंवर

सुबह उठते ही सब लोग मिथिला की ओर चलने लगे। इनके साथ बहुत से ऋषि मुनि भी थे, जो राम, लक्ष्मण की जय-जयकार इसलिए कर रहे थे कि उनकी कृपा से वे राक्षसों से मुक्ति पा चुके थे।

रास्ता काफी लम्बा था । पदयात्रा वह भी राजकुमारों के लिए देखने में वह सब कुछ कठिन-सा लगता था । किन्तु विश्वामित्र जी हर बात जानते थे, उन्हें पता था। इन राजकुमारों के लिए इतनी लम्बी यात्रा कोई सरल बात नहीं, इसलिए वे इन दोनों को रास्ते में पौराणिक कथायें सुनाते हुए चल रहे थे।

मिथिला से थोड़ी दूर पर एक आश्रम के बाहर जैसे ही विश्वामित्र जी रुके तो श्री राम ने उनसे पूछा-गुरुदेव, यह कैसा सुना सा आश्रम है?

बेटे राम! यह किसी समय गौतम ऋषि का आश्रम था उनकी पत्नी अहिल्या बहुत ही सुन्दर थी। एक बार देवराज इन्द्र का मन अहिल्या पर आ गया तो जैसे ही गौतम जी सुबह स्नान करने गए उनके पीछे से गौतम का ही भेष धारण कर इन्द्र उस आश्रम में घुसे और उन्होंने अहिल्या की पवित्रता को भंग कर दिया।

जैसे ही इन्द्र उस आश्रम से बाहर निकले थे उसी समय गौतम जी आश्रम में अन्दर आ रहे थे। उन्होंने इन्द्र को इस हालत में देखा तो उन्हें संदेह हुआ।

फिर अन्दर आकर अहिल्या की हालत को देखा तो सब कुछ समझने में देर न लगी। क्रोध से भरे गौतम जी ने अहिल्या को शाप देकर पत्थर बना दिया। तब से आज तक वह पत्थर की मूर्ति बनी तुम्हारी प्रतिक्षा करती हुई राम-राम कर रही है, क्योंकि उसे यह वर मिला था कि श्री राम ही आकर तुम्हारा कल्याण करेंगे।

श्रीराम ने आगे चलकर पत्थर की अहिल्या को पांव से छुए उसी समय अहिल्या राम-राम करती हुई उठकर बैठ गई । वह पहले से भी अधिक सुन्दर हो गई थी। उसी समय गौतम जी भी आ गए उन्होंने अपनी पत्नी को हृदय से लगाकर अपनी भूल का पश्चाताप किया । दोनों पति-पत्नी एक बार फिर से श्री राम का धन्यवाद करने लगे।

उधर राजा जनक को महर्षि विश्वामित्र के आने की सूचना मिली तो वे दूसरे साधुओं-मुनियों को लेकर उनके स्वागत के लिए शहर से बाहर आए।

जैसे ही राजा जनक ने राम को देखा तो उन्होंने आश्चर्य से पूछा कि मुनिवर यह दोनों बालक कौन हैं ।

राजन् यह दोनों बालक अयोध्या नरेश राजा दशरथ के बेटे हैं वह दोनों उस विचित्र धनुष को देखने के लिए आए हैं जिसे आज तक कोई वीर उठा भी नहीं सका।

वाह वाह यह तो और भी खुशी की बात है, मैंने तो सीता स्वयंवर की शर्त भी उस धनुष के साथ जोड़ दी है।यह तो और भी खुशी की बात है राजन् । राजा जनक उनके ठहरने का प्रबन्ध करने चले गए।

स्वयंवर

दूसरे दिन सुबह ही विश्वामित्र जी, राम और लक्ष्मण को लेकर जनक की सभा में पहुंचे, वहां पर सीता स्वयंवर की सारी तैयारियां हो चुकी थी। सब राजा लोग उसे बहुत पुराने बड़े धनुष को उठाने के लिए जाते हैं किन्तु वे बेचारे उस समय लज्जित से होकर चले जाते जब वह धनुष अपने स्थान से हिलता भी नहीं था।

राजा जनक यह हाल देखकर बहुत उदास हुए, और निराश होकर कहने लगे कि आज के वीरों को यह क्या हो गया है, जो एक धनुष को उठा तक नहीं सकते क्या इस पृथ्वी पर से सारे वीर उठ गए हैं अथवा शक्तिहीन हो गए हैं ।

गुरु की आज्ञा प्राप्त कर क्रोध से भर राम ने अपने दोनों हाथों से पकड़ कर जैसे ही कमान को ऊपर उठाया तो तड़ाक से उसके दो टुकड़े हो गए।

वाह वाह ! चारों ओर से. राम की सफलता पर तालियां बजने लगी थी । राजा जनक का उदास चेहरा खुशी में डूब गया। उन्होंने अपनी बेटी सीता को इशारा किया कि वह वरमाला श्रीराम के गले में डाल दें।

सीता तो जैसे पहले से ही तैयार थी, उसने आगे बढ़कर माला श्रीराम के गले में डाल दी।

राम विवाह के साथ ही तीनों भाईयों का विवाह

राजा जनक ने उसी समय अपने दूतों को अयोध्या की ओर भेजा कि वे राजा दशरथ से जाकर कहें कि वे राम की बारात लेकर मिथिला आ जायें।

जैसे ही दशरथ जी को राम की शादी की सूचना मिली तो गुरु वशिष्ट की आज्ञा पाकर बारात लेकर मिथिला की ओर चलने लगे । पांच दिन के लम्बे सफर के पश्चात बारात मिथिला पहुंची तो राजा जनक ने शहर से बाहर आकर बारात का स्वागत किया । मिथिला का पूरा शहर जगमगा रहा था।

राज्य मंडप में राजा जनक अपनी बेटियों को लेकर आए तो उन्होंने सर्वप्रथम अपनी बेटी सीता को सबसे आगे करते हुए कहा।

महाराज, दशरथ यह मेरी बेटी सीता है, जो पृथ्वी की कोख से पैदा हुई थी। यह मेरी दूसरी बेटी उर्मिला है जिसकी शादी मैं लक्ष्मण से करना चाहता हूं।

और यह दो लड़कियां मेरे भाई, कुशध्वज की है इनमें बड़ी मांडवी और छोटी श्रुतिकीर्ति है । मैं चाहता हूं कि इनकी शादियां भी आप अपने दोनों बेटों, भरत शत्रुघ्न से करने की आज्ञा दें।

मुझे सब कुछ मंजूर है राजन् । दशरथ ने जनक को अपने गले से लगाते हुए सारे रिश्ते मंजूर कर लिए।

इस तरह से चारों भाईयों की शादियां सम्पन्न हो गई । राजा जनक ने दशरथ को बहुत दिनों तक अपने शहर में ही रखा। इन दोनों में बड़ी गहरी मित्रता हो गई। फिर महाराज दशरथ अपने बेटों और पुत्र बधुओं को साथ लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े।

अभी वे लोग मिथिला से निकले ही थे कि रास्ते में बहुत भयंकर आंधी आई, उस आंधी को देखकर मिथिलावासी डर के मारे कांप उठे । उसी समय इस आंधी में से भगवान परशुराम जी निकल कर राम के आगे खड़े होकर कहने लगे। राम तुमने शिवजी के पुराने धनुष को तोड़कर अच्छा नहीं किया।

यह स्वयंवर की शर्त थी भगवान् ।

मैं कुछ नहीं जानता, मुझे यह धनुष ठीक उसी प्रकार से बनाकर दो, जैसा पहले था नहीं तो मैं तुम्हें शाप दे दूंगा।

यदि आपकी यही इच्छा है, परशुराम जी तो यह लो उसी समय भगवान, राम ने अपनी शक्ति से उस धनुष पर बाण चढ़ाया और बोले । क्यों भगवन, यदि इस तरह से मैं आपकी शक्ति समाप्त कर दूं तो कैसा रहे ।

नहीं नहीं भगवान वास्तव में मैं नहीं, आप महान हैं। यह कहकर परशुराम जी वहां से चले गए।


Balakanda – बालकांड Ramayan in Hindi का यह पहला भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।

2 thoughts on “Best Explained बालकांड रामायण कथा | Balakanda Ramayan in Hindi”

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