Best Explained लव कुश कांड रामायण कथा | Luv Kush Kanda Ramayan in Hindi

इस लेख में हम आपको रामायण के दूसरे भाग लव कुश कांडLuv Kush Kanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,

Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –

  1. बालकांड – Balakanda
  2. अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
  3. अरण्यकांड – Aranya Kanda
  4. किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
  5. सुंदर कांड – Sundara Kanda
  6. लंका कांड – Lanka Kand
  7. लव कुश कांड – Luv Kush Kanda

लव कुश कांडLuv Kush Kanda हिंदू धर्म के महाकाव्य रामायण का अंतिम श्लोक है। इसमें 111 सर्ग और 3432 श्लोक हैं। राजा राम के सुखी जीवन, सीता जी के बलिदान और लव-कुश के जन्म का वर्णन उत्तर काण्ड में मिलता है।

पुराणों के अनुसार सुखी जीवन और सुखद यात्रा के लिए उत्तर काण्ड का पाठ किया जाता है। लव कुश कांडLuv Kush Kanda को रामायण का सार भी कहा जा सकता है। इस भाग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सभी गुणों का वर्णन किया गया है।


लव कुश कांड रामायण कथा | Luv Kush Kanda Ramayan in Hindi

दोनों भाई इस आश्रम में अपनी माँ और गुरुदेव की संगत में रहने लगे । बाल्मीकि जी ने इन दोनों को बचपन से शस्त्र विद्या सिखाई। फिर धर्मग्रन्थों का पूरा ज्ञान देकर उन्हें बचपन में महाज्ञानी और महावीर बना दिया था।

इसी ज्ञान के साथ उन्हें अपने द्वारा रचित रामचन्द्र जी के काव्य चरित्र का अध्ययन करवाया । उसे दोनों भाई बहुत ही मधुर स्वर में गाते थे । उनका गाना सुनने को सैकड़ों बच्चे हर रोज जंगल में इकट्ठे होते थे।

उसी समय शत्रुध्न लवणासुर राक्षस का वध करके वापस आते हुए बाल्मीकि आश्रम आए तो उन्होंने लव-कुश को राम जी के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़े हुए इन दोनों बालकों को देखकर कहा

हे बालको! तुम दोनों कितने सुन्दर लगते हो, तुम्हें पता नहीं यह घोड़ा रामजी के अवश्वमेघ यज्ञ का है, तुम इसे छोड़कर घर जाओ । बेटे, जाओ मैं तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं।

अरे वाह रे क्षत्रिय वीर! यदि तुम में हिम्मत है तो आओ मैदान में लव-कुश दोनों एक साथ बोल उठे।

क्या तुम अपनी जिद्द नहीं छोड़ोगे बालकों ? यह राजशाही घोड़ा है, अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा इसे पकड़ने का अर्थ है राजा से युद्ध, बोलो तुम लोग युद्ध करोगे?

बस, फिर क्या था लव-कुश के साथ-साथ शत्रुघ्न को भी क्रोध आ गया। दोनों ओर से बाण वर्षा होने लगी-शत्रुघ्न तो उन दोनों के सामने कुछ भी नहीं कर पा रहे थे, अन्त में शत्रुघ्न बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े।

शत्रुधन को बेहोश होते देख उनकी सारी सेना अयोध्या की ओर भागने लगी । सैनिक ने जाकर रामजी को उस युद्ध की सारी कहानी सुनाई तो रामजी ने उसी समय लक्ष्मण को शत्रुधन की सहायता के लिए बड़ी सेना लेकर भेजा।

लक्ष्मण जी जैसे ही उन दो बालकों के पास घोड़े को देखा तो बड़े प्यार से बोले-हे बालकों ! तुमने यह भूल क्यों की, क्या अपनी जान प्यारी नहीं है।

हम बालक अवश्य हैं, किन्तु बुजदिल नहीं, यदि आप क्षत्रिय हैं तो आओ हो जाए युद्ध । लक्ष्मण जी को उस समय क्रोध आ गया था बस तीनों में युद्ध होने लगी।

इस युद्ध में लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। सारी सेना भागकर रामजी के पास पहुंची, तो इस बार भरत जी को भेजा।

अबकी बार लवकुश ने भरत के साथ युद्ध करके उनको भी मूर्छित कर दिया । उन दोनों ने वीर हनुमान से युद्ध करके उनकी वानर सेना को भगा दिया। हनुमान जी अपने हथियार फेंकते नजर आए और कहने लगे, यह बालक साधारण मानव नहीं है, यह कोई अवतार है । इस हार पर रामचन्द्र जी बहुत दुःखी हुए और अबकी बार वह स्वयं युद्ध करने आये ।

रामचन्द्र जी जैसे ही इस बालकों को देखा तो आश्चर्य से बोले-तुम कौन हो, तुम्हारे माता-पिता कौन हैं ?

श्रीराम के मुख से यह शब्द सुन लव क्रोध से बोला देखो महाराज! यदि आपको युद्ध करना है तो हथियार उठाओ, रणक्षेत्र में किसी शत्रु से ऐसी बात नहीं की जाती । बालक तुम बहुत क्रोधी हो और बहादुर भी, इसलिए अपने माता-पिता का नाम तो बता दो-हमारा नाम लवकुश है । हमारी माँ का नाम सीता है । बाल्मीकी जी ने हमारा पालन किया हैं।

रामचन्द्र जी समझ गए ये दोनों पुत्र तो उन्हीं के हैं । अब इनसे युद्ध भी क्या किया जाए, वे युद्ध नहीं करते तो क्षत्रिय धर्म का अपमान है । रामचन्द्र जी युद्ध तो कर रहे हैं, किन्तु उनके बाण लवकुश से दूर ही जाकर गिर रहे थे। किन्तु लवकुश तो उन्हें अपना शुत्र मानकर मार रहे थे।

इसलिए उसी समय रामचन्द्र जी बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। सीता जी के मन में उसी समय एक दर्द-सा उठा-उसी समय सीता जी अपनी कुटिया से बाहर निकल कर जंगल की ओर भागने लगी, उनके पीछे बाल्मीकि जी चले आ रहे थे।

सीता जी जब श्रीराम को मूर्छित हुए देखा, फिर हनुमान को बन्दी बना देखा तो वह रोते हुए बोली । हे बेटा! यह तुमने क्या किया भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न से युद्ध करके मूर्ति बनाकर पूजा करती थी न, आज हमने इसे जीवित ही पकड़ लिया है, खुब पूजा करना इनकी।

चुप रहो मूर्खों ! तुमने तो मुझे विधवा बना दिया है, श्रीराम मझे रुठे पड़े हैं अब मेरे जीने का लाभ भी क्या है जब अपना खून ही शत्रु बन जाए तो इससे बड़ा पाप भी क्या हो सकता है अब तुम लोग मेरे लिए चन्दन की चिता सजा दो, मैं श्रीराम के साथ ही जल मरूंगी।

बाल्मीकी जी ने सीता जी को समझाते हुए कहा-देखों! तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारे सुहाग को कुछ नहीं हुआ । मैं अभी इन्हें उठाता हूं यह तो स्वयं भगवान हैं, इन्हें तो कोई नहीं मार सकता । इतना कहते हुए बाल्मीकी जी रामचन्द्र जी पास गए और प्यार से उनके शरीर पर हाथ फेरते हुए बोले-उठो श्रीराम, अब निद्रा त्याग दो । देखो, बेटी सीता आई हैं और वह दोनों पुत्र आपही के तो हैं।

बालमीकी जी की मधुर वाणी सुनकर रामजी बड़े आनन्द से बोले-हे महर्षि ! यह सब क्या हो रहा है ?

भगवान यह तो आपकी रचाई लीला है अब क्यों भोले बनते हो। यह दोनों बेटे लवकुश आप ही के संतान है। तभी तो ये इतने बड़े बन गए जिन्होंने लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न तक को पराजित कर दिया । बाल्मीकी जी की कृपा से बेहोश उन्हें होश आ गया । सीता ने दोनों हाथ जोड़कर अपने प्रभु को प्रणाम किया और सर झुकाकर बोली-हे प्रभु! अब मेरा कार्य पूरा हो गया। अब मुझे आज्ञा दो धरती माँ से बोली-हे धरती माँ! अब मैं अपने पति भगवान श्रीराम की इच्छा पूरी कर ली। मेरी तपस्या पूरी हो चुकी । यदि मैं सच्ची पतिव्रता नारी हूं तो मुझे अपनी गोद में स्थान दो मां।

सीता के शब्द सुन उसी समय धरती फट गई हवा का एक तेज झोंका सीताजी को अपनी गोद में उठाकर धरती के अन्दर ले गई। श्रीराम जी ने लवकुश को अपने गले से लगा किया और फिर वापस अयोध्या आ गए । रामजी के दोनों पुत्रों के अयोध्या आने पर सारे देश में खुशी मनाई गई। सच्चे राम राज्य की स्थापना हो गई।


लव कुश कांडLuv Kush Kanda in Hindi का यह तीसरे भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।

3 thoughts on “Best Explained लव कुश कांड रामायण कथा | Luv Kush Kanda Ramayan in Hindi”

  1. मैं प्रभु श्रीराम को आराध्य मानता हूँ परन्तु इस सन्दर्भ को किसी भी ग्रन्थ में पढ़ नहीं पाया. लेकिन सन्दर्भ कहाँ किस ग्रन्थ में मिलेगा? मैंने कहीं पढ़ा था कि महर्षि वाल्मीकि आश्रम में लव कुश के साथ ही महर्षि अत्रि की पुत्री आत्रेयी भी शिक्षा प्राप्त करती थीं. उसका सन्दर्भ भी नहीं पाया. मुझे इतना तो मालूम है कि कुश का जन्म और नामकरण पहले हुआ और लव का बाद में, इन दोनों के बारे में अधिक प्रामाणिक विस्तार के सन्दर्भ हों तो कृपया बताइयेगा.

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  2. लवकुश कांड सिर्फ वाल्मिकीय रामायण में ही उपलब्ध है । गीताप्रेस से प्रकाशित राम चरितमानस में नहीं है । फिरभी हमने लवकुश कांड सहित आठ कांड वाला रामायण पढ़ा है । छोटी उम्र में प्रकाशक वगैरह का चक्कर पता नहीं था । हो सकता है वह कांड क्षेपक हो । शायद अपने आराध्य देव प्रभु राम को निष्ठुर नहीं दिखाना चाहते होंगे गोस्वामी तुलसीदास जी । इसलिए सीता माता के त्याग का वर्णन
    नहीं किया ।

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