Best Explained लंका कांड रामायण कथा | Lanka Kanda Ramayan in Hindi

इस लेख में हम आपको रामायण के छठें: भाग लंका कांड – Lanka Kanda की सम्पूर्ण कहानी के बारें में विस्तार से लिखा है,

Ramayan in Hindi में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –

  1. बालकांड – Balakanda
  2. अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
  3. अरण्यकांड – Aranya Kanda
  4. किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
  5. सुंदर कांड – Sundara Kanda
  6. लंका कांड – Lanka Kand
  7. लवकुश कांड – Luv Kush Kanda

लंका कांड – Lanka Kanda महर्षि वाल्मीकि द्वारा महाकाव्य रामायण की छठी कड़ी है। महाकाव्य के इस भाग में 5692 श्लोक हैं।

लंका पर चढ़ाई के लिए रामसेतु का निर्माण, भगवान राम की शरण में जाने वाले रावण के भेदी भाई विभीषण, राम और रावण के बीच युद्ध और श्री राम द्वारा रावण के वध की कहानी और वनवास पूरा कर अयोध्या लौटने की कहानी। आयोजन शामिल हैं।

ऐसी धारणा है कि शत्रु की विजय रामायण के लंका कांड – Lanka Kanda या युद्धकांड का पाठ करने से उत्साह और अपवाद के दोषों से मुक्ति मिलती है।


लंका कांड रामायण कथा | Lanka Kanda Ramayan in Hindi

युद्ध की तैयारियां

भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए महाराज सुग्रीव ने अपनी सेना को तैयारी के आदेश दे दिए । सेना की नयी भर्ती भी आरम्भ कर दी गई थी, इन कार्य के लिए हनुमान और अंगद वीर जामवंत को नियुक्त किया गया था।

नई-नई सेनाएं युद्ध का प्रशिक्षण ले रही थी और हनुमान ने छः ही दिनों के अन्दर ही इतनी बड़ी विशाल वानर सेना तैयार कर ली कि स्वयं राम उस सेना को देखकर हैरान रह गए थे वे तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

जामवंत ने ऐसी ही एक विशाल रीछ सेना तैयार कर ली थी बानरों और रीछ का पंचवटी के जंगल में इतनी बड़ी संख्या में देख-देखकर जंगली जानवर भी हैरान हो रहे थे।

सागर पार करके तो लंका में प्रवेश किया जा सकता था यह समस्या कोई साधारण समस्या तो नहीं थी कि जिसका समाधान इतनी आसानी से हो जाता इस गम्भीर समस्या पर सबने मिलकर विचार किया सागर पर पुल कैसे बने ।

यदि सागर पर पुल नहीं बनेगा तो लंका तक कोई नहीं पहुंच पायेगा यदि लंका तक सेना नहीं पहुंचेगा तो युद्ध होगा युद्ध नहीं होगा तो सीता जी को भी वापस कैसे लाया जायेगा।

इसी सभा में दो महान शिल्पीकार विश्वकर्मा जी के वंश के नल और नील उपस्थित थे उन दोनों भाईयों ने खड़े होकर कहा।

देखो भगवन्! आप हमारे होते हुए चिंतित मत हो । देखो हम बनायेंगे इस पुल को हम भगवान विश्वकर्मा के वंश के हैं जो इस कला के जन्मदाता हैं हम सब वानरों को ले जाकर कुछ ही दिनों के अन्दर यह पुल तैयार कर देंगे।

वाह… वाह… वाह चारों ओर नल और नील की जय-जयकार होने लगी।

उसी दिन से सागर पर पुल बनना आरम्भ हो गया ।

उधर रावण कोई कच्ची गोलियां नहीं खेला था। वह बहुत बड़ा विद्वान था उसे यह पता था कि शत्रु कमजोर नहीं जो इससे डरकर शान्ति से बैठ जायेगा इसलिए शत्रु के बारे में पूरा ज्ञान रखना आवश्यक होगा।

बस इसी कार्य के लिए उसने गुप्तचरों को राम के पीछे लगा रखा था।

उन्हें गुप्तचरों के माध्यम से रावण को यहाँ पता चल गया था कि लंका पर आक्रमण की पूरी तैयारियां हो चुकी हैं । इस बात पर उसे भी आश्चर्य था कि सागर तट पर पुल भी बना सकता है।

रावण के भाई विभीषण ने इस युद्ध को काटने के प्रयास में अपने भाई से जाकर कहा-भईया! आप सीताजी को राम के पास भेज दें तो यह विनाशकारी युद्ध टल सकता है। भईया! वे लोग धर्म के लिए लड़ रहे हैं। सीता एक विवाहित नारी है उसके बारे में ऐसी बात सोचेंगे तो महापाप होगा।

विभीषण तुम गद्दार हो देशद्रोही हो लगता है कि तुम शत्रु से मिल गए हो। अब तुम्हारा इस देश में रहना ठीक नहीं लगता जाओ तुम लंका से निकल जाओ हम गद्दार की शक्ल तक देखना नहीं चाहते।

विभीषण जी लंका से पंचवटी की ओर आ गए । राम की सेना ने जब लंका की ओर से आनेवाले इस राक्षस रुपी इन्सान को देखा तो उन्होंने विभीषण को शत्रु समझकर बंदी बना लिया और उसे राम के पास ले गए।

विभीषण ने श्रीराम को आप बीती सुनायी और बोले आप चाहें तो मेरा सिर काटकर फेंक दें मगर मैं दुष्ट भाई के पास नहीं जाऊंगा।

अंगद का लंका में जाना

नील और नल के तेज दिमाग से ही सांगर पर लंका और भारत के बीच पुल तैयार हो गया। अब युद्ध की तैयारियां पूरी हो गइ थी फिर भी राम ने इस युद्ध को टालने की अन्तिम कोशिश की और अंगद को बुलाकर कहा कि तुम हमारे दूत बन कर रावण के पास जाओ और अन्तिम बार समझा दो कि युद्ध से कोई लाभ नहीं होगा।

तुम चाहो तो इस युद्ध को अब भी टाल सकते हो। हमारी सीता लौटा दो तो यह भयंकर विनाश रुक सकता है।

मेघनाद एक ऐसा वीर था जिसकी तलवार के आगे बड़े-बड़े वीर दम तोड़ देते थे। उसके पास ऐसे शक्तिशाली वाण थे जिसके आगे बड़े-बड़े बहादुर कांपने लगते थे।

राम, लक्ष्मण पर मेघनाद ने इतनी जोर से बाण वर्षा की कि राम और लक्ष्मण मूर्छित होकर रणभूमि में गिर पड़े।

उसने अपने बेटे को गले से लगाकर उसका मुंह चूम लिया और छाती से लगाकर कहा मेरे बेटे तुमने यह काम कर दिखाया जो इस संसार में कोई नहीं कर सकता था। वे दोनों मारे गए जो रावण को मारने के सपने देख रहे थे । आप स्वयं गए हो हा… हा… हा… अब तो सीता हमारी हो गई वे हमारी अब हम ही उस विधवा को सुहागिन बनायेंगे।

राम और लक्ष्मण के. चारों ओर नल, नील, वीर हनुमान, वीर अंगद, जामवंत, सुग्रीव बैठे आंसू बहा रहे थे। उन्होंने अपनी पराजय भी स्वीकार कर ली अब यदि वह जीतने के लिए युद्ध करते भी हैं तो किसके लिए।

इन सबको निराश के सागर में डूबे देखकर विभीषण जी आये तो उन्होंने राम और लक्ष्मण की नाड़ी पर हाथ रखकर देखा फिर माथे पर हाथ रखा उन सबको देखकर चिल्लाये ।

मूर्खो रोना धोना बन्द करो । श्रीराम, लक्ष्मण जीवित हैं। केवल मूर्छित हो गए हैं । गुलाब जल लेकर आओ-हनुमान जी ने ऊंची छलांग लगाकर सैकड़ों गुलाब के फूल तोड़ लिए उनका रस निकालकर विभीषण के पास लाये ।

विभीषण जी ने गुलाब के रस के छींटे रामचन्द्र जी के मुंह पर लगाये फिर लक्ष्मण जी के मुंह पर छींटे मारकर देखा तो उसी समय श्रीराम अपने आप उठ खड़े हुए उनकी मूरछा दूर होते ही सब लोग खुशी से नाचने लगे-रामजी को होश आया तो रामजी जीवित हैं सारी बानर सेना खुश हो गई।

श्रीराम को होश आ गया किन्तु भाई लक्ष्मण उसी भांति बेहोश पड़े थे। उन्हें इस हालत में पड़े देखकर राम जोर-जोर से रोने लगे और लक्ष्मण की छाती पर सिर रखकर पीटने लगे।

रक्षा रोने से नहीं बुद्धि से होगी प्रभु । देखो ऐसे अवसर पर हमें यदि संजीवनी बूटी कहीं से मिल जाए तो लक्ष्मण की जान बच सकती है।

संजीवनी मिलेगी कहां कैलाश पर्वत पर जो भी बूटी दूर से चमकती नजर आ जाए । वह अमृत के समान है बस उसे लाने की बात जरा कठिन हैं । मैं संजीवनी लेने जा रहा हूं प्रभु । जय श्रीराम ।

इतना कहते ही पवन पुत्र हवा में उड़ने लगे।

सुबह होते ही हनुमान जी संजीवनी बूटी को लेकर आये । उसी समय विभीषण ने उस पहाड़ पर उगे संजीवनी बूटी के थोड़े पत्ते तोड़कर उनका रस निकालकर लक्ष्मण जी के मुंह में डाल दिया ।

उसी समय लक्ष्मण जी को होश आ गया लक्ष्मण को होश आते ही सारी बानर सेना खुशी से नाच उठी । रावण के गुप्तचरों ने भी उन्हें यह समाचार दिया कि राम और लक्ष्मण दोनों जीवित हैं।

रावण को जैसे अपने कानों में आवाज आई पर विश्वास न आ रहा था। इसलिए क्रोध में भर बोला । अब मैं इन दोनों बालक को मजा चखाकर आता हूं।

उधर सुग्रीव, अंगद, जामवन्त, वीर हनुमान, राम, लक्ष्मण युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे। बस दोनों ओर से एकदसरे पर भयंकर आक्रमण किए जाने लगे । वाणे का जवाब बाणों से और तलवार का जवाब तलवारों से दिया जाने लगा।

कुम्भकर्ण वध

राम के हाथों से पराजित होकर रावण अपने मन में बड़ा लज्जित हुआ। वह अपनी पराजय को सामने देख रहा था । इस पराजय को टालने का एक और भी उपाय था ।

कुम्भकर्ण चाहता तो अकेला ही राम, लक्ष्मण को मार सकता था। किन्तु उसे नींद का रोग लगा था वह छ: मास सोता था और छः मास जागता था । अभी तो वह सोया हुआ था उसे जगाना कोई सरल काम नहीं था । मगर मजबूरी को सामने देखते हुए रावण ने कुम्भकरण को जगाया तो उसने उठते ही रावण से पूछा । भईया क्या बात है जो आपने मुझे सोते हुए जगा दिया।

रावण ने कुम्भकर्ण को अपना सारा दुःख सुना दिया। अब तुम ही एक ऐसे वीर हो जो हमें बचा सकते हो। यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है भईया तो मैं युद्ध के लिए तैयार हूं।

कुम्भकर्ण क्या था मौत का तूफान था। जिधर भी कुम्भकर्ण का हाथ जाता उधर लाशों के ढेर लग जाते। राम की सेना में हाहाकार मच गया। वे सब डर के मारे पीछे हटने लगे अपनी सेना को भागते देखकर सुग्रीव और अंगद आए लड़े तो कुम्भकरण ने उन दोनों को भी घायल कर दिया । उसी समय रामजी ने अपने सारथी से कहा कि मेरे रथ को कुम्भकर्ण के सामने ले चलो ! कुम्भकर्ण ने एक साथ कई बरछियां राम पर दे मारी।

राम समझ गए कि खूनी राक्षस इतनी आसानी से काबू में नहीं आएगा। इसलिए उन्होंने एक शक्ति बाण कुम्भकर्ण की गरदन पर मारा। उसकी गरदन हवा में उड़ती हुई न जाने कहाँ जा गिरी कुम्भकर्ण का बचा हुआ शरीर धरती पर जा गिरा। श्रीराम की जय-जय कार होने लेगी।

मेघनाद वध

कुम्भकरण की मृत्यु से रावण का दिल टूट गया । वह समझ गया अब उसके बुरे दिन आ गए हैं। एक-एक करके उसके सारे वीर मारे जा चुके हैं । अब केवल मेघनाद ही ऐसा वीर बचा है जिस पर विश्वास किया जा सकता था।

यह सोचकर रावण ने मेघनाद को बुलाकर कहा । बेटे मेघ! मुझे तुम पर गर्व है । तुमने ही इन्द्र को जीता था । अब तुम ही राम को जीतकर सिद्ध कर दो कि तुमसे बड़ा वीर इस धरती पर कोई नहीं है।

पिताजी! आप चिन्ता क्यों करते हैं ? कल सुबह मैं राम, लक्ष्मण दोनों के सिर काटकर आपके सामने रख दूंगा।

मेघनाद अपनी बहुत बड़ी राक्षसी सेना को लेकर युद्ध के लिए निकला तो उसकी आंखों में खून उतर आया। उसके दोनों हाथों में लम्बी तलवारें थी । जिधर भी उसकी तलवार निकल जाती उधर ही बानरों की लाशों का ढेर लग जाते ।

लक्ष्मण अपनी सेना को इस प्रकार वध देखकर तड़प उठा उसे अपने सारथी से कहा कि मेरा रथ मेघनाद के सामने ले चलो । आज मैं देखता हूं इस इन्द्रजीत की भुजाओं में कितनी ताकत है ? मेघनाद ने अपने सामने लक्ष्मण को देखा तो उसका क्रोध और भी तेज हो गया। उसने अपने हाथों को आगे करके दोनों तलवारों से लक्ष्मण पर भयंकर आक्रमण किया।

इस बार लक्ष्मण जी ने अपने को बचाया ही नहीं बल्कि इस बात का पूरा लाभ उठाया कि मेघनाद यह समझ रहा था कि अब लक्ष्मण मर ही जाएगा मगर लक्ष्मण ने उसी अवसर का लाभ उठाया और महाशक्ति बाण उसके गले पर मारा जिससे गला काटकर सीधा उसकी माँ के चरणों में गिरा। इस प्रकार रावण के सारे बेटे एक-एक करके मारे गए।

राम रावण युद्ध

सुबह होते ही रावण बची हुई राक्षसी. सेना को इक्ट्ठा किया और ब्रह्माजी की पूजा करने गया । माथे पर चन्दन का बड़ा टीका लगाए वह पूर्ण ब्राह्मण के भेष में युद्ध के लिए क्रोध से पागल हो रहा था।

बानर सेना पर रावण सेना भूखे शेर की भांति टूट पड़ा। रावण राम को तलाश करता हुआ ठीक उसके रथ के सामन पहुंच गया ।

राम! मैं तुझसे अपने परिवार की हत्या का बदला लेने आया हूं। यदि बच सकते हो तो बच लो।

यह तो समय ही बताएगा रावण कि किसकी मौत किसके हाथों में है। मगर रावण के हाथों से कोई आज तक बचा नहीं।

एक बचा था जिसने रावण को मार गिराया था उसका नाम था बालि । बस उसी को मैंने मार डाला और अब केवल आप ही बचे हैं इसी धरती पर जिन्हें मारकर मैं धरती से पापों का बोझ कम करुंगा। राम! सम्भालो मेरी बर्थी का वार यह ब्रह्मशक्ति वाली बरछी है । इस प्रकार से उस बर्छी से राम घायल हो गए।

क्रोध से भरे राम ने एक खूनी बाण रावण की छाती पर मारा इस शक्ति बाण के चलते ही चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल गया इसके लगते ही रावण के सीने से खून की धारा बह निकली।

किन्तु रावण हार मानने वाला कहां था । उसने भी राम पर भयंकर आक्रमण कर दिया । राम ने भयंकर-से-भयंकर तीर रावण पर छोड़े किन्तु उस पर तो जैसे तीर का असर ही न होता हो । रावण पर किसी भी हथियार का असर नहीं होता।

भगवान यह पापी न दिन में मरेगा न रात में इस समय तक इसे कोई नहीं मार सकेगा । जब तक इसकी छाती के अन्दर अमृत कुन्ड को अपने तीरों से तोड़कर तहस-नहस नहीं कर दोगे। लड़ते-लड़ते सुबह से शाम हो गई।

शाम का सूर्य आधा प्रकाश के अन्दर और आधा बाहर था। जिसका अर्थ था यह न दिन है न रात । उसी समय रामजी ने महर्षि अगस्त्य द्वारा दिया गया ब्रह्मा जी का बाण निकालकर रावण की छाती में उस स्थान पर दे मारा जहां पर अमृत कुण्ड था।अमृत कुण्ड टूटकर बिखर गया । जैसे ही अमृत कुण्ड बिखरा वैसे ही रावण का शरीर टूट गया । वह अपने रथ से सीधा धरती पर आ गिरा।

रावण मर गया। वानर सेना खुशी से झूमने लगी।

चले श्रीराम अयोध्या

विभीषण ने अपने मृत भाई रावण को धरती पर चित पड़े देखा तो वह रोता हुआ अपने भाई के चरणों में बैठकर बोला।

भईया यह सब क्या हो गया? आपसे तो मौत भी डरती थी आप जब अपनी गदा लेकर निकलते थे तो पृथ्वी भी कांपने लगती थी। विभीषण फूट-फूटकर रोने लगा।

देखो विभीषण अब रोने से कोई लाभ नहीं जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु अवश्य होगी । फिर रावण तो एक अच्छी मौत मरा जिसके हाथों से उसके जीवन का अन्त हुआ है सीधा स्वर्ग में जाएगा।

चलो अब तुम चलकर लंका राज्य सम्भालो । बोलो श्रीराम लक्ष्मण, सीता जी की जय ।

उसी समय सीता जी को राम के पास लाया गया । राम ने सीता को बांहों में भर लिया। भाई लक्ष्मण ने भाभी के चरणों में झुककर प्रणाम किया । बानर सेना सीता माता को प्रणाम कर रहे थे । सब लोग विभीषण को राज तिलक करने के लिए रावण के महलों में गए रावण राज्य का अन्त होकर राम राज्य आरम्भ होने लगा था।

लंका में कुछ दिन रहने के पश्चात् श्रीराम ने अयोध्या जाने की तैयारी कर ली किन्तु हनुमान जी और सुग्रीव जी को भी यह जिद्द था कि वे भी अयोध्या चलेंगे। इस स्थान का राज्य अंगद ही कुछ दिनों के लिए चलायेंगे। उधर अयोध्यावासियों को यह खबर मिल गई जो कि श्रीराम, लक्ष्मण, सीता चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके वापिस अयोध्या लौट रहे हैं।

उसी दिन सारे देश में दीप जलाई गई । रामजी का स्वागत करने वालों में सबसे आगे भाई भरत और शत्रुघ्न के साथ राजा जनक भी उनके साथ चल रहे थे।

श्रीराम का राजतिलक हुआ तो देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की । दीपावली की मिठाईयां बांट-बांट कर लोग खुशी से गले मिल रहे थे।

जय-जय श्रीराम ! जय-जय श्रीराम ! हर तरफ देशवासी इसी नाम की जय-जयकार कर रहे थे।

सीता वनवास

राम राज्य की स्थापना रामजी का सबसे पहला काम था उन्होंने अपनी प्रजा के सुख के लिए अनेकों कार्य आरम्भ किया। गरीबो को अपना जीवन देकर उनके राज्य में अमीर-गरीब छोटा -बड़ा सबके बरबार का व्यवहार किया जाये। अपने सैनिकों को आदेश दिया वे प्रजा की हर बात उन तक पहुंचाये।

एक दिन एक गप्तचर ने रामजी को आकर यह सूचना दी-स्वामी । एक धोबी अपनी पत्नी के साथ मार-पीट कर रहा था । जब उसे रोकना चाहा तो उसने क्रोध में आकर कहा

अरे तुम हट जाओ मैं इसे ऐसा मारूंगा कि यह लोगों के घरों में जाना छोड़ देगी। मैं राम तो हूं नहीं जो पराये घर में रहकर आने वाली स्त्री को अपने घर में रख लूंगा।

धोबी के शब्द अपने गुप्तचर से सुनकर राम को बहुत कष्ट हुआ।

उधर सीता जी गर्भ से थी। जब उन्हें राम के इस कष्ट का पता चला तो स्वयं ही उन्हें हाथ जोड़ते हुए कहा-हे पति परमेश्वर मेरे स्वामी जो चिन्ता आपके मन में है मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूं। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे पुनः तपोवन में भेज दे ताकि मैं मुनियों और महात्माओं के दर्शन कर सकू। इसी में हम दोनों को सुख मिलेगा।

श्रीराम ने सीता जी की ओर देखा तो उनकी आंखों में आंसू निकल आए । मोह माया के बन्धन कर्तव्य के आगे तोड़ने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ा। आप संकोच में क्यों पड़ गए मेरे प्रभु क्या आप अपनी सीता को इतना कमजोर समझते हो जो आपके लिए इतना भी त्याग नहीं कर सकती? मैं तो सती हूं मुझे आशीर्वाद दो मेरे स्वामी।।

सीता जी की जिद्द के आगे राम भी बेबस थे उन्होंने अपने मन पर पत्थर रखकर यह निर्णय किया कि सीता को पुनः वनवास दिया जाये। जब लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न को रामजी के इस निर्णय का पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ कि श्रीराम ने उनकी एक न सुनी उन्होंने अपने निर्णय को बदलने से इन्कार कर दिया।

तीनों भाई सीता जी को लेकर वन में बाल्मीकि जी के आश्रम में छोड़ने चले गए सारे भाई रो रहे थे। इसी प्रकार से सीताजी बाल्मीकि आश्रम में पहुंच गई वहां पर सारे मुनियों ने माँ सीता का आदर सत्कार किया।

बाल्मीकि जी ने कहा-बेटी सीता मुझे इस बात की तो खुशी है कि तुम मेरे आश्रम में आ गई हो किन्तु, इस बात का दुःख भी है कि अयोध्या की रानी, देवी सीता इस हालत में महलों से कैसे आ गयी, क्या मैं इस बैराग का कारण जान सकता हूं।

सीता जी बोली-श्रीराम ने दामन पर लगे रावण के दाग को धोने के लिए यह सब त्याग दिया है मुनिवर ! इतनी बात कहते हुए सीता जी ने उस धोबी वाली सारी बात मुनिवर को सुना डाली।

बेटी सीता! आओ देवी अन्दर आओ अपने चरणों से इस धरती को पवित्र करो तुम इस समय गर्भ से हो, मेरी दो शिष्या इस समय आश्रम में हैं, वह तुम्हारी देख भाल करेगी।

अन्य हैं आप मुनिवर,मैं आपका यह एहसान जीवन-भर न भुलूंगी। उसी दिन से सीता जी बाल्मीकि जी के आश्रम में रहने लगी।

अश्वमेघ यज्ञ

राज राज्य के सफल होने के पश्चात जब सारे देश की जनता आनन्द मगन होकर रहने लगे, तो रामजी ने अपने गुरु वशिष्ठ जी की सलाह पर अवश्मेघ यज्ञ करने की इच्छा अपने भाईयों के सामने प्रकट की।

अपने भाईयों की सहमति पाकर रामजी बहुत खुश हुए उन्होंने उसी समय अपने भाईयों से कहा कि आप सब राजाओं को पत्र लिख कर निमंत्रण भेजो कि अब हम विश्व विजेता के रुप में राम राज्य की प्रसिद्ध करना चाहते हैं, सब राजा हमारा इस कार्य में हमें सहयोग दे, इसलिए हम अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं।

चारों और रामराज्य की गूंज हो रही थी। अयोध्यावासी अब राजा को विश्व का महान सम्राट बनने की खुशी से झूम रहे थे चारों ओर श्रीराम की जय-जयकार हो रही थी।

जैसे ही यज्ञ आरम्भ हुआ तो मुनियों ने रामजी से कहा कि यहां पर सीताजी के न होने के कारण यह यज्ञ पूरा नहीं हो सकता। कोई बात नहीं राम और सीता जी की एक प्रतिमा किसी कलाकार से बनवाकर अपने पास रख लें। इससे यज्ञ सम्पूर्ण माना जाएगा उसी समय प्रतिमा तैयार करके श्रीराम के साथ बैठा देखने में वह प्रतिमा बिल्कुल ही सीताजी ही नजर आ रही थी।

जैसे ही यज्ञ आरम्भ हुआ उसी समय अश्वमेघ का घोड़ा पास लाया गया । शाही घोड़े पर अयोध्या नरेश रामजी का भगवां झण्डा लहरा रहा था। जिसके ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा था-राम राज्य का प्रतीक चिन्ह, यज्ञ विश्व विजय करने वाला घोड़ा है तथा एक पत्र चांदी की तख्ती पर छापा गया था। यह पत्र इस प्रकार था

यह विश्व विजेता रामजी का घोड़ा है। इसे झुककर नमस्कार करो, क्योंकि राम ही इस समय महान राजा हैं जो महान नहीं मानता, वह इस घोड़े को पकड़े और युद्ध के लिए तैयार हो जाए।


लंका कांड – Lanka Kanda in Hindi का यह छठें: भाग कैस लगा कमेंट करके जरूर बताये, अगर आपको इसमें कुछ कमियां दिखती है तो वो भी आप जरूर बताए। उसे हम जल्द से जल्द सही कर देंगे।

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